Millets Farming: मोटे अनाज की खेती के ज़रिये करें जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का मुक़ाबला
बाजरा, मक्का, रागी, कोदों, जौ और ज्वार आदि मोटे अनाजों पर जलवायु परिवर्तन का कम असर होता है
हरित क्रान्ति के तहत जैसे-जैसे गेहूँ और धान की पैदावार बढ़ी वैसे-वैसे भारतीय थालियों से पौष्टिक मोटे अनाजों से बने व्यंजन और इसकी प्रति व्यक्ति खपत घटती चली गयी। आम तौर पर धान के मुक़ाबले मोटे अनाजों की पैदावार कम है। लेकिन देश के कुछ ज़िलों में वर्षा आधारित मोटे अनाजों की खेती की उपज धान से बेहतर है। इसीलिए जलवायु अनुकूलन और अनाज उत्पादन बढ़ाने के लिए मोटे अनाज की खेती आज के वक़्त की मांग है।
बाढ़ और सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं की मार तो किसान सदियों से झेलते आये हैं। हालाँकि, पहले इनका असर क्षेत्रीय स्तर पर ज़्यादा दिखता था, लेकिन बीती आधी सदी से जलवायु परिवर्तन का असर इतना व्यापक दिख रहा है कि देश का हरेक किसान, सभी फ़सल-चक्र, पैदावार और खाद्य सुरक्षा प्रभावित हो रही है। इसीलिए कृषि वैज्ञानिकों की सलाह है कि जलवायु परिवर्तन से बचाव के लिए जहाँ किसान, परम्परागत धान और गेहूँ की खेती की जगह मोटे अनाज की खेती को अपनाएँ, वहीं जनता भी अपनी थाली में मोटे अनाज को ज़्यादा अहमियत दे।
मोटे अनाज की खेती
मोटे अनाज को वैकल्पिक अनाज भी कहा गया है। गेहूँ-धान को छोड़कर बाक़ी अन्न को परम्परागत तौर पर मोटा अनाज कहते हैं जैसे बाजरा, मक्का, रागी, कोदों, जौ और ज्वार आदि। रबी में उगने वाली फ़सल मक्का और जौ को छोड़कर ज़्यादातर मोटे अनाज बारिश पर निर्भर रहने वाली ख़रीफ़ की फ़सलें हैं। परम्परागत तौर पर देश में इनकी पैदावार वर्षा आधारित ही है। मोटे अनाज, पौष्टिकता से भरपूर होते हैं। इनकी फ़सलों में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को बर्दाश्त करने की उच्च क्षमता होती है। इसीलिए खेती की प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मोटे अनाज की पैदावार में गिरावट बहुत कम होती है।
पटना स्थित ICAR पूसा के पूर्वी अनुसन्धान परिसर के विशेषज्ञों के अनुसार, आम तौर पर धान की तुलना में मोटे अनाजों की पैदावार कम होती है। हालाँकि, देश के कुछ ज़िलों में वर्षा आधारित खेती में धान के मुक़ाबले मोटे अनाजों का प्रदर्शन बेहतर रहता है। मसलन, मध्य भारत में बाजरा और ज्वार तथा देश के अनेक इलाकों में मक्का। इसका मतलब है कि जलवायु अनुकूलन और अनाज उत्पादन बढ़ाने के लिए मोटे अनाजों का फ़सल क्षेत्र बढ़ाना ज़रूरी है।
मोटे अनाज पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं, लेकिन हरित क्रान्ति के तहत जैसे-जैसे गेहूँ और धान की पैदावार बढ़ी वैसे-वैसे भारतीय थालियों से मोटे अनाज से बने व्यंजन घटते चले गये। यही वजह है कि देश में प्रति व्यक्ति मोटे अनाज की खपत में दिनों-दिन गिरावट आती गयी। वो बात अलग है कि हाल के वर्षों में डॉक्टर और पोषण विशेषज्ञों की ओर से लोगों को ख़ूब समझाया जाता है कि उत्तम सेहत और कुपोषण से बचाव में मोटे अनाजों की भूमिका बेजोड़ है।
