Food Processing: टीचर से बिज़नेसवुमन बनी दीपा लोशाली, उत्तराखंड का स्वाद पूरे देश में पहुंचा रही हैं

DBL पारंपरिक उत्पाद केंद्र की ओनर दीपा लोशाली Food processing के जरिए उत्तराखंड के पारंपरिक उत्पादों को सुरक्षित तरीके से प्रोसेस कर पूरे देश में बेच रही हैं।

Food processing खाद्य प्रसंस्करण

उत्तराखंड न सिर्फ अपनी खूबसूरत वादियों और सुहाने मौसम के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां की संस्कृति, खान-पान और फ़सलें भी बहुत खास हैं। कुछ फ़सलें ऐसी हैं जो सिर्फ यहीं मिलती हैं या बाकी जगहों पर बहुत कम मात्रा में मिलती हैं। DBL पारंपरिक उत्पाद केंद्र, राज्य के अलग-अलग गांव और जिलों से उत्पाद इकट्ठा करके इन्हें पूरे देश में बेच रहा है। यही नहीं, इस केंद्र से कई महिला समूहों को रोज़गार भी मिल रहा है।

दीपा लोशाली का यह प्रयास खाद्य प्रसंस्करण (Food processing) के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है, क्योंकि वह इन पारंपरिक उत्पादों को सुरक्षित और प्राकृतिक तरीके से प्रोसेस करती हैं। DBL पारंपरिक उत्पाद केंद्र की ओनर दीपा लोशाली ने अपने राज्य की कुछ खास फ़सलों के बारे में विस्तार से चर्चा की किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली से।

DBL पारंपरिक उत्पाद केंद्र की शुरुआत (DBL Traditional Products Centre launched)

उत्तराखंड के हल्द्वानी जिले की रहने वाली दीपा लोशाली ने 2019 में DBL पारंपरिक उत्पाद केंद्र की स्थापना की। इससे पहले वह एक टीचर थीं, लेकिन शादी के बाद निजी कारणों से जब उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी, तो परिवार वालों के सहयोग से उन्होंने अपना बिज़नेस शुरू किया। उनके इस केंद्र में उनके ससुर और पति भी पूरा सहयोग करते हैं। दीपा कहती हैं कि यहां सिर्फ ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स की ही बिक्री होती है और साथ ही आटा, तेल और मसालों की प्रोसेसिंग भी की जाती है। यही खाद्य प्रसंस्करण (Food processing) के माध्यम से वे उत्तराखंड के खास उत्पादों को पूरे देश में पहुंचा रही हैं।

अलग-अलग हिस्सों से उत्पाद इकट्ठा करना (Assembling a product from individual parts)

दीपा लोशाली बताती हैं कि हल्द्वानी में बहुत अधिक उत्पादन नहीं होता, इसलिए उन्हें दाल और अन्य उत्पाद राज्य के अलग-अलग जिलों और गांवों से इकट्ठा करना पड़ता है। इन उत्पादों को इकट्ठा करके वे अपने केंद्र के जरिए पूरे देश में भेजती हैं। पहाड़ी इलाकों में प्राकृतिक तरीके से खेती की जाती है, जिसमें केमिकल और दवाओं का इस्तेमाल बहुत कम होता है। उनके पास जो दालें हैं, वे कुमाऊ और गढ़वाल क्षेत्र से आती हैं, जहां इनका अच्छा उत्पादन होता है। इन उत्पादों का खाद्य प्रसंस्करण (Food processing) के माध्यम से गुणवत्ता बनाए रखते हुए व्यावसायिक रूप से लाभदायक तरीके से प्रसंस्कृत किया जाता है।

दालों की ख़ासियत (Features of pulses)

उत्तराखंड के भोजन में दालों की बहुत अहम भूमिका है। गहत और भट्ट की दाल यहां के बहुत ही मशहूर व्यंजनों में से एक है जिसे खासतौर पर सर्दियों में खाया जाता है। दीपा लोशाली कहती हैं कि पहाड़ की गहत की दाल जिसे कुलथ भी कहते हैं बहुत ही फायदेमंद होती है। इसका नियमित सेवन करने से स्टोन की समस्या नहीं होती है। डॉक्टर इस दाल का पानी पीने की सलाह देते हैं। आगे वो बताती हैं कि मुनस्यारी की बौना गांव की राजमा भी बहुत खास होती है, इसे जीआई टैग मिला हुआ है।

