Goat Farming Business Plan In Hindi: वैज्ञानिक तरीके से करें बकरी पालन, लागत से 3 से 4 गुना होगी कमाई

वैज्ञानिक तरीके से बकरी पालन करके पशुपालक किसान अपनी कमाई को दोगुनी से तिगुनी तक बढ़ा सकते हैं। इसके लिए बकरी की उन्नत नस्ल का चयन करना, उन्हें सही समय पर गर्भित कराना और स्टॉल फीडिंग विधि को अपनाकर चारे-पानी का इन्तज़ाम करना बेहद फ़ायदेमन्द साबित होता है।

बकरी पालन से कमाई (goat farming profit)

Table of Contents

बकरी पालन, हर लिहाज़ से किफ़ायती और मुनाफ़े का काम है। फिर चाहे इन्हें दो-चार बकरियों के घरेलू स्तर पर पाला जाए या छोटे-बड़े व्यावसायिक फॉर्म के तहत दर्ज़नों, सैकड़ों या हज़ारों की तादाद में। बकरी पालन में न सिर्फ़ शुरुआती निवेश बहुत कम होता है, बल्कि बकरियों की देखरेख और उनके चारे-पानी का खर्च भी बहुत कम होता है। लागत के मुकाबले बकरी पालन से होने वाली कमाई का अनुपात 3 से 4 गुना तक हो सकता है, बशर्ते इसे वैज्ञानिक तरीके से किया जाए। इस लेख में हम आपको विस्तार से बकरी पालन व्यवसाय शुरू (Goat Farming Business Plan In Hindi) करने से जुड़ी अहम जानकारियां दे रहे हैं। 

भारत में बकरी पालन का व्यवसाय (Goat Farming Business Plan In India)

दुनिया में बकरी की कम से कम 103 नस्लें हैं। इनमें से 21 नस्लें भारत में पायी जाती हैं। इनमें प्रमुख हैं – बरबरी, जमुनापारी, जखराना, बीटल, ब्लैक बंगाल, सिरोही, कच्छी, मारवारी, गद्दी, ओस्मानाबादी और सुरती। इन नस्लों की बकरियों की बहुतायत देश के अलग-अलग इलाकों में मिलती है। 2019 की पशु जनगणना के अनुसार, देश में करीब 14.9 करोड़ बकरियाँ हैं। देश के कुल पशुधन में गाय-भैंस का बाद बकरियों और भेड़ों का ही स्थान है। बकरी पालन से कमाई (goat farming profit)

छोटे किसानों के लिए क्यों फ़ायदेमंद है बकरी पालन? (Benefits Of Goat Farming)

बकरी को गरीबों की गाय भी कहा जाता है, इसकी वजह है कि गरीब किसान महंगी होने की वजह से गाय नहीं खरीद पाता है। ऐसे में वो दूध के लिए बकरी पालता है, क्योंकि बकरी गाय की तुलना में काफ़ी सस्ती होती है और इसे पालने का खर्च भी गाय-भैंस से बहुत कम होता है। ये आकार में छोटी होती है तो कम जगह में ढेर सारी बकरियों को रखा जा सकता है। यही नहीं बकरियां कई तरह की कांटेदार झाड़ियां, खरपतवार, फसल के अवशेष और ऐसे कृषि उप उत्पादों को भी खाती है जो मनुष्यों के लिए उपयोगी नहीं होते हैं। यानि चारे के लिए किसानों को बहुत परेशान होने की ज़रूरत नहीं पड़ती। दूसरे पशुओं की तुलना में पानी की कमी वाले इलाकों में बकरियों को पालना ज़्यादा आसान होता है। गाय के दूध की तुलना में बकरी का दूध आसानी से पच जाता है। इसमें एंटी एलर्जी, एंटीफंगल और एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं। जो बकरी पालक बड़े पैमाने पर इसका व्यवसाय करते हैं उनके लिए ये इसलिए भी फ़ायदेमंद है क्योंकि उन्हें नर और मादा बकरियों की समान कीमत मिलती है।

बकरी की नस्ल कैसे चुनें? (How To Choose A Goat Breed?)

बकरी की ज़्यादातर नस्लों को घूमते-फिरते हुए चरना पसन्द होता है। इसीलिए इनके साथ चरवाहों का रहना ज़रूरी होता है। लेकिन उत्तर प्रदेश और गंगा के मैदानी इलाकों में बहुतायत से पायी जाने वाली बरबरी नस्ल की बकरियों को कम जगह में खूँटों से बाँधकर भी पाला जा सकता है। इसी विशेषता की वजह से वैज्ञानिकों की सलाह होती है कि यदि किसी किसान या पशुपालक के पास बकरियों को चराने का सही इन्तज़ाम नहीं हो तो उसे बरबरी नस्ल की बकरियाँ पालनी चाहिए और यदि चराने की व्यवस्था हो तो सिरोही नस्ल की बकरियाँ पालने से बढ़िया कमाई होती है।

