Intercropping: केले के साथ सब्ज़ियों की अंतरफ़सल से अच्छी कमाई कर रहे हैं अयोध्या के राज बहादुर

राज बहादुर ने केले के साथ सब्ज़ियों की अंतरफ़सल से अपनी खेती में लागत कम की और आमदनी बढ़ाई, जिसमें गन्ना, खीरा, मूली और लौकी शामिल हैं।

केले के साथ सब्ज़ियों की अंतरफ़सल Intercropping of vegetables with banana

कम ज़मीन का सर्वश्रेष्ठ इस्तेमाल करके आमदनी बढ़ाने का बेहतरीन तरीका है केले के साथ सब्ज़ियों की अंतरफ़सल। Intercropping यानी अंतरफ़सल, इसमें एक ही ज़मीन में अलग-अलग तरह की फ़सलें उगाने से किसानों को दोगुना फ़ायदा होता है और उनकी खेती की लागत भी कम हो जाती है। उत्तर प्रदेश के अयोध्या के रहने वाले किसान राज बहादुर Intercropping तकनीक से खेती कर रहे हैं।

उन्होंने सात एकड़ के क्षेत्र में कई तरह की फ़सलें लगाई हैं। वो मुख्य रूप से गन्ने और केले की खेती करते हैं। इसके साथ ही केले के साथ सब्ज़ियों की अंतरफ़सल के रूप में खीरा, मूली और लौकी जैसी कई सब्ज़ियां भी उगा रहे हैं। राज बहादुर ने अपनी अंतरफ़सली खेती के बारे में विस्तार से चर्चा की किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता अक्षय दुबे के साथ।

कैसे किया खेती का रूख

उत्तरप्रदेश के अयोध्या के रहने वाले राज बहादुर के दादा भी किसान ही थे। राज बहादुर बताते हैं कि उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से बीएससी और एमएससी किया है उसके बाद खेती में आए हैं। उनका मानना है कि खेती में मेहनत की जाए और एक बिज़नेस की तरह इसे किया जाए तो नौकरी से अच्छी आमदनी हो सकती है। 2021 से उन्होंने खेती शुरू की और इसमें वो नए-नए प्रयोग करते रहते हैं। केले के साथ सब्ज़ियों की अंतरफ़सल जैसी तकनीकों को अपनाकर उन्होंने अपनी खेती को और भी लाभकारी बनाया है।

दूसरों के देखकर सीखते हैं

राज बहादुर कहते हैं कि जब उन्होंने खेती शुरूआत तो कम संसाधनों के कारण उन्हें चुनौतियों का सामना करना पड़ा। मगर धीरे-धीरे अनुभव से वो सीखते गए। वो बताते हैं कि अपने इलाके से बाहर निकलकर वो देखते हैं कि कहां-कहां फ़सल अच्छी हो रही है, जैसे बारंबाकी में उन्होंने देखा कि एक किसान केले की खेती अच्छी तरह से कर रहा है, तो वहां से कुछ सीखा, फिर लखीमपुर खेड़ी में गन्ने की खेती तमाम तकनीकों से की जा रही थी वो देखा और केले के साथ सब्ज़ियों की अंतरफ़सल की खेती भी देखी।

जिससे उन्हें कुछ न कुछ नया सीखने को मिलता रहा और उनकी खेती का अनुभव बढ़ता गया। इतना ही नहीं उनका कहना है कि उनके क्षेत्र से 27 किलोमीटर की दूरी पर ही कृषि विज्ञान केंद्र है इसका फ़ायदा भी उन्हें मिला, क्योंकि किसी तरह की समस्या होने पर वो कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से संपर्क करते हैं और वहां के अधिकारी व वैज्ञानिक भी बराबर खेत पर आते रहते हैं, जिससे उन्हें अच्छा मार्गदर्शन मिलता है।

50 प्रतिशत में उगाते हैं गन्ना

राज बहादुर बताते हैं कि खेती में बेहतरीन काम के लिए उन्हें कई अवॉर्ड भी मिल चुका है। काम करते-करते उन्होंने बहुत कुछ सीखा जिससे लागत में अब थोड़ी कमी आई है। उनका कहना है कि पहले वो एक एकड़ खेत में करीब 3 बोरी यूरिया डालते थे जिससे लागत अधिक आती थी।

अब एक एकड़ में सिर्फ़ 8 किलो यूरिया डालते हैं यानी पहले जहां 1000 रुपए की लागत आती थी अब सिर्फ़ 30 रुपए में काम हो जाता है। उनके पास सात एकड़ भूमि है जिसमें 50 प्रतिशत में वो सिर्फ़ गन्ना उगाते हैं, फिर केले के साथ सब्ज़ियों की अंतरफ़सल करते हैं और धान और गेहूं भी उगाते हैं। 3 एकड़ ज़मीन उन्होंने लीज़ पर ली हुई है।

