जिसमें कुछ करने का जज़्बा हो उसके लिए उम्र कोई मायने नहीं रखती। अलाप्पुझा ज़िले के 70 वर्षीय किसान सी. भास्करन ने इस उम्र में एकीकृत कृषि प्रणाली को अपनाकर सफलता की मिसाल पेश की है। वो खेती से लेकर मछली पालन और मुर्गी पालन तक, हर काम में नई तकनीक का इस्तेमाल करके सिर्फ़ 1.5 एकड़ ज़मीन से ही अच्छा मुनाफ़ा कमा रहे हैं।
एकीकृत कृषि प्रणाली से मिली सफलता
केरल के अलाप्पुझा ज़िले में कृषि विज्ञान केंद्र कई साल से एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल को विकसित करने के लिए कार्यक्रम चला रहा है। बहुत से किसानों ने इसे अपनाकर अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार भी किया है। इन्हीं में से एक किसान हैं सी. भास्करन। खेती और इससे जुड़ी गतिविधियां ही उनकी आय का एकमात्र ज़रिया है। उनके पास 1.5 एकड़ भूमि है, जिसमें 10 फ़ीसदी क्षेत्र में साफ पानी का तालाब है। बाकि भूमि का इस्तेमाल वह फसल उगाने और पशुपालन के लिए करते हैं। 2007 से ही वह कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा लेते रहे हैं। इससे उन्हें नई-नई तकनीक की जानकारी मिलती रहती है।

मछली के बीज की बिक्री
सी. भास्करन अपने तालाब में वरल और तिलापिया मछली पालने लगें। फिर उन्हें एहसास हुआ की सजावटी मछलियों की बाज़ार एमीन काफ़ी मांग है। उसलिए उन्होंने गोल्ड फिश, रेड तिलापिया, गोवर्मी जैसी सजावटी ममछलियां भी पालनी शुरू कर दी। मछलियों के बड़ा होने के बाद बेचने के बजाय वह मछलियों के बीज बेचने लगे। इसके लिए तालाब का आकार भी बढ़ा किया। वह हर दिन 100-200 मछलियों के बीज बेचकर 200 रुपये प्रतिदिन का कमाते हैं।

धान की खेती का रकबा बढ़ाया
दो एकड़ क्षेत्र में वो धान की खेती भी करते हैं। इसके लिए उन्होंने एक एकड़ ज़मीन लीज़ पर ली हुई है। उन्हें साल में धान की दो फसल प्राप्त होती है। गर्मियों में वो तिल की खेती भी करते हैं। हर साल वह करीब 100 क्विंटल धान और 4 क्विंटल तिल की फसल काटते हैं। धान से उन्हें सालाना 50 हज़ार रुपये की आमदनी प्राप्त होती है। तिल को 350 रुपये प्रति किलो की दर से बेचते हैं। नारियल की खेती से जहां उन्हें पहले सालाना 700 नारियल ही प्राप्त होते थे, अब उसकी संख्या 1200 हो गई है। इस तरह से नारियल की खेती से उन्हें करीब 18 हज़ार रुपये की आमदनी होती हैं। उन्हें नारियल की खेती में लगभग 6240 रुपये की लागत आती है।

डेयरी से आमदनी
भास्करन ने छोटे स्तर पर डेयरी व्यवसाय की शुरुआत भी की है। भास्करन ने अपनी डेयरी में गाय की स्थानीय नस्ल वेचुर और कबीला पाली हुई हैं। वह इन्हें चारे के रूप में खेत से प्राप्त फसलों के अवशेष खिलाते हैं। इस तरह पशुओं के चारे पर अलग से कुछ खर्च नहीं होता। डेयरी से उन्हें हर दिन 2 से 3 लीटर दूध मिलता है। इसमें से एक लीटर दूध वो 60 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से बेचते हैं। बाकी दूध घर के इस्तेमाल के लिए रख देते हैं। इसके अलावा उन्होंने बतख, मुर्गीपालन और सजावटी पक्षियों की भी इकाई स्थापित की है।

एकीकृत कृषि प्रणाली अपनाने से पहले उन्हें सालाना सिर्फ़ करीबन 24,680 रुपये का ही लाभ होता था, लेकिन अब उन्हें सालाना करीब 1,78,000 रुपये का मुनाफ़ा हो रहा है। एकीकृत कृषि प्रणाली को अपनाकर उनकी सालाना आमदनी लगभग 3.72 लाख रुपये पहुंच गई है। भास्करन खुद एक सफल किसान बन ही चुके हैं और अब दूसरे युवा किसानों को भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
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