बकरियों की नस्लें (Breeds Of Goats)

जमुनापारी- उत्तर प्रदेश के आगरा और इटावा इलाके में मिलने वाली इस बकरी की नस्ल को दूध और मांस दोनों के लिए पाला जाता है। नर का वज़न 50-60 किलोग्राम और मादा का वज़न 40-50 किलोग्राम तक होता है। ये आमतौर पर सफ़ेद रंग की होती है और शरीर पर काले भूरे रंग के धब्बे होते हैं। ब्लैक बंगाल- पश्चिम बंगाल और असम में मिलने वाली ब्लैक बंगाल का साइज़ छोटा होता है। रंग काला/भूरा, सींग ऊपर की ओर उठे हुए औ छाती चौड़ी होती है। नर का वज़न 30 किलोग्राम तक और मादा का वज़न 20 किलोग्राम तक होता है। बरबरी- ये नस्ल मुख्य रूप से राजस्थान और उत्तर प्रदेश में मिलती है। इसका वज़न 40 किलोग्राम तक होता है। इसका आकार छोटा, छोटे कान और छोटे सींग होते हैं। इसका रंग सफ़ेद और भूरा होता है। बीटल- पंजाब और हरियाणा की ये नस्ल बड़े आकार की होती है। इनका रंग भूरा, कान लंबे और सींग पीछे की ओर मुड़े हुए होते हैं। नर का वज़न 50-60 और मादा का वज़न 40-50 किलोग्राम तक होता है। सिरोही- राजस्थान का सिरोही और अजमेर ज़िला इसका उत्पत्ति स्थान है। नर का वज़न 40-50 किलोग्राम और मादा का वज़न 30-40 किलोग्राम तक होता है।

बकरी की बरबरी नस्ल की खासियतें (Barbari Breed Goat Qualities)

बरबरी एक ऐसी नस्ल है, जिसे चराने का झंझट नहीं होता। ये एक बार में तीन से पाँच बच्चे देने की क्षमता रखती हैं। इनका क़द छोटा लेकिन शरीर काफी गठीला होता है। ये अन्य नस्लों के मुकाबले ज़्यादा फुर्तीली होती हैं। बरबरी नस्ल तेज़ी से विकासित होती है, इसीलिए इसके मेमने साल भर बाद ही बिकने लायक हो जाते हैं। बकरी पालन से कमाई (goat farming profit)Goat Farming Business Plan In Hindi: वैज्ञानिक तरीके से करें बकरी पालन, लागत से 3 से 4 गुना होगी कमाईबरबरी नस्ल की बकरी रोज़ाना करीब एक लीटर दूध देती है। इसे कम लागत में और किसी भी जगह पाल सकते हैं। इन्हें बीमारियाँ कम होती हैं, इसलिए रख-रखाव आसान होता है। इसके माँस को ज़्यादा स्वादिष्ट माना जाता है। इसीलिए बाज़ार में इसका अच्छा दाम मिलता है। बकरीद के वक़्त तो बरबरी के पशुपालक और भी बढ़िया दाम पाते हैं। बरबरी बकरी को फॉर्म हाउस के शेड में एलीवेटेड प्लास्टिक फ्लोरिंग विधि (स्टाल-फेड विधि) से भी पाला जा सकता है। इस विधि में चारे की मात्रा और गुणवत्ता को बकरियों उम्र की और ज़रूरत के अनुसार नियंत्रित किया जाता है। इसमें बकरियों के रहने की जगह की साफ़-सफ़ाई रखना ख़ासा आसान होता है।

बकरी पालन के लिए प्रशिक्षण (Goat Farming Training Centres)

मथुरा स्थित केन्द्रीय बकरी अनुसन्धान संस्थान [फ़ोन: (0565) 2763320, 2741991, 2741992, 1800-180-5141 (टोल फ्री)] और लखनऊ स्थित द गोट ट्रस्ट (Mobile – 08601873052 to 63) की ओर से बकरी पालन के लिए साल में चार बार प्रशिक्षण कोर्स चलाता है। इसमें व्यावयासिक रूप से बकरी पालन करने वालों का मार्गदर्शन भी किया जाता है। इसके अलावा कृषि विज्ञान केन्द्र से भी बकरी पालन से सम्बन्धित प्रशिक्षण लिया जा सकता है। बकरी पालन की ख़ासियतों को देखते हुए ICAR-केन्द्रीय बकरी अनुसन्धान संस्थान, मथुरा के विशेषज्ञों ने ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने के लिए ख़ास मंत्र सुझाये हैं।