मोटे अनाज की विशेषताएँ
रागी: ये कैल्शियम, आयरन, प्रोटीन, रेशा आदि विभिन्न खनिजों का उत्कृष्ट स्रोत है। इसीलिए इसका औषधीय उपयोग भी होता है। ये डायबिटीज पीड़ितों के लिए फ़ायदेमन्द है। प्रति 100 ग्राम रागी में 3.9 मिलीग्राम आयरन और 344 मिलीग्राम कैल्शियम पाया जाता है। आयरन की ऐसी उपलब्धता बाजरे को छोड़ अन्य अनाजों से ज़्यादा है।
बाजरा: बाजरे में 11 से 12 प्रतिशत प्रोटीन, 5 प्रतिशत वसा, 67 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 2.7 प्रतिशत खनिज लवण, 8 प्रतिशत आयरन और 132 माइक्रो ग्राम कैरोटिन होता है। इसके सेवन को आँखों की सुरक्षा के लिए बेहद उपयोगी पाया गया है। देश के कुछ इलाकों में बाजरे का उपयोग चारे के रूप में भी किया जाता है। इसमें विटामिन ‘बी’ के अलावा पोटेशियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, आयरन, ज़िंक, कॉपर और मैंगनीज़ जैसे खनिज तत्वों की भरपूर मात्रा पायी जाती है। इसीलिए पोषण क्षमता के लिहाज़ से बाजरे का स्थान चावल और गेहूँ से बेहतर पाया गया है।

ज्वार: फाइबर या रेशों से भरपूर ज्वार दुनिया भर में उगाया जाने वाला 5वाँ सबसे महत्वपूर्ण अनाज है। यह वजन कम करने और क़ब्ज़ को दूर करके पाचन क्रिया को दुरुस्त करने के लिए बढ़िया विकल्प है। इसमें मौजूद कैल्शियम हड्डियों को मज़बूती प्रदान करते हैं, जबकि कॉपर और आयरन शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या बढ़ाने और ख़ून की कमी दूर करने में सहायक होते हैं। महिलाओं के लिए गर्भावस्था और प्रसव के बाद के दिनों के लिए ज्वार के सेवन को बेहद फ़ायदेमन्द पाया गया है।
मक्का: ये मोटा अनाज, विटामिन ‘ए’, फोलिक एसिड और कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होता है। यह दिल के मरीज़ों के लिए काफ़ी फ़ायदेमन्द होता है। इसमें अनेक कैंसर प्रतिरोधी एंटीऑक्सीडेंट पाये जाते हैं। पके हुए मक्के में एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा 50 प्रतिशत तक अधिक होती है। यह ख़राब कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करता है। गर्भवती महिलाओं को अपने आहार में मक्का को ज़रूर शामिल करना चाहिए। यह ख़ून की कमी दूर करके गर्भस्थ शिशु को स्वस्थ रखता है। हालाँकि वजन कम करने की कोशिश में लगे लोगों को इससे परहेज़ करना चाहिए, क्योंकि मक्के का सेवन वजन बढ़ाने में सहायक होता है।
कोदों: इसे प्राचीन अन्न माना गया है। इसमें कुछ मात्रा में वसा तथा प्रोटीन भी पाया जाता है। कोदों का ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है इसीलिए मधुमेह के रोगियों को भात की जगह कोदों के सेवन की सलाह दी जाती है। इसकी खेती मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल इलाकों में होती है।
