बातें करती हैं फसलें: पौधे दिखने में जितने शांत लगते हैं असलियत में उतने शांत होते नहीं हैं। वो अपनी भाषा में हर वक़्त आपस में बातें करते रहते हैं। किसानों से बातें करती हैं फसलें। इतना ही नहीं, वो हमारी बातें सुन भी सकते हैं। ये आश्चर्यजनक है लेकिन क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि पेड़ पौधों पर आवाज का असर पड़ता है या नहीं।
हम निश्चित रूप से नहीं कह सकते कि वे बोल सकते हैं या आवाज़ सुन सकते हैं क्योंकि उनमें बोलने या सुनने के लिए कोई अंग नहीं हैं। लेकिन आवाज या किसी भी तरह की ध्वनि, तरंगों से बनती है और इन तरंगों को महसूस किया जा सकता है जिसे पेड़-पौधे और जानवर भी महसूस करते हैं।
कैसे किसानों से बातें करती हैं फसलें? कैसे आवाज़ निकलते हैं पौधे ?
ये हैरान करने वाला तथ्य है कि बातें करती हैं फसल। पौधे भी तनाव लेते हैं। वो भी शोर मचाते हैं और काटने पर रोते हैं। पानी की कमी, या तेज धूप से मुरझाते पौधे अल्ट्रासोनिक आवाज़ निकालते हैं। लेकिन आख़िर ये आवाज़ कैसे निकलती है? पौधे अपने जाइलम से आवाज़ पैदा करते हैं। जाइलम वो ऊतक है जो पौधों में पानी को एक जगह से दूसरी जगह ले कर जाता है।
कैक्टस, कॉर्न, टमाटर और तंबाकू के पौधों पर रिसर्च करके ये पता लगाया गया है कि पौधे आमतौर पर डिहाइड्रेशन से या उनके तने के टूटने या कटने से तनाव में आ जाते हैं और ख़ास तरह की आवाज़ निकालते हैं। उन्होंने ये भी पाया कि हर तरह का तनाव एक अलग तरह की आवाज़ से जुड़ा होता है। जैसे एक गेहूं का पौधा जिसे पानी नहीं दिया गया हो, वो काटी गई अंगूर की बेल की तुलना में तेज़ आवाज़ करता है। 1988 में शोधकर्ताओं ने पाया था कि पानी रहित पौधे अधिक ध्वनियां उत्पन्न करते हैं क्योंकि उनकी स्थिति खराब हो जाती है।
पौधों का बोलने वाला अस्त्र है ‘रसायन’
ये तो साबित होता है कि बातें करती हैं फसल, लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि बिना मूंह और कान के पौधे बोल-सुन कैसे पाते हैं? तो इसके लिए वो रसायनों का इस्तेमाल करते हैं। एक अध्ययन से पता चला है कि भीड़ भरे वातावरण में संचार करने के लिए पौधे मिट्टी में रसायन छोड़ते हैं और अपने पड़ोसियों को अधिक आक्रामक रूप से बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं ताकि उन्हें छाया में न रहना पड़े।
पड़ोसियों के साथ समस्या होने पर पौधे अपनी जगह नहीं बदल सकते। उन्होंने इस तथ्य को स्वीकार कर लिया है, और किसी तरह की प्रतिस्पर्धा से बचने के लिए और भविष्य की तैयारी करने के लिए वो संकेतों में बातें करते हैं।
हाल ही में 2019 में किए गए एक शोध की मानें तो फसल न सिर्फ़ बातें करती हैं बल्कि मधुमक्खियों और अन्य परागणकों को आस-पास देखने से फूलों से रस निकलता है। पौधों की कोशिकाओं में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि पौधे अपनी पत्तियों से विद्युत संकेतों के साथ संचार करते हैं।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता के दौर में शोधकर्ता इस कोशिश में हैं कि पौधों के प्रकार और उसकी ध्वनि की मात्रा, आवृत्ति और गति के आधार पर उसकी स्थिति की पहचान की जा सके। उनके शोध और निष्कर्षों से किसानों को ये जानने में मदद मिलेगी कि उनके पौधों को कब पानी की ज़रूरत है या वे संक्रमित हैं।
एक अध्ययन के अनुसार, वे पौधे जिनके तने काटे गए हैं वो एक घंटे में 35 से 40 आवाज़ें निकालते हैं। ऐसे ही जब पौधों को प्यास लगती है तो भी पौधे कुछ ध्वनियां निकालते हैं। लेकिन अच्छी तरह से पानी मिला हो और पौधों का काटा नहीं गया हो, ऐसे पौधे शांत रहते हैं, और हर घंटे सिर्फ़ एक आवाज़ ही निकलते हैं।
हम क्यों नहीं सुन पाते हैं पौधों की आवाज़?
