Zero Budget Natural Farming: प्राकृतिक खेती में ऐसे करें जीवामृत और बीजामृत का इस्तेमाल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 16 दिसंबर को राष्ट्रीय प्राकृतिक सम्मेलन में किया संबोधन
देशभर में कई किसानों ने अपनाई है प्राकृतिक खेती की विधि। आइए जानते हैं जीवामृत और बीजामृत को बनाने का तरीका।
प्राकृतिक कृषि के तरीकों की बात करें तो इसके महत्वपूर्ण स्तंभ हैं जीवामृत, बीजामृत, आच्छादन और व्हापासा। इसमें इस्तेमाल होने वाली चीजें भी पूरी तरह से प्राकृतिक होती हैं जैसे गाय का गोबर, गौ मूत्र, बेसन, गुड़ आदि। इनसे खाद, मिट्टी की उर्वरक क्षमता और बीज संरक्षण को बेहतर करने में मदद मिलती है।
देशभर में कई किसानों ने अपनाई प्राकृतिक खेती की विधि
उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड ज़िले के मशहूर किसान प्रेम सिंह का इस पर कहना है कि “किसान पाले गोरू और गोरू पाले खेत और खेत से ही सधते किसान के सब हेत”। राजस्थान के नौसर गांव के एक्सपर्ट जैविक किसान भी जैविक खाद बनाने से लेकर प्राकृतिक तरीके से सफेद शकरकंद जैसी नई किस्मों को सफल तरीके से उगा रहे हैं। आइये अब जानते हैं कि प्रकृति के इस अमृत का कैसे कर सकते हैं खेती में इस्तेमाल।
प्राकृतिक खेती में जीवामृत बनाने का तरीका (How to make Jeevamrut in Natural farming)
जीवामृत एक प्रभावशाली जैविक खाद है और प्राकृतिक खेती के महत्वपूर्ण चार स्तंभों में से एक है। इसकी मदद से भूमि को पोषक तत्व मिलते हैं और ये एक उत्प्रेरक एजेंट (Catalytic Agent) के रूप में भी कार्य करता है। इसकी वजह से मिट्टी में सूक्ष्म जीवों (micro-organisms) की गतिविधि बढ़ जाती है। इसके अलावा जीवामृत की मदद से पेड़ों और पौधों को कवक (Fungus) और जीवाणु (Bacteria) से उत्पन्न रोग होने से भी बचाया जा सकता है। इससे पौधे स्वस्थ बने रहते हैं और अच्छी पैदावार मिलती है।
जीवामृत को बनाने के लिए सबसे पहले गोबर, गुड़ और बेसन के साथ पानी या गौ मूत्र के उपयोग से लिक्विड बना लें। इस लिक्विड को ड्रम में डालकर एक लकड़ी से घोलें। घोलने के बाद 2 से 3 दिन इसे छाया में रख दें। प्रतिदिन इस घोल को हिलाना ज़रूरी है। इसके बाद बोरियों का इस्तेमाल करके इसे ढक दें।
जीवामृत बनाने के लिए सामग्री:
- 10 किलो देसी गाय का गोबर
- 8 से 10 लीटर देसी गाय का मूत्र
- 1.5 से 2 किलो गुड़
- 1.5 से 2 किलो बेसन
- 180 लीटर पानी
- मुट्ठी भर फ़सल या पेड़ के नीचे की मिट्टी
जीवामृत को 2 से 3 बार लगभग 200 लीटर प्रति एकड़ पानी के साथ सिंचाई के समय देना फायदेमंद है। इसके अलावा फल वाले पेड़ों पर दोपहर 12 बजे के आसपास महीने में एक बार देना चाहिए। हर पेड़ पर 2-4 लीटर जीवामृत गोलाई से ज़मीन पर डालना चाहिए। इससे मिट्टी स्वस्थ रहती है और भूमिगृत जल में बढ़ोतरी होती है। इसके अलावा जीवामृत के इस्तेमाल से खेत में गहरी जुताई की जरूरत नहीं पड़ती और केंचुओं की संख्या भी बढ़ती है।
घनजीवामृत बनाने का तरीका (How to make Ghanjeevamrut)
