भारत न सिर्फ़ केले का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, बल्कि यहां इसकी खपत भी सबसे ज़्यादा है। पारंपरिक तरीके से केले की खेती में किसानों को अधिक फ़ायदा नहीं होता था, इसलिए उनका मुनाफ़ा बढ़ाने के लिए कई नई तकनीकें ईज़ाद की गईं। ऐसी ही एक तकनीक है हाई डेंसिटी तकनीक (High Density Planting)। इस तकनीक के इस्तेमाल से केले का उत्पादन भी बढ़ता है और किसानों का मुनाफ़ा भी। कर्नाटक के किसान महेश भी इसी तकनीक से केले की खेती कर रहे हैं।

बढ़ रही है केले की खेती
कर्नाटक के तुमकुर ज़िले में आम के बाद सबसे अधिक उत्पादन केले का ही होता है। ज़िले में केले की खेती का रकबा भी बढ़ा है। केले को विभिन्न परिस्थितियों व उत्पादन प्रणाली के तहत उगाया जाता है। हालांकि, इसकी पारंपरिक खेती में उपज बहुत अधिक नहीं होती। यही वजह है कि कई छोटे किसान इसे जोखिम भरा मानते हैं और केले की खेती से कतराते हैं। ऐसे में वैज्ञानिकों ने इसकी खेती की एक तकनीक ईज़ाद की। हाई डेंसिटी तकनीक से केले की उपज में अच्छी बढ़ोतरी देखी गई।
G-9 किस्म है किसानों की पसंद
कर्नाटक के किसानों के बीच केले की G-9 किस्म लोकप्रिय है। इसका रंग सुनहरा पीला होता है और यह लंबे समय तक खराब नहीं होता। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी मांग अधिक है। तुमकुर ज़िले में केले की 40 फ़ीसदी खेती इंटरक्रॉपिंग के रूप में सुपारी और नारियल के साथ की जाती है।

हाई डेंसिटी तकनीक का किया इस्तेमाल
तुमकुर ज़िले के किसान महेश भी पहले पारंपरिक तरीके से केले की खेती करते थे। इसमें उत्पादन कम होता था। फिर कृषि विज्ञान केंद्र हिरेहल्ली ने उनके खेत में पंक्ति विधि के साथ हाई डेंसिटी तकनीक (High density planting) पर फ्रंट लाइन डेमोनस्ट्रेशन दिया। उन्हें इस तकनीक का प्रशिक्षण भी दिया गया और फिर जब महेश ने इसे अपनाया तो नतीजे हैरान करने वाले थे।

आमदनी में हुआ इज़ाफ़ा
पारंपरिक तरीके से केले की खेती करने पर उन्हें 1.47 लाख प्रति हेक्टेयरी की सालाना आमदनी होती थी। अब यह बढ़कर 3.82 लाख रुपये हो गई है। उत्पादन 578 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 760 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो गया। नई तकनीक में कम जगह में अधिक पौधे लगाए जाते हैं। पौधों को 1.5*1.5*2.0 मीटर की दूरी पर पंक्ति और ज़िग ज़ैग तरीके से लगाया जाता है। इसके विपरीत पारंपरिक तरीके में इन्हें 2.0×2.0 मीटर की दूरी पर लगाया जाता था।
हाई डेंसिटी तकनीक में पानी और खाद का अधिक क्षमता से उपयोग होता है और अधिक हवा में पौधों के गिरने की संभावना भी कम हो जाती है। उत्पादन अधिक होने से किसानों का मुनाफ़ा बढ़ता है। महेश की सफलता को देखकर इलाके के अन्य किसान भी नई तकनीक से केले की खेती करने के लिए प्रेरित हुए हैं।
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