मिलेट्स यानी तरह-तरह के मोटे अनाजों की पौष्टिकता के बारे में कृषि विज्ञान केन्द्र लोगों में जागरुकता फैला रहे हैं। साथ ही मिलेट्स प्रॉडक्ट्स से जुड़ी Millets Products Processing की ट्रेनिंग भी दे रहे हैं। इसके बारे में हमने जाना डॉक्टर रश्मि लिंबू से।
मिलेट्स (Millets) सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं, मगर हर किसी को इसका स्वाद नहीं भाता है। अब रागी (Ragi – Finger millet) को ही ले लीजिए, बहुत पौष्टिक है मगर बच्चों को इसकी रोटी नहीं भाती। हां, अगर इसके चिप्स या बिस्किट (Chips or Biscuits) मिल जाए, तो उसे बड़े चाव से खाते हैं।
यही वजह है कि कृषि विज्ञान केंद्र, पौड़ी, गढ़वाल न सिर्फ ग्रामीण महिलाओं को मिलेट्स के फायदे गिना रहा है, बल्कि मिलेट्स से कई तरह के मूल्य संवर्धन उत्पाद बनाना भी सिखा रहा है, ताकि ये महिलाएं आत्मनिर्भर बन सकें।
कृषि विज्ञान केंद्र की इस पहल के बारे में किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली ने बाद कि वैज्ञानिक डॉक्टर रश्मि लिंबू से।
महिलाओं को जागरुक करने का काम
डॉ. रश्मि लिंबू ने बताया कि उनका केंद्र ग्रामीण महिलाओं को न्यूट्रिशन एजुकेशन के तहत मिलेट्स यानी मोटे अनाज के फायदों के बारे में जानकारी दे रहा है। उन्हें बताया जा रहा है कि ये अनाज सेहत के लिए कितने फायदेमंद होते हैं। उनका कहना है कि आजकल लोग चावल और गेहूं ही खा रहे हैं, जबकि अपने क्षेत्र में उगने वाले मोटे अनाज का सेवन कम कर रहे हैं, तो ऐसे में उनका केंद्र महिलाओं को बता रहा हैं कि मिलेट्स कितना पौष्टिक है और इसे उन्हें रोज़ अपने भोजन में शामिल करना चाहिए।

मूल्य संवर्धन उत्पादों का प्रशिक्षण
ग्रामीण महिलाओं को मिलेट्स के फायदे गिनाने के साथ ही कृषि विज्ञान केंद्र, पौड़ी, गढ़वाल महिलाओं को मूल्य संवर्धन उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण भी दे रहा है। दरअसल, मिलेट्स को सीधे तौर पर खाना या सिर्फ उसकी रोटी खाना लोगों को पसंद नहीं आता, इसलिए इसका मूल्य संवर्धन उत्पाद बनाकर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों की थाली तक इसे पहुंचाया जा सकता है।
डॉ. रश्मि बताती हैं कि कृषि विज्ञान केंद्र में महिलाओं को अलग-अलग तरह के मोटे अनाज से कई चीज़ें बनानी सिखाई जाती है। जैसे मंडुए की नमकीन और कुकीज़ बनाने की ट्रेनिंग दी जाती है। झंगोरा के पापड़ बनाना सिखाया जाता है। इसी तरह सभी मोटे अनाज से मूल्य संर्वधन उत्पाद बनाने की ट्रेनिंग महिलाओं को दी जाती है। यहां अलग-अलग ब्लॉक से महिलाएं सीखने आती हैं।
महिलाएं कैसे कर सकती हैं संपर्क
डॉ. रश्मि का कहना है कि इचछुक महिलाएं सीधे कृषि विज्ञान केंद्र पौड़ी, गढ़वाल से संपर्क कर सकती हैं। या अपने इलाके के कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क कर सकती हैं, वो फिर हमसे संपर्क करते हैं और हम महिलाओं के लिए ट्रेनिंग आयोजित करते हैं। ट्रेनिंग कितने दिनों की होती है, इस बारे में डॉ. रश्मि का कहना है कि ट्रेनिंग कितनी दिनों की होगी वो इस बात पर डिपेंड करता है कि कितनी चीज़ें सीखनी है।
