बकरी पालन में मुनाफ़ा ही मुनाफ़ा, एक बार लागत और फिर आराम ही आराम! इस तरह की हेडलाइन आपने पढ़ीं होंगी।आपको भी लगता होगा, क्यों न बकरी पालन के क्षेत्र में उतरा जाए। लोग बकरी पालन शुरू कर देते हैं और फिर जब इस तरह की हेडलाइंस की ज़मीनी सच्चाई सामने आती है, वो कई ग़लतफ़हमियों को मिटा देती है। बकरी पालन व्यवसाय मुनाफ़ा जरूर दे सकता है, लेकिन तभी जब आप इसकी बारीकियों को अच्छे से समझकर इसकी शुरुआत करें। आज हम इस लेख में आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताने जा रहे हैं, जो आज देश-विदेश के युवाओं और बकरी पालकों को बकरी पालन व्यवसाय के गुर सीखा रहे हैं। इनका नाम है दीपक पाटीदार, जो मध्य प्रदेश के धार ज़िले के एक छोटे से गााँव सुंद्रेल से आते हैं। दीपक पाटीदार पिछले 20 साल से व्यवसायिक बकरी पालन से जुड़े हैं। किसान ऑफ़ इंडिया से खास बातचीत में दीपक पाटीदार कहते हैं कि आज के डिजिटल वर्ल्ड में कई तरह की बातें देखने को मिलती हैं, ऐसे में लोगों को बकरी पालन के साथ-साथ कृषि क्षेत्र से जुड़ी सही और सटीक जानकारी देना ही उनका मकसद है।

गोटवाला फ़ार्म : Integrated Farming System ( एकीकृत कृषि प्रणाली ) मॉडल पर तैयार ट्रेनिंग सेंटर
जो लोग पूरी तरह बकरी पालन में उतरना चाहते हैं, इस क्षेत्र को लेकर पैशन है या किसी को बकरी पालन में समस्या का सामना करना पड़ रहा है, ऐसे लोगों को दीपक पाटीदार की फ़र्म Goatwala Farm ( गोटवाला फार्म ) ट्रेनिंग देती है। Goatwala Farm में Integrated Farming System मॉडल को अपनाया हुआ है। पूरी तरह से ग्रीन एनर्जी के इस्तेमाल के साथ फ़ार्म में काम किया जाता है।
Goatwala Farm में डेयरी फ़ार्मिंग, ऑर्गेनिक सब्जियों की खेती, कंपोस्ट खाद की यूनिट, वर्मी कंपोस्ट की यूनिट भी है। गाय के गोबर और बकरी की मेगनी का उपयोग गोबर गैस प्लांट में और बिजली बनाने में किया जाता है। सिंचाई के लिए सोलर एनर्जी से चलने वाला 5 एचपी का पंप सेट लगा हुआ है। पानी भी रीसायकल कर सिंचाई के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है। इससे पानी की बर्बादी नहीं होती। बायो गैस से निकली हुई स्लरी का इस्तेमाल खाद या वर्मीकम्पोस्ट के रूप में भी किया जाता है।

प्रैक्टिकल ट्रेनिंग पर देते हैं ज़ोर
दीपक पाटीदार बताते हैं कि उनका ज़ोर लोगों को प्रैक्टिकल ट्रेनिंग देने में होता है क्योंकि इससे ही आप सारी बारीकियों को समझ सकते हैं। तीन दिन के लिए प्रति व्यक्ति की फ़ीस 15 हज़ार रुपये है। इसमें रहने, खाने-पीने, पिक एंड ड्रॉप (लाने-लेजाने ) की सहूलियत दी जाती है। साल में चार बार यानी हर 3 महीने में बकरी पालन की ट्रेनिंग होती है। ट्रेनिंग के लिए पहले से ही साइट पर जाकर रजिस्ट्रेशन कराना होता है। दीपक पाटीदार ने बताया कि ट्रेनिंग में व्यवसायिक बकरी पालन (Commercial Goat Farming) से जुड़ी लगभग सारी जानकारी दी जाती है। दीपक पाटीदार बताते हैं कि सुबह से लेकर शाम तक उनकी दिनचर्या व्यस्त रहती है। फ़ीस इसलिए रखी गयी है ताकि वही लोग ट्रेनिंग लेने आएं जो सीरियस हैं और सच में ये काम करना चाहते हैं। जो लोग पैसे देने में असमर्थ होते है, उनके लिए महीने के दो दिन फ़्री सुविधा दी जाती है।
