Soybean Farming: जानिए कैसे सोयाबीन की खेती में किया सल्फर का इस्तेमाल, चंद्रकला यादव को हुआ दोगुना फ़ायदा
चंद्रकला यादव ने लगाई सोयबीन की उन्नत किस्म
सोयाबीन की उन्नत किस्मों के साथ ही अगर मिट्टी की जांच के बाद ऊर्वरकों का इस्तेमाल किय जाए तो सोयाबीन की फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। सोयाबीन की फसल में सल्फर के उपयोग के बाद न सिर्फ़ उत्पादन में बढ़ोतरी हुई, बल्कि बीजों में तेल की मात्रा भी बढ़ी।
सोयाबीन खरीफ़ सीज़न की प्रमुख तिलहनी फ़सल है। सोयाबीन में प्रोटीन भरपूर मात्रा में होता है। इससे सोयावड़ी, दूध और पनीर बनाने के साथ ही तेल भी निकाला जाता है। इसलिए इसकी मांग हमेशा बनी रहती है।
भारत में करीब 12 मिलियन टन सोयाबीन का उत्पादन होता है। इसका सबसे ज़्यादा उत्पादन मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में होता है। कुल उत्पादन का 45 प्रतिशत अकेले मध्यप्रदेश में होता है, जबकि महाराष्ट्र में 40 प्रतिशत उत्पादन होता है। इसकी खेती के लिए गर्म और नम जलवायु होनी चाहिए। पौधों के अच्छे विकास के लिए तापमान 26-32 डिग्री होना चाहिए। दोमट मिट्टी में भी इसका उत्पादन अच्छा होता है, जल निकासी की भी उचित व्यवस्था होना ज़रूरी है। सोयाबीन की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए उर्वरकों का सही इस्तेमाल भी ज़रूरी है। देवास ज़िले की एक महिला किसान ने सल्फर का इस्तेमाल किया और इसके अच्छे परिणाम उन्हें मिले।
पोषक तत्व की भूमिका
मिट्टी की जांच के आधार पर सोयाबीन की फसल में उर्वरकों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। देवास ज़िले के कुलाला गांव की रहने वाली महिला किसान चंद्रकला यादव ने यही किया। उन्होंने सबसे पहले खेत की मिट्टी की जांच करवाई। उसके बाद सल्फर का इस्तेमाल किया। चंद्रकला यादव ने सोयाबीन की किस्म जेएस- 2034 पर द्वितीय पोषक तत्व सल्फर का प्रयोग किया।
फ़्रंट लाइन डेमोंस्ट्रेशन में सल्फर के इस्तेमाल से प्रति हेक्टेयर 20.78 क्विंटल फसल प्राप्त हुई, जबकि सामान्य तरीके से उत्पादन में 17.36 क्विंटल की फसल प्राप्त हुई। सोयाबीन में 40 प्रतिशत प्रोटीन और 20 प्रतिशत तेल होता है। हमारे देश में इसका सबसे अधिक उत्पादन मध्यप्रदेश में होता है, तभी तो इसे सोया स्टेट के नाम से जाना जाता है।
सल्फर से बढ़ा उत्पादन
सोयाबीन से ज़्यादा उत्पादन प्राप्त करने के लिए किसानों को मिट्टी की जांच के आधार पर मुख्य, द्वितीय और सूक्ष्म तत्वों के इस्तेमाल की सलाह दी गई। कृषि विज्ञान केन्द्र, देवास ने सोयाबीन की फसल में सल्फर के उपयोग के लिए फ्रंट लाइन डेमोंस्ट्रेशन की योजना बनाई। इसके तहत महिला किसान चंद्रकला यादव को ट्रेनिंग दी। साथ ही पोषक तत्वों की अहमियत भी समझाई। फिर उनके खेत की मिट्टी की जांच की गई, जिससे पता चला की उसमें सल्फर की कमी है। फिर फ्रन्ट लाइन डेमोंस्ट्रेशन के लिए उनके खेत का चुनाव किया गया और सल्फर का इस्तेमाल किया गया। इस बीच कृषि विज्ञान केन्द्र के अधिकारी समय-समय पर उनके खेत का दौरा करते और उन्हें ज़रूरी सलाह देते। सल्फर के इस्तेमाल से फसल में बढ़ोतरी देखी गई। परंपरागत खेती की तुलना में इससे 28.77 प्रतिशत अधिक उत्पादन प्राप्त हुआ। इतना ही नहीं, रिसर्च में ये भी सामने आया कि बुवाई के समय सल्फर के इस्तेमाल से दानों में तेल की मात्रा भी बढ़ी।
तिलहनी फसलों के लिए फ़ायदेमंद है सल्फर
चंद्रकला के खेत में 2018 में हुए फ्रंट लाइन डेमोंस्ट्रेशन में प्रति हेक्टेयर 20 किलो के हिसाब से सल्फर का इस्तेमाल किया गया। चंद्रकला सोयाबीन के साथ ही चना और गेहूं की भी खेती करती हैं। पहले वो सिर्फ़ नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का ही इस्तेमाल करती थीं, जिससे उत्पादन अच्छा नहीं होता था, लेकिन सल्फर के उपयोग के बाद उनके उत्पादन में अच्छा सुधार हुआ। इससे साबित होता है कि द्वितिय पोषक तत्वों का उत्पादन बढ़ाने में अहम भूमिका है।
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