ग्राम यात्रा: जैविक खेती के बलबूते उत्तराखंड में रानीखेत के पास चिलियानौला से लेकर भीमताल के किसानों ने खड़ा किया एग्री बिज़नेस

किसान ऑफ़ इंडिया की टीम दो दिन के उत्तराखंड के दौरे पर पहुंची। यहां हमने रानीखेत के पास चिलियानौला और भीमताल के अचनौला गांव के दो प्रगतिशील किसानों से मुलाकात की।

जैविक खेती

जैविक खेती हो या आधुनिक खेती, किसान ऑफ़ इंडिया आपके लिए देश के अलग-अलग कोनों से खेती-किसानी की कहानियां लाता रहा है। हाल ही में मैं अपनी टीम के साथ उत्तराखंड पहुंची। उत्तराखंड का मेरा ये दौरा दो से तीन दिन का रहा। पहले दिन मैं अल्मोड़ा ज़िले के खूबसरत हिल स्टेशन रानीखेत पहुंची। यहां के प्रगतिशील किसान मनोज भट्ट से मेरी मुलाकात हुई। उनसे मिलने के लिए मैंने पहले से ही समय लिया हुआ था। रानीखेत के चिलियानौला गाँव के रहने वाले मनोज भट्ट ने हमारा बड़ा स्वागत- सत्कार  किया। उन्होंने अपने खेती-किसानी के सफर के बारे में बताना शुरू किया। मनोज भट्ट ने अपने खेती के सफर की शुरुआत 2009 से की। मनोज भट्ट ने बताया कि एक वक़्त ऐसा था कि बुनियादी ज़रूरतें भी पूरा करने के लिए पैसे नहीं हुआ करते थे। आज वो 10 नाली ज़मीन ( 1 नाली = 2190 स्क्वायर फीट) में कई फसलों की खेती कर रहे हैं। साथ ही एक सफल उद्यमी भी हैं।

खड़ा किया जैविक खेती का बिज़नेस मॉडल

मनोज ने जैविक खेती का ऐसा बिज़नेस मॉडल तैयार किया है, जो वाकई काबिले तारीफ़ है। मनोज ‘आरोग्य उत्तराखंड फ़ूड संस्थान’ के नाम से फ़र्म चलाते हैं। ये संस्थान महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दे रही है। संस्थान ने अपने साथ आसपास के 22 गाँवों की करीब 550 से भी ज़्यादा महिला किसानों को जोड़ा है। इन महिला किसानों से उपज खरीद उन्हें प्रोसेस कर ऑर्गेनिक प्रॉडक्ट्स तैयार किये जाते हैं। ये ऑर्गेनिक प्रॉडक्ट्स ‘आरोग्य’ ब्रांड के तहत बिकते हैं। ये सभी उपज पीजीएस प्रमाणित उत्तराखंड के किसानों से खरीदे जाते हैं।

जैविक खेती

बुरांश की चाय की अच्छी मांग

आरोग्य ब्रांड के तहत जो प्रॉडक्ट्स तैयार किये जाते हैं, उनकी डिमांड देश के कई बड़े शहरों में है। बिच्छू घास की चाय पत्ती, बुरांश की चाय और जूस, मुनस्यारी का राजमा, लाल चावल, कोल्ड प्रेस तेल, काले तिल का तेल, स्वर्ण हल्दी पाउडर जैसे कई उत्पाद तैयार किये जाते हैं। उन्होंने हमें अपना एक-एक प्रॉडक्ट दिखाया। इसके बाद हमने उनके खेतों का रूख किया। उन्होंने हमें अपनी मूली, सरसों, धनिया और लहसुन समेत कई फसलें दिखाईं। साथ ही हमने उनके द्वारा तैयार किये जाने वाली बुरांश की चाय का भी स्वाद चखा। आपको बता दूं कि बुरांश उत्तराखंड का राजकीय वृक्ष है। वहां के कई किसान इसकी खेती करते हैं। इसके बाद हमने उनसे मार्केटिंग को लेकर बात की। उन्हें FSSAI का लाइसेन्स मिला हुआ है। FSSAI लाइसेंस को ‘फूड लाइसेंस’ के नाम से भी जाना जाता है। ये लाइसेंस किसी भी फ़ूड से संबंधित बिज़नेस को भारत में चलाने के लिए जरूरी है क्योंकि ये लाइसेंस प्रमाणित करता है कि आप जो फ़ूड प्रॉडक्ट बनाते या बेचते हैं वो उन फ़ूड स्टैंडर्ड्स को सैटिसफाई  करता है जो भारत सरकार द्वारा निर्धारित किये गए है।

