Capsicum Cultivation: जानिए कैसे शिमला मिर्च की संरक्षित खेती से किसानों को होगा फ़ायदा, क्यों बढ़ रहा किसानों का रुझान?
शिमला मिर्च की संरक्षित खेती से प्रति हेक्टेयर 80-100 टन तक उत्पादन
संरक्षित खेती में पौधों को बढ़ने के लिए बेहतर वातावरण मिलता है। यह फसलों को अधिक बारिश, हवा और गर्मी से बचाता है। किसान शिमला मिर्च की संरक्षित खेती कर अपनी उपज और आमदनी में कैसे इज़ाफ़ा कर सकते हैं, जानिए इस लेख में।
हरी सब्ज़ियों में शिमला मिर्च एक प्रमुख सब्ज़ी है। शिमला मिर्च पोषक तत्वों से भरपूर होती है। इसमें विटामिन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, पोटैशियम आदि भरपूर मात्रा में पाया जाता है। चाइनीज़ व्यंजनों में तो ख़ासतौर पर शिमला मिर्च का इस्तेमाल किया जाता है। शिमला मिर्च की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों की सलाह है कि बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पारंपरिक तरीके से शिमला मिर्च का उत्पादन करने की बजाय शिमला मिर्च की सरंक्षित खेती की जानी चाहिए। इससे उत्पादन में बढ़ोतरी होगी।
संरक्षित खेती क्या होती है?
यह आधुनिक खेती की एक संरचना है, जिसमें एक नियंत्रित वातावरण में फसलें उगाई जाती हैं। इसमें कीट अवरोधी नेट हाउस, ग्रीन हाउस, नई तकनीक से लैस पॉलीहाउस, प्लास्टिक लो-टनल, प्लास्टिक हाई-टनल, प्लास्टिक मल्चिंग और ड्रिप सिंचाई आदि का इस्तेमाल होता है। इससे फसलों का उत्पादन अधिक होता है।
शिमला मिर्च की सरंक्षित खेती
शिमला मिर्च की खेती ठंडे इलाकों में अच्छी तरह होती है, लेकिन संरक्षित खेती के ज़रिए हर इलाके में इसे पूरे साल उगाया जा सकता है। इसमें वातावरण, तापमान और नमी को अपने हिसाब से एडजस्ट किया जाता है। शिमला मिर्च हरे रंग के अलावा, लाल और पीले रंग की भी होती है। आमतौर पर 4-5 महीने में इससे प्रति हेक्टेयर 20-40 टन फसल प्राप्त होती है, जबकि ग्रीन हाउस में शिमला मिर्च की खेती से प्रति हेक्टेयर 80-100 टन तक फसल प्राप्त होती है। हां लेकिन इन्हें तैयार होने में 7-10 महीने का समय लग जाता है।
शिमला मिर्च की संरक्षित खेती क्यों फ़ायदेमंद है?
संरक्षित खेती में पौधों को बढ़ने के लिए बेहतर वातावरण मिलता है। यह फसलों को अधिक बारिश, हवा और गर्मी से बचाता है। संरक्षित खेती में रोग-कीटों का प्रकोप कम होता है।फसल की गुणवत्ता और उपज में वृद्धि होती है। खुली खेती की तुलना में इससे 2 से 3 गुना अधिक पैदावार होती है। सरंक्षित खेती के तहत इस्तेमाल होने वाली सरंचना में नेट हाउस और पॉलीहाउस प्रमुख हैं। दक्षिण भारत ख़ासतौर पर बेंगलुरू के आसपास इसका इस्तेमाल अधिक किया जाता है। पॉलीहाउस, नेटहाउस की तुलना में महंगा, लेकिन अधिक बेहतर होता है। बारिश का पानी इसके अंदर नहीं आ पाता और रोगों से भी पौधों का बचाव होता है। इसमें पैदावार भी नेट हाउस की तुलना में 15-20 प्रतिशत अधिक होती है।
शिमला मिर्च की संरक्षित खेती के लिए जलवायु और मिट्टी
शिमला मिर्च की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली रेतिली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। इसके अच्छे विकास के लिए दिन का तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस और रात का तापमान 18-20 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए।
शिमला मिर्च की संरक्षित खेती के लिए नर्सरी करें तैयार
शिमला मिर्च की संरक्षित खेती के लिए पहले नर्सरी में पौधों को तैयार करना होता है। पॉलीहाउस में शिमला मिर्च की खेती के लिए इसकी इंद्र, बॉम्बे, ओरोबेल और स्वर्ण किस्में अच्छी होती है। पौधों को खेत या पॉलीहाउस में लगाने से पहले अच्छी गुणवत्ता वाले बीज से बेहतर पौध नर्सरी में तैयार किए जाते हैं। इसके लिए प्रो-ट्रे को रोगाणुरहित कोकोपिट से भरके बीज बोया जाता है। एक सेल या खाने में एक बीज आधा सेंटीमीटर की गहराई तक डाला जाता है। बीज से भरे ट्रे को एक के ऊपर एक रख दिया जाता है और बीजों के अंकुरित होने तक प्लास्टिक की चादर से ढक दिया जाता है। एक हफ़्ते बाद बीज अंकुरित हो जाते हैं। फिर ट्रे को पॉलीहाउस में रख दिया जाता है और 30-35 दिन बाद पौधों की रोपाई की जाती है।
ड्रिप सिंचाई और फर्टिगेशन
शिमला मिर्च की संरक्षित खेती के लिए सिंचाई के लिए ड्रिप तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। जबकि फसलों के विकास के लिए पानी में घुलने वाले उर्वरक जैसे पोटैशियम नाइट्रेट और कैल्शियम नाइट्रेट को फर्टिगेशन के माध्यम से डाला जाता है। यह रोपाई के तीसरे हफ़्ते से शुरू होता है।
शिमला मिर्च की संरक्षित खेती में कितना होता है उत्पादन?
सरंक्षित खेती में हरी शिमला मिर्च की फसल पौधे लगाने के 55 से 60 दिन बाद, पीली शिमला मिर्च की तुड़ाई 70-75 दिन बाद और लाल शिमला मिर्च की फसल 80-90 दिन बाद तैयार हो जाती है। फलों को 3-4 दिन में एक दिन तोड़ा जाता है। इसमें औसत उपज प्रति हेक्टेयर 80-100 टन प्राप्त होती है।
रोग-कीटों से कैसे करें शिमला मिर्च की फसल सुरक्षा
शिमला मिर्च की फसल पर ‘डैम्पिंग ऑफ’ और ‘फाइटोप्थोरा सड़ांध’ जैसे रोगों के लगने का खतरा रहता है। इन्हें कार्बेन्डाजिम (1 ग्राम/ली.) एवं मेटलैक्सिल एम जेड (2 ग्राम/ली.) के छिड़काव द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। शिमला मिर्च की खेती थ्रिप्स, एफिड्स
और माइट्स जैसे विभिन्न कीटों से भी प्रभावित होती है। इन कीटों का प्रबंधन क्लोरोपायरीफॉस (2 मि.ली./ लीटर), डाइमेथोएट (2 मि.ली./लीटर) और डाइकोफोल (1 मि.ली./लीटर) का छिड़काव करके किया जा सकता है।
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