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बहुमुखी गुणों से भरपूर अदरक (Ginger) एक नकदी फ़सल है। सब्ज़ी, मसाला और औषधीय श्रेणी की फ़सलों में अदरक का अहम स्थान है। अदरक का इस्तेमाल हरेक घर में रोज़ाना होता है। बारहों मास इसकी माँग रहती है। अदरक की माँग और खपत ही किसानों को अदरक की खेती के लिए प्रोत्साहित करती है, क्योंकि माँग की वजह से ही बाज़ार में अदरक का बढ़िया दाम मिल पाता है।
अदरक के सेवन से सर्दी-ज़ुखाम, खाँसी, पाचन सम्बन्धी रोग, पथरी और पीलिया जैसे रोगों में आराम मिलता है। अदरक का इस्तेमाल सौन्दर्य प्रसाधनों में भी होता है। अदरक की खेती को छोटी जोत वाले किसान भी आसानी से कर सकते हैं। अदरक की फ़सल 7 से 8 महीने में तैयार होती है। इसकी अलग-अलग किस्मों से प्रति हेक्टेयर 15 से 20 टन अदरक का कन्द पैदा होता है। सारी लागत निकालने के बाद किसानों को अदरक की खेती से प्रति हेक्टेयर करीब दो लाख रुपये की कमाई हो जाती है।

अदरक की खेती के लिए जलवायु (Climate for Ginger Cultivation)
अदरक की खेती पूरे देश में की जाती है। इसे गर्म जलवायु और कम सिंचाई की ज़रूरत पड़ती है। ज़्यादा बारिश वाले इलाकों में भी यदि खेत में जल-निकासी जल्दी हो जाये, तो वो भी अदरक के लिए अनुकूल रहता है। जीवाश्म और कार्बनिक तत्वों से भरपूर उपजाऊ मिट्टी में अदरक की पैदावार ज़्यादा होती है। अदरक की खेती गर्म और आर्द्रता वाले क्षेत्रों में की जाती है, और 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान इसके लिए सबसे उपयुक्त होता है। तापमान इससे ज़्यादा होने पर फ़सल को नुकसान पहुंच सकता है।
वहीं, 10 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान की वजह से पत्तों और प्रकन्दों को नुकसान होता है। तेज़ धूप पाने वाले खुले खेतों में अदरक का कन्द ज़्यादा तैयार होता है। बुवाई के अंकुर फूटने तक हल्की नमी, फ़सल बढ़ते समय मध्यम बारिश और फ़सल की तुड़ाई के एक महीने पहले शुष्क मौसम होना चाहिए।
अदरक की बुआई के नुस्ख़े (Tips for sowing ginger)
अदरक की बुआई से पहले खेत की मिट्टी को खूब भुरभुरा कर लेना चाहिए, ताकि कन्द अच्छे से विकसित हो सके। कठोर मिट्टी में कन्द का विकास बाधित होता है और पैदावार घट जाती है। अदरक बुआई के लिए खेत की अच्छी जुताई करके एक फीट की दूरी पर मेड़ बनानी चाहिए। बीज को मिट्टी में 5 सेंटीमीटर तक दबाना चाहिए और इनके बीच 6-7 इंच की दूरी रखनी चाहिए। दक्षिण भारतीय जलवायु के लिए अप्रैल और उत्तर भारतीय इलाकों के लिए बुआई का वक़्त मई-जून होना चाहिए। यदि सिंचाई की उचित सुविधा हो तो फरवरी में भी बुआई कर सकते हैं। फरवरी में बोया गया अदरक पकने पर अधिक पैदावार देता है।
अदरक के बीज इसके कन्द से ही तैयार होते हैं। इसमें दो आँखों का होना बेहतर होता है। इन्हें नयी फसल के कन्द से काटकर अलग करते हैं। पहाड़ी इलाकों में प्रति हेक्टेयर करीब 1.5 लाख यानी 25 क्विंटल बीज की ज़रूरत पड़ सकती है, जबकि मैदानी क्षेत्रों में 18 क्विंटल बीज (प्रकन्द) पर्याप्त होता है। बीजों की रोपाई से पहले उन्हें उपचारित करके रोगों से रोकथाम करनी चाहिए। इससे अदरक के पौधों का अंकुरण भी बेहतर रहता है।
अदरक की खेती की प्रक्रिया (Process of Ginger Farming)
खेत तैयार करें (Prepare the field)
