जड़-गांठ सूत्रकृमि (Root Knot Nematode): सूत्रकृमि जिसे निमेटोड भी कहा जाता है बहुत बारीक होते हैं, इसलिए किसान नंगी आंखों से इसे देख नहीं पातें और यही वजह है कि इसकी रोकथाम जल्दी करने में वो असफल रहते हैं। दरअसल, सूत्रकृमि पतले धागे की तरह होते हैं। इनका शरीर लंबा और बेलनाकार होता है और शरीर में कोई विभाजन नहीं होता है। शरीर छोटा और आधा पारदर्शी होता है।
सूत्रकृमि को सिर्फ़ माइक्रोस्कोप की मदद से ही देखा जा सकता है। सूत्रकृमियों के मुख्य हिस्से में सुई की तरह एक जैसी संरचना होती है, जिसे स्टाइलेट कहा जाता है। इसके ज़रिए ही सूत्रकृमि जड़ों को संक्रमित करके उसकी कोशिकाओं और ऊतकों से पोषण लेते हैं। अधिकतर किसान सामान्य कीटनाशकों का छिड़काव करके इसे रोकने की कोशिश करते हैं, जिससे समय, पैसा और श्रम का नुकसान होता है। दरअसल, इनकी रोकथाम के लिए सूत्रकृमि की पहचान और इनसे होने वाले रोगों की पहचान करना ज़रूरी है।
किन फसलों को पहुंचाते हैं नुकसान
सूत्रकृमि आमतौर पर सभी प्रकार की फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं, लेकिन इसका सबसे ज़्यादा असर खीरा, टमाटर, बैंगन, भिंडी, शिमला मिर्च, मिर्च आदि पर होता है। सूत्रकृमि कीट कई प्रकार के होते हैं, इनमें से मुख्य जड़-गांठ सूत्रकृमि हैं, जिसका पौधों पर सबसे ज़्यादा प्रकोप देखा गया है। यह पौधों की जड़ों पर हमला करता है जिससे जड़ों की गांठें फूल जाती है और आपस में मिलकर गुच्छा बना लेती है। जिससे पेड़ पोषक तत्वों को ग्रहण नहीं कर पाता है।

रोग से ग्रसित पौधों के लक्षण
-इस रोग से ग्रस्त होने पर पौधों के ऊपरी हिस्से की पत्तियां पीली होकर मुरझाने लगती हैं।
-पौधों में फूल और फल कम निकलते हैं।
-पौधों का विकास रुक जाता है।
-पौधों की जड़ों में गांठे बन जाती हैं। इन गांठो पर छोटी-छोटी कई जड़ें निकलने लगती हैं।
-पौधों की जड़ें मिट्टी से उचित मात्रा में पोषक तत्व ग्रहण नहीं कर पाती हैं।
सूत्रकृमि प्रबंधन
गर्मी के मौसम में 15 दिनों के अंतराल पर खेत की दो बार गहरी जुताई करनी चाहिए। इससे तेज धूप के कारण मिट्टी में पहले से मौजूद सूत्रकृमि नष्ट हो जाते हैं। खेत को सूत्रकृमि से पूरी तरह मुक्त रखना संभव नहीं है और न ही किसी केमिकल के इस्तेमाल से ऐसा किया जा सकता है। वैसे भी केमिकल का जितना हो सकते उतना कम इस्तेमाल करना चाहिए, क्योंकि यह न सिर्फ पर्यावरण और मिट्टी को प्रदूषित करता है, बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है। इसलिए लक्षणों के आधार पर पहल सूत्रकृमि रोगों की पहचान करना ज़रूरी है।

इसके प्रबंधन के लिए कुछ बातों का ध्यान रखें:
- नई फसल लगाने से पहले पिछली फसल के पौधों को जड़सहित खत्म कर दें।
- पॉलीहाउस या ग्रीन हाउस बनाने से पहले उस जगह की मिट्टी की अच्छी तरह जांच कर लें।
- पिछली फसल के अवशेष या खरपतवारों को नष्ट करे दें।
- अप्रैल से जुलाई तक पॉलीहाउस या ग्रीन हाउस को खाली रखें।
- जिन खेतों में सूत्रकृमि का असर होता है वहां प्रति एकड़ खेत में 4 क्विंटल नीम और करंज की खली का छिड़काव करें।
- मई-जून में 10-15 दिनों के अंतराल पर 2-3 गहरी जुताई करके थोड़ी सिंचाई कर दें। जून-जुलाई में खेत को 25 माइक्रॉन मोटी पारदर्शी प्लास्टिक शीट से ढककर रखें। इससे जड़-गांठ सूत्रकृमि की संख्या में कमी आ सकती है।
- नीम की खली 100 ग्राम प्रति वर्ग मीटर और ट्राइकोड्रमा विरिडी 20 ग्राम प्रति वर्गमीटर के हिसाब से फसल की रोपाई से पहल मिट्टी के ऊपरी भाग में मिला दें। फिर थोड़ा पानी डाल दें।
- खेत में नीम, धतूरा एवं गेंदा की पत्तियों का अर्क इ्स्तेमाल करने से भी जड़ ग्रंथि सूत्रकृमि की संख्या में कमी आती है।
- इस समस्या से बचने के लिए रोपाई के एक महीने बाद दोबारा नीम की खली 50 ग्राम प्रति पौधे के हिसाब से पौधों के चारों ओर मिट्टी में मिला दें।
- प्रति एकड़ खेत में करीब 10 किलोग्राम फिप्रोनिल 0.3% जी डालने से भी सूत्रकृमि से निजात मिल सकता है।
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