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बरसात में डेयरी पशुओं को घातक रोगों से कैसे बचाएं? जानिए पशुपालन विशेषज्ञ डॉ. लक्ष्मण सिंह बघेल से

सही समय पर मिले इलाज और रखें ख्याल तो बड़े नुकसान से बचा जा सकता है

किसान ऑफ़ इंडिया ने डेयरी पशुओं को होने वाली मुख्य गंभीर बीमारियों को लेकर पशुपालन विभाग बिसरख ज़िला गौतम बुद्ध नगर के पशु चिकित्सक और पशुपालन विशेषज्ञ डॉ. लक्ष्मण सिंह बघेल से ख़ास बात की। 

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डेयरी पालकों के सामने कई तरह की मुश्किलें आती हैं। सबसे बड़ी दिक्कत डेयरी पशुओं को होने वाली ऐसी बीमारियां हैं, जो जानलेवा साबित होती हैं। इससे पशुपालकों को बड़ा नुकसान होता है। बरसात के मौसम में दूधारू पशु कई रोगों के चपेट में आ जाते हैं। सही समय पर टीकाकरण से पशुओं को बचाया जा सकता हैं। किसान ऑफ़ इंडिया ने डेयरी पशुओं को होने वाली मुख्य गंभीर बीमारियों को लेकर पशुपालन विभाग बिसरख ज़िला गौतम बुद्ध नगर के पशु चिकित्सक और पशुपालन विशेषज्ञ डॉ. लक्ष्मण सिंह बघेल से ख़ास बात की। आइए जानते हैं दूधारू पशुओं में लगने वाले मुख्य रोगों और उनके लक्षणों की पहचान और टीकाकरण के बारे में।

डेयरी पशुओं के रोग dairy animals diseases

टीकाकरण यानी वैक्सीनेशन है ज़रूरी 

डॉ. लक्ष्मण सिंह बघेल बताते हैं कि डेयरी पशुओं की कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं, जिनका उपचार तो संभव है, लेकिन इलाज के दौरान दूध उत्पादन में भारी गिरावट होती है या पशु की कार्यक्षमता बहुत कम हो जाती है। इन सबसे पशुपालकों को आर्थिक नुकसान होता है।

इनसे बचने का उपाय अलग-अलग बीमारियों का वैक्सीनेशन है। इससे आपके पशु ऐसी बीमारियों की चपेट में आएंगे ही नहीं। किन पशुओं को टीका लगवाएं? इस बात को लेकर आपमें कोई भ्रम भी नहीं होना चाहिए, क्योंकि सभी उम्र के डेयरी पशुओं का वैक्सीनेशन ज़रूरी है। दरअसल वैक्सीनेशन से पशुओं में उस बीमारी से लड़ने की रोग प्रधिरोधक क्षमता बढ़ती है। इससे पशु जल्दी बीमार नहीं पड़ते। बीमारी उनके लिए जानलेवा साबित नहीं होती। इसमें अलग-अलग बीमारियों के, सीज़न के हिसाब से 6 महीने या साल भर पर वैक्सीन लगवाना ज़रूरी होता है।

डेयरी पशुओं के रोग dairy animals diseases

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पशुओं के गलाघोंटू रोग से बचाने के लिए टीकाकरण ही रास्ता है

डॉ. लक्ष्मण सिंह बघेल ने उदाहरण देते हुए बताया कि सबसे गंभीर रोग गलाघोंटू ज़्यादातर बारिश में होता है, जो बैक्टिरिया से फैलता है। इस बीमारी में पशुओं को संभलने तक का मौका नहीं मिलता।

इस रोग में पशु को तेज़ बुखार आ जाता है। गले में सूजन और सासं लेते समय घर्र-घर्र की आवाज़ आती है। इस रोग से पशु को बचाने के लिएएंटीबायोटिक और एंटीबैक्टीरियल टीके लगाए जाते हैं। रोग की रोकथाम के लिए पहला टीका तीन माह की आयु में और उसके बाद हर साल टीका लगवाना चाहिए।

डेयरी पशुओं के शरीर का तापमान 106-107 डिग्री सेल्सियस हो जाता है। गले में दवाव पड़ता है,  जिससे गला घुटने के कारण पशुओं की जान पर बन आती है। इसके बचाव के लिए साल में टीकाकरण करवाना चाहिए। गलाघोंटू बीमारी का कोई उपचार नहीं है, बल्कि टीकाकरण ही रास्ता है। इसलिए गलाघोंटू का टीका लगवा लेना चाहिए।

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पशुओं का कैसे करें खुरपका-मुंहपका से बचाव?