ये जीवामृत का सूखा स्वरूप है। इसे खाद के साथ इस्तेमाल किया जाता है। घनजीवामृत को बनाने के लिए सबसे पहले धूप में 200 किलोग्राम ताज़ा गोबर को सूखा लें। इसके बाद इसमें 20 लीटर जीवामृत मिलाकर दो दिन के लिए छाया में रख दें। इसके बाद डंडे या किसी और उपकरण के इस्तेमाल से महीन कर दें। इस तरह तैयार हुए घनजीवामृत को 1 एकड़ ज़मीन में इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर ज़्यादा ज़मीन हो तो उसी अनुपात में सामग्री को बढ़ा कर लेना होगा।
प्राकृतिक खेती में बीजामृत बनाने का तरीका (How to make Beejamrut in natural farming)
बीजामृत एक अद्भुत जैविक घोल है। इसका उपयोग रोगों से बीजों को बचाने के लिए किया जाता है। इसका इस्तेमाल बीज या पौध रोपण के समय करते हैं। इससे नन्हें पौधों की जड़ों को कवक (Fungus) तथा मिट्टी से मिलने वाली बीमारियों से बचाया जाता है।
बीजामृत को बनाने के लिए सबसे पहले गोबर, गौ मूत्र, चूने और मिट्टी के साथ पानी या गौ मूत्र के उपयोग से लिक्विड बना लें। इस द्रव्य यानी लिक्विड को एक रात के लिए रख दें और फिर आवश्यकता अनुसार इसमें बीज डालें। एक दिन इसे सूखने के लिए छोड़ दें। इसके बाद इस बीज को बुवाई के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।
बीजामृत बनाने के लिए सामग्री:
- 5 किलो देसी गाय का गोबर
- 5 लीटर देसी गाय का मूत्र
- 50 ग्राम बुझा हुआ चूना
- मुट्ठी भर फ़सल के मिट्टी
- 20 लीटर पानी
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प्राकृतिक कृषि में आच्छादन कैसे बनायें (How to make mulching in natural farming)
मिट्टी की नमी को संरक्षित रखने के लिए आच्छादन यानि मल्चिंग का सहारा लिया जाता है। इसकी वजह से खेती के दौरान मिट्टी की गुणवत्ता को किसी तरह का नुकसान नहीं होता। आच्छादन से पानी की कम खपत होती है और जीवाणु तथा केचुओं की गतिविधि भी बढ़ती है। मल्चिंग से खरपतवार (Weed) की समस्या का भी समाधान हो जाता है। इसके अलावा ज़मीन से कार्बन उत्सर्जन को रोकने और भूमि की जैविक कार्बन क्षमता को बढ़ने में मदद मिलती है।
प्राकृतिक खेती में आच्छादन (mulching) का इस्तेमाल तीन प्रकार से कर सकते हैं –
- मिट्टी आच्छादन (Soil Mulching) – मिट्टी की बाहरी सतह को किसी भी तरह की हानि से बचाने के लिए मिट्टी आच्छादन का इस्तेमाल करते हैं। इसमें खेत के सतह पर ज़्यादा मिट्टी को एकत्रित करके रकते हैं। इससे मिट्टी की जल प्रतिधारण क्षमता (Water retaining capacity) बेहतर बनती है।
- स्ट्रा आच्छादन (Straw Muching) – इस प्रक्रिया में धान या गेहूँ के भूसे का इस्तेमाल करते हैं। इससे सब्ज़ी की अच्छी फसल पाने में मदद मिलती है।
- लाइव आच्छादन (Live Mulching) – इस प्रक्रिया में अलग-अलग तरह के पौधे एक साथ लगाये जाते हैं। इसके अंदर ऐसे दो पौधों को एक साथ लगाया जाता है जिनमें एक पौधा दूसरे पौधे को छाया प्रदान करता है। यह सारे पौधे अपने साथ के पौधों को बढ़ने में मदद करते हैं। जैसे, कॉफ़ी के साथ लौंग का पेड़।
प्राकृतिक खेती में व्हापासा (Whapasa) का इस्तेमाल
सुभाष पालेकर के शोध से साबित हुआ कि कई पौधों को बढ़ने के लिए इतना कम पानी चाहिए कि व्हापासा यानी भाप की मदद से भी बढ़ सकते हैं। व्हापासा, ऐसी दशा है जिसमें पौधे हवा और मिट्टी में मौजूद मामूली सी नमी से भी पोषण पा लेते हैं।
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