उनके केंद्र पर भी कई तरह की दालें हैं। राजमा की 3-4 किस्में हैं जिसमें मक्खन राजमा सबसे महंगा बिकता है, साथ ही पहाड़ी भट्ट जिसे काला सोयाबीन भी कहते हैं, काली मसूर की दाल, मिक्स दालें जिसे नवरंगी दाल कहते हैं, एक चावल होता है जिसे झंगुरा कहा जाता है, ये सब उत्तराखंड की खास फ़सलें हैं। इसके अलावा यहां का रेड राइस भी बहुत स्पेशल है। भट्ट का उत्पादन बागेश्वर, कोटा बाग में सबसे ज़्यादा होता है और चपटा भट्ट उत्तराखंड की खास दाल है।

भांग-भंगजीरा की चटनी (Bhang-Cumin Chutney)

भांग का नाम सुनते ही आमतौक पर सबको होली वाली ठंडई याद आ जाती है, मगर उत्तराखंड में इसकी चटपटी चटनी को लोग बहुत चाव से खाते हैं, इसलिए भांग के बीज की काफी मांग रहती हैं। दीपा बताती है कि भांग और भंगीरा का उपयोग चटनी बनाने के लिए किया जाता है। भांग के बीज की इम्यूनिटी पावर बहुत अधिक होती है। भांग की चटनी बनाने के साथ ही इसे सब्ज़ी में डालकर भी खाया जाता है।

पहाड़ी इलाकों में आलू के रायते में इसका इस्तेमाल ज़रूर किया जाता है, जिसका स्वाद एकदम अलग आता है या कह सकते हैं इसका अपना पहाड़ी फ्लेवर होता है। भंगीरा भी भांग की तरह ही होता है, बस इसका दाना बारीक होता है।

खास मसालें (Special spices)

दीपा के पारंपरिक उत्पाद केंद्र में दालचीनी के साथ ही कुछ खास तड़के वाले मसाले हैं जिनका उत्पादन खासतौर पर उत्तराखंड में होता है। वो बताती हैं कि मुनस्यारी के जंबू का इस्तेमाल भी तड़के के लिए किया जाता है। इसके अलावा गंद्रायणी भी एक मसाला है जिसका उपयोग तड़का लगाने के लिए किया जाता है, साथ ही पेट दर्द से राहत पाने के लिए भी इसका सेवन किया जाता है। यहां के मसालों में जखिया भी शामिल है जो सरसों की तरह दिखता है और इसका उपयोग आलू-कद्दू की सब्ज़ी में तड़का लगाने के लिए किया जाता है, इससे सब्ज़ी का स्वाद बढ़ जाता है।

खाद्य प्रसंस्करण और वड़ियां (Food Processing and Vadis)

दीपा के DBL पारंपरिक उत्पाद केंद्र में दाल, मसालों और आटे के अलावा कई तरह की स्वादिष्ट वड़ियां भी मिलती हैं, जिन्हें महिला समूह बनाते हैं। इनमें पहाड़ी ककड़ी की वड़ी, मूंग दाल की वड़ी (मूंगोड़ी), लौकी की वड़ी और अरबी की वड़ी शामिल हैं। खाद्य प्रसंस्करण (Food processing) के इस माध्यम से दीपा अपनी यूनिट में विभिन्न प्रकार के उत्पाद तैयार कर रही हैं, जो बाज़ार में बहुत पसंद किए जाते हैं।

8-9 तरह के आटे और खाद्य प्रसंस्करण (8-9 types of flour and food processing)