केले की खेती

राज बहादुर बताते हैं कि केले को तैयार होने में 14 महीने लगते हैं। जुलाई के पहले से दूसरे हफ्ते में इसकी रोपाई की जाती है और अक्टूबर में कटाई के लिए ये तैयार हो जाती है। उनका कहना है कि पहले केले में पनामा रोग की दिक्कत बहुत होती थी। इसकी वजह से रोपाई के एक महीने बाद ही पौधा पीला होने लगता है और छूने पर टूट जाता है। पनामा रोग की तो कई दवा नहीं है, मगर अन्य कीटों से बचाव के लिए नीम के तेल का छिड़काव किया जा सकता है। राज बहादुर बताते हैं कि कृषि विज्ञान केंद्र से पौधे लेकर लगाने पर उनकी पनामा रोग की समस्या दूर हो गई। 

केले के पौधों को शुरुआत में ज़्यादा देखभाल की ज़रूरत होती, उसके बाद नहीं। केले के पौधों के बीच लाइन से लाइन की दूरी 6 फीट और पौध से पौध की दूरी भी 6 फीट होनी चाहिए। इससे सहफ़सली या केले के साथ सब्ज़ियों की अंतरफ़सल लगाने में आसानी होती है। एक एकड़ में 1200 पौधे लगाए जा सकते हैं, जिससे 350 क्विंटल केला मिल जाता है।

केले के साथ अंतरफ़सल के रूप में राज बहादुर ने खीरा और मूली लगाई हुई है। उनका कहना है कि इससे खेती की लागत कम हो जाती है। साथ ही उन्होंने खेत में मल्चिंग लगाया हुआ है जिससे खरपतवार भी नहीं निकलते हैं। 3 फीट की दूरी तो मल्चिंग से ढंक जाता है बाकी बची हुई सिर्फ़ 3 फीट ज़मीन में ही निराई-गुड़ाई करनी होती है। केले को तैयार होने में समय लगता है।

खीरे की फ़सल में बीमारियां

खीरे की फ़सल मात्र 90 दिनों में तैयार हो जाती है। इसे भी ज़्यादा रखरखाव की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि राज बहादुर ने मल्चिंग लगाई हुई है तो खरपतवार नहीं होता है। हां, बारिश अधिक होने पर पानी भरने की समस्या हो सकती है। इसके अलावा लाल उड़ने वाले छोटे कीड़े फ़सल को नुकसान पहुंचा सकते हैं। ये पत्तियों पर दिखाई देते हैं, जिससे पत्तियां सिकुड़ने लगती है और पैदावार कम हो जाती है।

इससे बचाव के लिए 15 दिनों में नीम ऑयल का छिड़काव करना चाहिए, इसके छिड़काव से फंगस भी नहीं लगते हैं। केले के साथ सब्ज़ियों की अंतरफ़सल करने से खीरे की फ़सल में इन समस्याओं से निपटना थोड़ा आसान हो सकता है, क्योंकि सहफ़सली फ़सलों से प्राकृतिक संतुलन बना रहता है।

लौकी की खेती

राज बहादुर मचान बनाकर लौकी की खेती कर रहे हैं और उनकी लौकी बहुत लंबी होती है। उनका कहना है कि 6 महीने में एक एकड़ भूमि से करीब 400 क्विंटल लौकी का उत्पादन हो जाता है, जिससे करीब 3-4 लाख का मुनाफ़ा होता है। मचान के बारे उनका कहना है कि इसे बनाने से लौकी की लंबाई बहुत जल्दी बढ़ती है। लौकी लगाने के 25-30 दिनों बाद ही वो मचान पर चढ़ आती है। वैसे तो लौकी को ज़्यादा देखभाल की ज़रूरत नहीं होती है, बस उकठा रोग से बचाने की ज़रूरत है क्योंकि इस बीमारी से पौधे सूख जाते हैं।

जहां तक लौकी बुवाई का प्रश्न है तो राज बहादुर स्थानीय बाज़ार से बीच लाकर लगाते हैं और बीचों की बुवाई 10*10 की दूरी पर की जाती है। एक एकड़ में एक हजार बीज लगते हैं और इसकी लागत आती है 1200 रुपए। वो जैविक खेती की ओर बढ़ रहे हैं, इसलिए लौकी की खेती में गोबर की खाद का ज़्यादा इस्तेमाल करते हैं और एनपीके और यूरिया कम से कम डालते हैं। केले के साथ सब्ज़ियों की अंतरफ़सल से लौकी की खेती और भी लाभकारी हो सकती है, क्योंकि इससे फ़सल का स्वास्थ्य बेहतर होता है और उत्पादन बढ़ता है।

सरकार योजनाओं का लाभ

राज बहादुर को कई सरकारी योजनाओं का लाभ मिला है। वो बताते हैं कि राज्य सरकार से बागवानी मिशन के तहत पावर टेलर यंत्र मिला है जिससे उनकी गुड़ाई की लागत कम हो गई। पहले एक एकड़ में गुड़ाई के लिए 2400 का खर्च होता था, लेकिन अब 800 रुपए में काम हो जाता है। इसके अलावा उन्हें पावर स्प्रेयर पर भी कृषि विभाग से छूट मिली है।

जबकि ड्रिप तकनीक पर 90 फीसदी अनुदान मिला है। इस तरह की मदद से ही वो खेती में आगे बढ़ पाए हैं। केले के साथ सब्ज़ियों की अंतरफ़सल जैसी तकनीकों को अपनाकर किसान अपनी आमदनी और भी बढ़ा सकते हैं, जैसे राज बहादुर ने किया है।

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