मशरूम की खेती (Mushroom Farming) से एक सिविल इंजीनियर बनीं मशहूर महिला उद्यमी
Oyster Farming: ऑयस्टर मशरुम की खेती से 2 साल में लागत से तीन गुना ज़्यादा कमाया मुनाफ़ा।
Oyster Farming: ऑयस्टर मशरुम की खेती से 2 साल में लागत से तीन गुना ज़्यादा कमाया मुनाफ़ा।
2 एकड़ ज़मीन में चार तालाब बने हुए थे। इसमें वो तिलापिया मछलियां पालती थीं। उनके पास 5 बकरियां और 50 देसी मुर्गियां भी थीं। सही प्रबंधन न होने की वजह से आमदनी कुछ ख़ास आमदनी नहीं होती थी। कैसे नारियल आधारित एकीकृत कृषि मॉडल अपनाकर उनकी आमदनी में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा हुआ, जानिए इस लेख में।
मध्य प्रदेश का एक स्वयं सहायता समूह सफलतापूर्वक मशरूम उत्पादन करके कईयों के लिए प्रेरणा बना है। कैसे इस स्वयं सहायता समूह का गठन हुआ और कैसे इन महिलाओं के लिए स्वरोजगार के रास्ते खुले, जानिए इस लेख में।
झारखंड के रामगढ़ ज़िले की रहने वाली रीता देवी को टमाटर की खेती में महंगे बीजों की वजह से लागत ज़्यादा पड़ती थी, मुनाफ़ा लागत के मुकाबले कम होता था। इसके हल के लिए रीता देवी ने Protected Condition की तकनीक अपनाई।
कर्नाटक की रहने वाली इराव्वा न सिर्फ़ खुद जैविक खेती (Organic Farming) कर रही हैं, बल्कि अपने इलाके के किसानों को भी इसके लिए प्रेरित कर रही हैं। उन्होंने अपने फ़ार्म में कई तकनीकों को कुछ इस तरह अपनाया है, जो खेती-किसानी की कई चुनौतियों को हल करता है।
बिहार की रहने वालीं सुषमा गुप्ता अपनी सटीक Marketing Strategy से मशरूम की खेती से अच्छा मुनाफ़ा कमा रही हैं। जानिए हमेशा से कुछ नया करने की ललक रखने वालीं सुषमा ने कैसे शुरू की मशरूम की खेती।
वर्मीकंपोस्ट बनाने में कृषि विज्ञान केंद्र, नलबाड़ी ने कनिका के क्षेत्र में ‘वर्मीकम्पोस्ट प्रोडक्शन टेक्नोलॉजी’ पर एक फ्रंट लाइन डेमॉन्स्ट्रेशन (एफएलडी) आयोजित करके तकनीकी सहायता प्रदान की और उन्हें 1 किलो केंचुआ (ईसेनिया फोएटिडा प्रजाति) प्रदान करके खाद बनाने के लिए प्रेरित किया।
मैनपुरी ज़िले के भदौरा गाँव की रहने वाली किसान संतोष कुमारी के पास सिर्फ़ 1 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है। हालात ये थे कि परिवार के लिए पोषण युक्त सब्जियां उपलब्ध न होने की वजह से परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता था। कैसे मौसमी सब्जियों की खेती और फसल चक्र अपनाने से हुआ सुधार? जानिए इस लेख में।
मशरूम उत्पादन की ख़ासियत है कि इसमें खर्च बहुत कम होता है और इसे गेहूं, धान, सोयाबीन आदि के भूसे में आसानी से उगाया जा सकता है। छोटे किसानों के पास अपनी आमदनी बढ़ाने का यह एक बेहतरीन ज़रिया है। आप छोटे स्तर पर शुरू करके इसे बड़ा बिज़नेस बना सकते हैं।
कर्नाटक के तुमकुर ज़िले की रहने वाली शशिकला पहले अपनी फसल की बिक्री के लिए बेंगलुरू के बाज़ार जाती थीं, वहीं अब खरीदार उपज खरीदने खुद उनके पास आते हैं। सब्जियों की उन्नत किस्म की खेती के लिए वो अपने क्षेत्र के अन्य किसानों को भी प्रेरित कर रही हैं।
झारखंड के बांका ज़िले की रहने वाली सविता देवी ने 2007 में, एक गाय से डेयरी व्यवसाय में कदम रखा था। आज वो अपने गाँव की एक सफल उद्यमी हैं और साथी किसानों को ट्रेनिंग देती हैं।
सरकारी नौकरी लग जाए, इसके लिए कई लोग सालों-साल तैयारी करते हैं। नबनीता दास ने 2010 में सरकारी नौकरी छोड़ जैविक खेती (Organic farming) की राह चुन ली।
किसान अगर खेती और उससे जुड़ी अन्य गतिविधियों में वैज्ञानिक पद्धित का इस्तेमाल करें, तो कम ज़मीन से भी अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं, जैसा कि मणिपुर की महिला किसान वैरोकपम ओंगबी बिमोला देवी ने किया। उन्होंने एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल (Integrated Farming Model) अपनाकर अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार किया।
‘मान लो तो हार है, ठान लो तो जीत है’, इस बात पर यकीन रखने वाली बिहार के दरभंगा ज़िले की महिला किसान प्रतिभा झा ने न सिर्फ़ अपनी अलग पहचान बनाई, बल्कि मशरूम की खेती करके परिवार की भी आर्थिक मदद कर रही हैं।
खेती से प्राप्त उत्पादों की प्रोसेसिंग या मूल्य संवर्धन (Value addition) महिलाओं के आत्मनिर्भर बनने का बेहतरीन ज़रिया है। कर्नाटक की रहने वाली वसुंधरा हेगड़े ने भी फ़ूड प्रोसेसिंग को अपनाकर खुद का बिज़नेस शुरू किया।
कश्मीर के पुलवामा ज़िले के डिग्री कॉलेज में बीएससी (मेडिकल) करते-करते सिर्फ़ सात दिन की ट्रेनिंग की बदौलत यहां मशरूम किसान बनने वाली पहली महिला हैं।
बिहार के छपरा की रहने वाली सुनीता प्रसाद ने PVC पाइप और बांस की मदद से वर्टिकल गार्डन का पूरा कॉन्सेप्ट तैयार किया है। इस तरीके से कम जगह में ढेरों सब्जियां उगाई जा सकती हैं। जानिए उनके Innovation के बारे में।
कश्मीर में महिलाओं की तरफ से चलाया जा रहा कस्टम हायरिंग सेंटर उन पुरुषों की आमदनी का ज़रिया बन रहा है, जो बेरोज़गार हैं या जिनके पास खाली समय होता है। उपकरणों को चलाने के लिए गांव या आसपास के ही किसी व्यक्ति को बुलाया जाता है। बदले में उनको मेहनताना दिया जाता है।
पुणे की शर्मिला ओसवाल ने कई किसानों को अपने साथ जोड़ा हुआ है। शर्मिला करीबन 20 साल से किसानों के साथ पानी, एग्रीकल्चर, फसलों की क्षमता बढ़ाने, फूड सिक्योरिटी, बीज में सुधार आदि मुद्दों पर काम करने के साथ ही मोटे अनाज की खेती कर रहे किसानों को ट्रेनिंग देने का भी काम कर रही हैं।
अगर खेती में सही तकनीक और अच्छी किस्म के बीजों का इस्तेमाल किया जाए तो किसान अच्छा मुनाफ़ा अर्जित कर सकते हैं। सिक्किम की महिला किसान यांगडेन लेप्चा मक्के की खेती से अच्छा लाभ अर्जित कर रही हैं।