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औषधीय फसलों की खेती से ऐसे बढ़ सकती है किसानों की आमदनी

देश में बड़े स्तर पर की जाएगी जड़ी-बूटियों की खेती, सरकार ने तय किया लक्ष्य

औषधीय फसलों की खेती से जुड़कर किसान अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं। औषधीय पौधों की खेती किसानों की आय बढ़ाने में कारगर साबित हो सकती है।

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केंद्र सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए सरकार कई महत्वपूर्ण कदम भी उठा रही है। कुल उत्पादन में वृद्धिबाज़ार में बेहतर कीमतउत्पादन लागत में कमीआधुनिक तकनीक पर ज़ोरनई किस्म का ईज़ाद आदि के माध्यम से किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य पर काम किया जा रहा है। ऐसे में अब औषधीय फसलों की खेती को लेकर सरकार ने बड़ा ऐलान किया है।

औषधीय फसलों की खेती से किसानों की आमदनी बढ़ाने की दिशा में देशभर में अगले एक वर्ष में 75 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में जड़ी-बूटियों की खेती की जाएगी। आयुष मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड (NMPB) इस अभियान की अगुवाई करेगा। सरकार का कहना है कि इस कदम से किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी और हरित भारत का सपना भी पूरा होगा।

medicinal plants cultivation india aswaganda ( अश्वगंधा ) औषधीय फसलों की खेती

कोरोना काल में तेज़ी से बढ़ी औषधीय पौधों की मांग

भारत की गिनती उन चंद देशों में होती है जहां की जैव विविधता बेहद समृद्ध है। यहां पर जो पेड़-पौधे और फसल उगाई जाती हैवो न सिर्फ़ देश की खाद्य ज़रूरतों को पूरा करते हैंबल्कि ये कई औषधीय गुण से परिपूर्ण होते हैं। मौजूदा वक़्त में कोरोना महामारी के कारण औषधीय फसलों की मांग काफ़ी बढ़ी है। पिछले डेढ़ वर्षों में न सिर्फ भारत मेंबल्कि पूरी दुनिया में औषधीय पौधों की मांग में बड़े पैमाने पर बढ़ोतरी हुई है। लोगों ने एक बार फिर आयुर्वेद व पुराने प्राकृतिक औषधीय नुस्खों की ओर रुख किया है। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने से लेकर बेहतर स्वास्थ्य के लिए लोग औषधीय जड़ी-बूटियों का सहारा ले रहे हैं। ऐसे में अगर किसान औषधीय फसलों की खेती से जुड़े तो वो इससे अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं। औषधीय पौधों की खेती आर्थिक रूप से किसानों को मज़बूत करने में कारगर साबित हो सकती है।

अश्वगंधागिलोयतुलसीभृंगराजसतावरपुदीनामोगराघृतकुमारीब्राह्मीशंखपुष्पी आदि बहुत ऐसी जड़ी बूटियां हैंजिनकी खेती किसान कर सकते हैं। भारत के कई इलाकों में औषधीय फसलों की खेती होती भी है। कुछ हर्बल पौधे ऐसे भी हैंजो कम वक्त में तैयार हो जाते हैं और एक बार बुवाई करने पर किसान कई बार पैदावार हासिल करते हैं। ऐसे में कमाई में कम समय में इज़ाफ़ा होता है और लागत काफी कम रहती है। इन्हीं संभावनाओं को देखते हुए सरकार किसानों को हर्बल पौधों की खेती के लिए प्रोत्साहित कर रही है।

medicinal use of shankhpushpi ( शंखपुष्पी ) औषधीय फसलों की खेती

सालाना करोड़ों रुपये है हर्बल उत्पादों का कारोबार

भारतीय बाज़ार में सालाना करोड़ों रुपये के हर्बल उत्पादों का कारोबार होता है। एक आंकड़ें के मुताबिकदेश में हर्बल उत्पादों का बाज़ार करीबन 50 हज़ार करोड़ रुपये का हैजिसमें सालाना 15 फ़ीसदी की दर से वृद्धि हो रही है। कोरोना काल से पहले 35 रुपये में बिकने वाली तुलसी अब 40 से 45 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रही है। घृतकुमार (एलोविरा) की मांग बढ़ने के चलते 35 रुपये प्रति किलो बिकने वाला पल्प अब 40 रुपये और 40 रुपये प्रति लीटर बिकने वाला जूस अब 50 रुपये में बिक रहा है। वहीं बाज़ार में गिलोय जूस की कीमत 200 से 300 रुपये प्रति लिटर है। भृंगराज पाउडर के एक किलो पैकेट की कीमत 400 से 500 रुपये है। मोगरे तेल की कीमत 1500 से 5000 रुपये प्रतिकिलो तक जाती है। शंखपुष्पी सीरप के 450मिलीलीटर पैकेट की कीमत 200 से 240 रुपये के आसपास रहती है। ऐसे में जड़ी-बूटियों की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहन देना एक बड़ा कदम है। इससे दवाओं की उपलब्धता के मामले में देश आत्मनिर्भर भी होगा।

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