अदरक की अधिक उपज के लिए हल्की दोमट या बलूई दोमट मिट्टी सबसे सही रहती है। 6.0 से 7.5 पीएच मान वाली भूमि में अदरक की अच्छी पैदावार मिलती है। अदरक के खेती के लिए जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए। मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की अच्छे से जुताई कर लें। इसके बाद देसी हल या कल्टीवेटर से एक और जुताई कर लें।
इससे मिट्टी भूरभूरी हो जाएगी। आखिरी जुताई करने के 3 से 4 हफ़्ते पहले खेत में 250 से 300 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद डाल दें। इसके बाद एक या दो बार फिर से खेत की अच्छे से जुताई कर खाद को मिट्टी में मिला दें। इसके बाद ही अदरक की खेती करें।
मिट्टी की जांच कराएं, विशेषज्ञ की राय लें (Get your soil tested and seek expert advice)
अदरक का कन्द ज़मीन में 6 से 8 इंच तक विकसित होता है। इसीलिए इसके बढ़िया विकास के लिए उपजाऊ मिट्टी से मिलने वाले पोषक तत्व काफी मददगार होते हैं। अदरक की खेती में बढ़िया कमाई के लिए खेत की मिट्टी की जाँच करवाकर और कृषि विशेषज्ञों की सलाह लेकर ही खाद का इस्तेमाल करना चाहिए। वैसे जुताई के वक़्त गोबर की खाद की इस्तेमाल का कोई जवाब नहीं होता। अदरक को ज़्यादा सिंचाई नहीं चाहिए। यदि इसकी ज़रूरतें बारिश से पूरी नहीं हों तो हल्की सिंचाई की जानी चाहिए। निराई-गुड़ाई के ज़रिये नियमित रूप से खरपतवार की रोकथाम करने और अदरक के तने पर मिट्टी चढ़ाने से भी उपज बढ़ती है।
अदरक की बुवाई इन तीन विधियों से कर सकते हैं (Ginger can be sown using these three methods)
अदरक की फ़सल को तैयार होने में 8 से 9 महीने का समय लग जाता है। एक हेक्टेयर से अदरक की पैदावार 150 से 200 क्विंटल तक हो जाती है। जानिए अदरक बुवाई की तीन विधियों के बारे में।
- क्यारी विधि : इस विधि में 1.20 मीटर चौड़ी और 3 मीटर लंबी क्यारियां बनाई जाती हैं। ये क्यारियां जमीन की सतह से 15-20 सेंटीमीटर ऊंची होनी चाहिए। प्रत्येक क्यारी के चारो ओर 50 सेंटीमीटर चौड़ी नाली बनानी चाहिए। क्यारी में 30-20 सेंटीमीटर दूरी पर 8 से 10 सेंटीमीटर की गहराई में बीज की बुवाई करनी चाहिए।
- मेड़ विधि : इस विधि में 20 सेंटीमीटर की दूरी पर बीज की बुवाई करने के बाद मिट्टी चढ़ाकर मेड़ बनाई जाती है। बीज 10 सेंटीमीटर की गहराई में बोया जाता है। इससे बीजों का अंकुरण अच्छा होता है। जिन क्षत्रों में जलजमाव की समस्या हो, उन क्षेत्रों में इस विधि से अदरक की खेती की जाती है।
- समतल विधि: ये विधि हल्की मिट्टी में अपनाई जाती है। इस विधि में 30 सेंटीमीटर पंक्ति से पंक्ति की दूरी होनी चाहिए। पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर होती है। बीज की बुवाई 8 से 10 सेंटीमीटर की गहराई में होनी चाहिए। जिन क्षेत्रों में पर जलजमाव की स्थिति नहीं होती, वहाँ इस विधि से खेती की जाती है।
अदरक की फ़सल की देखभाल (Care of Ginger Crops)
अदरक की फ़सल की देखभाल करना बहुत जरूरी है। शुरुआत में अदरक को हल्की नमी चाहिए, खासकर जब पौधे उग रहे हों। इसके बाद, जब फ़सल बढ़ रही हो, तो मध्यम बारिश और अच्छी जल निकासी होनी चाहिए। खेत में खरपतवार (घास) को हटाना भी जरूरी है। इसके लिए नियमित रूप से निराई (साफ करना) करें। साथ ही, अदरक के पौधों के तनों के चारों ओर मिट्टी डालने से फ़सल बढ़ती है। फ़सल की देखभाल में सही मात्रा में खाद का इस्तेमाल भी करें, लेकिन इसके लिए विशेषज्ञों से सलाह लेना बेहतर होता है। अच्छे देखभाल से अदरक की उपज बढ़ती है और यह रोगों और कीटों से भी बची रहती है।