अगर कोई एक उत्पाद बनाना सीखना है तो एक दिन का प्रशिक्षण दिया जाता है यदि 3 चीज़ें सीखनी हैं तो 3 दिनों का प्रशिक्षण दिया जाता है। इस प्रशिक्षण के अलावा कृषि विज्ञान केंद्र में मौजूद विषय विशेषज्ञ किसानों को अच्छी प्रजाति की फसलों के बारे में बताते हैं, जिससे उन्हें अधिक उपज मिले।
मिलेट्स के फ़ायदे
डॉ. रश्मि लोगों को सलाह देती हैं कि अपने एरिया में वो जो मोटा अनाज उगाते हैं वो बहुत पौष्टिक होता है, इसलिए सबसे पहले उनका सेवन बढ़ाएं जिससे उत्पादन बढ़ेगा। ये अनाज डायबिटीज़, हाई ब्लड प्रेशर के साथ ही दूसरी बीमारियों से लड़ने में भी मददगार है। आगे वो कहती हैं कि फिंगर मिलेट के आटे की रोटी रोज़ खाई जा सकता है, क्योंकि इसमें फाइबर बहुत अधिक मात्रा में होता है।
ये डायबिटीज़ के साथ ही हार्ट डिसीज भी फायदेमंद है, इसके अलावा ग्लूटेन संवेदनशीलता वाले लोग भी इसे खा सकते हैं। वो कहती हैं कि पॉलिश्ड राइस की जगह झंगोरे का चावल रोज़ खाना अच्छा हेल्दी विकल्प है। यही नहीं कई शोधों से पता चलाहै कि मोटे अनाज में कई तरह के कैंसर से बचाव में भी मददगार हैं।
ये भी पढ़ें- Millets Products: मिलेट्स से कई बेकरी उत्पाद किए तैयार, संसद भवन पहुंचा मोटे अनाज से बना केक
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या kisanofindia.mail@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
- गेहूं के भूसे से इको-प्लास्टिक तैयार करके अतिरिक्त आमदनी कर सकते हैं किसानगेहूं का भूसा प्लास्टिक का बेहतरीन और इको फ्रेंडली विकल्प साबित हो सकता है। इससे पराली को जलाने की समस्या का समाधान तो होगा ही, साथ ही पर्यावरण के लिहाज़ से भी ये कदम अच्छा होगा।
- न्यूट्रास्यूटिकल के रूप में जल ब्राह्मी का इस्तेमाल, किसानों के लिए फ़ायदेमंद हो सकती है इसकी खेतीजल ब्राह्मी औषधीय गुणों वाला पौधा है, जो महत्वपूर्ण हर्बल न्यूट्रास्यूटिकल भी है। ब्राह्मी की फसल रोपाई के 5-6 महीने बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। एक साल में 2-3 कटाई की जा सकती है। ये एक हर्बल न्यूट्रास्यूटिक है, जो न सिर्फ़ शरीर को पोषण देता है, बल्कि बीमारियों की रोकथाम और मानसिक रोगों के इलाज में भी मददगार है।
- क्या है पादप हॉर्मोन और पशु हॉर्मोन के बीच अंतर, एक तुलनात्मक विश्लेषणपादप हॉर्मोन और पशु हॉर्मोन कई मायनों में समान हैं। दोनों प्रकार रासायनिक संदेशवाहक हैं जो अपने संबंधित जीवों के भीतर विभिन्न शारीरिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं।
- जैविक तरीके से मोटे अनाज सांवा की खेती असिंचित इलाकों के लिए कैसे है फ़ायदेमंद?सांवा भी मोटे अनाजों में से एक है जो कभी गरीबों का मुख्य भोजन हुआ करता था, लेकिन अब आम लोगों की थाली से दूर हो चुका है। सरकार बाकी अनाजों की तरह ही सांवा की खेती को भी बढ़ावा दे रही है, क्योंकि ये पौष्टिक तत्वों से भरपूर होता है और बिना सिंचाई वाले इलाकों में भी इसे आसानी से उगाया जा सकता है।
