बहुमुखी गुणों से भरपूर अदरक (Ginger) एक नकदी फसल है। सब्ज़ी, मसाला और औषधीय श्रेणी की फसलों में अदरक का अहम स्थान है। अदरक का इस्तेमाल हरेक घर में रोज़ाना होता है। बारहों मास इसकी माँग रहती है। अदरक की माँग और खपत ही किसानों को अदरक की खेती के लिए प्रोत्साहित करती है, क्योंकि माँग की वजह से ही बाज़ार में अदरक का बढ़िया दाम मिल पाता है।
अदरक के सेवन से सर्दी-ज़ुखाम, खाँसी, पाचन सम्बन्धी रोग, पथरी और पीलिया जैसे रोगों में आराम मिलता है। अदरक का इस्तेमाल सौन्दर्य प्रसाधनों में भी होता है। अदरक की खेती को छोटी जोत वाले किसान भी आसानी से कर सकते हैं। अदरक की फसल 7 से 8 महीने में तैयार होती है। इसकी अलग-अलग किस्मों से प्रति हेक्टेयर 15 से 20 टन अदरक का कन्द पैदा होता है। सारी लागत निकालने के बाद किसानों को अदरक की खेती से प्रति हेक्टेयर करीब दो लाख रुपये की कमाई हो जाती है।
अदरक की खेती के लिए जलवायु
अदरक की खेती पूरे देश में की जाती है। इसे गर्म जलवायु और कम सिंचाई की ज़रूरत पड़ती है। ज़्यादा बारिश वाले इलाकों में भी यदि खेत में जल-निकासी जल्दी हो जाये तो वो भी अदरक के लिए अनुकूल रहता है। जीवाश्म और कार्बनिक तत्वों से भरपूर उपजाऊ मिट्टी में अदरक की पैदावार ज़्यादा होती है। तेज़ धूप पाने वाले खुले खेतों में अदरक का कन्द ज़्यादा तैयार होता है। अदरक की बुआई से पहले खेत की मिट्टी को खूब भुरभुरा कर लेना चाहिए। इससे अदरक का कन्द ढंग से विकसित होता है। कठोर मिट्टी में कन्द का विकास बाधित होता है और पैदावार घट जाती है।
अदरक की बुआई के नुस्ख़े
अदरक बुआई के लिए खेत की अच्छी जुताई करके एक फीट की दूरी पर मेड़ बनानी चाहिए। बीज को मिट्टी में 5 सेंटीमीटर तक दबाना चाहिए और इनके बीच 6-7 इंच की दूरी रखनी चाहिए। दक्षिण भारतीय जलवायु के लिए अप्रैल और उत्तर भारतीय इलाकों के लिए बुआई का वक़्त मई-जून होना चाहिए। यदि सिंचाई की उचित सुविधा हो तो फरवरी में भी बुआई कर सकते हैं। फरवरी में बोया गया अदरक पकने पर अधिक पैदावार देता है।
अदरक के बीज इसके कन्द से ही तैयार होते हैं। इसमें दो आँखों का होना बेहतर होता है। इन्हें नयी फसल के कन्द से काटकर अलग करते हैं। पहाड़ी इलाकों में प्रति हेक्टेयर करीब 1.5 लाख यानी 25 क्विंटल बीज की ज़रूरत पड़ सकती है, जबकि मैदानी क्षेत्रों में 18 क्विंटल बीज (प्रकन्द) पर्याप्त होता है। बीजों की रोपाई से पहले उन्हें उपचारित करके रोगों से रोकथाम करनी चाहिए। इससे अदरक के पौधों का अंकुरण भी बेहतर रहता है।
मिट्टी की जाँच कराएँ, विशेषज्ञ की राय लें