अदरक की खुदाई और सफाई (Digging and Cleaning Ginger)
अदरक की बुआई के करीब आठ महीने बाद जब इसका ज़मीन के नीचे इसका कन्द पूर्ण विकसित हो जाता है तो इसकी पत्तियाँ पीली पड़कर सूखने लगती है। यदि अदरक का इस्तेमाल सब्ज़ी के रूप में होना है तो फ़सल के पूरी तरह से पकने से पहले या करीब सातवें महीने में खुदाई करके उपज को निकाल लेना चाहिए। पूरी तरह से पकी हुई फ़सल अदरक का बीज बनाने के लिए उपयुक्त होती है।
खुदाई के बाद अदरक के कन्द को पानी से धोकर मिट्टी अलग करके सुखाया जाता है। ताकि इसे अधिक दिनों तक इस्तेमाल किया जा सके। सुखायी जा चुकी अदरक का बाज़ार में अच्छा भाव मिलता है। बीज वाले कन्द को सही ढंग से उपचारित करके ही रखना चाहिए ताकि वो ज़्यादा दिनों तक सुरक्षित रहें।

अदरक की उन्नत किस्में (Top Varieties of Ginger)
अदरक की कई उन्नत किस्में उपलब्ध हैं, जिनमें कुछ संकर किस्में भी शामिल हैं जो अधिक पैदावार देती हैं। विभिन्न इलाकों के लिए अलग-अलग किस्में उपयुक्त होती हैं। सुप्रभा, हिमगिरी, हिमाचल, नादिया, IISR वरदा और IISR महिमा को उन्नत किस्म माना जाता है, जबकि देसी प्रजातियां भी किसानों में लोकप्रिय हैं।
अलग-अलग किस्मों की फ़सल पकने में समय और उपज की मात्रा में भिन्नता होती है, इसलिए किसानों को बुआई से पहले कृषि विशेषज्ञों से सलाह लेनी चाहिए। नादिया किस्म, जो सोंठ बनाने के लिए प्रसिद्ध है, उच्च पैदावार देने वाली किस्मों में से एक है, जो लगभग 200 दिनों में पकती है और प्रति हेक्टेयर करीब 28 टन उपज देती है। अदरक की कुछ उन्नत किस्में इस प्रकार है-
मरान : हल्के सुनहरे रंग की, 230-240 दिन में तैयार, उपज क्षमता 175-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, मृदु विगलन रोग से सुरक्षित।
नादिया : बिहार के लिए उपयुक्त, 8-9 महीने में तैयार, उपज क्षमता 200-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।
सुप्रभा : उपज क्षमता 200-230 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, 225-230 दिन में तैयार, प्रकन्द विगलन रोग के प्रति सहनशील।
जोरहट : असम की लोकप्रिय किस्म, उपज क्षमता 200-225 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, 8-10 महीने में तैयार।
रियो डी जेनेरियो : सफेद और चमकदार छिलका, उपज क्षमता 200-230 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, 225-230 दिन में तैयार, प्रकंद विगलन रोग के प्रति सहनशील।
अदरक की फ़सल का विपणन (Marketing of Ginger Crop)
अदरक की फ़सल का विपणन करना बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसकी मांग पूरे वर्ष बनी रहती है। अदरक की विभिन्न उन्नत किस्में, जैसे सुप्रभा, हिमगिरी, और नादिया, किसानों को बेहतर उपज प्रदान करती हैं, जिससे उनकी आय में वृद्धि होती है। किसानों को चाहिए कि वे अपनी फ़सल के विपणन की योजना पहले से बना लें। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि अदरक का उचित मूल्य मिले। विभिन्न बाजारों में अदरक की मांग को ध्यान में रखते हुए, किसान अपने उत्पाद को सही समय पर बेचकर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।
