प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात कहते हैं लेकिन किसानों की आमदनी चौगुनी भी हो सकती है। ये बात फारूक अहमद गनई जितने प्रभावी ढंग से कहते हैं , उससे ज्यादा उन्होंने इसे व्यवहार में साबित किया है। दरअसल, उनका मानना है कि प्रधानमंत्री की सोच सही है। किसान अगर चाहे तो अपनी आमदनी बढ़ा सकता है। एक किसान के तौर पर खुद फारुख अहमद ने अपनी आमदनी पांच गुनी से भी ज्यादा कर ली है, लेकिन इसके लिए उन्होंने फसल से लेकर खेती के तौर तरीकों में बदलाव किया है। अब तक साल में एक बार अपने बाग़ में सेब की फसल लगाने वाले फारूक अब रोज़ाना नकदी में अपनी फसल बेचते हैं। ये फसल सिर्फ सेब नहीं है, वो एक्ज़ॉटिक सब्जियां (exotic vegetables) बेचते हैं। इनके बारे में कुछ साल पहले तक वे जानते भी नहीं थे और आज उनसे प्रेरणा लेकर चार और किसान भी इन्हें उगाकर अच्छी आमदनी पाने लगे हैं।
पैंतीस कनाल जमीन के मालिक 52 वर्षीय फारूक अहमद गनई जो बनना चाहते थे, अगर बन भी गए होते तो भी आर्थिक दृष्टि से इतने कामयाब नहीं होते जितने अपनी पुरखों की ज़मीन की सेवा करते हुए आज हैं। ज़िन्दगी और सोच में परिवर्तन की बात करते-करते कश्मीर के पुलवामा ज़िले में टहाप गांव के फारुक उस दौर की बात करते हैं जब वो जिम्नास्टिक किया करते थे। जिम्नास्ट बनने का शौक था और पेशा फिजिकल एजुकेटर का अपनाना चाहते थे। इसी इरादे से महाराष्ट्र के डॉ बाबा साहेब नंदुरकर कॉलेज ऑफ़ फिज़िकल एजुकेशन से कोर्स भी किया। ये 1992 की बात है, जब कश्मीर के शिक्षण संस्थानों में फिजिकल एजुकेशन के टीचर की मांग थी, लेकिन इस फील्ड के टीचर उपलब्ध नहीं थे। फारूक ने कोर्स तो किया लेकिन फिजिकल एजुकेशन टीचर के तौर पर नौकरी नहीं मिली। लिहाज़ा 70 साल से चल रही पुरखों की ज़मीन पर सेब की खेती को ही अपना लिया। पैसा कमाने के धुनी फारूक इससे संतुष्ट नहीं हुए।
पहली पुश्तैनी ज़मीन 100 कनाल थी जो 4 भाइयों में बराबर बंट गई। फारूक ने 25 कनाल के अपने हिस्से के साथ 10 कनाल और खरीद ली। इसके बूते बच्चों की अच्छी पढ़ाई लिखाई कराई। पिता को हज कराने की ज़िम्मेदारी पूरी करके सबाब भी कमाया। साथ ही घर गृहस्थी की जिम्मेदारियां भी अच्छे से पूरी कीं, लेकिन मन में कुछ न कुछ कसक लगातार बनी रही। खेतीबाड़ी में कुछ अच्छा और आर्थिक दृष्टि से बड़ा करने का उन्हें अपना सपना उस दिन साकार होता दिखाई दिया जब अपने खेत की 50 किलो सब्जी लेकर श्रीनगर में उस दुकानदार के पास पहुंचे जिसका पता कृषि विभाग वालों ने उनको दिया था। दुकानदार ने उनको उस सब्जी के 5000 रुपये से कुछ ज्यादा ही दिए जबकि इतनी वजन की सब्जी के 1000 रुपये मिलना काफी था। फर्क ये था कि ये एक्ज़ॉटिक सब्जी थी जो ऑर्गेनिक तरीके से उगाई गई थी। ये केमिकल वाली खाद से उगाई गई परम्परागत सब्जी नहीं थी।
बड़ी दिलचस्प हुई शुरुआत
फारुक बताते हैं कि 2017 में इसकी शुरुआत हुई थी। तब कृषि विभाग के अधिकारियों ने उन्हें एक्ज़ॉटिक सब्जियों के कुछ बीज दिए जो उन्होंने अपने घर के आंगन में करीब 10 मरले जगह में बो दिए। कुछ ही दिन में फसल निकली। इसमें जो पार्सले (parsley) था उसे धनिया समझा और ब्रोकली (broccoli) को हरी सब्ज़ी गोभी। यही बात फारूक ने कृषि अधिकारियों को बताई। कृषि विभाग से आए एक प्रतिनिधि ने उनकी सब्जियों की तारीफ की और सब्जियों का महत्व समझाया। इसके बाद 35 कना वाली अपनी जगह से सेब के पेड़ों के स्थान पर फारुक अहमद गनई ने एक्ज़ॉटिक सब्जियां लगा दीं। शुरुआत 5 किस्म की सब्जियों लेट्युस (lettuce), सेलेरी (celery), ब्रोकली (broccoli) रेड कैबेज (red cabbage) और आइसबर्ग ( iceberg ) से की . तब इसके बारे में कुछ पता नहीं था लेकिन आज 21 किस्म की एक्ज़ॉटिक सब्जियां उगाते हैं। शुरू-शुरू में उनको बेचने में दिक्कत ज़रूर आई क्योंकि तब इन सब्जियों के बारे में लोगों को जानकारी कम थी। पहले पहल अपने घर में ही खाई, सलाद की तरह भी और गोश्त में मिलाकर भी। फारुक कहते हैं कि एक दफा तो 50 किलो ब्रोकली उन्हें फेंकनी पड़ी थी क्योंकि उसका खरीददार ही नहीं मिला। आज स्थिति ये है कि मांग ज्यादा है और माल कम है। लिहाज़ा फारुक ने एक एक करके चार और किसानों को अपने साथ जोड़कर एक छोटा सा ग्रुप बना लिया। वे उनको सब्जियों की पौध देते हैं और फिर उनसे लेकर अपने खरीददारों को सप्लाई कर देते हैं। अब उनको जाना नहीं पड़ता है। एक्ज़ॉटिक सब्जी लेने वाले ऑटो या कोई वाहन लेकर उनके खेत तक खुद ही जाते हैं।