- Certified Seed Production: प्रमाणित बीज उत्पादन से गुणवत्ता भी अच्छी और उत्पादन भी बेहतरआपने वो कहावत तो सुनी ही होगी ‘जैसा बोओगे, वैसा ही काटोगे।’ खेती के संदर्भ में ये बाद बिल्कुल सटीक बैठती है। क्योंकि आप जैसा बीज बोएंगे वैसी ही फसल प्राप्त होगी, इसलिए अच्छी गुणवत्ता वाले बीज का होना बहुत ज़रूरी है। बीज उत्पादन बेहतर होगा तो फसल अच्छी होगी।
- ग्वार गम के निर्यात से कैसे किसानों को हो सकता है लाभ, जानिए ग्वार की खेती की तकनीकबाज़ार में बाकी सब्ज़ियों के साथ ही आपने ग्वार फली भी देखी होगी। इसका स्वाद हल्का सा कसैला या कड़वा होता है, जिसकी वजह से बहुत से लोगों को इसका स्वाद पसंद नहीं आता। दलहनी फसल ग्वार की खेती, चारा, सब्ज़ी के साथ ही ग्वार गम बनाने के लिए भी की जाती है।
- खेसारी की फसल को क्यों कहा जाता है किसानों की ‘बीमा फसल?’ जानिए ख़ासियतखेसारी दलहनी फसल है। उतेरा विधि द्वारा खेसारी की खेती किसानों के लिए फ़ायदेमंद साबित हो सकती है और इससे खेत में नाइट्रोजन स्थिरिकरण में भी मदद मिलेगी।
- किसान से बातें करती हैं फसलें… क्या आपने सुना है?फसल न सिर्फ़ बातें करती हैं बल्कि वो आपकी बातों का जवाब भी देती हैं। वो बात अलग है कि हमें उनकी आवाज़ सुनाई नहीं देती। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण है। दरअसल, पौधों की आवाज़ हमारी सुनने की शक्ति से कहीं ज़्यादा तेज़ होती है। इसलिए हम उनकी आवाज़ सुन नहीं पाते हैं, लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि हम पौधों की बातों को नज़रअंदाज़ कर दें।
- पॉलीहाउस फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं जड़-गांठ सूत्रकृमि, जानिए बचाव के तरीकेसूत्रकृमि कई तरह के होते हैं और ये बहुत सी फसलों को रोगग्रस्त करके नुकसान पहुंचाते हैं। पॉलीहाउस की फसलें भी इससे अछूती नहीं है। सूत्रकृमि के साथ समस्या ये है कि किसान जल्दी इसकी पहचान नहीं कर पाते जिससे जड़-गांठ सूत्रकृमि की रोकथाम मुश्किल हो जाती है।
- मूंगफली की फसल के अच्छे उत्पादन के लिए ज़रूरी है समेकित कीट प्रबंधनभारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मूंगफली उत्पादक देश है, लेकिन हर साल कीटों की वजह से फसलों को भारी नुकसान पहुंचता है और किसानों का मुनाफ़ा कम हो जाता है। ऐसे में समेकित कीट प्रबंधन से फसलों के नुकसान को रोका जा सकता है।
- Sheep Rearing: भेड़ पालन से अच्छी आमदनी के लिए भेड़ों को दें पौष्टिक आहारशुष्क, पहाड़ी और रेगिस्तानी इलाकों में जहां लोगों के पास खेती योग्य ज़मीन नहीं है या बहुत कम है, वो भेड़ पालन से अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन भेड़ पालन से मुनाफ़ा कमाने के लिए भेड़ों के आहार पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है।