फ़ार्म में महीने के दो दिन 15 और 30 तारीख को फ़्री विज़िट कर सकते हैं। ये दो दिन चेरिटेबल होते हैं। इन दो दिन में फ़ार्म में आने वाले शख्स को बकरी पालन से जुड़ी कंसल्टेंसी, सुझाव और विचार-विमर्श की सुविधा निःशुल्क दी जाती है। अगर इन दो दिनों के अलावा किसी और दिन फ़ार्म में विजिट करना चाहते हैं तो उसकी फ़ीस 100 रुपये है। कंसल्टेंसी फ़ीस प्रति व्यक्ति दो हज़ार रुपये तय है। कई एनजीओ, एजेंसियों और सरकार द्वारा भी फ़ार्म में ग्रुप भेजे जाते हैं। इन ग्रुप्स के लिए साढ़े सात हज़ार का चार्ज है। इनका दो से तीन घंटे का सेशन होता है। किसान ऑफ़ इंडिया से आगे बात करते हुए दीपक पाटीदार कहते हैं कि किसान इसीलिए पैसा नहीं कमा पा रहा क्योंकि वो प्रोफ़ेशनल नहीं हो पाया। वो जिस किसी युवा या किसान से मिलते हैं, उन्हें प्रोफ़ेशनल होने की सलाह देते हैं। अब तक 30 हज़ार से ज़्यादा लोग दीपक पाटीदार और उनकी फ़र्म Goatwala Farm से जुड़ चुके हैं और अपनी बकरी पालन की इकाई खोल अच्छी आमदनी अर्जित कर रहे हैं।
Goatwala Farm ने रॉकेट स्किल्स के साथ मिलकर ऑनलाइन ट्रेनिंग की भी शुरुआत की है। ताकि दूर-दराज इलाकों में रहने वाले लोगों तक भी पहुंचा जा सके। Complete Goat Farming Course – Build Profitable Business के नाम से ऑनलाइन कोर्स शुरू किया गया है। इसमें 10 घंटे के ऊपर के वीडियो लेक्चर मिलेंगे। इन लेक्चर्स को आप जब चाहे अपनी सुविधा और समय के हिसाब से देख सकते हैं। खास बात ये है कि इन वीडियोज़ का एक्सेस आपके पास हमेशा के लिए रहेगा। कहीं पर कोई संदेह हो, कुछ चीजों के बारे में विस्तार से आपको जानकारी लेनी हो, तो उसके लिए हफ़्ते-हफ़्ते भर में लाइव सेशन होते हैं। इन ऑनलाइन लाइव क्लासेज़ में ट्रेनर, बकरी पालन से जुड़े सवालों का समाधान करते हैं। इसके अलावा, व्हाट्सऐप ग्रुप के ज़रिए भी आप प्रश्न पूछ सकते हैं।
बकरी पालन की कैसे हुई शुरुआत?
कृषि महाविद्यालय इंदौर से एग्रीकल्चर में बीएससी की डिग्री करने के बाद दीपक पाटीदार ने सन 2000 में उत्तर प्रदेश के केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान से कमर्शियल बकरी पालन की ट्रेनिंग ली। इसके बाद फरवरी 2000 में ही Goatwala Farm की शुरुआत कर दी। एक साल बाद कई समस्याओं से उन्हें दो-चार होना पड़ा, जो अमूमन बकरी पालन के क्षेत्र से जुड़े सभी लोगों के सामने आती हैं। सही इलाज, दवाइयां, नस्ल और आहार से जुड़ी परेशानियों के बारे में जानकारी पहले से थी, लेकिन फिर भी कुछ बातों को लेकर असमंजस बना हुआ था।
अपने एक साल के बकरी पालन के अच्छे और बुरे अनुभवों को लेकर 2001 में दीपक फिर से केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान में ट्रेनिंग के लिए पहुंचे। इस बार उन्होंने अपने अनुभवों के आधार पर समस्या का हल जाना। दीपक पाटीदार बताते हैं कि ट्रेनिंग के दौरान संस्थान के वैज्ञानिकों ने उनकी पूरी मदद की। उनके मन में जो सवाल उठते, वैज्ञानिकों से उनका जवाब मिल जाता। इससे ट्रेनिंग लेने आए अन्य लोगों को भी फ़ायदा होता।
बकरी पालन में किन बातों पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत?
