केला, दुनिया के सबसे लोकप्रिय और इस्तेमाल किए जाने वाले फलों में से एक है। केले के पौधे के लगभग सभी भागों जैसे फल, पत्ते, फूल की कली और तने को कई तरह से इस्तेमाल में लाया जा सकता है। इसलिए इसे कल्पतरू भी कहते हैं। केले के हर चक्र के उत्पादन में करीबन चार गुना अवशेष निकलता है। इस अवशेष में पत्ती, सड़ा हुआ फल, छिलका और तना आते हैं। इन अवशेषों का इस्तेमाल खाद बनाने में किया जा सकता है। ऐसे ही एक सफ़ल प्रयोग का उदाहरण हैं सतीश कुमार, जिन्होंने केले के अवशेष का इस्तेमाल करके मशरूम का उत्पादन बढ़ाया।
मशरूम की खेती में किया केले के अवशेष का इस्तेमाल
सतीश कुमार ने सबसे पहले आईसीएआर -केवीके, कोझिकोड से मशरूम की खेती की ट्रेनिंग ली। वहां से उन्हें बीज भी मिले। उनके क्षेत्र में मशरूम की खेती के लिए इस्तेमाल होना वाला भूसा आसानी से नहीं मिलता था। इसका हल उन्होंने केले के अवशेष का इस्तेमाल करके निकाला और इससे मशरूम बेड बनाना शुरू किया। सतीश कुमार ने केले के डंठल और तने के बाहरी हिस्सों को काटकर छोटे-छोटे टुकड़े किये। फिर,खास डिज़ाइन किए गए बर्तन का इस्तेमाल कर भाप से इन टुकड़ों को कीटाणु मुक्त किया। इसके बाद उन्होंने इन्हें सुखाया, और मशरूम बेड बनाने में इस्तेमाल किया।
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‘मशरूम बेड’ के फ़ायदे
सतीश कुमार ने मशरूम बेड पर बीज को 8 से 10 सेंटीमीटर के बीच में फैलाया। इस तरह अगर आप 250 ग्राम बीज का इस्तेमाल करें, तो 3 से 5 बार मशरुम तोड़ने के बाद 1.5 किलो सीप मशरूम मिल सकता है। सतीश कुमार ने इस तरीके से सीप मशरूम उगा कर उसे लगभग 300 रुपये/किलो के भाव से बाज़ार में बेचा। आज सतीश कुमार की खुद की ‘मेसर्स गोविन्द मशरूम’ के नाम से मशरूम बीज उत्पादन की इकाई है।
संस्थान ने दी खेती से लेकर प्रोसेसिंग से जुड़ी जानकारी
जिले में मशरूम की खेती से ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को जोड़ने के लिए आईसीएआर-केवीके ( ICAR – KVK ) , कोझीकोड बाकायदा इसकी ट्रेनिंग देता है। मशरूम की खेती से जुड़े नये तरीकों, बीज उत्पादन तथा धान के भूसे और केले के तने से मशरूम बेड तैयार करने के बारे में किसानों को बताया जाता है । कैसे मशरूम को प्रोसेस कर उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं, इसके बारे में भी क्षेत्र के किसानों को जानकारी दी गई। आज सतीश कुमार जैसे कई किसान इस ट्रेनिंग का लाभ उठा, मशरूम की खेती से अच्छी कमाई कर रहे हैं।
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