अब स्मार्टफ़ोन लगाएगा मिट्टी की सेहत का पता, खेती करना होगा आसान
मृदा स्वास्थ्य जांच की आधुनिक तकनीक में इमेज़ एनालिसिस के जरिये कम समय में मिट्टी की सेहत की सटीक जानकारी किसानों को मिल सकती है।
मृदा स्वास्थ्य जांच की आधुनिक तकनीक में इमेज़ एनालिसिस के जरिये कम समय में मिट्टी की सेहत की सटीक जानकारी किसानों को मिल सकती है।
हानिकारक कीटों की वजह से सोयाबीन की फसल को भारी नुकसान पहुंचता है। कैसे किसान इन कीटों की रोकथाम कर सकते हैं, इसे लेकर किसान ऑफ़ इंडिया की मध्य प्रदेश स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र रायसेन के पौध सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. प्रदीप कुमार द्विवेदी से ख़ास बातचीत।
सोयाबीन खरीफ मौसम की प्रमुख तिलहन फसल है। सोयाबीन की खेती में इसके पौधों के बीच उगने वाले खरपतवार से सोयाबीन की फसल को नुकसान पहुंचता है। इसलिए बुवाई के 20-45 दिनों के भीतर इनका सही प्रबंधन ज़रूरी है।
धान की फसल जूलाई से लेकर अक्टूबर तक कई तरह के कवक और जीवाणु रोगजनकों से प्रभावित होती है। कैसे धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों से किसान छुटकारा पा सकते हैं? इस पर किसान ऑफ़ इंडिया की उत्तर प्रदेश स्थित कृषि विज्ञान केंद्र आजमगढ़ के पौध सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. रूद्र प्रताप सिंह से ख़ास बातचीत।
किसान ऑफ़ इंडिया से बातचीत में रावलचंद पंचारिया ने बताया कि उन्हें नींबू की नई किस्म को तैयार करने में चार से पांच साल का वक़्त लगा।
इस समय धान की फसल का रोपाई का कार्य चल रहा है। ध्यान रखने वाली बात है कि धान की फसल में कई तरह के कीटों का प्रकोप होने का खतरा रहता है। इस खतरे से कैसे निपटा जाए, इसको लेकर कृषि विज्ञान केंद्र गौतमबुद्ध नगर के पौध सुरक्षा विशेषज्ञ और प्रमुख डॉ. मयंक कुमार राय से ख़ास बातचीत।
इस समय धान की रोपाई का कार्य तेज़ी से चल रहा है। धान की खेती में कई अहम बातों का ध्यान रखना ज़रूरी होता है। मसलन धान की फसल में खरपतवारों से होने वाले नुकसान को 5 से 85 प्रतिशत तक आंका गया है।जबकि कभी-कभी ये नुकसान 100 फ़ीसदी तक हो सकता है। कैसे करें धान की फसल का सही प्रबंधन? भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के एग्रोनॉमी डीवीजन के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह से ख़ास बातचीत।
इस तकनीक की मदद से पानी, ऊर्जा और मज़दूरी की बचत होती है। किसान ऑटोमेटिक तरीके से संचालित ऑटोमेटिक ड्रिप इरिगेशन और फर्टिगेशन सिस्टम का इस्तेमाल कर अपनी खेती से भरपूर पैदावार ले सकते हैं। इस तकनीक के बारे में बिहार स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र किशनगंज के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक और प्रमुख ई. मनोज कुमार राय से ख़ास बातचीत।
बागवानी में फलों के फटने या गिरने की समस्या के कई कारण हैं। ये कारण कौन से हैं? कैसे आप इस बड़ी समस्या से निजात पा सकते हैं, इसको लेकर किसान ऑफ इंडिया की उत्तर प्रदेश स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र बहराइच के प्रमुख और सब्जी और बागवानी विशेषज्ञ डॉ. बी.पी. शाही से ख़ास बातचीत।