बकरी पालकों के लिए वैज्ञानिकों के 15 मंत्र

  1.  आमतौर पर जो बकरी ज़्यादा मेमनों को जन्म देती है उसके बच्चों का वजन कम होता है। जबकि कम बच्चों को जन्म देने वाली बकरियों के मेमनों का वजन ज़्यादा होता है। इस तरह, बकरियों की सभी प्रजातियों से कुल मिलाकर एक जैसी ही कमाई होती है।
  2. बकरी पालन के तहत अगर उन्नत नस्ल के मेमने चाहिए तो प्रजनन के लिए इस्तेमाल होने वाले बकरे को बाहर से लाकर ही स्थानीय बकरियों के सम्पर्क में लाना चाहिए।
  3. प्रजनक बकरे की मां को ज़्यादा दूध देने वाली और ज़्यादा मेमनों को जन्म देने वाली होना चाहिए। इसके अलावा, ऐसे बकरे को शारीरिक रूप से विकसित, स्वस्थ और उन्नत नस्ल का होना चाहिए।
  4. बकरी को गर्मी में आने या कामातुर होने के 12 घंटे बाद गाभिन कराना चाहिए। अप्रैल-मई तथा अक्टूबर-नवम्बर में गाभिन कराने पर बच्चे अनुकूल मौसम में प्राप्त होते हैं।
  5. बकरियों को अन्त:प्रजनन (इन ब्रीडिंग) से बचाना चाहिए। यानी, जिस बकरे से बकरी को गाभिन कराया गया हो उसी से उसके बच्ची को गाभिन नहीं कराना चाहिए।
  6.  बकरी को उसके वजन के अनुपात में रोज़ाना 3 से 5 प्रतिशत भार जितना सूखा आहार खिलाना चाहिए। एक वयस्क बकरी को रोज़ाना एक से तीन किलोग्राम हरा चारा, 500 ग्राम से एक किलोग्राम तक भूसा और 150 से 400 ग्राम तक दाना रोज़ाना खिलाना चाहिए। भूसा अगर दलहनी फसलों का हो तो सबसे अच्छा है।
  7. बकरियों को साबुत अनाज नहीं खिलाना चाहिए। उन्हें खिलाये जाने वाले दाने हमेशा दला हुआ और सूखा ही होना चाहिए। इसमें पानी नहीं मिलाना चाहिए। दाने में 60-65 प्रतिशत दला हुआ अनाज, 10-15 प्रतिशत चोकर, 15-20 प्रतिशत खली, 2 प्रतिशत मिनरल मिक्सचर (खनिज तत्व) तथा एक प्रतिशत नमक का मिश्रण होना चाहिए। बकरियों को सरसों की खली नहीं खिलानी चाहिए।
  8. बकरी के पीने का पानी साफ़ होना चाहिए। बकरियों को नदी, तालाब और गड्ढे में जमा गन्दे पानी को पीने से बचाना चाहिए।
  9. बकरियों में PPR, ET, खुरपका, मुँहपका, गलघोंटू तथा बकरियों के चेचक जैसे पाँच संक्रामक रोगों के टीके अवश्य लगवाने चाहिए। ये टीके मेमनों के 3-4 महीने की उम्र के बाद ही लगाये जाते हैं।
  10. अगर कोई भी बकरी बीमार हो तो उसे फ़ौरन बाड़े से अलग कर देना चाहिए और उसका इलाज़ करवाना चाहिए। इलाज़ के बाद ठीक होने पर ही उन्हें वापस बाड़े में रखा जा सकता है।
  11. बकरियों को अन्त:परजीवी नाशक दवाईयां साल में दो बार ज़रूर पिलानी चाहिए। बरसात के मौसम के बाद ये दवाई ज़रूर पिलाएं।
  12. बाह्य परजीवी नाशक दवाईयों के घोल से अगर बकरियों को सावधानीपूर्वक नहलाया जाए तो परजीवी मर जाते हैं। ऐसा घोल बनाने के लिए पानी में दवा की निर्धारित मात्रा ही मिलानी चाहिए।
  13. बकरी के ब्याने पर मेमने की नाल दो इंच ऊपर से किसी नये और साफ़ ब्लेड से काटना चाहिए। इसके बाद नाल पर टिंचर आयोडीन लगा देना चाहिए।
  14. बकरी के बच्चों को 9-12 महीने की उम्र पर त्यौहारों के आसपास बेचना ज़्यादा लाभकारी होता है।
  15. बकरी के दूध से बनाये गये पनीर से भी बढ़िया कमाई होती है।
ये भी पढ़ें- बकरी पालन (Goat Farming): बकरियों की 8 नयी नस्लें रजिस्टर्ड, चुनें अपने इलाके के लिए सही प्रजाति और पाएँ ज़्यादा फ़ायदा

बकरी पालन में वैज्ञानिक तरीका अपनाएं (Adopt Scientific Methods In Goat Farming)