इंटीग्रेटेड फार्मिग अपनाकर नियमित आय होती है
सेब की परम्परागत किस्मों के बाग के साथ साथ फारुक ने हाई डेंसिटी वाली विदेशी किस्म के सेब का बाग़ भी बनाया। साथ ही मुर्गी पालन भी शुरू किया। घर में एक गाय पहले से ही है। गोबर और ख़राब हुई सब्जियों और अन्य पत्तियों का इस्तेमाल करके वो खाद बनाते हैं जिसका इस्तेमाल एक्ज़ॉटिक वेजिटेबल्स की क्यारियों में करते हैं। दूध , अंडे और सेब से लेकर सब्जियों तक, अब उन्हें अलग-अलग तरह से आमदनी होने लगी है। पहले साल भर के इंतज़ार के बाद सेब की फसल बेचते थे। इसमें काफी पैसा आता ज़रूर था लेकिन ज़्यादातर उधार चुकता करने में खर्च हो जाया करता था . बाकी घर के आने वाले खर्चों में लिहाज़ा कुछ बचत नहीं हो पाती थी. अब स्थिति उलट है. फारुक बताते हैं कि उन्होंने मदद के लिए दो कर्मचारियों को भी रखा है. सारा खर्चा और उनका वेतन निकालकर वो साल का बारह लाख रुपया कमा लेते हैं यानि एक कनाल ज़मीन से साल के 2 लाख रूपये जबकि एक कनाल हाई डेंसिटी सेब की फसल बेचने से एक कनाल से एक लाख रुपया भी आज मुश्किल से मिलता है।
खेती में प्रयोग के लिए हमेशा तैयार
फारूक बताते हैं कि पहले जहां साल भर में वे एक्ज़ॉटिक सब्जियों की पांच फसल लेते थे आज नौ फसलें लेते हैं। ब्रोकली 45 दिन में तैयार होती है लेकिन बाकी सारी एक्ज़ॉटिक सब्जियां महीने भर में तैयार हो जाती हैं। फारुक हमेशा कुछ न कुछ नया करने में लगे रहते हैं। उन्होंने मल्चिंग (mulching) पद्वति का इस्तेमाल किया है। इससे क्यारियों में न तो खरपतवार होते हैं, न गैर ज़रूरी घास और न ही सफाई करने में दिक्कत होती है। उस पर मिट्टी में नमी बनी रहती है। धूप से ज़मीन जल्दी सूखती नहीं है लिहाज़ा पानी भी कम देना पड़ता है। अब वो एक और प्रयोग करने की सोच रहे हैं। मल्चिंग पद्वति सेब के बाग़ में अपनाकर पेड़ के आसपास की जगह को कवर करेंगे। साथ ही हाई डेंसिटी बाग़ में सेब के पेड़ों की दो कतारों के बीच पर्याप्त खाली जगह का इस्तेमाल भी एक्ज़ॉटिक सब्जियां लगाने में करेंगे। कई एक्ज़ॉटिक सब्जियों को ज्यादा धूप के ज़रूरत नहीं होती है। सेब के पेड़ की हल्की छाया में ये पैदा हो सकें, इसकी कोशिश करने जा रहे हैं।
नई तकनीक व सरकारी योजनाओं का लाभ
पहले से चल रहे अपने काम में नए नए प्रयोग करने के साथ साथ फारुक खुद को अलग-अलग तरह की योजनाओं, तकनीकों और फसलों के बारे में अपडेट करते रहते हैं। सरकारी योजनाओं का फायदा भी भरपूर उठाते हैं। जम्मू कश्मीर में सरकार की योजना के मुताबिक़ उन्हें एक्ज़ॉटिक सब्जियों के बीज पर 40% सबसिडी मिलती है। हाल ही में उन्होंने टनल पद्वति से भी खेती शुरू की है। वहीं पॉलीकार्बोनेट शीट्स वाला आधुनिक पॉली हाउस भी लगाया है। इस पर उनका खर्चा 20 लाख रुपये हुआ जिसमें से तकरीबन 4 लाख रुपये की सब्सिडी उन्हें मिली है। इस पॉली हाउस में तापमान को नियमित व नियंत्रित करने की स्वचालित तकनीक है। दो ड्रायर हैं जिससे गर्म और ठंडी, दोनों तरह की हवा मिलती है। इस पॉली हाउस में फिलहाल कुछ पौध उन्होंने लगाई है और कुछ सब्जियां अपने घर के इस्तेमाल के लिए भी लगाई हैं। यहां तैयार पौध को बाहर खुले खेत में फिर से रोपा जाता है।
तरक्की पसंद किसान फारुक की मदद करने में उनकी पत्नी सईदा अख्तर भी आगे रहती हैं। वो स्नातक तक पढ़ीं हैं। अपनी शिक्षा का इस्तेमाल वो खेतीबाड़ी में पति की मदद करने में करती हैं। वहीं तीनों बच्चों की परवरिश भी अच्छे से कर रही हैं। बड़ी बेटी श्रीनगर मेडिकल यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस कर रही है। दोनों छोटे बच्चे स्कूल की पढ़ाई कर रहे हैं।
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