दीपा लोशाली अपने केंद्र में मसाले और आटे की प्रोसेसिंग करती हैं। वो बताती हैं कि उनकी यूनिट में 8-9 तरह के आटे बनते हैं। जिसमें चावल, बाजरा, चना, सोयाबीन, ज्वार, जौ, मड़वा शामिल है। इसके अलावा एक मल्टीग्रेन आटा है जिसमें ये 8 तरह के आटे के साथ ही सोयाबीन और भट्ट को भूनकर डाला जाता है। इसलिए ये बहुत हेल्दी होता है।

दीपा कहती हैं कि वो किसानों से कच्चा माल लेकर अपनी यूनिट में प्रोसेसिंग करती हैं। पहले वो मड़वा का आटा बाहर से मंगाती थी, तो वो छिलका नहीं निकालते थे जिससे आटा कड़वा लगता था। लेकिन अब वो अपने यहां ही थ्रेशर से छिलका निकालकर आटा पीसती हैं। उनका कहना है कि नेचुरल आटा 2 महीने तक ही चलता है और उनके यहां नेचुरल तरीके से ही आटा पीसा जाता है। जबकि प्रिज़र्वेटिव मिलाने पर आटा 6 महीने तक चल जाता है, मगर वो सेहत के लिए अच्छा नहीं होता है।

सेहत का साथी मोटा अनाज (Coarse grains are a companion of health)

दीपा कहती हैं कि मड़वा, ज्वार, बाजरा, मक्का आदि मोटा अनाज हैं, इसलिए इसकी रोटी बनाना थोड़ा मुश्किल होता है। रोटी बनाते समय ये फट जाती है, इसके लिए आटे को गर्म पानी में गूंधे और बेलन से बनाने की बजाय प्लास्टिक शीट पर हाथ से फैलाकर बनाए। थोड़ी मेहनत लगेगी, मगर इससे सेहत अच्छी रहेगी, क्योंकि ये रोटियां जल्दी पच जाती हैं। मोटा अनाज, खासकर खाद्य प्रसंस्करण (Food processing) के बाद, और भी पौष्टिक और स्वादिष्ट हो जाता है, जो सेहत के लिए फायदेमंद साबित होता है।

महिलाओं को रोज़गार (Employment of women)

दीपा के साथ की महिला समूह जुड़े हुए हैं, जो वड़िया, अचार, बत्तियां आदि बनाने का काम करती हैं। इसके अलावा, साफ-सफाई का काम भी महिलाएं ही करती हैं। इतना ही नहीं, वो बताती हैं कि एग्ज़ीबिशन के समय जब काम बढ़ जाता है तो और महिलाओं को काम पर रखती हैं। खाद्य प्रसंस्करण (Food processing) और अन्य उत्पादन के जरिए दीपा ने न केवल उत्तराखंड के पारंपरिक उत्पादों को बढ़ावा दिया है, बल्कि महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाने में मदद की है।

कितना स्टॉक रखती हैं (How much stock do you keep)

दीपा लोशाली का कहना है कि उनका कलेक्शन सितंबर से शुरु होता है पैदावार के हिसाब से ये चलता है। सितंबर से मार्च तक उनका सारा स्टॉक आमतौर पर बिक जाता है। वो 20-30 क्विंटल का स्टॉक रखती हैं। कुछ चीज़ें मौसमी होती है और उनकी बिक्री पूरे साल नहीं हो सकती, इसलिए उसी हिसाब से उनका स्टॉक रखा जाता है। खाद्य प्रसंस्करण (Food processing) के जरिए, दीपा इन उत्पादों की ताजगी और गुणवत्ता बनाए रखती हैं, जिससे उनका स्टॉक लंबे समय तक सुरक्षित रहता है।

उत्तराखंड के उत्पादों को बढ़ावा (Promotion of products of Uttarakhand)

दीपा लोशाली को सरकारी विभाग की तरफ से भी एग्ज़ीबिशन के लिए बाहर भेजा जाता है, जिससे वे उत्तराखंड के उत्पादों को पूरे देश में लोकप्रिय बनाने का काम कर रही हैं। खाद्य प्रसंस्करण (Food processing) के क्षेत्र में उनके योगदान से स्थानीय उत्पादों को एक नई पहचान मिली है और ये अब व्यापक रूप से देशभर में उपलब्ध हो रहे हैं।

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