Mung Ki Kheti: मूंग की खेती में उन्नत बुवाई और प्रबंधन का तरीका, जानिए विशेषज्ञ डॉ. आर.पी. शर्मा से
Mung Ki Kheti | देश के कई हिस्सों में मूंग दाल की बुवाई हो चुकी है। मूंग दाल दलहनीय फसलों […]
Mung Ki Kheti | देश के कई हिस्सों में मूंग दाल की बुवाई हो चुकी है। मूंग दाल दलहनीय फसलों […]
जायद की फसल के लिए 6 से 7 घंटे की सूरज की रोशनी की ज़रुरत पड़ती है। जायद की फसल में सब्जियों का उत्पादन लेने के लिए किसानों को लोम मिट्टी (दोमट मिट्टी) का इस्तेमाल करना चाहिए। जानिए कृषि विशेषज्ञ डॉ. विशुद्धानंद से जायद फसलों के बारे में विस्तार से जानकारी।
बुंदेलखंड इलाके के किसानों की मदद करने, और नई-नई तकनीक का इस्तेमाल करके अपने इलाके में खेती के लिेए प्रेरित कर रहा है बांदा कृषि विश्वविद्यालय।
कम लागत और समय में मुनाफ़ा कमाने का एक अच्छा विकल्प है मधुमक्खी पालन जिसे मौन पालन भी कहा जाता है। ख़ासतौर पर पहाड़ी इलाकों में, उत्तराखंड के किसानों और युवाओं को मधुमक्खी पालन के लिए प्रेरित करने में सरकारी संस्थाएं मदद कर रही हैं।
बुंदेलखंड की सख्त ज़मीन पर पॉलीहाउस तकनीक से खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसमें बांदा कृषि विश्वविद्यालय अहम भूमिका निभा रहा है। मुश्किल परिस्थितियों में सब्ज़ियों का उत्पदान कैसे पूरे साल किया जाए, इसके लिए विश्वविद्यालय ने एक प्रोजेक्ट के तहत 200 स्क्वायर मीटर के छोटे एरिया में कई पॉलीहाउस लगाए हुए हैं। जानिए सूखाग्रस्त क्षेत्रों में पॉलीहाउस तकनीक से खेती के बारे में विस्तार से।
मशरूम की खेती के लिए पहाड़ी इलाकों का मौसम उपयुक्त होता है, मगर कई जगहों पर किसानों को मशरूम उत्पादन की तकनीक नहीं पता है। ऐसे में उत्तराखंड का उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग, जागरुकता फैलाने के साथ ही किसानों को प्रशिक्षण भी दे रहा है।
कृषि प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के वानिकि महाविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉ. मोहम्मद नासिर बताते हैं कि उनके कॉलेज में अलग-अलग तरह के कोर्स हैं। इन्हीं कोर्स में से एक है फ़ॉरेस्ट प्रॉडक्ट यूनिलाइज़ेशन प्रोग्राम, जैसा कि नाम से ही ज़ाहिर होता है इस कोर्स में बच्चों को जंगल के उत्पादों का सही इस्तेमाल करना सिखाया जाता है।
हमारे पारंपरिक अनाज कितने फ़ायदेमंद है ये मिलेट्स की बढ़ती लोकप्रियता से साफ़ हो चुका है। मिलेट्स के ज़रिए हरियाणा के एक गांव की 300 महिलाओं को स्वरोज़गार मिल रहा है। कभी महज़ 10 महिलाओं का ये छोटा समूह अब FPO बन चुका है और इससे 300 महिलाएं जुड़कर सम्मान का जीवन जी रही हैं।
गेहूं की फसल में रोगों से बचाव के लिए किसान को उन्नत किस्मों के बीजों का इस्तेमाल करना चाहिए। ऐसी ही कई अन्य रबी फसलों का प्रबंधन करने की ज़रूरत होती है। जानिए क्या हैं वो मानक।
राजस्थान के जयपुर के रहने वाले अनिल थडानी ने अपनी मास्टर डिग्री हॉर्टिकल्चर के क्षेत्र में ली हुई है। इसके साथ ही उन्होंने विवेकानंद ग्लोबल यूनिवर्सिटी में बतौर असिस्टेंट प्रोफ़ेसर भी काम किया हुआ है। उन्होंने नौकरी छोड़ने के बाद ‘पौधशालम’ नाम से पौध नर्सरी शुरू की।अनिल ने Nursery Business की शुरुआत घर की छत से की।
रवि शर्मा ने अपने गांव आने के बाद फूलों की खेती को चुना। इसमें उन्होंने प्राकृतिक खेती को अपनाया हुआ है। वो पॉलीहाउस में फूलों की खेती करते हैं।
स्ट्रॉबेरी ठंडे इलाके की फसल है और आमतौर पर हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और कश्मीर में इसकी खूब खेती होती है। हिमाचल प्रदेश के पालमपुर की एक महिला किसान ने घर से ही स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की। अब अपने इलाके की सफल स्ट्रॉबेरी उत्पादक बन गई हैं।
इन दिनों हर कोई मिलेट्स प्रॉडक्ट्स को बढ़ावा देने में जुटा हुआ है। मिलेट्स प्रॉडक्ट्स को लोग हाथों हाथ ले रहे हैं। मिलेट्स प्रोडक्ट बनाने वाली एक ऐसी ही कंपनी है GEGGLE.