अदरक का कन्द ज़मीन में 6 से 8 इंच तक विकसित होता है। इसीलिए इसके बढ़िया विकास के लिए उपजाऊ मिट्टी से मिलने वाले पोषक तत्व काफी मददगार होते हैं। अदरक की खेती में बढ़िया कमाई के लिए खेत की मिट्टी की जाँच करवाकर और कृषि विशेषज्ञों की सलाह लेकर ही खाद का इस्तेमाल करना चाहिए। वैसे जुताई के वक़्त गोबर की खाद की इस्तेमाल का कोई जवाब नहीं होता। अदरक को ज़्यादा सिंचाई नहीं चाहिए। यदि इसकी ज़रूरतें बारिश से पूरी नहीं हों तो हल्की सिंचाई की जानी चाहिए। निराई-गुड़ाई के ज़रिये नियमित रूप से खरपतवार की रोकथाम करने और अदरक के तने पर मिट्टी चढ़ाने से भी उपज बढ़ती है।
अदरक की खुदाई और सफाई
अदरक की बुआई के करीब आठ महीने बाद जब इसका ज़मीन के नीचे इसका कन्द पूर्ण विकसित हो जाता है तो इसकी पत्तियाँ पीली पड़कर सूखने लगती है। यदि अदरक का इस्तेमाल सब्ज़ी के रूप में होना है तो फसल के पूरी तरह से पकने से पहले या करीब सातवें महीने में खुदाई करके उपज को निकाल लेना चाहिए। पूरी तरह से पकी हुई फसल अदरक का बीज बनाने के लिए उपयुक्त होती है। खुदाई के बाद अदरक के कन्द को पानी से धोकर मिट्टी अलग करके सुखाया जाता है। ताकि इसे अधिक दिनों तक इस्तेमाल किया जा सके। सुखायी जा चुकी अदरक का बाज़ार में अच्छा भाव मिलता है। बीज वाले कन्द को सही ढंग से उपचारित करके ही रखना चाहिए ताकि वो ज़्यादा दिनों तक सुरक्षित रहें।
अदरक की उन्नत किस्में
अदरक की अनेक उन्नत किस्में हैं। कुछेक संकर किस्में भी हैं, जो अपेक्षाकृत अधिक पैदावार देती हैं। लेकिन अलग-अलग इलाकों के लिए अलग-अलग किस्म के बीच उपयुक्त होते हैं। सुप्रभा, हिमगिरी, हिमाचल, नादिया, IISR वरदा और IISR महिमा को उन्नत किस्म माना गया है। इसके अलावा देसी प्रजाति वाली अदरक भी किसानों में लोकप्रिय है।
अलग-अलग किस्मों की अदरक की फसल को पकने में लगने वाला वक़्त और उससे मिलने वाली उपज की मात्रा का अलग-अलग स्वाभाविक है। इसीलिए किसानों को बुआई से पहले कृषि विशेषज्ञों से मशविरा लेकर ही आगे बढ़ना चाहिए। अदरक को सुखाकर उससे सोंठ बनाने वालों के बीच नादिया किस्म खूब लोकप्रिय है। ये सबसे अधिक पैदावार देने वाली किस्मों में से एक है। इसका कन्द करीब 200 दिनों में पकता है। इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार करीब 28 टन होती है।
अदरक के रोग और रोकथाम
किसी खेत में अदरक की खेती लगातार नहीं करनी चाहिए। बल्कि फसल चक्र अपनाना चाहिए। एक ही खेत में बार-बार अदरक पैदा करने से इसमें लगने वाले कीट ज़्यादा घातक बनने लगते हैं और उन पर कीटनाशकों का असर घट जाता है। तना बेधक कीट, राइजोम शल्क कीट, जड़ बेधक कीट और पर्ण चित्ती वाले वायरस से अदलत के पौधों का बचाव ज़रूरी है। इनमें से कोई अदरक की पत्ती पर तो कोई तना और कन्द को निशाना बनाता है तो कोई कन्द का रस चूसने की फ़िराक़ में रहता है। ‘मृदु विगलन’ अदरक का एक और रोग है जो जल भराव की वजह से होता है। इससे बचाव के लिए खेत में पानी जमा नहीं होने देना चाहिए। किसान जब अपनी फसल पर इन रोगों का असर देखें तो उन्हें कृषि विकास केन्द्र के विशेषज्ञों की राय लेकर ही कीटनाशक का इस्तेमाल करना चाहिए।
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