साथ ही, अदरक की खेती में उन्नत किस्में और अच्छी देखभाल से उपज बढ़ती है, जिससे बाजार में उनकी प्रतिस्पर्धा भी मजबूत होती है। किसानों को कृषि विशेषज्ञों की सलाह लेकर विपणन रणनीतियों को समझना चाहिए, ताकि वे अपनी फ़सल को बेहतर तरीके से बेच सकें।
अदरक के रोग और रोकथाम (Diseases and prevention of ginger)
किसी खेत में अदरक की खेती लगातार नहीं करनी चाहिए। बल्कि फ़सल चक्र अपनाना चाहिए। एक ही खेत में बार-बार अदरक पैदा करने से इसमें लगने वाले कीट ज़्यादा घातक बनने लगते हैं और उन पर कीटनाशकों का असर घट जाता है। तना बेधक कीट, राइजोम शल्क कीट, जड़ बेधक कीट और पर्ण चित्ती वाले वायरस से अदरक के पौधों का बचाव ज़रूरी है।
इनमें से कोई अदरक की पत्ती पर तो कोई तना और कन्द को निशाना बनाता है तो कोई कन्द का रस चूसने की फ़िराक़ में रहता है। ‘मृदु विगलन’ अदरक का एक और रोग है जो जल भराव की वजह से होता है। इससे बचाव के लिए खेत में पानी जमा नहीं होने देना चाहिए। किसान जब अपनी फ़सल पर इन रोगों का असर देखें तो उन्हें कृषि विकास केन्द्र के विशेषज्ञों की राय लेकर ही कीटनाशक का इस्तेमाल करना चाहिए।
अदरक की खेती के लाभ और चुनौतियां (Benefits and Challenges of Ginger Farming)
अदरक की खेती के कई फायदे हैं:
- उच्च मांग: अदरक हर मौसम में मांग में रहता है। लोग इसका इस्तेमाल खाना बनाने, मसाले और औषधीय गुणों के लिए करते हैं। इसलिए, किसान इसे बेचना आसान समझते हैं।
- अच्छा बाजार मूल्य: अदरक का बाजार मूल्य अक्सर अच्छा होता है। इससे किसान अपनी लागत निकालने के बाद अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
- कम निवेश: अदरक की खेती में बहुत ज्यादा पैसे लगाने की जरूरत नहीं होती, जिससे छोटे किसान भी इसे आसानी से कर सकते हैं।
हालांकि, अदरक की खेती में कुछ चुनौतियाँ भी हैं:
- जलवायु और मिट्टी: अदरक के लिए सही जलवायु और उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है। अगर मौसम सही न हो या मिट्टी अच्छी न हो, तो फ़सल प्रभावित हो सकती है।
- कीट और रोग: अदरक की फ़सल में कई कीट और रोग लग सकते हैं। इनका प्रबंधन करना जरूरी है ताकि फ़सल स्वस्थ रहे।
- फ़सल चक्र का पालन: अदरक की खेती में फ़सल चक्र का पालन करना भी महत्वपूर्ण है। एक ही खेत में बार-बार अदरक उगाने से जमीन की गुणवत्ता कम हो सकती है और कीट भी बढ़ सकते हैं।
इसलिए, किसान अदरक की खेती करते समय इन लाभों और चुनौतियों को समझें, ताकि वे बेहतर तरीके से खेती कर सकें और अधिक मुनाफा कमा सकें।
अदरक की खेती में नवीनतम तकनीक (Latest Techniques in Ginger Farming)
किसान अब अदरक की खेती को और बेहतर और प्रभावी बनाने के लिए नई तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इनमें शामिल हैं:
- जैविक खेती के तरीके: किसान जैविक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग कर रहे हैं। इससे फ़सल सुरक्षित और स्वस्थ रहती है, और यह बाजार में भी ज्यादा पसंद किया जाता है।
- सिंचाई की नई विधियाँ: ड्रिप इरिगेशन जैसी आधुनिक सिंचाई तकनीक का उपयोग करके पानी की बचत की जा सकती है। इससे अदरक की फ़सल को सही मात्रा में पानी मिलता है और पैदावार भी बढ़ती है।
- उन्नत किस्मों का चयन: किसान उन्नत और उच्च पैदावार देने वाली किस्मों का चयन कर रहे हैं, जैसे कि नादिया और सुप्रभा। ये किस्में जल्दी पकती हैं और ज्यादा उत्पादन देती हैं।