जैविक खेती

महिला किसानों को अपने साथ जोड़ा

मनोज कहते हैं कि उनके इस कार्य से क्षेत्र की कई महिलाओं को रोज़गार  मिला है। आज वो किसी पर निर्भर नहीं है। वो अपने पैरों पर खड़ी हैं। उन्हें उनकी उपज का सही दाम दिया जाता है। उन्हें अपनी उपज बेचने के लिए बाहर बाज़ार या मंडी के चक्कर नहीं लगाने पड़ते। मनोज भट्ट से इस पूरी बातचीत का वीडियो आप जल्द किसान ऑफ़ इंडिया के यूट्यूब चैनल और फेसबुक पर देखेंगे।

प्राइवेट नौकरी छोड़ खेती को अपनाया

मनोज भट्ट की स्टोरी कवर करने के बाद उसी रात को हम भीमताल के लिए निकल पड़े क्योंकि हमारा अगला पड़ाव भीमताल का गाँव अलचौना था। नैनीताल ज़िले के भीमताल के गाँव अलचौना के रहने वाले प्रगतिशील किसान आनन्द मणि भट्ट से मैंने मुलाकात की। वो एक किसान परिवार से आते हैं और एमकॉम पास हैं। उन्होंने कई साल प्राइवेट सेक्टर में नौकरी की, लेकिन शुरू से ही उनका लगाव खेती-किसानी से रहा। उन्होंने नौकरी छोड़ 2013 से खेती में कदम रखा। आज वो एक एकड़ में खेती करते हैं। मटर, टमाटर, फूल गोभी, बीन्स और काले आलू जैसी कई सब्जियों की खेती करते हैं।

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गाँव के 70 प्रतिशत से ज़्यादा किसान कर चुके हैं जैविक खेती का रूख

उन्होंने अपने क्षेत्र में पानी के प्रबंधन की भी अच्छी व्यवस्था की हुई है। कई वॉटर टैंक बनाए हुए हैं। ड्रिप इरिगेशन सिस्टम लगा हुआ है। आज उनके प्रयासों से प्रेरित होकर गाँव के 70 फ़ीसदी से भी ज़्यादा किसान जैविक खेती अपना चुके हैं। उनसे खेती किसानी के गुर सीखने दूर-दूर से युवक आते हैं। कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक भी उनके फ़ार्म में विज़िट करते रहते हैं।

उन्होंने हमें अपने खेतों की लहलहाती फसलें दिखाईं  और फिर वर्मीकंपोस्ट यूनिट से लेकर जैविक कीटनाशकों और खाद की यूनिट्स पर लेकर गए। जैविक खाद को बनाने के लिए किन-किन चीज़ों का इस्तेमाल किया जाता है, उसके बारे में बताया। इसका वीडियो आप जल्द ही हमारे सोशल मीडिया चैनल पर देखेंगे।

जैविक खेती

आखिर में जाते-जाते उन्होंने पहाड़ की मशहूर बदरी गायें हमें दिखाईं। बदरी गाय का 250 ग्राम घी लगभग 350 रुपये में बिकता है। इस गाय का घी स्वास्थ्य के लिए काफ़ी अच्छा माना जाता है। इसके अलावा, पहाड़ी गाय के दूध से बनी फ्रेश छाछ भी उन्होंने पिलाई।

जैविक खेती

आनंद मणि भट्ट ने बताया कि उनके क्षेत्र के कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने उन्हें पूरा सहयोग किया। कृषि क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है।

किसान ऑफ़ इंडिया पर उत्तराखंड से जुड़ी खेती-किसानी की ये सभी ग्राउंड रिपोर्ट के वीडियो आप जल्दी ही देख सकेंगे। 

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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