Bottle Gourd Farming: अगर आप कर रहे हैं लौकी की खेती तो ऐसे करें रोगों से अपनी फसल का बचाव

लौकी की फसल पर लगने वाले ऐसे कई रोग हैं जो उत्पादकता को प्रभावित कर सकते हैं। लौकी की खेती कर रहे किसान अगर वक़्त रहते रोग की पहचान कर लें तो फसल को नुकसान से बचाया जा सकता हैं। जानिए लौकी की फसल पर लगने वाले प्रमुख रोगों के बारे में और उनके उपचार।

Bottle Gourd Farming: अगर आप कर रहे हैं लौकी की खेती तो ऐसे करें रोगों से अपनी फसल का बचाव

लौकी की खेती आमतौर पर गर्मी और बरसात के मौसम में की जाती है। कुदरती तरीके से उगाई गई लौकी का स्वाद लाजवाब होता है। लौकी के पौधे को वैसे तो बहुत देखभाल की ज़रूरत नहीं होती, लेकिन कीट और बीमारियों से बचाव ज़रूरी है, वरना समय से पहले ही पौधे मर सकते हैं। लौकी में होने वाली कुछ आम बीमारियां और उनके उपचार के बारे में आइए जानते हैं।

चूर्णिल आसिता

इस रोग से ग्रसित पौधे की पत्तियों और तनों पर सफेद या धूसर रंग का पाउडर जैसा बनने लगता है। कुछ दिनों बाद पत्तियों पर धब्बे दिखने लगते हैं। इस रोग की वजह से पत्तियों और फलों का आकार छोटा छोटा होने लगता है। इसकी वजह से समय से पहले ही पौधे खराब होने लगते हैं।

रोग से बचाव

बीमार पौधों पर ट्राइडीमोर्फ जैसी फफूंद नाशक दवा का छिड़काव करें। एक लीटर पानी में आधी मिलीलीटर दवा मिलाकर हर 7 दिन के अंतराल में पौधों पर छिड़काव करें। अगर यह दवा न मिले तो इसकी जगह फ्लूसिलाजोल, हेक्साकोनाजोल, माईक्लोबूटानिल का छिड़काव 7 या 10 दिनों के अंतराल में करें।

लौकी की खेती पर रोग (BOTTLE GOURD farming disease)
तस्वीर साभार: homestratosphere

Bottle Gourd Farming: अगर आप कर रहे हैं लौकी की खेती तो ऐसे करें रोगों से अपनी फसल का बचाव

मृदुरोमिल फफूंदी

लौकी में यह रोग बारिश और गर्मी के समय होता है। यह उत्तर भारत में अधिक होता है। यह रोग होने पर पत्तों की ऊपरी सतह पर हल्के पीले धब्बे दिखाई देते हैं। बाद में पत्तों की निचली सतह पर फफूंद बैंगनी रंग की दिखने लगती है। बीमार पौधें की पीली पत्तियां जल्द ही भूरे रंग की हो जाती हैं। इस रोग की वजह से लौकी छोटे आकार की होती है।

रोग से बचाव

इस रोग से बचाव के लिए बीजों को रोपने से पहले मेटलएक्सिल नामक फफूंदनाशक दवा से उपचारित करें। एक किलो बीज के लिए 3 ग्राम दवा काफ़ी है। रोग के लक्षण दिखते ही मैंकोजेब 0.25 प्रतिशत घोल का छिड़काव तुरंत पौधों पर करें। यदि रोग अधिक फैल गया है तो एक लीटर पानी में मैटैलैक्सिल+मैंकोजेब का 2.5 ग्राम का घोल बनाकर 7 से 10 दिनों के अंतराल में छिड़काव करें।

लौकी की खेती पर रोग (BOTTLE GOURD farming disease)
तस्वीर साभार: krishisewa

 

मौजैक विषाणु रोग

इस बीमारी की वजह से पौधों की नई पत्तियां सिकुड़ जाती हैं। पत्तियां पीली हो जाती हैं और पौधे का विकास रुक जाता है। कुछ छोटे-छोटे फूल दिखते हैं और फल एकदम छोटे होते हैं या फिर नहीं होतें।

रोग से बचाव

इस बीमारी से बचाव के लिए बीमारी से ग्रसित पौधे को उखाड़कर जला दें। रोग फैलाने वाले विषाणुओं से बचाव के लिए एक लीटर पानी में 0.3 ग्राम इमिडाक्लोप्रिड का घोल बनाकर छिड़काव करें। ऐसा 10 दिनों के अंतराल में 2 से 3 बार करें।

लौकी की खेती पर रोग (BOTTLE GOURD farming disease)
तस्वीर साभार: Patrika

पत्ती झुलसा रोग

इस बीमारी की वजह से सबसे पहले पत्तियों पर हल्के भूरे रंग के धब्बे दिखते हैं। बाद में यह धब्बे बड़े और गहरे हो जाते हैं। धब्बे गोल आकृति में बनते हैं जिसकी वजह से पत्तियां झुलसी यानी जली हुई दिखती हैं।

रोग से बचाव

इस रोग से बचाव के लिए बुवाई के समय स्वस्थ बीजों का इस्तेमाल करें। फसल पर एंडोफिल एम-45 (एक लीटर पानी में 2/3 ग्राम) घोल का छिड़काव करें। ऐसा 10 से 15 दिनों के अतंराल में दो बार करें।

लौकी की खेती पर रोग (BOTTLE GOURD farming disease)
तस्वीर साभार: planetnatural

लौकी के खेती में बिना ज़्यादा मेहनत के आप अच्छी फसल प्राप्त कर सकते हैं, बशर्ते कीटों और रोगों का अच्छी तरह से प्रबंधन किया जाए।

स्टोरी साभार: ICAR-Indian Institute of Vegetable Research

ये भी पढ़ें: लौकी की खेती (Bottle Gourd Farming): लौकी की उन्नत किस्मों से किसान बढ़ा सकते हैं आमदनी

अगर हमारे किसान साथी खेती-किसानी से जुड़ी कोई भी खबर या अपने अनुभव हमारे साथ शेयर करना चाहते हैं तो इस नंबर 9599273766 या [email protected] ईमेल आईडी पर हमें रिकॉर्ड करके या लिखकर भेज सकते हैं। हम आपकी आवाज़ बन आपकी बात किसान ऑफ़ इंडिया के माध्यम से लोगों तक पहुंचाएंगे क्योंकि हमारा मानना है कि देश का किसान उन्नत तो देश उन्नत।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top