- पौधों की सही देखभाल: वैज्ञानिक तरीकों से पौधों की देखभाल करना, जैसे कि समय पर खाद देना और कीटों का नियंत्रण करना, फ़सल की गुणवत्ता और मात्रा को बढ़ाता है।
इन नई तकनीकों को अपनाकर किसान अदरक की खेती में बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकते हैं और अपनी आय को बढ़ा सकते हैं।
अदरक की खेती की सफलता की कहानियां (Success Stories in Ginger Farming)
केरल की रहने वाली ओमाना ने अदरक की खेती का एक अनोखा तरीका अपनाया। उन्होंने बंजर जमीन का चुनाव किया और आज वे अपने इलाके में ‘जिंजर वुमन’ के नाम से जानी जाती हैं।
ओमाना कालीकट जिले के चेम्पोनोडा गांव की निवासी हैं। उन्हें अदरक की खेती में गहरी रुचि थी, इसलिए उन्होंने इसे शुरू करने का निर्णय लिया। लेकिन उन्होंने पारंपरिक खेती के बजाय वैज्ञानिक खेती करने का सोचा। इसके लिए, उन्होंने पेरूवनामुझी स्थित ICAR-कृषि विज्ञान केंद्र से तकनीकी सहायता ली और अदरक की खेती शुरू की।
ओमाना जैविक खेती करती हैं और जूट के बोरों में अदरक उगाती हैं। इसके लिए उन्होंने बंजर जमीन का चयन किया, और इसी वजह से लोग उन्हें ‘जिंजर वुमन’ कहते हैं। वे जूट के बोरों को जमीन पर रखकर 2.5 सेंट के क्षेत्र में फैलाती हैं। अदरक के पौधों को तैयार करने के लिए, वे कॉयर-पीठ, गाय के सूखे गोबर और ट्राइकोडर्मा से भरी ट्रे में 5 ग्राम के कटे हुए प्रकंदों का उपयोग करती हैं। अदरक की अच्छी फ़सल के लिए, उन्हें पर्याप्त धूप, सिंचाई और समय पर खाद भी देनी होती है।
अदरक की खेती के साथ-साथ, ओमाना काली मिर्च और विभिन्न फलों की भी खेती करती हैं। वे सजावटी मछलियों, केंचुओं और पक्षियों को भी पाल रही हैं। इसके अलावा, उन्होंने मूल्य वर्धित उत्पादों के जरिए अपनी आय बढ़ाने का भी प्रयास किया है। ‘जायफल के छिलके की कैंडी’, ‘गैरीसीनिया छिलके का पेस्ट’ और ‘सूखी अदरक’ उनके नए और सफल मसाला उत्पाद हैं। अब ओमाना कृषि विज्ञान केंद्र में अन्य किसानों को प्रशिक्षण भी दे रही हैं, ताकि वे भी सफल खेती कर सकें। उनकी कहानी यह साबित करती है कि मेहनत और सही जानकारी के साथ किसी भी मुश्किल परिस्थिति में सफलता पाई जा सकती है।
निष्कर्ष और सिफारिशें (Conclusion and Recommendations)
अदरक की खेती एक अच्छा बिजनेस है, जिससे किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। इसके लिए सही तकनीक, अच्छी देखभाल और सही तरीके से बेचने की योजना बनाना जरूरी है। अदरक की हमेशा मांग रहती है, जिससे किसान इसे अच्छे दाम पर बेच सकते हैं। किसानों को नई जानकारी और तरीकों का इस्तेमाल करना चाहिए, जैसे जैविक खेती और आधुनिक सिंचाई। इससे फ़सल की गुणवत्ता और पैदावार बढ़ती है। नियमित देखभाल, जैसे समय पर खाद देना और कीटों से बचाना भी महत्वपूर्ण है।
अदरक का सही समय पर विपणन करना और बाजार की मांग को समझना किसान की आय बढ़ाने में मदद करता है। अगर कोई समस्या आती है, तो कृषि विशेषज्ञों से सलाह लेना फायदेमंद होता है। इन सभी बातों का ध्यान रखकर किसान अदरक की खेती में सफलता पा सकते हैं और एक अच्छी आय सुनिश्चित कर सकते हैं।
अदरक की खेती (Ginger Farming) पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
सवाल : अदरक की फ़सल कितने दिन में तैयार होती है?