केन्द्रीय बकरी अनुसन्धान संस्थान के पशु आनुवांशिकी और उत्पाद प्रबन्धन विभाग के प्रधान वैज्ञानिक डॉ एम के सिंह के अनुसार, ‘वैज्ञानिक तरीके से बकरी पालन करके पशुपालक किसान अपनी कमाई को दोगुनी से तिगुनी तक बढ़ा सकते हैं। इसके लिए बकरी की उन्नत नस्ल का चयन करना, उन्हें सही समय पर गर्भित कराना और स्टॉल फीडिंग विधि को अपनाकर चारे-पानी का इन्तज़ाम करना बेहद फ़ायदेमन्द साबित होता है। उत्तर भारत में बकरियों को सितम्बर से नवम्बर और अप्रैल से जून के दौरान गाभिन कराना चाहिए। सही वक़्त पर गाभिन हुई बकरियों में नवजात मेमनों की मृत्युदर कम होती है।’

बाड़े की साफ़-सफ़ाई है ज़रूरी (Goat Shed Cleanliness)

ज़्यादातर किसान बकरियों के बाड़े की साफ़-सफ़ाई के प्रति उदासीन रहते हैं। इससे बकरियों में होने वाली बीमारियों का खतरा बहुत बढ़ जाता है। इसीलिए यदि बाड़े की फर्श मिट्टी की हो तो समय-समय पर उसकी एक से दो इंच की परत को पलटते रहना चाहिए क्योंकि इससे वहाँ पल रहे परजीवी नष्ट हो जाते हैं। बाड़े की मिट्टी जितनी सूखी रहेगी, बकरियों को बीमारियाँ उतनी कम होंगी।

मां का पहला दूध (Feeding Of kid)

बकरी पालकों की अक्सर शिकायत होती है कि बकरी के तीन बच्चे हुए, लेकिन उनमें से बचा एक ही। आमतौर पर ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बकरी का दूध नहीं बचता। इसलिए जब बकरी गाभिन हो तो उसे ख़ूब हरा चारा और खनिज लवण देना चाहिए। पशुपालक जेर गिरने तक बच्चे को दूध नहीं पीने देते, जबकि बच्चे जितना जल्दी माँ का पहला दूध (खीस) पीएँगे, उनकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता उतनी तेज़ी से बढ़ेगी और मृत्युदर में कमी आएगी।

चारा और दाना (Healthy Feed For Goats)

ज़्यादातर बकरी पालक बकरियों के आहार प्रबन्धन पर ध्यान नहीं देते। उन्हें चराने के बाद खूँटे से बाँधकर छोड़ देते हैं। जबकि चराने के बाद भी बकरियों को उचित चारा देना चाहिए, ताकि उनके माँस और दूध में वृद्धि हो सके। तीन से पाँच महीने के बच्चों को चारे में दाने के साथ-साथ हरी पत्तियाँ खिलाना चाहिए। स्लॉटर ऐज (slaughter age) यानी माँस के लिए इस्तेमाल होने वाले 11 से 12 महीने के बच्चों के चारे में 40 प्रतिशत दाना और 60 प्रतिशत सूखा चारा होना चाहिए। दूध देने वाली बकरियों को रोज़ाना चारे के साथ करीब 400 ग्राम अनाज देना चाहिए। प्रजनन करने वाले वयस्क बकरों को प्रतिदिन सूखे चारे के साथ हरा चारा और 500 ग्राम अनाज देना चाहिए। बकरियों के पोषण के लिए प्रतिदिन दाने के साथ सूखा चारा होना चाहिए। दाने में 57 प्रतिशत मक्का, 20 प्रतिशत मूँगफली की खली, 20 प्रतिशत चोकर, 2 प्रतिशत मिनरल मिक्चर और 1 प्रतिशत नमक होना चाहिए। सूखे चारे में सूखी पत्तियाँ, गेहूँ, धान, उरद और अरहर का भूसा होना चाहिए। ठंड के दिनों में बकरियों को गन्ने का सीरा भी ज़रूर दें। यदि ऐसा पोषक खाना बकरियों को मिले तो उसके माँस और दूध में बढ़ियाँ इज़ाफ़ा होगा और अन्ततः किसानों की आमदनी दोगुनी से तीन गुनी हो जाएगी।

बकरी पालन में इस्तेमाल होने वाली आधुनिक तकनीकें (Advanced Goat Rearing Techniques)