लेकिन हम ये आवाज़ें सुन नहीं पाते हैं। हम पौधों को देखकर ही अंदाज़ा लगा पाते हैं कि ये पौधा सूख रहा है तो इसे पानी की ज़रूरत है। इजरायल के एक अध्ययन के अनुसार, परेशान पौधे अल्ट्रासोनिक शोर करते हैं, जो मनुष्यों को सुनाई नहीं देता है। यानी आवाज़ नहीं सुनने के पीछे कारण ये है कि ये ध्वनियां अल्ट्रासोनिक होती हैं, यानी लगभग 20-100 किलोहर्ट्ज़। इसका मतलब है कि वे इतने ऊंचे स्वर वाले हैं कि बहुत कम मनुष्य उन्हें सुन सकते हैं।
किसानों के लिए ये जानना ज़रूरी है कि जब आप पौधों का ख़्याल रखते हैं तो वो आपसे खुश होते हैं, आपसे बातें करते हैं, आपसे अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करते हैं। शायद आपको अपनी भाषा में धन्यवाद भी कहते हों।
तनावग्रस्त पौधे रोते भी हैं। जब पौधे काटे जाते हैं या उनमें पानी की कमी होती है और वो संक्रमित होते हैं, तो वे आवाजें निकालते हैं जो मदद के लिए कॉल का रूप हो सकती हैं। शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में पौधों का अध्ययन किया और पाया कि चुप्पी के बावजूद वे ध्वनियां उत्पन्न करते हैं, जो मनुष्यों के कान द्वारा सुनी नहीं जा सकती है।
कैसी आवाज़ निकालते हैं पौधे?
वैज्ञानिकों की मानें तो पौधों से वैसे ही आवाज़ आती है जैसे पॉपकॉर्न पकते समय आती है। ऐसी आवाज़ इसलिए आती है कि पौधों के तने में हवा का बुलबुला बनता है और जब वो फटता है तो ऐसी आवाज़ निकलती है। यानी शोधकर्ताओं के मुताबिक़ पौधों से हवा के बुलबुले फूटने जैसी आवाज़ आती है। इस पर एक शोध भी किया गया। शोधकर्ताओं ने पौधों को एक शांत कमरे में ध्वनिरोधी बक्सों में रखा और पास में दो अल्ट्रासोनिक माइक्रोफोन लगाए।
उन्होंने अलग-अलग परिस्थितियों में टमाटर, तम्बाकू, कैक्टस, मक्का, गेहूं और अन्य पौधों का अध्ययन किया – कुछ के तने कटे हुए थे, कुछ को कई दिनों से पानी नहीं दिया गया था और अन्य अछूते थे। इसका परिणाम चौंकाने वाला तो था ही काफ़ी दिलचस्प भी था। माइक्रोफ़ोन ने 40 और 80 किलोहर्ट्ज़ के बीच की आवृत्तियों पर ध्वनि पकड़ी – जो इंसान के कान द्वारा पहचानी जा सकने वाली ध्वनि से कहीं अधिक है। शोधकर्ताओं ने पाया कि ये आवाजें पॉपकॉर्न के दानों के फूटने जैसी लगती हैं।
वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में मकई के बीजों पर शोध किया गया, जो तनावग्रस्त वातावरण में बड़े पैमाने पर उगते हैं। वैज्ञानिकों ने हर दिन एक मिनट के लिए मेकअप ब्रश से पत्तियों को सहलाकर उन्हें छूने का एहसास दिलाने की कोशिश की। इससे पौधों के व्यवहार में फ़र्क़ महसूस किया गया।
जानवर कैसे सुन लेते हैं पौधों की आवाज़ ?
कमाल की बात है कि कुछ जानवर पौधों की आवाज़ सुन सकते हैं। जैसे चमगादड़, चूहे और पतंगे संभावित रूप से पौधों की आवाज़ से भरी दुनिया में रह सकते हैं। इतना ही नहीं, रिसर्च ये भी बताती है कि ये पौधे जानवरों द्वारा की गई आवाज़ पर प्रतिक्रिया भी करते हैं।
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