जौ: बिहार के असिंचित इलाकों में जौ की खेती मुख्य रूप से की जाती है। जौ में किसी भी अनाजों की अपेक्षा सबसे ज़्यादा अल्कोहल पाया जाता है। इसमें रेशा, एंटीऑक्सीडेंट एवं मैग्नीशियम अच्छी मात्रा में पाया जाता है। जौ का सेवन उन लोगों के लिए बहुत लाभदायक है जो हाई ब्लड प्रेशर से प्रभावित रहते हैं। जौ के सेवन से बढ़े हुए कोलेस्ट्रॉल को कम करने में भी मदद मिलती है।
ये भी पढ़ें- Barley Farming: अनाज, चारा और बढ़िया कमाई एक साथ पाने के लिए करें जौ की उन्नत और व्यावसायिक खेती
प्रति 100 ग्राम मोटे अनाज में पोषक तत्वों की मात्रा | ||||||
अनाज | प्रोटीन
(ग्राम) |
वसा
(ग्राम) |
कार्बोहाइड्रेट
(ग्राम) |
ऊर्जा
(किलो कैलोरी) |
कैल्शियम
(ग्राम) |
आयरन
(मिलीग्राम) |
बाजरा | 11.8 | 4.8 | 67 | 361 | 42 | 11 |
ज्वार | 10.4 | 3.1 | 70.7 | 349 | 25 | 5.4 |
मक्का | 9.2 | 4.6 | 73 | 342 | 26 | 2.7 |
रागी | 7.7 | 1.5 | 72.6 | 328 | 35 | 3.9 |
कोदों | 9.8 | 3.6 | 66.6 | 353 | 35 | 1.7 |
जौ | 12.5 | 2.3 | 73.5 | 354 | 33 | 3.6 |
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या kisanofindia.mail@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- जैविक तरीके से मोटे अनाज सांवा की खेती असिंचित इलाकों के लिए कैसे है फ़ायदेमंद?सांवा भी मोटे अनाजों में से एक है जो कभी गरीबों का मुख्य भोजन हुआ करता था, लेकिन अब आम लोगों की थाली से दूर हो चुका है। सरकार बाकी अनाजों की तरह ही सांवा की खेती को भी बढ़ावा दे रही है, क्योंकि ये पौष्टिक तत्वों से भरपूर होता है और बिना सिंचाई वाले इलाकों में भी इसे आसानी से उगाया जा सकता है।
- Certified Seed Production: प्रमाणित बीज उत्पादन से गुणवत्ता भी अच्छी और उत्पादन भी बेहतरआपने वो कहावत तो सुनी ही होगी ‘जैसा बोओगे, वैसा ही काटोगे।’ खेती के संदर्भ में ये बाद बिल्कुल सटीक बैठती है। क्योंकि आप जैसा बीज बोएंगे वैसी ही फसल प्राप्त होगी, इसलिए अच्छी गुणवत्ता वाले बीज का होना बहुत ज़रूरी है। बीज उत्पादन बेहतर होगा तो फसल अच्छी होगी।
- ग्वार गम के निर्यात से कैसे किसानों को हो सकता है लाभ, जानिए ग्वार की खेती की तकनीकबाज़ार में बाकी सब्ज़ियों के साथ ही आपने ग्वार फली भी देखी होगी। इसका स्वाद हल्का सा कसैला या कड़वा होता है, जिसकी वजह से बहुत से लोगों को इसका स्वाद पसंद नहीं आता। दलहनी फसल ग्वार की खेती, चारा, सब्ज़ी के साथ ही ग्वार गम बनाने के लिए भी की जाती है।
- खेसारी की फसल को क्यों कहा जाता है किसानों की ‘बीमा फसल?’ जानिए ख़ासियतखेसारी दलहनी फसल है। उतेरा विधि द्वारा खेसारी की खेती किसानों के लिए फ़ायदेमंद साबित हो सकती है और इससे खेत में नाइट्रोजन स्थिरिकरण में भी मदद मिलेगी।