मौजूदा समय में बकरी पालन से अधिक मुनाफ़े के लिए कई आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल हो रहा है। इसमें कृत्रिम गर्भाधान से लेकर आहार का सही चुनाव, स्वास्थ्य प्रबंधन और ऑटोमेटेड दूध देने वाली मशीनों का इस्तेमाल शामिल है। कृत्रिम गर्भाधान गाय और भैंस के साथ ही कृत्रिम गर्भाधान यानि आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन का इस्तेमाल बकरियों की उन्नत नस्ल प्राप्त करने के लिए भी किया जा रहा है। इसकी मदद से किसान अच्छी नस्ल के बकरों को चुनाव करके और उनके वीर्य से मादा बकरियों का गर्भाधान कराते हैं जिससे उन्हें बेहतर नस्ल की बकरियां प्राप्त होती है। इस आधुनिक प्रजनन तकनीक की मदद से किसान अधिक दूध देने वाली, तेज विकास और बेहतर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली बकरियों के प्रजनन में सफल रहे हैं।  ये तकनीक स्वस्थ और अधिक उत्पादक बकरियों का विकास करने में मदद करती है जिससे किसानों को न सिर्फ़ अधिक दूध मिलता है, बल्कि बढ़िया गुणवत्ता वाला मांस प्राप्त होता है जिसकी बाज़ार में सही कीमत मिलती है। स्वास्थ्य प्रबंधन सिर्फ़ अच्छी नस्ल की बकरियां प्राप्त करने से ही काम नहीं चलता, बल्कि उनके स्वास्थ्य की नियमित निगरानी भी ज़रूरी है, ताकि किसी तरह की बीमारी होने पर उसका तुरंत उपचार किया जा सके और अगर कोई एक बकरी को संक्रामक रोग होता है तो समय रहते उसे फैलने से रोका जा सके, ताकि बकरियों को नुकसान न हो। बीमारियों से बचाव के लिए बकरियों का टीकाकरण ज़रूरी है। साथ ही नियमित पशु चिकित्सा जांच जैसी नई तकनीकों को अपनाने से भी काफ़ी हद तक बीमारियों की रोकथाम की जा सकती है। इसके अलावा, रिमोट मॉनिटरिंग डिवाइस और डेटा एनालिटिक्स जैसी तकनीकों का इस्तेमाल करके भी बकरी पालक अपनी बकरियों के स्वास्थ्य पर बारीक निगरानी रख सकते हैं, बीमारी के शुरुआती लक्षणों का पता लगाकर तुरंत इलाज करवा सकते हैं। ऑटोमेटिक सिस्टम हर क्षेत्र की तरह ही बकरी पालन में भी ऑटोमैटिक तकनीकों का इस्तेमाल बढ़ा है। बकरी पालक भोजन और पानी के लिए भी ऑटोमैटिक सिस्टम का इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे समय और श्रम की बचत तो होती ही है, साथ ही बकरियों को समय पर भोजन-पानी उपलब्ध होता रहता है। इसके अलावा, ऑटोमेटेड दूध देने वाली मशीनों की मदद से बकरियों का दूध निकाला जाता है, जिससे श्रम की लागत में कमी आती है। इन नई तकनीकों के इस्तेमाल ने बकरी पालन को अधिक कुशल और लाभदायक व्यवसाय बना दिया है।

बकरी पालन बिज़नेस में आवास और उपकरण (Essential Housing And Equipment For Goat Farming)

बकरी पालन में सफल होने के लिए, बकरियों के रहने की जगह बहुत महत्वपूर्ण है। अच्छी बात ये है कि बकरियों को बहुत महंगी जगह की ज़रूरत नहीं होती। पर कुछ बातें ध्यान में रखनी चाहिए:

1. फ़र्श सूखा होना चाहिए।

2. हवा आने-जाने की अच्छी व्यवस्था हो।

3. धूप और बारिश से बचाव हो।

4. जगह साफ़ करने में आसान हो।

याद रखें, अगर हवा ठीक से नहीं आएगी या बहुत गर्मी होगी, तो बकरियां बीमार हो सकती हैं या कम दूध दे सकती हैं। इसलिए अच्छी हवा का इंतजाम ज़रूरी है। बकरियों के घर को मिट्टी की ईंट, लकड़ी या सीमेंट से बना सकते हैं। बस ध्यान रखें कि जगह काफी हो और हवा अच्छी आए।

आपको कुछ और सामान भी चाहिए होगा, जैसे:

– खाना देने के बर्तन

– पानी पीने के बर्तन

अपने बकरी पालन व्यवसाय योजना में इन सब चीजों का ख़र्चा भी लिखें। ये आपके बिजनेस का एक ज़रूरी हिस्सा है। इससे आपको पता चलेगा कि शुरू करने के लिए कितने पैसे की ज़रूरत होगी। याद रखें, अच्छी जगह और सही सामान से आपकी बकरियां स्वस्थ रहेंगी और अच्छा उत्पादन देंगी। इससे आपका व्यवसाय फले-फूलेगा।

ये भी पढ़ें- बकरी पालन (Goat Farming): इन दो युवकों ने अपने दम पर खड़ा किया बकरियों का ब्रीडिंग फ़ार्म, कभी हंसते थे पड़ोसी और आज देते हैं मिसाल

प्रजनन प्रबन्धन कैसे करें? (How To Manage Breeding In Goat?)

