Intercropping Farming: अरहर के साथ हल्दी की खेती करके पाएँ दोहरी कमाई

अन्तर-वर्ती या सहफसली खेती या Intercropping Farming, एक ऐसी वैज्ञानिक तकनीक है, जिसे किसानों की आमदनी बढ़ाने में बेहद कारगर पाया गया है। इस सिलसिले में कृषि विशेषज्ञों की ओर से अरहर के साथ हल्दी या अरहर के साथ अदरक या सहजन के साथ हल्दी या पपीते के साथ अदरक और हल्दी की अन्तर-वर्ती खेती करने की सिफ़ारिश की गयी है।

Intercropping Farming: अरहर के साथ हल्दी की खेती

देश की तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या की वजह से खेती की ज़मीन पर प्रति इकाई ज़्यादा से ज़्यादा पैदावार लेने का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। उधर, जलवायु परिवर्तन की वजह से बारिश की अनिश्चितता में भी ख़ासा बदलाव देखा जा रहा है। ऐसी चुनौतियों से निपटने में अन्तर-वर्ती खेती (Intercropping Farming) को बेहद उपयोगी माना जाता है। देश के अरहर उत्पादक इलाकों में अक्सर किसान धान के खेतों की मेड़ों पर अरहर लगाते हैं। इससे पैदावार कम मिलती है। लेकिन यदि अरहर के साथ हल्दी की खेती (Turmeric Farming) की जाए तो किसानों की दोहरी कमाई हो सकती है।

अन्तर-वर्ती खेती या Intercropping Farming, एक ऐसी वैज्ञानिक तकनीक है, जिसे किसानों की आमदनी बढ़ाने में बेहद कारगर पाया गया है। इस सिलसिले में कृषि विशेषज्ञों की ओर से अरहर के साथ हल्दी या अरहर के साथ अदरक या सहजन के साथ हल्दी या पपीते के साथ अदरक और हल्दी की अन्तर-वर्ती खेती करने की सिफ़ारिश की जाती है। इस आधुनिक तकनीक से किसान, खेती के जोख़िम को कम करने के अलावा अपनी कमाई भी बढ़ा सकते हैं।

छाया में भी पनपती है हल्दी की फसल

दरअसल, हल्दी की खेती छायादार माहौल में भी आसानी से की जा सकती है। हल्दी एक लोकप्रिय औषधीय और मसाला वाली फसल है। इसीलिए इसका बाज़ार में बढ़िया भाव मिलता है। अन्तर-वर्ती फसल के रूप में अरहर के साथ हल्दी की खेती करने से दोनों महँगी फसलों से कमाई होती है। अरहर की खेती को फसल चक्र में शामिल करने से मिट्टी की उपजाऊपन बरकरार रहता है, क्योंकि दलहनी फसलों की जड़ें वायुमंडल से सीधे नाइट्रोजन सोखकर ज़मीन को प्राकृतिक उर्वरा प्रदान करती हैं।

अरहर की खेती (Pigeon Pea Cultivation) के लिहाज़ से मध्य प्रदेश देश का अग्रणी राज्य है। वहाँ अरहर की खेती की औसत पैदावार 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। लेकिन कृषि विज्ञान केन्द्र, सिवनी के वैज्ञानिकों ने अपने प्रशिक्षण अभियान के तहत किसानों को अरहर के साथ हल्दी की अन्तर-वर्ती खेती करने की उन्नत तकनीकें सिखायीं। ताकि अरहर के साथ हल्दी की अन्तर-वर्ती या सहफसली खेती करके किसान 16-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।

अरहर और हल्दी की उन्नत किस्में

फसल किस्म फसल अवधि विशेषताएँ
अरहर ट्रॉम्बे जवाहर तुअर (TJT) 501 145-150

दिन

असीमित वृद्धि वाली, दानों का रंग लाल, अच्छी उत्पादन क्षमता और उकठा रोगरोधी
हल्दी सुरोमा 200-210

दिन

अधिक पैदावार, बेलनाकार, नारंगी पीला गूदा, 9.3% कुरकुमिन तथा 4.4% तेल

 

