Poultry Farming: देसी मुर्गीपालन से हो सकती है अच्छी कमाई, मध्यप्रदेश में सीहोर के सफ़ल मुर्गीपालक खलील अहमद से जानिए इसका सही तरीका

मध्यप्रदेश के सीहोर ज़िले के रहने वाले मुर्गीपालक खलील अहमद से किसान ऑफ़ इंडिया ने ख़ास बातचीत की। मुर्गीपालन व्यवसाय से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियां उन्होंने हमारे साथ साझा की।

देसी मुर्गीपालन poultry farming business

किसानों के पास अपनी आमदनी बढ़ाने का एक बेहतरीन विकल्प है मुर्गीपालन, लेकिन इसके लिए मुर्गीपालन का सही तरीका पता होना चाहिए। यही नहीं, किसान यदि छोटे स्तर पर मुर्गीपालन करना चाहता है तो ब्रॉयलर की बजाय देसी मुर्गी पालना अच्छा होगा। इसकी वजह ये है कि इसमें मुनाफ़ा अधिक होता है और मांस के साथ ही देसी मुर्गियों के अंडे की भी मांग अधिक होती है। इसके विपरीत ब्रॉइलर को एक वक़्त के बाद बेचना ही पड़ेगा क्योंकि वो बहुत तेज़ी से बढ़ जाता है। देसी मुर्गियों का पालन किस तरह से करना चाहिए और कौन सी नस्ल बेहतरीन है, यह जानने के लिए किसान ऑफ़ इंडिया की टीम पहुंची मध्यप्रदेश के सीहोर ज़िले के खामलिया गांव। यहां हमारे संवाददाता पंकज शुक्ला ने मुलाकात की मुर्गीपालक खलील अहमद से। खलील अहमद ने किसान ऑफ़ इंडिया से ख़ास बातचीत में छोटे किसानों के लिए देसी मुर्गीपालन के सही तरीकों के बारे में जानकारी दी।  

देसी मुर्गीपालन poultry farming business

Poultry Farming: देसी मुर्गीपालन से हो सकती है अच्छी कमाई, मध्यप्रदेश में सीहोर के सफ़ल मुर्गीपालक खलील अहमद से जानिए इसका सही तरीका

कलर ब्रीड छोटे किसानों के लिए फ़ायदेमंद

कलर ब्रीड देसी मुर्गियों की ही किस्म है। खलील अहमद कहते हैं कि इस नस्ल को पालना छोटे किसानों के लिए फ़ायदेमंद है, क्योंकि वो 500 या 1000 मुर्गियों से भी व्यवसाय शुरू करके मुनाफ़ा कमा सकते हैं। यदि इन मुर्गियों का मांस न बिके तो अंडे बेचकर भी अच्छी आमदनी हो सकती है। इसमें किसानों को बाज़ार के हिसाब से नहीं चलना होता, और जब उन्हें लगे कि लाभ अधिक होगा वह मुर्गियों को बेच सकते हैं। ब्रॉयलर में ऐसा नहीं होता। इसमें बाज़ार या डीलर द्वारा इनकी कीमत तय होती है।

कलर ब्रीड क्या है?

उन्होंने हमारी टीम को बताया कि देसी मुर्गियों की नस्ल ‘कलर ब्रीड’ की कई तरह की वैराइटी आती हैं। क्रोइलर, डीपी, डीपी क्रॉस, सोनाली, कड़कनाथ आदि ऐसी ही कुछ नस्लें हैं। सबके तैयार होने का समय अलग-अलग होता है और मुनाफ़ा भी। ऐसे में किसान को यह सोचना है कि उन्हें कितने दिनों में प्रॉफिट चाहिए और वह कितना समय इस व्यवसाय में लगाना चाहते हैं। यदि ज़्यादा जल्दी है तो क्रोइलर ब्रीड बेहतर है, जिसे 2 FG के नाम से भी जाना जाता है। यह 45 दिन में डेढ़ किलो तक की हो जाती है और इनका वज़न 3 किलो तक भी पहुंच जाता है। ऐसे में, जो कम कीमत में अधिक वज़नी मुर्गी चाहते हैं, उनके लिए यह अच्छी है। इनके अंडों की भी अच्छी कीमत मिल जाती है।