जवाब: अदरक की फ़सल 7 से 8 महीने में तैयार होती है, जो लगभग 170-180 दिनों का समय लेती है।
सवाल : 1 एकड़ में अदरक कितना लगता है?
जवाब: अदरक की फ़सल औसतन 150 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। एक एकड़ में क़रीब 1 लाख 20 हजार रुपये का ख़र्च आता है, और इससे लगभग 120 क्विंटल अदरक का उत्पादन हो सकता है।
सवाल : भारत में अदरक कब उगाया जाता है?
जवाब: भारत में अदरक की खेती ख़ासकर मई-जून में की जाती है।
सवाल : अदरक कितने रुपए किलो है?
जवाब: अभी अदरक की क़ीमत ₹113 प्रति किलो है, लेकिन यह मार्केट के अनुसार बढ़ती और घटती रहती है।
सवाल : अदरक का बीज कितने रुपए किलो है?
जवाब: अदरक का बीज लगभग 100-150 रुपये प्रति किलो होता है, जो मार्केट के अनुसार बदलता रहता है।
सवाल : पाकिस्तान में अदरक कितने रुपए किलो है?
जवाब: पाकिस्तान में इस वक़्त एक किलो अदरक की क़ीमत क़रीब 790 पाकिस्तानी रुपये है।
सवाल : अदरक का सबसे बड़ा उत्पादक देश कौन सा है?
जवाब: भारत को अदरक का शीर्ष उत्पादक देश माना जाता है, इसके बाद चीन और नाइजीरिया का स्थान है।
सवाल : अदरक इतना महंगा क्यों है?
जवाब: भारत में अदरक की खेती एक महंगा और जोखिम भरा व्यवसाय है, क्योंकि किसानों को निर्यात से बहुत ज़्यादा फ़ायदा नहीं होता। कुल लागत का 65% से अधिक हिस्सा श्रम और बीज सामग्री की खरीद पर ख़र्च होता है।
सवाल : अदरक में कौन सी खाद डालें?
जवाब: अदरक की खेती में बढ़िया कमाई के लिए खेत की मिट्टी की जांच करवाकर और कृषि विशेषज्ञों की सलाह लेकर ही खाद का इस्तेमाल करना चाहिए। जुताई के समय गोबर की खाद का उपयोग बेहद फ़ायदेमंद होता है, और अदरक को ज़्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती।
सवाल : अदरक कैसे बोया जाता है?
जवाब: अदरक की बुआई के लिए खेत की अच्छी तरह जुताई करके एक फीट की दूरी पर मेड़ बनानी चाहिए। बीज को मिट्टी में 5 सेंटीमीटर तक दबाना चाहिए और इनके बीच 6-7 इंच की दूरी रखनी चाहिए। दक्षिण भारतीय जलवायु के लिए अप्रैल और उत्तर भारतीय इलाकों के लिए बुआई का समय मई-जून होता है। अगर सिंचाई की उचित सुविधा हो, तो फ़रवरी में भी बुआई कर सकते हैं, जो ज़्यादा पैदावार देती है।
सवाल : खेत में अदरक कैसे उगाएं?
जवाब: अदरक उगाने के लिए खेत की तैयारी अच्छी होनी चाहिए। मिट्टी को भुरभुरा करना और सही समय पर सिंचाई करना आवश्यक है।
सवाल : 1 बीघा में कितना अदरक होता है?