कम ज़मीन वालों को भी कृषि विभाग से किचन गार्डन स्कीम (Kitchen Garden Scheme) के ज़रिए प्रोत्साहन मिल रहा है। नर्सरी में उगाए गए उन्नत पौधे कम दाम पर वेजीटेबल सेल आउटलेट्स पर किसानों को मुहैया कराए जाते हैं।
कृषि विज्ञान केंद्र ने अधिक फसल प्राप्त करने और बीजों को खराब होने से बचाने के लिए बुवाई से पहले सोयाबीन की खेती के लिए फसल प्रबंधन पर एक कार्यक्रम का खाका तैयार किया। इससे किसानों को अच्छा लाभ मिला।
बुआई की परम्परागत छिटकवाँ विधि को ऊँची लागत और जलवायु परिवर्तन की दोहरी मार से बचाने के लिए ही कृषि विज्ञानियों ने कुंड और नाली विधि से बुआई करने की तकनीक विकसित की। कुंड और नाली विधि की बदौलत खेतों में बारिश के पानी का ज़्यादा संरक्षण होता है।
पारंपरिक तरीके से पपीते की खेती में जहां सिर्फ़ 50 से 60 प्रतिशत पौधे ही फल दे पाते थे, उन्नत खेती के ज़रिए 90 प्रतिशत तक पौधे फल देने लगे हैं।
जैविक खेती के उत्पादों की मांग पूरी दुनिया में बढ़ रही है। भारत में भी इसकी मांग में इज़ाफ़ा हो रहा है। कश्मीर का गाँव गनस्तान आज ‘ऑर्गेनिक विलेज़ गनस्तान’ के नाम से जाना जाता है। इसकी वजह है यहां हर कोई जैविक खेती करता है।
इस तकनीक के तहत धान की खेती के लिए जमा पानी में ही मछली पालन किया जाता है। धान संग मछली पालन प्रणाली में धान के खेत में जहां मछलियों को चारा मिलता है, वहीं मछली द्वारा निकलने वाले वेस्ट पदार्थ धान की फसल के लिए जैविक खाद का काम करते हैं।
बागवानी की हाई डेंसिटी तकनीक (High Density Planting) क्या है? कैसे ये काम करती है? कैसे किसानों को इस तकनीक का फ़ायदा हो रहा है? इन सभी सवालों के जवाब दे रहे हैं उत्तर प्रदेश स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र बहराइच के प्रमुख और सब्जी और बागवानी विशेषज्ञ डॉ. बी.पी. शाही।
डॉ. रितेश शर्मा ने कहा कि बासमती धान की परम्परागत प्रजातियों में अपेक्षाकृत कम नाइट्रोजन की ज़रूरत होती है। उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी की जांच और फसल की मांग के आधार पर आवश्यकतानुसार करना चाहिए। ऐसी ही बासमती धान की खेती से जुड़ी अहम जानकारियां जानिए डॉ. रितेश शर्मा से।
बासमती धान की खेती के लिए अच्छी जलधारण क्षमता वाली चिकनी या मटियार मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। नर्सरी में बीज बोने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना भी ज़रूरी है। ऐसी ही कई महत्वपूर्ण बिंदुओं के बारे में मेरठ के मोदीपुरम स्थित बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. रितेश शर्मा ने किसान ऑफ़ इंडिया से ख़ास बातचीत की।
मध्य प्रदेश के बैतूल ज़िले के रहने वाले प्रगतिशील किसान जयराम गायकवाड़ अपनी कुल 30 एकड़ ज़मीन में से 10 एकड़ ज़मीन पर परंपरागत यानी जैविक खेती करते हैं। आज वो जिस मुकाम पर हैं, वो उनकी 22 साल की मेहनत का परिणाम है। कैसे उन्होंने अपने फ़ार्म मॉडल को तैयार किया? क्या उनके अनुभव रहे? जानिए इस लेख में।
यह तकनीक जैविक खेती के लिए भी अनुकूल है। देश के सभी 15 विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में रिट्रैक्टेबल रूफ़ पॉलीहाउस तकनीक उपयोगी होगी, जो किसानों को गैर-मौसमी फसलों की खेती करने में मदद करेगा, जिससे वो उच्च मूल्य और आय प्राप्त कर सकते हैं।