- किसान से बातें करती हैं फसलें… क्या आपने सुना है?फसल न सिर्फ़ बातें करती हैं बल्कि वो आपकी बातों का जवाब भी देती हैं। वो बात अलग है कि हमें उनकी आवाज़ सुनाई नहीं देती। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण है। दरअसल, पौधों की आवाज़ हमारी सुनने की शक्ति से कहीं ज़्यादा तेज़ होती है। इसलिए हम उनकी आवाज़ सुन नहीं पाते हैं, लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि हम पौधों की बातों को नज़रअंदाज़ कर दें।
- पॉलीहाउस फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं जड़-गांठ सूत्रकृमि, जानिए बचाव के तरीकेसूत्रकृमि कई तरह के होते हैं और ये बहुत सी फसलों को रोगग्रस्त करके नुकसान पहुंचाते हैं। पॉलीहाउस की फसलें भी इससे अछूती नहीं है। सूत्रकृमि के साथ समस्या ये है कि किसान जल्दी इसकी पहचान नहीं कर पाते जिससे जड़-गांठ सूत्रकृमि की रोकथाम मुश्किल हो जाती है।
- मूंगफली की फसल के अच्छे उत्पादन के लिए ज़रूरी है समेकित कीट प्रबंधनभारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मूंगफली उत्पादक देश है, लेकिन हर साल कीटों की वजह से फसलों को भारी नुकसान पहुंचता है और किसानों का मुनाफ़ा कम हो जाता है। ऐसे में समेकित कीट प्रबंधन से फसलों के नुकसान को रोका जा सकता है।
- Sheep Rearing: भेड़ पालन से अच्छी आमदनी के लिए भेड़ों को दें पौष्टिक आहारशुष्क, पहाड़ी और रेगिस्तानी इलाकों में जहां लोगों के पास खेती योग्य ज़मीन नहीं है या बहुत कम है, वो भेड़ पालन से अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन भेड़ पालन से मुनाफ़ा कमाने के लिए भेड़ों के आहार पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है।
- ट्री सर्जरी से पेड़ों को मिल रहा जीवनदान, जानिए कैसे की जाती है शल्य चिकित्सा यानि सर्जरी?सर्जरी के बारे में तो आप सभी ने सुना ही होगा, लेकिन क्या कभी ट्री सर्जरी यानी पेड़ों की सर्जरी के बारे में सुना है? जी हां, इंसानों की तरह ही पेड़ों की भी सर्जरी करके उसे जीवनदान दिया जा सकता है।
- Canola Oil: कनोला सरसों की किस्म की खेती में क्या है ख़ास? जानिए इसकी पोषक गुणवत्तासरसों या राई की कई किस्में होती हैं, इसी में से एक किस्म है कनोला सरसों जो सेहत के लिहाज़ से बहुत लाभदायक मानी जाती है। इसका तेल अन्य तेलों के मुकाबले कहीं ज़्यादा हेल्दी होता है।
- क्यों बाकला की खेती है किसानों के लिए अच्छा विकल्प? जानिए इसके बारे में सब कुछबाकला प्रमुख दलहनी सब्ज़ी है। बाकला की खेती आमतौर पर रबी के मौसम में की जाती है। ये पौष्टिक तत्वों से भरपूर होती है, इसलिए इसकी खेती किसानों के लिए आमदनी बढ़ाने का अच्छा विकल्प हो सकती है।
- क्या हैं लघु धान्य फसलें? कैसे ग्लोबल वार्मिंग के खेती पर पड़ते असर को कम कर सकती हैं ये फसलें?लघु धान्य फसले मोटे अनाज को कहते हैं जिसमें ज्वारा, बाजरा, रागी, कोदो, कुटकी जैसी फसलें आती हैं। ये अनाज न सिर्फ़ पौष्टिक होते हैं, बल्कि मिट्टी और पर्यावरण के लिए भी बहुत उपयोगी है।