समान नस्ल की मादा और नर में ही प्रजनन करवाएँ। प्रजनन करने वाले परिपक्व नर बकरों की उम्र डेड़ से दो साल होनी चाहिए। ध्यान रहे कि एक बकरे से प्रजनित सन्तान को उसी से गाभिन नहीं करवाएँ। यानी, बाप-बेटी का अन्तः प्रजनन नहीं होने दें। इससे आनुवांशिक विकृतियाँ पैदा हो सकती हैं। 20 से 30 बकरियों से प्रजनन के लिए एक बकरा पर्याप्त होता है। मादाओं में गर्मी चढ़ने के 12 घंटे बाद ही उसका नर से मिलन करवाएँ। प्रसव से पहले बकरियों के खाने में दाने का मात्रा बढ़ा दें।

मेमने का प्रबन्धन कैसे करें? (Handling Of Newborn Baby Goat)

प्रसव के बाद मेमने को साफ़ कपड़े से पोछें। गर्भनाल को साफ़ और नये ब्लेड से काटें और उस पर आयोडीन टिंचर लगाएँ। जन्म के फ़ौरन बाद मेमनों को माँ का पहला दूध पीने दें। जब मेमने 15 दिन के हो जाएँ तो उन्हें हरा चारा और दाना देना शुरू करें तथा धीरे-धीरे दूध की मात्रा घटाते रहें। तीन महीने की उम्र के बाद मेमनों को टीके लगवाएँ। इसके लिए पशु चिकित्सालय से सम्पर्क करें। वहाँ सभी टीके मुफ़्त लगाये जाते हैं। बकरी पालन से कमाई (goat farming profit)

Goat Farming Business Plan In Hindi: वैज्ञानिक तरीके से करें बकरी पालन, लागत से 3 से 4 गुना होगी कमाई

वज़न करके ही बेचें बकरियां (Weighing Goats Prior To Sale)

बकरियों को नौ महीने के बाद ही बेचना फ़ायदेमन्द होता है, क्योंकि तब तक वो पर्याप्त विकसित हो जाते हैं। बेचने के लिए घूमन्तू व्यापारियों से बचना चाहिए क्योंकि अक्सर वो बकरी पालक किसानों को कम दाम देते हैं। इसीलिए बकरियों को पशु बाज़ार या कसाई या बूचड़खाने को सीधे बेचने की कोशिश करनी चाहिए और बेचते वक़्त बकरी के वजन के हिसाब से ही उसका भाव तय किया जाना चाहिए। बकरी पालकों में इन बातों को लेकर जागरूकता बेहद ज़रूरी है, वर्ना उनका मुनाफ़ा काफ़ी कम हो सकता है।

बकरी पालन व्यवसाय में बाज़ार की अच्छी संभावनाएं (Market Potential In Goat Farming Business)

बकरी का मीट दुनिया भर में बहुत पसंद किया जाता है। हर साल क़रीब 50 लाख टन बकरी के मांस की मांग होती है और ये मांग लगातार बढ़ रही है। आप अपना बकरी का मांस कई जगह बेच सकते हैं। जैसे कि कसाई की दुकानों पर, बाज़ार में, बड़े स्टोर्स में, होटल और रेस्तरां में। कुछ लोग सीधे आपसे भी खरीद सकते हैं। याद रखें, बकरी का मांस ताजा होना चाहिए। इसलिए अपना फ़ार्म ऐसी जगह बनाएं जहां से बाज़ार पास हो। अपने बकरी पालन व्यवसाय योजना में ये भी सोचें कि आप अपने काम का प्रचार कैसे करेंगे। बकरियों से सिर्फ़ मांस ही नहीं, बाल, दूध और फाइबर भी मिलता है। बकरी के मांस का विदेशी बाज़ार भी बहुत बड़ा है। जब आपका काम बढ़ेगा, तो आप दूसरे देशों में भी बकरी का मांस भेज सकते हैं। कई देश जैसे अरब देश, अमेरिका, इंडोनेशिया, कोरिया, और यूरोप के देश बकरी का मांस खरीदते हैं।

बकरी पालन व्यवसाय योजना में स्वास्थ्य देखभाल का महत्व (Importance Of Health Care In Goat Farming Business Plan)

बकरियों को स्वस्थ रखना बहुत ज़रूरी है। वे कई तरह की बीमारियों से पीड़ित हो सकती हैं, जैसे खुरपका-मुंहपका रोग (FMD), एंथ्रेक्स, और निमोनिया। इसलिए, टीकाकरण आपकी बकरी पालन व्यवसाय योजना का एक अहम हिस्सा है।

यहां कुछ ज़रूरी टीके और उनका समय बताया गया है:

1. FMD टीका: साल में एक बार (फरवरी या दिसंबर में)

2. एंथ्रेक्स टीका: साल में एक बार (मई या जून में)

3. IVRI/CCPP टीका: साल में एक बार

4. एंटीजेनिक टॉक्सिमिया टीका: साल में एक बार (मई या जून में)

5. PPR टीका: हर तीन साल में एक बार

अपने Goat farming business plan में इन टीकों का ख़र्च और समय शामिल करें। याद रखें, स्वस्थ बकरियां ही अच्छा उत्पादन देंगी और आपका मुनाफ़ा बढ़ाएंगी।