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अरहर की पौध तैयार करना

6×4 इंच के पॉलीथीन पैकेट में नीचे 3-4 छेद करके 1 भाग मिट्टी, 1 भाग रेत और 1 भाग गोबर की सड़ी खाद का मिश्रण भरने के बाद हरेक में एक-एक बीज बोना चाहिए। इससे 30 दिनों में ऐसे पौधे तैयार हो जाते हैं जिनकी खेतों में रोपाई की जाती है।

खाद एवं उर्वरक

अरहर के साथ हल्दी फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए बुआई के समय उचित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। कृषि विशेषज्ञों की सलाह है कि प्रति हेक्टेयर 200 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद, 80 किलोग्राम यूरिया, 300 किग्रा सिंगल सुपर फॉस्फेट, 70 किग्रा म्यूरेट ऑफ पोटाश, 25 किग्रा ज़िंक सल्फेट और 250 किग्रा नीम की खली का इस्तेमाल करना बेहद उपयोगी साबित होता है।

बुआई और रोपाई का समय (Intercropping Farming Method)

एक मीटर की उभरी हुई क्यारी पर ड्रिप की दो पंक्तियों में हल्दी की बुआई करते हैं। हल्दी के पौधों के लिए कतार से कतार और पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। जबकि अरहर की 30 दिनों में विकसित पौधों की रोपाई के लिए कतार से कतार और पौधे से पौधे में 2 मीटर की दूरी होनी चाहिए।

बीज दर और बीजों का उपचार

हल्दी की बुआई के लिए इसके स्वस्थ प्रकन्दों का इस्तेमाल करना चाहिए। इन प्रकन्दों को डाइथेन M-45 के 3 प्रतिशत (10 लीटर पानी में 30 ग्राम) वाले घोल में एक घंटे तक भिगाकर रखना चाहिए। फिर उपचारित प्रकन्दों को छायादार स्थान में सुखाकर बुआई के लिए इस्तेमाल करना चाहिए। अरहर के फसल के लिए 2 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर की ज़रूरत पड़ेगी। बुआई के पहले अरहर के बीजों के उपचार के लिए वीटावैक्स पॉवर 2 ग्राम, राइजोबियम कल्चर 10 ग्राम और ट्राइकोडर्मा 5 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

अरहर की शीर्ष कलिकाओं को तोड़ना

पौधों की रोपाई के 20-25 दिनों बाद अरहर की शीर्ष कलिकाओं को तोड़ देना चाहिए और इसके 20-25 दिन बाद  शीर्ष कलिकाओं को तोड़ने अच्छी पैदावार मिलती है।

अरहर और हल्दी की अन्तर-वर्ती और परम्परागत खेती में तुलना
मद हल्दी अरहर की रोपण तकनीक (SPI) परम्परागत अरहर उत्पादन तकनीक
बुआई तकनीक उभरी हुई क्यारी पर बुआई पौध तैयार करके उभरी हुई क्यारी पर रोपाई कतारों में सीधी बुआई
किस्म सुरोमा TJT-501 आशा
उत्पादन (क्विंटल/हेक्टेयर) 243 19.05 12.08
लागत-लाभ अनुपात 2.89 2.73 2.38
आदान (input cost) की बचत अन्तर-वर्ती फसल लेने से आदान लागत में बचत बीज की मात्रा 2 किग्रा/ हेक्टेयर लगाने से 18 किग्रा बीज/ हेक्टेयर की बचत, समय से बुआई करने पर फसल में फलीछेदक कीट एवं पाले का असर नहीं बीज की मात्रा 20 किग्रा/ हेक्टेयर, वर्षा की स्थिति में देर से बुआई करने पर फसल में फलीछेदक कीट का प्रकोप एवं पाले से फसल प्रभावित होने का ख़तरा
फसल उभरी क्यारी पर फसल लगाने से उत्पादन अच्छा 30 दिनों के पौधों की रोपाई उभरी क्यारी पर करने से ज़्यादा वर्षा की दशा में भी फसल प्रभावित नहीं होती ज़्यादा वर्षा की स्थिति में 40-50 प्रतिशत पौधे खराब हो जाते हैं
निष्कर्ष आय में बढ़ोतरी उत्पादन में वृद्धि और बीज की बचत उत्पादन में कमी

Intercropping Farming: अरहर के साथ हल्दी की खेती करके पाएँ दोहरी कमाईसम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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