नारी साग की फसल 35-40 दिनों में तैयार, इन किसानों ने उन्नत किस्म का चुनाव कर 12 से 15 लाख रुपये की आमदनी की

वैज्ञानिकों ने विकसित की नारी साग की नयी किस्म

नारी साग की खेती (Nari Saag Farming) आमतौर पर जलभराव वाले इलाकों में की जाती है, लेकिन ICAR ने इसका ऐसा वैज्ञानिक खेती का तरीका ढूंढ़ लिया है, जिससे अपलैंड यानी ऊपरी इलाकों में भी इसे आसानी से उगाया जा सकता है और पौधे जल प्रदूषण से भी बचे रहेंगे।

नारी साग, जिसे वॉटर स्पिनच (Water Spinach), करमुआ का साग या पानी पालक भी कहते हैं, इसे सेहत का खज़ाना कहा जाए तो गलत नहीं होगा। इसकी पत्तियां मिनरल्स और विटामिन का बेहतरीन स्रोत है। इसके सेवन से खून की कमी दूर होती है। कोलेस्ट्रॉल और ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है और चूंकि इसमें फाइबर भरपूर मात्रा में होता है तो यह पाचन को भी दुरुस्त रखने में मदद करता है। यही वजह है कि बाज़ार में नारी साग की भारी मांग है। आमतौर पर यह सर्दियों में मिलती है, मगर अब नई तकनीक की बदौलत पूरे साल इसकी खेती की जा सकती है।

यह एक जलीय पौधा है इसलिए जलभराव वाले इलाकों में इसे उगाया जाता है, मगर इस तरह की खेती करने पर पौधों की सुरक्षा और कटाई थोड़ी मुश्किल हो जाती है। ऐसे में ICAR ने ऊंचाई पर यानी अपलैंड में इसकी खेती की वैज्ञानिक तकनीक विकसित की है।

नारी साग की फसल naari saag ki kheti
तस्वीर साभार- icar

नारी साग की फसल से किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार

ICAR-भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी ने नारी साग की अपलैंड फील्ड में वैज्ञानिक खेती की तकनीक विकसित है और इसके परिणाम भी उत्साहजनक रहे हैं। यह तकनीक बहुत आसान है और इससे किसान पूरे साल उत्पादन कर सकते हैं। इससे उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। उच्च भूमि में नारी साग की खेती के कई फ़ायदे हैं जैसे इसकी कई बार कटाई की जा सकती है। पूरे साल इसे उगाया जा सकता है और अपलैंड फील्ड में उगाने पर जलभराव होना ज़रूरी नहीं है। इस तरह से उगाय गए पौधे जल प्रदूषकों से मुक्त होते हैं और यह तकनीक सुरक्षित बायोमास भी प्रदान करती है। इसे बीज व वनस्पति दोनों तरीकों से उगाया जा सकता है। इतने फ़ायदे होने की वजह से ही नारी साग की ‘काशी मनु’ किस्म उत्पादकों के बीच लोकप्रिय हो रही है। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि नारी साग की खेती से न सिर्फ़ किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार होगा, बल्कि उन्हें पोषण सुरक्षा भी मिलेगी।

नारी साग की फसल naari saag ki kheti
तस्वीर साभार- icar

तकनीक का प्रभाव

नारी साग उगाने की वैज्ञानिक तकनीक का फ़ील्ड डेमोंस्ट्रेशन मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, पंजाब, बिहार, झारखंड और उत्तरप्रदेश के कई ज़िलों में किया गया। इसके अलावा, किचन गार्डन और टेरेस गार्डन के लिए भी 1000 से अधिक परिवारों को रोपण सामग्री दी गई। नारी साग की फसल लगाने के 35-40 दिनों बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है।

नारी साग की फसल naari saag ki kheti
तस्वीर साभार- icar

कितनी हुई आमदनी

कई प्रगतिशील किसानों ने इस तकनकी को अपनाया और उनकी आमदनी में इज़ाफा हुआ। वाराणसी के प्रताप नारायण मौर्य, मिर्जापुर के अखिलेश सिंह और जौनपुर के सुभाष के पाल जैसे कई प्रगतिशील किसानों ने व्यावसायिक स्तर पर नारी साग खेती की। प्रति हेक्टेयर 90-100 टन पत्तेदार बायोमास प्राप्त हुआ। प्रति हेक्टेयर नारी साग की औसतन लागत 1,40,000 से 1,50,000 रुपये तक आई और आमदनी 12 लाख से लेकर 15 लाख तक हुई। इस पत्तेदार बायोमास का औसत बाज़ार मूल्य 15-20 किलोग्राम के बीच पड़ता है।

ऐसे उत्साहजनक नतीजे देखने के बाद आसपास के गाँवों के दूसरे किसान भी नारी साग की खेती करने के लिए आगे आ रहे हैं, जिसकी वजह से अच्छी गुणवत्ता वाली रोपण सामग्री की मांग बढ़ी है। युवा किसान इसे उद्यम के रूप में अपनाने के लिए प्रेरित होगें। इसके अलावा, नारी साग का हरे चारे के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है और जैविक खेती के लिए भी यह अच्छा विकल्प है।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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