बकरी पालन व्यवसाय में निवेश और लाभ (Investment And Profit In Goat Farming Business)

अगर वैज्ञानिक तरीके से बकरी पालन किया जाए तो ये मुनाफ़ा देने वाला व्यवसाय बन सकता है। दीपक पाटीदार की सफलता की कहानी एक प्रेरणादायक बकरी पालन व्यवसाय योजना का उदाहरण है। मध्य प्रदेश के धार ज़िले के सुंदरैल गांव के निवासी पाटीदार ने 2000 में CIRG से 10 दिन का प्रशिक्षण लिया और 2001 में 60 स्थानीय बकरियों के साथ अपना फ़ार्म शुरू किया। शुरुआत में उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन CIRG के वैज्ञानिकों की सलाह पर उन्होंने सिरोही नस्ल अपनाई और नियमित रूप से नई जानकारी का इस्तेमाल किया।

इस रणनीति के परिणामस्वरूप, उनके फ़ार्म की मृत्यु दर 40% से घटकर 8% हो गई। वर्तमान में उनके पास 180 बकरियां हैं, जिनमें मुख्य रूप से सिरोही नस्ल की शुद्ध बकरियां हैं, साथ ही कुछ बारबरी, जखराना और जमुनापारी नस्ल की बकरियां भी हैं। वे अपनी बकरियों को 120-200 रुपये प्रति किलो जीवित वजन पर बेचते हैं।

आर्थिक दृष्टि से, पाटीदार का फ़ार्म अब सालाना 4-5 लाख रुपये का कुल राजस्व कमाता है, जिसमें से 1.5-2 लाख रुपये ख़र्च होते हैं, जिससे उन्हें 2-3 लाख रुपये का शुद्ध लाभ मिलता है। ये सफलता की कहानी दर्शाती है कि एक अच्छी बकरी पालन व्यवसाय योजना में प्रशिक्षण, विशेषज्ञों की सलाह, अच्छी नस्ल का चयन, नई जानकारी का लगातार उपयोग और गुणवत्ता पर ध्यान देना शामिल होना चाहिए। पाटीदार की कहानी से पता चलता है कि धैर्य और सही मार्गदर्शन से बकरी पालन एक लाभदायक व्यवसाय बन सकता है, जो एक आदर्श goat farming business plan का उदाहरण है।

बकरी पालन के लिए प्रोत्साहन योजना (Several Schemes For Goat Farming)

ज़्यादातर राज्य सरकारें बकरी पालकों को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें रियायती दरों पर बैंकों से कर्ज़ लेने की योजनाएँ चलाती हैं। इसके बारे में किसानों को नज़दीकी बैंक, कृषि विज्ञान केन्द्र या पशु चिकित्सालयों से सम्पर्क करना चाहिए।

भारत में बकरी पालन परियोजना के लिए लाइसेंस और अनुमतियां (Licenses and Permissions for Goat Farming Project in India)

बकरी पालन भी एक व्यापार है, इसलिए इसके लिए भी कुछ सरकारी मंजूरियां लेनी पड़ती हैं। सबसे पहले, आपको अपने राज्य या शहर के पशुपालन विभाग से लाइसेंस लेना होगा। ये लाइसेंस आपको कानूनी तौर पर बकरी पालन करने की इजाजत देता है। इसके अलावा, अगर आप बड़े पैमाने पर बकरी पालन करना चाहते हैं, तो आपको एक और कागज लेना पड़ सकता है। इसे NOC यानी ‘No Objection Certificate’ कहते हैं। ये इसलिए ज़रूरी है ताकि आस-पास के लोगों को कोई परेशानी न हो।

बकरी पालन व्यवसाय योजना बनाते वक्त टैक्स के बारे में भी सोचना ज़रूरी है। इसके लिए किसी टैक्स जानकार से बात करना अच्छा रहेगा। वे आपको बताएंगे कि आपको कितना और कैसे टैक्स देना है। याद रखें, ये सब कागजात और मंजूरियां लेना थोड़ा मुश्किल लग सकता है। लेकिन ये आपके बकरी पालन व्यवसाय योजना का एक ज़रूरी हिस्सा हैं। इनसे आपका काम कानूनी तौर पर सही रहेगा और आप बिना किसी टेंशन के अपना कारोबार चला सकेंगे। अगर कहीं समझ न आए तो स्थानीय अधिकारियों या अनुभवी बकरी पालकों से मदद ले सकते हैं।

बकरी पालन में अन्य सावधानियां (Other Precautions In Goat Rearing)