- लखनवी सौंफ की खेती से जुड़ी अहम बातें, स्वाद और सेहत का खज़ाना है ये सौंफलखनवी कबाब और चिकनकारी के बारे में तो सुना ही होगा, जो बहुत लोकप्रिय है, लेकिन क्या आपको पता है कि इन सबकी तरह ही लखनवी सौंफ भी बहुत मशहूर है अपने स्वाद और सुगंध के लिए।
- Brown Rice: कैसे सेहत का खज़ाना है भूरा चावल? क्यों भूरे चावल के उत्पादन पर दिया जा रहा है ज़ोर?भूरा चावल जिसे ब्राउन राइस भी कहा जाता है कि खेती भारत, थाइलैंड और बांग्लादेश जैसे एशियाई देशों में की जाती है। पिछले कुछ सालों में सेहत के प्रति सचेत लोगों के बीच इसकी मांग बहुत बढ़ी है, क्योंकि इसे सफेद चावल की बजाय हेल्दी माना जाता है।
- Papaya Products: पपीते से जैम और चेरी बनाकर किसान कर सकते हैं अच्छी कमाईभारत में ढेर सारी बागवानी फसलों की खेती की जाती है, इसमें से एक महत्वपूर्ण फसल है पपीता। पपीते की खेती से किसानों को अधिक आमदनी हो इसके लिए विशेषज्ञ पीपते के मूल्य संवर्धन उत्पादन बनाने की सलाह देते हैं।
- संतुलित आहार से बढ़ेगी दूध की गुणवत्ता, इसके लिए ICAR ने विकसित किया फ़ीड पूरकडेयरी उद्योग में दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए पशुओं की सेहत का ख्याल रखने के साथ ही उनके आहार का विशेष ध्यान रखना ज़रूरी है, क्योंकि ये न सिर्फ़ दूध की मात्रा, बल्कि दूध की गुणवत्ता भी निर्धारित करता है।
- Carp Fish: पूरक आहार से बढ़ेगा कार्प मछलियों का उत्पादन, जानिए इसे खिलाने का सही तरीकाकार्प मछलियां दूसरी मछलियों की तुलना में तेज़ी से बढ़ती हैं। ऐसे में अगर उन्हें पूरक आहार यानी सप्लीमेंट्री फ़ूड दिया जाए तो और तेज़ी से वृद्धि कर सकती हैं और जिससे किसानों की लागत कम और मुनाफ़ा अधिक होगा।
- कैसे करें औषधीय गुणों से भरपूर कासनी की खेती? क्यों कहा जाता है इसे प्रकृति का वरदान?हमारे देश में औषधीय गुणों से भरपूर वनस्पतियों की भरमार है, इन्हीं में से एक वनस्पति है कासनी, जो हरे चारे के साथ ही औषधि बनाने में भी इस्तेमाल की जाती है। किसानों के लिए कासनी की खेती फ़ायदेमंद साबित हो सकती है।
- Millets Products: कैसे बेटी की बीमारी ने मिलेट्स प्रॉडक्ट्स बनाने में दिखाई राह? GEGGLE की कहानी एक मां की ज़ुबानीइन दिनों हर कोई मिलेट्स प्रॉडक्ट्स को बढ़ावा देने में जुटा हुआ है। मिलेट्स प्रॉडक्ट्स को लोग हाथों हाथ ले रहे हैं। मिलेट्स प्रोडक्ट बनाने वाली एक ऐसी ही कंपनी है GEGGLE.
- Millets Products: कैसे मिलेट्स प्रॉडक्ट्स की ट्रेनिंग दे रहा कृषि विज्ञान केन्द्र? डॉ. रश्मि लिंबू से बातचीतमिलेट्स यानी तरह-तरह के मोटे अनाजों की पौष्टिकता के बारे में कृषि विज्ञान केन्द्र लोगों में जागरुकता फैला रहे हैं। साथ ही मिलेट्स प्रॉडक्ट्स से जुड़ी Millets Products Processing की ट्रेनिंग भी दे रहे हैं। इसके बारे में हमने जाना डॉक्टर रश्मि लिंबू से।