जवाब: 1 बीघा में अदरक की उपज क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग होती है, लेकिन औसतन इसमें लगभग 50-60 क्विंटल अदरक उपजाई जा सकती है।
सवाल : अदरक की उपज प्रति एकड़ कितनी होती है?
जवाब: अदरक की औसत उपज प्रति एकड़ 90 क्विंटल होती है, और यह 200 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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- European Union ने भारतीय मत्स्य निर्यात के लिए खोले नए द्वार, 102 और फर्मों को मिली मंज़ूरीयूरोपीय संघ (European Union) दुनिया के सबसे बड़े और सबसे सख्त मानकों वाले आयात बाजारों में से एक है। उसके खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता के मानक (Food safety and quality standards) काफी हाई हैं। ऐसे में, 102 नई यूनिट्स का मंजूरी पाना इस बात का प्रमाण है कि India’s export control mechanism (एक्सपोर्ट इंस्पेक्शन काउंसिल – EIC) कितना मजबूत और भरोसेमंद है।
- Mushroom Production Training से सहरसा की महिलाएं लिख रहीं आत्मनिर्भरता की कहानी, दे रहीं ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूतीबिहार के सहरसा ज़िले (Saharsa district of Bihar) अगवानपुर के कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) में आयोजित चार दिवसीय मशरूम प्रोडक्शन ट्रेनिंग (Mushroom production training) ने न सिर्फ महिलाओं को एक नई राह दिखाई है, बल्कि उन्हें ‘आत्मनिर्भर भारत’ की मुख्यधारा से जोड़ने का काम किया है।
- हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने किसानों के लिए विकसित की गेहूं की नई क़िस्म WH 1309गेहूं की नई क़िस्म WH 1309 पछेती बिजाई के लिए वरदान है, अधिक पैदावार और रोगरोधी गुणों के साथ किसानों को देगा स्थिर लाभ।
- Role of Technology in Agriculture: कृषि में प्रौद्योगिकी की भूमिका से बदल रहा है भारतीय खेती का भविष्यकृषि में प्रौद्योगिकी की भूमिका किसानों की आय, पैदावार और आत्मनिर्भरता बढ़ा रही है। जिससे भारत में खेती-किसानी की तस्वीर बदल रही है।
- Rangeen Machhli App: ICAR का ‘रंगीन मछली’ ऐप जो दे रहा सजावटी मत्स्य पालन और आजीविका के अवसरों को बढ़ावाRangeen Machhli App सिर्फ एक साधारण जानकारी देने वाला टूल नहीं है, बल्कि ये मछली पालन के शौकीनों (hobbyists), किसानों और बिजनेसमैन के लिए एक पूरी गाइड है। आइए जानते हैं इसकी ख़ास बातें।
- सफ़ेद चादर-सा काशी फूल: झारखंड की संस्कृति और जीवन से जुड़ी अनोखी पहचानझारखंड की संस्कृति और जीवन से जुड़ा काशी फूल शरद ऋतु का प्रतीक है। यह फूल आजीविका और धार्मिक महत्व दोनों में अहम भूमिका निभाता है।
- National Gopal Ratna Award 2025: देश के डेयरी किसानों और तकनीशियनों का सर्वोच्च सम्मान, जानिए कैसे करें अप्लाईराष्ट्रीय गोपाल रत्न पुरस्कार 2025 (National Gopal Ratna Award 2025) देश के डेयरी किसानों, सहकारी समितियों और तकनीशियनों (Dairy farmers, co-operatives and technicians) के लिए एक शानदार अवसर है। ये न केवल एक Prestigious honors और Financial Aid प्रदान करता है, बल्कि देश के Dairy Sector में वैज्ञानिक और टिकाऊ तरीकों को अपनाने के लिए एक बड़ा प्रोत्साहन भी है।
- प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के 5 साल, क्या कहते हैं मछली पालन से जुड़े ताज़ा आंकड़े?प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना: ब्लू इकोनॉमी की ताकत, तकनीक और रोजगार से बदल रहा है भारत का मत्स्य क्षेत्र।