एक महिला के लिए अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ना आसान नहीं होता और वो भी तब जब वो रूढ़िवादी सोच से लड़ रही हो। नीलिमा चतुर्वेदी अपने कोरिया ज़िले में बदलाव की ऐसी बयार लेकर आईं कि काफ़िला बनता चला गया।
ऐ ज़िंदगी हर मोड़ पर तू बेशक मेरा इम्तिहान ले, वादा है तुझसे हर बार सिर बुलंद कर उसका सामना करूंगी… आज हम आपको एक ऐसी ही महिला के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने विषम परिस्थितियों से लड़ते हुए एक सफ़ल उद्यमी का मुकाम हासिल किया है। साथ ही अपने क्षेत्र की महिलाओं के उत्थान के लिए भी काम किया है। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला (International Trade Fair) में किसान ऑफ़ इंडिया की मुलाकात नीलिमा चतुर्वेदी से हुई। नीलिमा ने कैसे रूढ़िवादी सोच से लड़ते हुए महिला सशक्तिकरण की नींव रखी, अपने पूरे सफ़र के बारे में उन्होंने हमें बताया।
हालातों से लड़कर डटकर किया सामना
छत्तीसगढ़ के कोरिया ज़िले की रहने वाली नीलिमा चतुर्वेदी ने 2001 में अपने पहले स्वयं सहायता समूह का गठन किया। उनके लिए ये आसान नहीं था। लोगों के ताने सुने, दहलीज़ से धक्के मारकर निकाला गया, लेकिन उन्होंने दृढ़ संकल्प के साथ अपने सपनों को हकीकत में तब्दील करने का प्रण कर रखा था। नीलिमा कई विधवाओं, घर छोड़ने को मजबूर और गरीब महिलाओं की ज़िंदगी में उम्मीद की किरण बनकर आईं।
14 साल की उम्र में कर दी गई शादी
नीलिमा की शादी 14 साल की उम्र में ही कर दी गई। उस वक़्त वो 8 वीं क्लास में पढ़ती थीं। नीलिमा ने बताया कि उनके पिता ग्रामीण क्षेत्र में स्वास्थ्य कार्यकर्ता थे। अक्सर बाहर ही रहते थे। वो दो बहनें थीं। इसलिए उनकी शादी जल्दी कर दी गई। शादी के एक दो साल बाद उनके पति मानसिक बीमारी से ग्रस्त हो गए। 14 साल की छोटी उम्र में ससुराल की बागडोर संभालने लगीं। 10 साल तक ससुराल में रहीं। इस दौरान दो बेटियों को उन्होंने जन्म दिया। अब दो बेटियों की परवरिश की ज़िम्मेदारी उनके कंधों पर थी। उनकी माँ आंगनबाड़ी कार्यकर्ता थीं। उन्होंने नीलिमा को खुद के पैरों पर खड़े होने के लिए प्रेरित किया और आंगनबाड़ी में उनकी नौकरी लगवाई।

2001 में गठित किया पहला स्वयं सहायता समूह
उन्होंने जब 2001 में अपना पहला स्वंय सहायता समूह बनाया तो लोग उन्हें घर से हाथ पकड़कर बाहर निकाल देते थे। उन्हें और उनके परिवार को अपशब्द कहते थे। महिलाओं को बहलाने फुसलाने का आरोप समाज उन पर लगाता था। इन सब के बाद भी उन्होंने अपने भविष्य और अपनी बेटियों के लिए काम को प्राथमिकता दी और अपने कर्म पथ पर लग गईं। शुरू में 10 महिलायें उनके समूह से जुड़ीं। स्वर्ण जयंती स्वरोजगार योजना के तहत 25 हज़ार का लोन लिया। 8 हज़ार की बुनाई की मशीन, और 7 हज़ार का ऊन खरीदा। सिलाई-बुनाई का काम शुरू किया। छत्तीसगढ़ राज्य उत्सव में अपने सामान को लेकर वो और उनके समूह की महिलायें जाया करती थीं। जब उन्हें और उनके काम को पहचान मिलने लगी तो नीलिमा के गाँव के लोगों का विश्वास बढ़ा और लोग जुड़ने लगे। फिर नीलिमा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने 10 से 15 और 15 से 20 समूहों का गठन किया।
अब अकेले भरतपुर में कुल 900 समूह हैं और पूरे कोरिया ज़िले में हज़ारों में इसकी संख्या है। उन्होंने अपने कारोबार को विस्तार देते हुए किसानों से उनकी उपज खरीदना शुरू किया। फिर समूहों की महिलायें प्रोसेस के काम में लग जातीं और बाज़ार में खुद जा-जाकर बेचतीं। आवजाही में सुविधा के लिए एक पिक-अप गाड़ी खरीदी।

