पश्चिम बंगाल के सुंदरबन के ग्रामीण इलाकों की महिलाएं और अन्य किसान काफ़ी पिछड़े हुए हैं। उन्हें आजीविका के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है। इलाके की एक महिला किसान बंधाबी मंडल ने तमाम बाधाओं को पार करते हुए न सिर्फ़ सफलता पाई, बल्कि दूसरे किसानों के लिए भी मिसाल पेश की है। उन्होंने बकरी पालन (Goat Farming) के ज़रिए अपने परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार किया और अच्छी कमाई कर रही हैं।
बायोटेक किसान हब परियोजना से मिली मदद
सुंदरबन के दूर-दराज के गांव साहेबखाली की रहने वाली बंधाबी मंडल ने ब्लैक बंगाल बकरियों का पालन शुरू किया। उनकी राह आसान नहीं थी। अच्छी गुणवत्ता वाली बकरियों की उपलब्धता न होने और ज़रूरी इनपुट्स की कमी और बकरियों के स्वास्थ्य से जुड़े खतरों की वजह से वह हमेशा चिंतित रहती थीं। बायोटेक किसान हब (सरकारी परियोजना) की गतिविधियां शुरू होने के बाद उनकी सारी समस्याएं खत्म हो गई। इतना ही नहीं, उनकी सफलता ने अन्य किसानों को भी प्रेरित किया।
ट्रेनिंग से मिली मदद
बायोटेक किसान हब परियोजना के तहत उन्हें बकरी पालन से जुड़ी ट्रेनिंग दी गई। इसमें बकरियों की बीमारियों व प्राथमिक उपचार, आवास, प्रबंधन, आहार, टीकाकारण सहित वैज्ञानिक तरीके से बकरी पालन के बारे में बताया गया। उन्होंने तीन ब्लैक बंगाल बकरियों और एक हिरण के साथ अपने पशुपालन व्यवसाय की शुरुआत की थी। फिर स्थानीय बाज़ार से चार और बकरियां खरीदीं।
कम समय में मिली सफलता
आज की तारीख में उनके पास 16 ब्लैक बंगाल बकरियां और एक हिरण है। ब्लैक बंगाल बकरियों की बिक्री से उन्होंने बकरियों के लिए करीब 20 हज़ार रुपये में कंक्रीट का शेड बनवाया। इसके अलावा, उन्होंने 25 हज़ार रुपये में 10 कट्ठा कृषि भूमि भी खरीदी। बकरी पालन से उनकी पारिवारिक आय में बढ़ोतरी हुई है। कम समय में मिली सफलता से वह अन्य किसानों के लिए प्रेरणा बन गई हैं। वह इलाके में प्रगतिशील महिला किसान और मास्टर ट्रेनर के रूप में जानी जाती हैं।
मास्टर ट्रेनर होने के नाते वह अन्य साथी किसानों को वैज्ञानिक बकरी पालन से जुड़ी ट्रेनिंग देती हैं। वह बहुत कम शुल्क में अन्य बकरी मालिकों को बकरियों के प्रजनन के लिए अपने बकरे भी देती हैं। मंडल की सफलता को देखकर आसपास की करीब 100 महिला किसानों ने ब्लैक बंगाल बकरियों का पालन शुरू किया है।
ब्लैक बंगाल बकरियों की ख़ासियत
इस नस्ल की बकरियां पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और बिहार में होती हैं। इन बकरियों के पैर छोटे होते हैं और रंग काला होता है। हालांकि, कुछ इलाकों में यह सफेद और भूरे रंग की भी पाई जाती हैं। व्यस्क नर बकरी का वजन 20-25 किलो और मादा बकरी का वजन 15-20 किलो तक होता है। बकरी 3 से 4 महीने तक 300 से 400 मिलीलीटर दूध देती है। यह बकरी ख़ासतौर पर मांस के लिए पाली जाती है और इनकी खाल भी अच्छी होती है। इस नस्ल की बकरी साल में दो बार बच्चे देती है और एक बार में दो या उससे अधिक बच्चे देती है।
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