Ultimate Solution To Stubble Burning? जानिए कैसे टिकाऊ खेती और पराली प्रबंधन बचा सकता है हमारा स्वास्थ्य!

'पराली जलाना' या 'Stubble Burning'। ये सिर्फ एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं, बल्कि एक गहरा कृषि, आर्थिक और सामाजिक संकट है जिसकी जड़ें हमारी खेती की व्यवस्था में गहरे तक धंसी हुई हैं।

Ultimate Solution To Stubble Burning? जानिए कैसे टिकाऊ खेती और पराली प्रबंधन बचा सकता है हमारा स्वास्थ्य!

हर साल अक्टूबर-नवंबर आते ही उत्तर भारत, ख़ासकर दिल्ली-एनसीआर, एक अदृश्य (invisible) दीवार से घिर जाता है। सांसें भारी हो जाती हैं, आंखों में जलन होती है और धुंध की एक मोटी चादर (a thick layer of mist) सूरज की रोशनी तक को रोक देती है। ये कोई प्राकृतिक आपदा (natural disaster) नहीं, बल्कि हमारे अपने हाथों से रची गई एक मानवजनित त्रासदी है, ‘पराली जलाना’ या ‘Stubble Burning’। ये सिर्फ एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं, बल्कि एक गहरा कृषि, आर्थिक और सामाजिक संकट है जिसकी जड़ें हमारी खेती की व्यवस्था में गहरे तक धंसी हुई हैं।

क्यों जलाते हैं किसान पराली? एक जटिल समस्या का सरल सवाल

स्टबल बर्निंग (Stubble Burning) के पीछे का कारण सीधा लगता है, धान की कटाई के बाद गेहूं की बुआई के लिए बहुत कम समय बचता है। कंबाइन हार्वेस्टर मशीनें फसल काटते वक्त धान की पराली छोड़ जाती हैं। इन्हें हटाने के पारंपरिक तरीके महंगे और समय लेने वाले हैं। ऐसे में, जलाना किसानों के लिए सबसे सस्ता, सबसे तेज़ और सबसे आसान ऑप्शन बन जाता है। लेकिन ये ‘आसानी’ इंसानों और हमारी पृथ्वी को भारी कीमत पर पड़ रही है।

धुएं के पार का सच: स्टबल बर्निंग के विनाशकारी प्रभाव

एक एकड़ पराली जलाने से लगभग 2 से 3 टन कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, घातक पीएम 2.5 और पीएम 10 कण, और कैंसरजन्य पदार्थ (Carbon dioxide, carbon monoxide, deadly PM 2.5 and PM 10 particles, and carcinogenic substances) वातावरण में घुल जाते हैं। ये सिर्फ शहरों का ही नहीं, गांवों का भी संकट है। वहां के लोग सीधे तौर पर इस जहरीली हवा के कॉनेक्ट में आते हैं।
पराली जलाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति खत्म होती है। मिट्टी में मौजूद लाभदायक सूक्ष्मजीव और केंचुए मर जाते हैं, जिससे भविष्य की फसलों की पैदावार पर निगेटिव असर पड़ता है। ये एक ऐसा ज़हर है जो हवा, मिट्टी और हमारी हेल्थ तीनों को खोखला कर रहा है।

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समाधान: टिकाऊ कृषि के वो ऑप्शन जो बदल सकते हैं तस्वीर

इस समस्या का समाधान किसानों को दोष देने में नहीं, बल्कि व्यवस्था में बदलाव लाने में है। भारत को एक टिकाऊ कृषि मॉडल की ओर बढ़ना होगा। कुछ प्रमुख समाधान है जो किये जा सकते हैं-

पराली प्रबंधन के आधुनिक तरीके

सबसे कारगर उपाय है ‘हैप्पी सीडर’ जैसी मशीनों का इस्तेमाल। ये मशीन एक ही चलन में पराली को काटती है, उसे बिछाती है और उसी में गेहूं की बीजाई कर देती है। पराली मल्च का काम करती है, जो मिट्टी में नमी बनाए रखती है और खाद का काम करती है।

पराली का सही इस्तेमाल 

पराली को बेकार समझना एक भूल है। इसे Biomass के तौर पर power plants में इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे Compressed Bio-Gas  (सीबीजी) बनाई जा सकती है, जो पेट्रोल-डीजल का एक बेहतर ऑप्शन है। इसके अलावा, पराली से कार्डबोर्ड, पशुआहार और कंपोस्ट खाद भी तैयार की जा सकती है।

फसल चक्र में बदलाव

 सरकार को धान की फसल के पैटर्न को बदलने पर जोर देना चाहिए। कम पानी वाली फसलों जैसे दलहन, तिलहन को बढ़ावा देकर पानी की बचत के साथ-साथ पराली के संकट को भी कम किया जा सकता है।

सरकारी सहयोग और जागरूकता

किसानों को मशीनरी खरीदने के लिए उचित सब्सिडी, तकनीकी प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता देना ज़रूरी है। साथ ही, ज़मीनी स्तर पर किसानों को इन ऑप्शन के आर्थिक और पर्यावरणीय फायदों से अवगत कराना होगा।

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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