हर साल पराली जलाने के कारण वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। किसान को अगली फसल की बुवाई के लिए मजबूरी में पराली जलानी पड़ती है। पराली यानी कि धान व अन्य फसलों की कटाई के बाद खेत में बची हुई जड़ व फसल के अवशेष, जिसे दूसरी बुवाई से पहले साफ करना ज़रूरी होता है। हमारे देश में फसल अवशेषों का प्रबंधन भी एक गंभीर समस्या है। ऐसे में वैज्ञानिक हर दिन नई खोज कर रहे हैं ताकि पराली व अन्य फसल अवशेषों का सही प्रबंधन करके पर्यावरण को होने वाली हानि से बचाया जा सके। पराली की समस्या से निज़ात पाने के लिए उसका कई अन्य तरीकों से इस्तेमाल किया जा सकता है। इसे खाद, जैविक खेती और बिजली बनाने में उपयोग में लाया जा सकता है।

पराली से तैयार जैविक खाद
फसल के अवशेषों से बेहतरीन जैविक खाद तैयार की जा सकती है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने खाद बनाने के लिए वायुवीय विधि ईज़ाद की है। इस विधि में एक कृषि मशीन के ज़रिए कचरे के ढेर को पलटा जाता है, ताकि जैव विघटन और हवा का संचार तेज़ गति से होकर खाद जल्दी तैयार हो सके। अवशेषों के ढेर को पलटने से पहले उसमें पर्याप्त नमी सुनिश्चिक की जाती है फिर 3-4 बार पलटा जाता है। ये खाद 3-4 महीने में तैयार हो जाती है और इसका रंग चाय की पत्ति की तरह हो जाता है। इसके इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और फसल की गुणवत्ता में भी सुधार होता है।

संरक्षण खेती में इस्तेमाल
संरक्षण खेती में लगभग 30 प्रतिशत फसल अवशेषों का इस्तेमाल किया जा सकता है। दरअसल, इस तरह की खेती में पिछली फसल के अवशेषों को मिट्टी के ऊपर बिछा दिया जाता है और जुताई करके इसे मिट्टी में मिलाया जाता है। जल्दी विघटन के लिए सुपर फॉस्फेट का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। मिट्टी में इसे मिलाने से मिट्टी के पोषक तत्वों में वृद्धि होती है। कई रिसर्च से ये भी साबित हुआ है कि गेहूं का भूसा, कपास का डंठल, गन्ने की सूखी पत्तियां, धान के पुआल आदि का कुछ मात्रा में खेत में ही रीसाइक्लिंग करने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।
मशरूम उत्पादन
मशरूम उत्पादन में धान की पुआल और गेहूं के भूसे का इस्तेमाल किया जाता है। मशरूम को मिट्टी में नहीं उगाया जाता, बल्कि उसे फसल के अवशेषों पर ही उगाया जाता है। मशरूम उत्पादन में कृषि अवशेषों के इस्तेमाल से उनके प्रबंधन की एक बड़ी समस्या हल हो जाती है।

उर्जा व उद्योग में इस्तेमाल
आपको जानकर शायद हैरानी होगी कि फसल अवशेषों के इस्तेमाल से देश में 17,000 मेगावट से अधिक बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। पंजाब में बायोमास पॉवर लिमिटेड ने धान के पुआल से चलने वाला पावर प्लांट बनाया है। इस कंपनी का पटियाला में 12 मेगावट का प्लांट चल रहा है। फसल के अवशेष और गन्ने का रस निकालने के बाद बचे अवशेष का उपयोग ऊर्जा बनाने में किया जा सकता है, साथ ही फसल के अवशेषों का इस्तेमाल कागज उद्योग में भी किया जा सकता है।
फसल अवशेषों का प्रयोग खाली पड़ी भूमि या फसल दोनों में पलवार के रूप किया जा सकता है। खड़ी फसल में फसल अवशेषों का उपयोग उस समय पर किया जाता है, जब पौधों की ऊंचाई लगभग 8-10 सेंटीमीटर हो जाए। पौधों के अवशेष समान रूप से फसल की पंक्तियों के बीच बिछा देने चाहिए। इस क्रिया में 4 टन भूसा प्रति हैक्टर काफी होता है। धान, गेहूं, जौ, ज्वार, बाजरा आदि का भूसा और मक्का, अरहर, नारियल व केले की सूखी पत्तियां, सूखी घास आदि को फसल की पंक्तियों के बीच बिछाकर पलवार के रूप में फसल अवशेषों का उपयोग कर सकते हैं।
पराली का पलवार के रूप में इस्तेमाल
पलवार के रूप में फसल अवशेषों के प्रयोग से मिट्टी व फसल से पानी का वाष्प बनकर उड़ने वाले पानी के नुकसान को रोका जा सकता है। खरपतवारों की रोकथाम की जा सकती है और मिट्टी का तापमान भी कंट्रोल किया जा सकता है। फसल अवशेषों का पलवार के रूप प्रयोग करने से सूर्य की तेज रोशनी भी सीधे मिट्टी के सम्पर्क में नहीं आती। ये मिट्टी में नमी को बनाए रखने में मददगार होता है। इससे फसल के पौधे आसानी से उग सकते हैं और मृदा की जल क्षमता भी बढ़ती है।

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