दीपक पाटीदार बताते हैं कि उन्होंने बकरी पालन व्यवसाय की शुरुआत 100 लोकल नस्ल की बकरियों के साथ की। डेढ़ दो साल बाद उन्हें ऐसा लगने लगा की बकरियों को शेड के अंदर पालना मुमकिन नहीं हो पाएगा। इसको लेकर उन्होंने रिसर्च की और समस्या का वैज्ञानिक तरीकों से समाधान निकाला। इस बीच बकरी से जुड़े केन्द्रीय संस्थानों Central Institute for Research on Goats (CIRG) और Central Sheep and Wool Research Institute (CSWRI) से लगातार संपर्क में रहे। लोकल नस्ल को हटाकर, उन्नत भारतीय नस्ल की प्रजातियों को रखकर एक प्रजनन फ़ार्म बनाया।
फ़ार्म में पैदा हुई बकरियों और बकरों को जीवित भार के आधार पर बेचने के लिए मार्केटिंग की। इसके अलावा, बकरियों की मृत्यु दर को कम करने के लिए समय से टीकाकरण, पेट के अंदर के कीड़े और बाहर के पैरासाइट से निपटने के लिए लगातार निगरानी की। इससे बकरियों और बच्चों की मृत्यु दर में भारी कमी आई। बकरियों के लिए पौष्टिक आहार भी फ़ार्म में बनाना शुरू किया, ताकि मिलावटी चीज़ों से बचकर बकरियों को सही चारा मिल सके। इससे बकरियों का अच्छा विकास हुआ। इन सब कदमों से व्यवसाय को और ज़्यादा लाभ हुआ। आज गोटवाला फ़ार्म में सिरोही, सोजत, बीटल, बरबरी, तोतापरी और करौली नस्ल की करीबन 500 बकरियां और बच्चे हैं।
मार्केटिंग को किया मजबूत, डिजिटल वर्ल्ड में रखा कदम
Goatwala farm से ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को जोड़ने के लिए 2008 में वेबसाइट शुरू की गई। इससे देश-विदेश के लोग सीधा दीपक पाटीदार से जुड़े। फ़ार्म पर कई देशो के किसान और प्रतिनिधि आ चुके हैं। इज़राइल और अफ़्रीका के विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधियों ने फ़ार्म में आकर MOU भी किया है। यानी कि एक तरह का करार भी किया है, जिसके तहत कमर्शियल बकरी पालन के गुर और तकनीक अन्य देशों के लोगों को भी सिखाते हैं।
साल 2010 में छोट-बड़े बकरी पालको के साथ जुड़ने की दिशा में सोशल मीडिया पर उतरे। दीपक पाटीदार ने बताया कि इससे आपस में सभी को फ़ायदा हुआ। व्यापार भी बढ़ा और मार्केटिंग करना आसान हुआ। दीपक पाटीदार कहते हैं कि बकरियों को सही बाज़ार मिले इसके लिए मार्केटिंग बहुत ज़रूरी है। ये काम सोशल मिडिया के कारण और आसान हो गया।
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बकरी पालन व्यवसाय एक बार जम जाए तो बिक्री की समस्या नहीं आती
Goatwala farm से हर साल लगभग 500 से 750 की संख्या में बकरे और बकरियां बेची जाती हैं। फ़ार्म में बढ़े हुए किसी बकरे या बकरी पर करीब 7000 रु. का खर्च आता है जबकि औसतन कम से कम 12,000 रुपये में वो बिक जाता है। इस तरह व्यवसाय से लगभग 25 से 30 फ़ीसदी का सीधा मुनाफ़ा हो रहा है। दीपक पाटीदार कहते हैं कि बकरी पालन का व्यवसाय ऐसा है जहां कॉम्पिटिशन नहीं रहता। अगर इलाके में कुछ नए फ़ार्म और भी खुल जाएं तो भी आप की बिक्री पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है। आपको सिर्फ़ बकरे और बकरियों के अच्छे उत्पादन पर ध्यान देने की ज़रूरत है, फिर बाज़ार में उसका दाम भी मन मुताबिक मिलता है।