डॉ. लक्ष्मण सिंह बताते हैं कि डेयरी पशुओं के खुर पक जाने को और जीभ में छाले पड़ जाना, खुरपका-मुंहपका रोग कहलाता है। यह वायरस जनित रोग है। इस बीमारी में पशु कुछ खा नहीं पाता। बुखार और कमजोरी से धीरे-धीरे अधमरा हो जाता है। इसमें इलाज तो संभव है, लेकिन पशुओं का दूध और उनके काम करने की क्षमता बहुत कम हो जाती है। इसलिए वैक्सीनेशन से आप उनका बचाव कर सकते हैं।

ये रोग पशुओं का सबसे ज़्यादा संक्रामक और घातक रोग है। रोग किसी भी उम्र की गाय और उसके बच्चों में हो सकता है। ये किसी भी मौसम में हो सकता है। इसलिए रोग होने से पहले ही उसका वैक्सीन लगवा लेना फ़ायदेमंद रहता है। अगर किसी दूधारू पशु में यह बीमारी के लक्षण दिखाई दें तो उसे सबसे पहले अन्य पशुओं से अलग कर दें। इसके बाद जीवाणुनाशकघोल से ज़ख्म धोएं। नरम घास-चारा पशुओं को दें।

डेयरी पशुओं के रोग dairy animals diseases
मुँहपका रोग का स्वभाव

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लंगड़ी रोग का टीकाकरण ही इलाज 

पशुपालन विशेषज्ञ डॉ. लक्ष्मण सिंह बघेल ने बताया कि पशुओं में लगने वाली लंगड़ी काफ़ी घातक रोग है। उन्होंने कहा कि बीमारी की गंभीरता का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि बैक्टीरिया से फैलने वाले इस रोग में पशु के किसी एक अंग में सूजन आती है। वो तेज़ी से फैलती है और पशुओं की जान तक ले लेती है। ये रोग गाय और भैंसों दोनों में देखा जाता है, लेकिन गायों में इसका प्रकोप अधिक होता है।

पशु के पिछली और अगली टांगों के ऊपरी भाग में सूजन आ जाती है। इससे पशु लंगड़ा कर चलने लगता है। सूजन वाले स्थान को दबाने पर कड़-कड़ की आवाज़ आती है। इसलिए पशु का उपचार शीघ्र करवाना चाहिए क्योंकि इस बीमारी के जीवाणुओं के कारण शरीर में ज़हर फैल जाने से पशु जल्दी ही मर जाता है। इस बीमारी के रोग निरोधक टीके बाज़ार में उपलब्ध हैं, जिन्हें लगाकर पशुपालक अपने पशुओं को बचा सकते हैं। वर्षा ऋतु से पहले ये टीका लगाया जाता है। पहला टीका पशु को 6 माह की आयु पर लगवाना चाहिए। उसके बाद हर साल टीका लगाया जाता है।

चार महीने में एक बार डीवर्मिंग ज़रूरी

डॉ. लक्ष्मण सिंह बघेल ने कहा कि इनके अलावा कुछ बीमारियां कीड़ों से होती हैं, चाहे वो अंत: परजीवी हों, यानी पेट के कीड़े, सूत्रकृमि वगैरह या बाह्य परजीवी जैसे जू, कीलनी, चीचड़ी, इन सबसे भी पशु बेहद परेशान रहते हैं। इसलिए वैसे कीड़े जिनके अंडे पेट में पलते हैं और आंतों से पशुओं का खून चूस कर उन्हें कमज़ोर कर देते हैं, उनसे बचाव के लिए 4 महीने में एक बार कीड़े की दवा ज़रूर खिलाएं। इस प्रक्रिया को डीवर्मिंग कहा जाता है।

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कुछ आसान उपाय जो बीमारियों से बचाए 

पशुपालन विशेषज्ञ पशुपालकों को सुझाव देते हैं कि बीमारियों से बचाव के क्रम में वैक्सीनेशन के अलावा कुछ ऐसे भी उपाय हैं, जिन्हें आज़मा कर आप कई बीमारियों से पशुओं का बचाव कर सकते हैं।

सिर्फ़ दुधारु पशुओं को होने वाले थनैला रोग से बचने के लिए साफ़ सफाई ज़रूरी है। इसके अलावा, अगर दूध निकालने के बाद उन्हें एक घंटा तक बैठने ना दिया जाए तो आप इस बीमारी से दुधारू पशुओं का बहुत हद तक बचाव कर सकते हैं।

इस तरह कई बीमारियों के अलग-अलग टीके समय पर लगवा कर, आप अपने पशुओं को कई गंभीर बीमारियों से बचा सकते हैं, वहीं खुद को होने वाले आर्थिक नुक़सान से भी बचा सकते हैं।

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या kisanofindia.mail@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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