- ट्री सर्जरी से पेड़ों को मिल रहा जीवनदान, जानिए कैसे की जाती है शल्य चिकित्सा यानि सर्जरी?सर्जरी के बारे में तो आप सभी ने सुना ही होगा, लेकिन क्या कभी ट्री सर्जरी यानी पेड़ों की सर्जरी के बारे में सुना है? जी हां, इंसानों की तरह ही पेड़ों की भी सर्जरी करके उसे जीवनदान दिया जा सकता है।
- Canola Oil: कनोला सरसों की किस्म की खेती में क्या है ख़ास? जानिए इसकी पोषक गुणवत्तासरसों या राई की कई किस्में होती हैं, इसी में से एक किस्म है कनोला सरसों जो सेहत के लिहाज़ से बहुत लाभदायक मानी जाती है। इसका तेल अन्य तेलों के मुकाबले कहीं ज़्यादा हेल्दी होता है।
- क्यों बाकला की खेती है किसानों के लिए अच्छा विकल्प? जानिए इसके बारे में सब कुछबाकला प्रमुख दलहनी सब्ज़ी है। बाकला की खेती आमतौर पर रबी के मौसम में की जाती है। ये पौष्टिक तत्वों से भरपूर होती है, इसलिए इसकी खेती किसानों के लिए आमदनी बढ़ाने का अच्छा विकल्प हो सकती है।
- क्या हैं लघु धान्य फसलें? कैसे ग्लोबल वार्मिंग के खेती पर पड़ते असर को कम कर सकती हैं ये फसलें?लघु धान्य फसले मोटे अनाज को कहते हैं जिसमें ज्वारा, बाजरा, रागी, कोदो, कुटकी जैसी फसलें आती हैं। ये अनाज न सिर्फ़ पौष्टिक होते हैं, बल्कि मिट्टी और पर्यावरण के लिए भी बहुत उपयोगी है।
- लखनवी सौंफ की खेती से जुड़ी अहम बातें, स्वाद और सेहत का खज़ाना है ये सौंफलखनवी कबाब और चिकनकारी के बारे में तो सुना ही होगा, जो बहुत लोकप्रिय है, लेकिन क्या आपको पता है कि इन सबकी तरह ही लखनवी सौंफ भी बहुत मशहूर है अपने स्वाद और सुगंध के लिए।
- Brown Rice: कैसे सेहत का खज़ाना है भूरा चावल? क्यों भूरे चावल के उत्पादन पर दिया जा रहा है ज़ोर?भूरा चावल जिसे ब्राउन राइस भी कहा जाता है कि खेती भारत, थाइलैंड और बांग्लादेश जैसे एशियाई देशों में की जाती है। पिछले कुछ सालों में सेहत के प्रति सचेत लोगों के बीच इसकी मांग बहुत बढ़ी है, क्योंकि इसे सफेद चावल की बजाय हेल्दी माना जाता है।
- Papaya Products: पपीते से जैम और चेरी बनाकर किसान कर सकते हैं अच्छी कमाईभारत में ढेर सारी बागवानी फसलों की खेती की जाती है, इसमें से एक महत्वपूर्ण फसल है पपीता। पपीते की खेती से किसानों को अधिक आमदनी हो इसके लिए विशेषज्ञ पीपते के मूल्य संवर्धन उत्पादन बनाने की सलाह देते हैं।
- संतुलित आहार से बढ़ेगी दूध की गुणवत्ता, इसके लिए ICAR ने विकसित किया फ़ीड पूरकडेयरी उद्योग में दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए पशुओं की सेहत का ख्याल रखने के साथ ही उनके आहार का विशेष ध्यान रखना ज़रूरी है, क्योंकि ये न सिर्फ़ दूध की मात्रा, बल्कि दूध की गुणवत्ता भी निर्धारित करता है।
- Carp Fish: पूरक आहार से बढ़ेगा कार्प मछलियों का उत्पादन, जानिए इसे खिलाने का सही तरीकाकार्प मछलियां दूसरी मछलियों की तुलना में तेज़ी से बढ़ती हैं। ऐसे में अगर उन्हें पूरक आहार यानी सप्लीमेंट्री फ़ूड दिया जाए तो और तेज़ी से वृद्धि कर सकती हैं और जिससे किसानों की लागत कम और मुनाफ़ा अधिक होगा।