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लाल बहादुर शास्त्री: जब ‘लाल’ के नारे ने बदल दी देश में कृषि की सूरत, बढ़ा खाद्यान्न उत्पादन और आई श्वेत क्रांति

भारत के लाल ने जब दिया 'जय जवान-जय किसान' का नारा

1964 में जवाहर लाल नेहरू के बाद भारत के दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में लाल बहादुर शास्त्री ने पद भार संभाला। उनके सामने देश की आंतरिक सुरक्षा और बाहरी सुरक्षा के साथ-साथ देश की खाद्यान्न आपूर्ति की समस्या से कैसे निपटा जाए, इसकी चुनौती थी।

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हर साल हम 2 अक्टूबर को देश की दो महान शख़्सियतों का जन्मदिन मनाते हैं, जिसमें एक हैं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, जिन्हें हम प्यार से बापू बुलाते हैं, तो दूसरे हैं सरलता और सादगी की मिसाल, देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri)।

1964 में जवाहर लाल नेहरू के बाद भारत के दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में लाल बहादुर शास्त्री ने पद भार संभाला। उनके सामने देश की आंतरिक सुरक्षा और बाहरी सुरक्षा के साथ-साथ देश की खाद्यान्न आपूर्ति की समस्या से कैसे निपटा जाए, इसकी चुनौती थी।

भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान दिया नारा

भारत-अमेरिका के बीच 1960 में पी.एल. 480 नाम का एक समझौता हुआ, जिसमें अमेरिका ने भारत को पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्न भेजने का आश्वासन दिया, लेकिन भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने भारत को धमकी देते हुए कहा कि भारत युद्ध को रोक दे, नहीं तो अमेरिका भारत को खाद्य आपूर्ति करना बंद कर देगा। तब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इसका जवाब देते हुए कहा कि आपको गेहूं आपूर्ति बंद करनी है तो बंद कर दीजिए और तब भारत ने खुद ही अमेरिका से गेहूं लेना बंद कर दिया।

अक्टूबर 1965 में दिल्ली के रामलीला मैदान में लाल बहादुर शास्त्री ने देश की जनता को संबोधित करते हुए कहा-

“ये जो स्वराज्य आया है उसे हम मज़बूती से अपने पास रखेंगे ताकि कोई दूसरा हमारी तरफ टेढ़ी नज़र भी उठाकर देखे तो हम उसका पूरी तरह से मुक़ाबला कर सकें। मैं आप से कहूंगा कि दो नारे आज लगें।  दो नारा अगर आप लगाएं तो वो असली नारा है आज देश की ज़रूरत के मुताबिक। एक तो जय जवान का, दूसरा जय किसान का। ये दो नारे मैं समझता हूं कि आज हमारे देश के लिए ज़रूरी है एक जय जवान और एक जय किसान और फिर उसी से सारे देश का एक जय हिंद का नारा लगता है तो मैं आप से ये तीन नारे आप के सामने कहता हूं आपसे आशा करूंगा कि आप उसे दोहराएंगे…”

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साथ ही लाल बहादुर शास्त्री ने सप्ताह में एक दिन व्रत रखने की भी अपील की। किसानों में जोश भरने के लिए खुद खेत में हल चलाया। ये हरित क्रांति और आत्मनिर्भरता की एक किरण थी। इसी के फलस्वरूप 1964 से 1968 के बीच गेहूं का सालाना उत्पादन लगभग 100 लाख टन से बढ़कर 170 लाख टन पहुंचा।

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श्वेत क्रांति में रहा विशेष योगदान 

लाल बहादुर शास्त्री अमूल सहकारी की सफलता जानने में गहरी दिलचस्पी रखते थे। इसी कारण 31 अक्टूबर 1964 में अमूल के पशु चारा कारखाने का उद्घाटन करने और अमूल की सफलता को देखने के लिए आनंद का दौरा किया। कैरा ज़िला सहकारी दूध के महाप्रबंधक वर्गीज कुरियन ने निवेदन किया कि सहकारी के इस मॉडल को देश के अन्य हिस्सों में लागू करने और जन-जन तक पहुंचाने में मदद करें।

साथ ही आनंद में एक डेयरी विकास बोर्ड बनाने का आग्रह भी किया। उस वक़्त तत्कालीन प्रधानमंत्री शास्त्री ने कुरियन से हर संभव मदद करने का वादा किया और 1965 में गुजरात के आनंद में राष्ट्रीय विकास बोर्ड की स्थापना हुई। इसने आगे चलकर 1970 में ऑपरेशन फ्लड के रूप में डेयरी विकास कार्यक्रम की शुरूआत की।

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