अच्छा उत्पादन तो अच्छी मिलेगी कीमत
दीपक पाटीदार बताते हैं कि जब तीन-चार साल बाद बकरी पालन व्यवसाय की बारीकियों को आप जान चुके होते हैं, तब आप अच्छा लाभ लेने लगते हैं। उन्होंने बताया कि अच्छे उन्नत बकरे और बकरियों के पालन और उत्पादन से किसान मनचाही कीमत पा सकता है। दीपक पाटीदार ने बताया कि बाज़ार में मांस की मांग लगातार बढ़ रही है, और हर साल बकरी के मांस का मूल्य भी बढ़ता जा रहा है। ये व्यवसाय कृषि परिवारों के युवाओं के लिए एक बहुत अच्छा अवसर हो सकता है और आय को बढ़ाने में कारगर साबित हो सकता है।
ट्रेनिंग लेकर ही बकरी पालन क्षेत्र में उतरें
बकरी पालन व्यवसाय पर ज़्यादा जानकारी देते हुए दीपक पाटीदार बताते हैं कि अभी बकरी पालन में लागत ज़्यादा आती है, लेकिन धीरे-धीरे इसका लागत मूल्य लगभग स्थिर होता जा रहा है । बाज़ार में दाम बढ़ रहा है। अगर बकरी पालन को वैज्ञानिक प्रबंधन और अच्छी नस्लों के साथ किया जाए तो निश्चित ही ये बकरी पालकों को अच्छी आमदनी देगा। एक बार व्यवसाय में मजबूत पकड़ बन जाए तो आप बकरी पालन को किसी भी स्तर तक पहुंचा कर कई गुना मुनाफ़ा कमा सकते हैं। जो लोग कमर्शियल बकरी पालन में उतरना चाहते हैं उन्हें सलाह देते हुए दीपक पाटीदार कहते हैं कि किसी भी नए शख्स को बिना ट्रेनिंग के बकरी पालन की शुरुआत नहीं करनी चाहिए। इससे जानकारी के अभाव में नुकसान होने की गुंजाइश ज़्यादा रहती है।
कई राष्ट्रीय और राज्य स्तर के पुरस्कारों से सम्मानित
कृषि क्षेत्र में दीपक पाटीदार के योगदान को देखते हुए उन्हें नेशनल और राज्य स्तर पर कई पुरस्कारों से नवाज़ा गया है। 2008 में केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान द्वारा ‘बकरी पंडित का पुरस्कार’, 2011 में ‘भूमि निर्माण अवॉर्ड’, 2015 में ‘इनोवेटिव फ़ार्मर अवॉर्ड’, 2016 में ‘प्रोग्रेसिव फ़ार्मर अवॉर्ड’ से सम्मानित किया गया।
साल 2009 से 2019 तक मध्य प्रदेश के जबलपुर स्थित श्री नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय में प्रमंडल के सदस्य पद पर रहे। अभी भेड़ और बकरी की एक राष्ट्रीय संस्था Goat & Sheep Farmer Welfare Association (GSFWA-India) के उपाध्यक्ष पद की बागडोर संभाल रहे हैं। साथ ही अपने व्यस्त कार्यक्रमों के बीच वो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सेमिनारों और वर्कशॉप्स में बतौर स्पीकर कृषि क्षेत्र से जुड़े अपने अनुभव साझा करते हैं।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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