मिलेट्स यानी तरह-तरह के मोटे अनाजों की पौष्टिकता के बारे में कृषि विज्ञान केन्द्र लोगों में जागरुकता फैला रहे हैं। साथ ही मिलेट्स प्रॉडक्ट्स से जुड़ी Millets Products Processing की ट्रेनिंग भी दे रहे हैं। इसके बारे में हमने जाना डॉक्टर रश्मि लिंबू से।
उत्तराखंड में किसान और कंपनियां मिलकर जैविक खेती या नेचुरल खेती को प्रमोट कर रही हैं। ऐसे में कंपनियों की ओर से कई ऐसे Agri-Equipment बनाए जा रहे हैं, जो किसानों की मदद करेंगे और फसलों को किसी तरह का नुकसान नहीं होगा। ऐसा ही एक Agri-Equipment है ऑटोमैटिक सोलर लाइट ट्रैप।
खुले खेत की बजाय पॉलीहाउस में शिमला मिर्च और खीरे जैसी सब्ज़ियां उगाना किसानों के लिए फ़ायदेमंद साबित होता है, क्योंकि इसमें फसल पर मौसम की मार नहीं पड़ती। मध्यप्रदेश के किसान नेपाल सिंह परिहार पॉलीहाउस में खीरा और शिमला मिर्च की खेती से अच्छी कमाई कर रहे हैं।
दिल्ली के एक कंप्यूटर साइंस ग्रेजुएट ने न सिर्फ़ खुद जैविक खेती अपनाई, बल्कि किसानों को भी इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं। किसानों को बाज़ार की उपलब्धता और जैविक खेती के लिए संचित अग्रवाल ने कैसे प्रोत्साहित किया, क्या तरीके अपनाएं, जानिए इस लेख में।
किसान उद्यमियों के लिए उत्पाद तैयार करने के बाद उसे बेचना एक बड़ी चुनौती होती है, क्योंकि सही बाज़ार न मिलने की वजह से उन्हें ज़्यादा मुनाफा नहीं हो पाता। इस समस्या को दूर करने के लिए कृषि विभाग द्वारा पूसा कृषि हाट की शुरुआत की गई है।
वर्मीकम्पोस्ट जिसे केंचुआ खाद भी कहा जाता है, पोषक तत्वों से भरपूर जैविक खाद होती है। जिसे गोबर और केंचुए की मदद से तैयार किया जाता है। इस प्रक्रिया में केंचुए बहुत अहम होते हैं। इसलिए केंचुए की सही देखभाल करके बिज़नेस से अच्छा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है।
पेड़-पौधे न सिर्फ़ आंखों को सुकून देते हैं, बल्कि हमें ऑक्सीजन की सप्लाई करने के साथ ही पर्यावरण को भी स्वच्छ बनाते हैं। ऐसे में ज़्यादा से ज़्यादा पेड़ लगाने के लिए लोगों को प्रेरित करने के मकसद से ही नागुपर की अलका साहनी ने शुरू किया नर्सरी बिज़नेस।