बकरी पालन से जुड़े उपकरणों की सफ़ाई के लिए पशु चिकित्सक की सलाह लेकर ही कीटाणु नाशक दवाओं का उपयोग करें। बकरियों को पौष्टिक आहार दें, उन्हें सड़ा-गला और बासी खाना नहीं खिलाएँ, वर्ना वो बीमार पड़ सकती हैं। बकरियाँ खरीदने से पहले उन्हें पशुओं के डॉक्टर को ज़रूर दिखाएँ, क्योंकि बकरियों में कुछ ऐसी भी बीमारी होती हैं जिनके सम्पर्क और संक्रमण से स्वस्थ बकरियाँ भी मर सकती हैं। बीमारी से मरने वाली बकरी को जला या दफ़ना दें। भारत में बकरी पालन का व्यवसाय (Goat Farming Business Plan In India) तेज़ी से विकासशील है। बढ़ती जनसंख्या, दूध और मांस की बढ़ती मांग इस व्यवसाय को स्थिरता और लाभकारी बना रहे हैं। सरकार की ओर से दी जा रहीं सब्सिडी और योजनाएं, जैसे कि बकरी पालन पर विशेष ध्यान और तकनीकी समर्थन, किसानों को प्रेरित कर रही हैं। इसके अलावा, बेहतर नस्लों की उपलब्धता और आधुनिक प्रबंधन विधियों के कारण उत्पादन क्षमता में वृद्धि हो रही है। कुल मिलाकर, बकरी पालन भारत में एक स्थिर और आकर्षक निवेश अवसर के रूप में उभर रहा है।

बकरी पालन व्यवसाय योजना (Goat Farming Business Plan In Hindi) पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

सवाल 1: क्या बकरी पालन से पैसा कमाया जा सकता है?

जवाब: हां, बकरी पालन से अच्छी कमाई हो सकती है। आजकल बकरी का मांस, दूध और ऊन की मांग बढ़ रही है। अगर आप ठीक से योजना बनाएं, अच्छे से देखभाल करें और सही जगह बेचें, तो बकरी पालन से अच्छा मुनाफ़ा हो सकता है।

सवाल 2: बकरी पालन में सफल होने के लिए क्या करना चाहिए?

जवाब:  – अच्छी नस्ल की बकरियां चुनें

– बकरियों को सही खाना दें

– समय-समय पर डॉक्टर को दिखाएं और टीके लगवाएं

– बकरियों को साफ़-सुथरी जगह पर रखें

– बाज़ार में बकरियों के दाम की जानकारी रखें।

सवाल 3: बकरियों को क्या खिलाना चाहिए?

जवाब: बकरियों को अच्छी घास, हरी पत्तियां, अनाज, और विटामिन की गोलियां दें। सही खाना तय करने के लिए किसी जानकार से सलाह लें।

सवाल 4: बकरी पालन शुरू करने में कितना ख़र्च आएगा?

जवाब: अगर आप 10-15 बकरियों से शुरुआत करना चाहते हैं, तो आपको कम से कम 50,000 से 1 लाख रुपये लगाने होंगे। बड़े फ़ार्म के लिए और ज़्यादा पैसे लगेंगे। इसके अलावा, पहले साल बकरियों के खाने और दूसरे ख़र्चों के लिए भी पैसे रखने होंगे।

सवाल 5: सबसे ज्यादा मुनाफा देने वाली बकरी कौन सी है?

ज्यादा मुनाफा देने वाली बकरी की टॉप 3 नस्लें हैं-
  • उस्मानाबादी
  • सिरोही नस्ल
  • जमुनापारी

सवाल 6- 100 बकरी पालने में कितना खर्चा आएगा?

सीआईआरजी (Central Institute for Research on Goats) के मुताबिक, अगर कोई पशुपालक 100 बकरियां और 5 बकरे पालते हैं, तो एक साल में करीब 3.5 लाख से 4 लाख रुपये का खर्च आ सकता है। इस खर्च में सभी तरह का चारा, दानेदार फ़ीड वगैरह शामिल है।

सवाल7 : एक बकरी से कितनी कमाई?

अगर आप एक बकरी पालते हैं तो साल में औसतन दो से पांच बच्चे मिलते हैं। छह महीने से एक साल तक पालने के बाद, एक बकरी या बकरा से लगभग तीन से चार हज़ार रुपये मिलते हैं।  

सवाल7 : 10 बकरी पालने में कितना कमाई होगी?

10 बकरियों को पालकर बिजनेस शुरू कर सकते हैं। इसके लिए सरकार भी मदद करती है। आपको आर्थिक सहायता दी जाती है। सरकार बकरी पालन की कई शानदार योजनाएं भी चलाती है। इसके लिए आपको अपने नजदीकी किसी भी बैंक में जाकर बकरी पालन योजना के तहत 10 बकरियों पर लगभग 400,000 रुपए तक का लोन ले सकते हैं। ये भी पढ़ें: बकरी पालन में मुनाफ़ा कमाना है तो ‘गोटवाला फ़ार्म’ से लीजिये ट्रेनिंग, ‘बकरी पंडित पुरस्कार’ से सम्मानित दीपक पाटीदार को बनाइये गुरू सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top