तत्कालीन कलेक्टर ऋतु सैन ने दिया पूरा सहयोग
जब नीलिमा स्वयं सहायता समूह से महिलाओं को जोड़ने के कठिन काम में लगीं थीं, तो उनके प्रयासों को देखते हुए शासन ने भी मदद का हाथ बढ़ाया। 2010 में कोरिया ज़िले के कलेक्टर की कमान संभालने वाली IAS अधिकारी ऋतु सैन (Ritu Sain IAS) ने महिलाओं को पूरा सहयोग दिया। नीलिमा बताती हैं कि ऋतु सैन उनके लिए किसी फ़रिश्ते की तरह आईं। ऋतु सैन ने स्वच्छ कोरिया और स्वस्थ कोरिया, साक्षर और समृद्ध कोरिया के मिशन पर काम किया। नीलिमा बताती हैं कि कलेक्टर ऋतु सैन ने कोरिया ज़िले की 15 हज़ार स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को मोती की तरह एक माला में पिरोकर ‘कोरिया महिला गृह उद्योग’ संगठन का गठन किया। नीलिमा को इस संगठन के अध्यक्ष पद पर की बागडोर दी गई।

संगठन की महिलाएं एक-दूसरे की ताकत
आज उनके संगठन से हज़ारों की संख्या में महिलायें जुड़ी हैं। नीलिमा चतुर्वेदी के एक कदम ने उनके क्षेत्र की महिलाओं को अपने पैरों पर खड़े होने का अवसर दिया। कई विधवा, तलाकशुदा, गरीब और आदिवासी महिलायें उनके संगठन से जुड़कर सशक्त हुईं। नीलिमा बताती हैं कि संगठन की सारी महिलायें एक-दूसरे की ताकत हैं।
हर अच्छे-बुरे वक़्त में एक-दूसरे के साथ खड़ी रहती हैं। नीलिमा कहती हैं कि कोरिया ज़िले की जो महिलायें पहले अपनी आजीविका के लिए किसी और पर निर्भर थीं, आज वो अपने पैरों पर खड़ी हैं और घर चलाने में बराबर की भागीदार हैं।

किस तरह से किसानों से जुड़ी हैं नीलिमा?
आज उनके प्रॉडक्ट्स ‘कोरिया’ ब्रांड से बाज़ार में बिकते हैं। धान, गेंहू, चना, उड़द, अलसी, आलू, राई, सरसों, मक्का सहित कई फसलें किसानों से खरीदते हैं। कोरिया हल्दी, कोरिया अचार, कोरिया मसाला, कोरिया बड़ी, पापड़, मिर्च पाउडर, जीरा पाउडर, मुरमुरा, आटा, बेसन हर तरह के प्रॉडक्ट्स ‘कोरिया’ ब्रांड के तले बनते हैं। साथ ही वर्मी कंपोस्ट भी तैयार करते हैं।

कई पुरस्कारों से सम्मानित
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा ‘मिनी माता सम्मान’, स्मृति ईरानी द्वारा ‘महिला उद्यमिता सम्मान’, ‘वीरांगना सम्मान’, नीति आयोग द्वारा ‘वुमन ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया अवॉर्ड’ (Women Transforming India Award) से सम्मानित किया गया।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या kisanofindia.mail@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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