पश्चिम बंगाल के सुंदरबन इलाके में संदेलरबिल नाम का एक गाँव पड़ता है। यहाँ की रहने वाली महिला किसान दीपाली बिस्वास ने कभी सोचा भी नहीं था कि बकरी पालन से उनकी ज़िंदगी इतनी बदल जाएगी। पहले वो घर के अन्य कामकाज और बच्चों की देखभाल के साथ-साथ मुर्गी पालन भी करती थीं। फिर उन्हें वैज्ञानिकों द्वारा बकरी पालन के वैज्ञानिक तरीकों के बारे में जानकारी मिली। इसके बाद उन्होंने ब्लैक बंगाल बकरियों को पालना शुरू कर दिया। इसका परिणाम अच्छा निकला। इस क्षेत्र में अब वह एक सफल बकरी पालक बन गई हैं और दूसरों को प्रेरित कर रही हैं।
संदेलरबिल के किसान बेहद ही गरीबी में जीने को मजबूर हैं। मिट्टी में खारापन होने के कारण वहां की ज़्यादातर भूमि उपजाऊ नहीं है। रबी के मौसम में खेत यूं ही खाली पड़ा रहता है। ऐसे में इन किसानों के लिए पशुपालन, मुर्गीपालन व बकरी पालन अतिरिक्त आमदनी का अच्छा ज़रिया बन सकता है। दीपाली बिस्वास की सफलता की कहानी इन किसानों के लिए प्रेरणा बन गई है।

बायोटेक किसान हब परियोजना से मिली मदद
दीपाली को बकरी पालन की प्रेरणा बायोटेक किसान हब परियोजना के वैज्ञानिकों से मिली। उनकी सलाह पर ही उन्होंने वैज्ञानिक तरीके से बकरी पालन पर आयोजित ट्रेनिंग प्रोग्राम में हिस्सा लिया। ट्रेनिंग की बदौलत उन्होंन बकरी पालन व्यवसाय से जुड़ी कई बारीकियां सीखीं। बकरियों के व्यवहार, प्रबंधन, भोजन, बीमारियों, उपचार व देखभाल के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां मिली। उन्हें बायोटेक किसान हब परियोजना के जर्मप्लाज़्म केंद्र में जन्में सर्वोत्तम गुणवत्ता वाली 3 ब्लैक बंगाल बकरी और एक बकरा दिया गया। साथ ही स्थानीय बाज़ार से भी दीपाली ने 4 बकरियां और खरीदीं। बायोटेक किसान हब परियोजना के तहत अधिकारी दीपाली को समय-समय पर टीकाकरण, पशु चारा और खनिज आपूर्ति से जुड़ी जानकारी देते रहते।
इस परियोजना का एकमात्र उद्देश्य किसानों को आर्थिक मज़बूती प्रदान करना है। बायोटेक किसान हब परियोजना के तहत किसानों को चयनित कर कृषि विज्ञान केन्द्र की तरफ़ से ट्रेनिंग प्रोग्राम्स आयोजित किये जाते हैं।

आर्थिक स्थिति में सुधार
वैज्ञानिक तरीके से बकरी पालन करके दीपाली बिस्वास की आय पहले से काफ़ी बढ़ गई। उनकी इस सफलता से अन्य महिलाएं भी बकरी पालन के लिए प्रेरित हुईं। तीन ब्लैक बंगाल बकरियों और एक बकरे से व्यवसाय शुरू करने वाली दीपाली के पास आज करीबन 14 ब्लैक बंगाल बकरियां हैं।
बकरी पालन व्यवसाय से अतिरिक्त आमदनी की बदौलत वह बैंक में 50 हज़ार रुपये जमा करने और परिवार के स्वास्थ्य पर 20 हज़ार रुपये खर्च करने में सक्षम हुईं। साथ ही उन्होंने दो कमरे का ईंट का घर भी बनवाया। परिवार की सालाना आय में 79.15 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई। बायोटेक किसान हब की बदौलत दीपाली अपने इलाके में सफल बकरी पालक बन चुकी हैं और अन्य महिलाओं को इसके लिए प्रशिक्षित भी कर रही हैं।

ब्लैक बंगाल बकरी की विशेषताएं
- ब्लैक बंगाल नस्ल की बकरी आमतौर पर पश्चिम बंगाल, ओडिशा और बिहार में पाई जाती हैं।
- इन बकरियों के पैर छोटे और रंग काला होता है।
- यह बकरी ख़ासतौर पर मांस के लिए पाली जाती है और इनकी खाल भी अच्छी होती है।
- इस नस्ल की बकरी साल में दो बार बच्चे देती हैं और एक बार में दो या उससे अधिक बच्चे देती हैं।
- व्यस्क नर बकरी का वजन 20-25 किलो और मादा बकरी का वजन 15-20 किलो तक होता है।
- बकरी 3 से 4 महीने तक 300 से 400 मिलीलीटर दूध देती है।
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