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आगे वह कहते हैं, यदि किसान के पास समय थोड़ा ज़्यादा है तो कावेरी सतपुड़ा किस्म को पालकर अधिक लाभ कमा सकते हैं।  इसे तैयार होने में 60-62 दिन लगते हैं। यदि इससे भी ज़्यादा समय देने को तैयार हैं तो सोनाली नस्ल का पालन सकते हैं, जो 85-90 दिनों में तैयार हो जाती है, मगर इसकी कीमत अधिक मिलती है। इस नस्ल की बाज़ार में मांग भी अधिक है, क्योंकि इनका स्वाद अच्छा होता है। आप यदि 120-130 दिन का समय देने को तैयार हैं तो कड़कनाथ भी आपके लिए अच्छा विकल्प है। इससे मुनाफा भी अधिक होगा।

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ब्रॉयलर या देसी किसे पालना है आसान

खलील अहमद के मुताबिक, कलर ब्रीड मुर्गियों की नस्ल मिक्सिंग होकर गांव से ही आई है, इसलिए यह रफ एंड टफ है, बहुत अधिक देखभाल की ज़रूरत नहीं है और स्वच्छता का भी बहुत अधिक ध्यान नहीं देना होता। इसे ब्रॉयलर की तरह ही पाल सकते हैं। बस, तापमान का ध्यान रखना होगा। बहुत गर्मी और सर्दी दोनों ही इनके लिए ठीक नहीं हैं। साथ ही, इनके रहने वाली जगह पर वेंटीलेशन की सही व्यवस्था होनी चाहिए। जहां तक खिलाने का सवाल है तो इन मुर्गियों को दाने के साथ ही अन्य पशुओं को दिए जाने वाला चारा भी मिलाकर दे सकते हैं। इससे दाने का खर्च कम हो जाएगा।

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शुरुआत कैसे करें?

वह बताते हैं कि किसानों को ज़ीरो डे यानी तुरंत जन्में मुर्गी के बच्चे (चूज़े) से व्यवसाय की शुरुआत करनी चाहिए। एक बार जब वह चूज़ों को पालना सीख लेते हैं, तो समझ लिजिए कि उनका काम आसान हो गया। जैसे गाय, बकरी के चिल्लाने पर किसान समझ जाता है कि वह भूखे हैं, ऐसे ही यदि आप मुर्गी को कब भूख लगी है यह जान गए, तो समझ लीजिए की फ़ार्मिंग सीख ली। चूज़े के विकास के लिए सही तापमान ज़रूरी है। इसके लिए लाइट या लकड़ी के बुरादे की सीकरी का इस्तेमाल कर सकते हैं। तापमान को 12 दिनों तक मेंटेन कर लें तो समझ लीजिए की बस सब ठीक हो गया, लेकिन इतने दिनों तक आपको मेहनत करनी होगी।

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कहां से लें प्रशिक्षण?

खलील अहमद किसानों को प्रशिक्षण के बाद ही यह काम शुरू करने की सलाह देते हैं। वह कहते हैं कि इच्छुक किसान कृषि विज्ञान केंद्र या नाबार्ड से प्रशिक्षण ले सकते हैं। पशुपालन विभाग के डाक्टरों से भी सलाह ली जा सकती है।

जब कोई किसान बड़े पैमाने पर देसी मुर्गीपालन करता है, तो राज्य और केंद्र सरकार की ओर से सब्सिडी भी दी जाती है, मगर खलील अहमद का मानना है कि किसानों को पहले छोटे पैमान पर ही काम शुरू करना चाहिए। शुरू में उन्हें जल्दी तैयार होने वाली नस्ल पालनी चाहिए। एक बार जब मुनाफ़ा होने लगे तो व्यवसाय का विस्तार करें और दूसरी नस्ल पालें।

यहां देखें मुर्गीपालक खलील अहमद से बातचीत का पूरा वीडियो: 

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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