गाजर की खेती (Carrot Farming): गाजर की इस किस्म ने एक गाँव को बना दिया ‘गाजर गाँव’

गाजर की खेती अच्छे मुनाफ़े का सौदा बन सकती है, लेकिन ही किस्म का चयन ज़रूरी है। ICAR द्वारा विकसित की गई एक किस्म ने एक गाँव की तस्वीर ही बदल दी और आज ये गाँव 'गाजर गाँव' के नाम से भी जाना जाता है।

गाजर की खेती, गाजर की किस्म (Carrot farming, Carrot Pusa Rudhira)

गाजर सर्दियों में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलों में से एक है। सितंबर महीने से गाजर की खेती शुरू हो जाती है। बुवाई के बाद गाजर के बीज अंकुरित होते समय 7.2 से 23.9 डिग्री और जड़ों के अच्छे के विकास के लिए 18 से 23 डिग्री सेल्सियस का तापमान होना ज़रूरी है। इसकी फसल औसतन चार महीने में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।

गाजर की उपज  220 से 225 किवंटल प्रति हेक्टेयर होती है, जो कि गाजर की किस्मों (Carrot Advanced Varieties) पर निर्भर करती है। गाजर की खेती अच्छे मुनाफ़े का सौदा बन सकती है, बशर्ते सही किस्म का चयन हो। इस लेख में हम आपको गाजर की किस्म ‘पूसा रुधिर’ के बारे में बता रहे हैं।

गाजर की किस्म पूसा रुधिर की खेती (Carrot Pusa Rudhira) ने उत्तर प्रदेश के सूदना गांव को एक नई पहचान दी है। आज हापुड़ ज़िले का सूदना गांव ‘गाजर गाँव’ के नाम से मशहूर है। सूदना गाँव के ज़्यादातर किसान 2010 से पहले गेहूं, धान और गन्ने जैसी पारंपरिक फसलों की खेती किया करते थे। गाजर की खेती कम पैमाने पर होती थी। गाजर का उत्पादन फ़ायदे का सौदा नहीं माना जाता था।

गाजर की खेती, गाजर की किस्म (Carrot farming, Carrot Pusa Rudhira)
तस्वीर साभार: ncrnews

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ICAR ने तैयार किया ‘मॉडल’ गांव

गाजर की किस्म पूसा रुधिर इन किसानों के लिए खेती का एक नया दौर लेकर आई। इसका श्रेय भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR) को जाता है। गाजर के उत्पादन और लाभ को बढ़ाने के लिए ICAR ने संस्थान द्वारा विकसित की गई पूसा रुधिर किस्म की खेती के लिए चार गाँवों का चुनाव किया। सूदना गांव इन्हीं में से एक है। ICAR का उद्देश्य एक ‘मॉडल’ गांव तैयार करने का था।

ICAR ने 2012 में सूदना गांव के एक सीमांत किसान चरण सिंह के खेत में ‘पूसा रुधिर’ गाजर उगाने की शुरूआत की। 1.75 एकड़ क्षेत्र में गाजर की फसल लगाई। कृषि वैज्ञानिकों की निगरानी में किसान ने गाजर की फसल का रखरखाव किया।

पूसा रुधिर किस्म से किसान को हुआ 37 फ़ीसदी ज़्यादा मुनाफ़ा

किसान को पूसा रुधिर गाजर की किस्म से प्रति हेक्टेयर 393.75 क्विंटल की उपज मिली। ये पैदावार क्षेत्र में आम तौर पर  उगाई जाने वाली किस्म से 10 क्विंटल ज़्यादा थी। किसान को पूसा रुधिर किस्म से सीधे तौर पर प्रति हेक्टेयर ढाई लाख से ज़्यादा का मुनाफ़ा हुआ। ये मुनाफ़ा पहले के मुकाबले 37 फ़ीसदी ज़्यादा था। किसान को पूसा रुधिर गाजर का प्रति क्विंटल के हिसाब 928 रुपये का भाव मिला।

गाजर की खेती, गाजर की किस्म (Carrot farming, Carrot Pusa Rudhira)
तस्वीर साभार: ICAR

गाजर की खेती (Carrot Farming): गाजर की इस किस्म ने एक गाँव को बना दिया 'गाजर गाँव'औसतन उपज 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

इस किस्म की बुवाई के लिए सितंबर से अक्टूबर का समय सही रहता है। दिसंबर महीने से ये किस्म पकना शुरू हो जाती है। इसकी औसत उपज 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

बाज़ार में क्यों पूसा रुधिर किस्म को मिलता है अच्छा दाम?

बाज़ार में पूसा रुधिर किस्म की गाजर को अच्छा दाम मिलने के पीछे कई कारण हैं। पूसा रुधिर गाजर की जड़ें लंबी और दिखने में चमकते लाल रंग की होती हैं। ये किस्म गाजरों के   समान आकार और ज़्यादा मिठास वाली  होती है। गाजर की किस्म पूसा रुधिर, अन्य किस्मों की तुलना में पौष्टिक गुणों से भरपूर है।

ICAR के परीक्षण के दौरान इस किस्म में कैरिटोनोयड (Carotenoid) की 7.41 मिलीग्राम और प्रति 100 ग्राम में फिनोल की 45.15 मिलीग्राम (Phenols) मात्रा पाई गई। ये तत्व एंटी-ऑक्सीडेंट गुण से भरपूर  होते हैं, और कई तरह की  कैंसर कोशिकाओं (Cancer Cells) से लड़ने में सक्षम होते हैं। ICAR के मुताबिक, पूसा रुधिर किस्म किसानों के साथ-साथ उपभोक्ताओं के लिए भी फ़ायदेमंद है।

अधिक उत्पादन और लाभ से प्रभावित होकर सूदना गांव के अन्य किसानों ने भी पूसा रुधिर किस्म की खेती शुरू कर दी। 2012 में गाँव के करीब 20 किसानों को ICAR ने 200 किलो बीज, कम दरों में उपलब्ध करवाया। उसके एक साल बाद ही गांव के लगभग 60 प्रतिशत क्षेत्र में पूसा रुधिर की फसल लहलहलाने लगी।गाँव के किसानों ने समूह बनाकर तीन सफ़ाई मशीनें खरीदीं। इससे फ़ायदा ये होता है कि गाजरें जल्दी धुलती हैं और कम से कम नुकसान होता है। 

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