दूधारु पशुओं में फैलने वाले गांठेदार त्वचा रोग लम्पी स्किन डिजीज (Lumpy Skin Disease, LSD) का खतरा देश–प्रदेश में मडराने लगा है। इसके मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। वहीं, कई राज्यों में इस बीमारी से मवेशियों की मौत की खबरें आ रही हैं। क्या है ये बीमारी और कैसे पशुपालक इस बीमारी से अपने मवेशियों का बचाव कर सकते हैं, इसे लेकर किसान ऑफ़ इंडिया ने नरेन्द्र देव कृषि एंव प्रौधोगकी विश्वविद्यालय कुमारगंज के पशु सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय के सहायक प्रध्यापक और पशु रोग विशेषज्ञ डॉ. राजपाल दिवाकर से बात की।
डॉ. राजपाल दिवाकर ने लम्पी त्वचा रोग को लेकर जानकारी दी कि इसका ज़्यादा प्रभाव इस समय राजस्थान में देखने को मिल रहा है। पशुपालकों ने बचाव को लेकर ध्यान नहीं दिया तो मवेशियों के एक-दूसरे से संपर्क में आने से फैलने वाली विषाणु जनित यह बीमारी दूसरे राज्यों फैल सकती है। इसलिए पशुपालको को सतर्क रहने की ज़रूरत है।

क्या है लम्पी स्किन डिजीज?
पशु रोग विशेषज्ञ डॉ. राजपाल दिवाकर ने बताया कि ये गांठेदार त्वाचा रोग यानी लम्पी स्किन डिजीज, गाय एवं भैस में पॉक्स विषाणु कैंप्री पॉक्स वायरस के संक्रमण से होता है। इस बीमारी से पशुओं के पूरे शरीर में त्वचा पर बड़ी-बड़ी गाँठें बन जाती हैं। लम्पी त्वचा रोग किलनी मच्छर, मक्खी, पशुओं के लार, जूठे जल एवं पशु के चारे के द्वारा फैलता है। किलनी, मच्छर व मक्खी जैसे वाहकों द्वारा बीमार पशु से स्वस्थ पशु के शरीर में पहुंचता है।
कब फैलता है लम्पी त्वचा रोग?
विशेषज्ञ ने बताया कि लम्पी त्वचा रोग का प्रकोप गर्म एवं आंध्र नमी वाले मौसम में अधिक होता है। मौजूदा समय में जिस तरह से गर्मी व उमस बढ़ रही है, उससे रोग फैलने का खतरा भी बढ़ा है। हालांकि, ठंडी के मौसम में खुद ही इसका प्रभाव कम हो जाता है।
बीमार पशुओं को एक-दूसरे जगह ले जाने या उसके सम्पर्क में आने वाले स्वस्थ पशु भी संक्रमित हो जाते हैं। गायों और भैंसों के एक साथ तालाब में पानी पीने, नहाने और एकत्रित होने से भी रोग का प्रसार हो सकता है।
लम्पी त्वचा रोग के लक्षण
डॉ. राजपाल दिवाकर ने लम्पी त्वचा रोग के लक्षण के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इस रोग से ग्रसित पशु की त्वचा पर ढेलेदार गांठ की तरह उभार बन जाता है। यह पूरे शरीर में दो से पांच सेंटीमीटर व्यास के नोड्यूल (गांठ) के रूप में पनपता है।
खासकर सिर, गर्दन, लिंब्स और जननांगों के आसपास के हिस्से में इन गांठो का फैलाव होता है। बीमारी होने के कुछ ही घंटों बाद पूरे शरीर में गांठ बन जाती है। इसके साथ ही मवेशियों के नाक एवं आंख से पानी निकलने लगता है। शरीर का तापमान बढ़ जाता है। मवेशी बुखार की जद में आ जाते हैं। अगर पशु गर्भवती है तो गर्भपात भी हो सकता है।
ज़्यादा संक्रमण से ग्रसित हो तो निमोनिया होने के कारण पैरों में सूजन भी आ सकती है। सिर और गर्दन के हिस्से में काफ़ी तेज़ दर्द होता है। इस दौरान पशुओं की दूध देने की क्षमता भी कम हो जाती है।

कैसे करें नियंत्रण व बचाव?
पशु चिकित्सक विशेषज्ञ डॉ. राजपाल दिवाकर के अनुसार लम्पी त्वचा रोग वायरस जनित रोग का अभी कोई भी इलाज नहीं है। इसका टीकाकरण ही रोकथाम और नियंत्रण का सबसे प्रभावी साधन हैं। वहीं, बीमारी से बचने के लिए स्टेरॉयडल एंटी इनफॉर्मेटरी और एंटीबायोटिक दवाओं के प्रयोग से रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है।
संक्रमित पशु को एक जगह बांधकर रखें। उन्हें स्वस्थ पशुओं के संपर्क में न आने दें। स्वस्थ पशुओं का टीकाकरण कराएं तथा बीमार पशुओं को बुखार एवं दर्द की दवा तथा लक्षण के अनुसार उपचार करें। पशु मंडी या बाहर से नए पशुओं को खरीद कर पुराने पशुओं के साथ न रखें। उन्हें कम से कम 15 दिन तक अलग रखें।
जूनोटिक रोग (पशुओं से मानव में संक्रमण) नहीं है LSD
डॉ. राजपाल दिवाकर ने कहा कि वायरस जनित यह रोग जूनोटिक डिजीज की श्रेणी में नहीं आता है। लिहाज़ा पशुपालक इससे अकारण भयभीत न हों। सोशल मीडिया पर चल रही इस रोग की भ्रांति से पशुपालक सतर्क रहें। पशुओं में अगर इस बीमारी के लक्षण दिखते हैं तो तुरंत नज़दीकी पशु चिकित्सालय से संपर्क करें और उसका उचित उपचार कराएं।
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