सेब की नर्सरी चलाने वाले पवन कुमार ने अपनाई रूटस्टॉक मल्टीप्लीकेशन तकनीक, चार गुना बढ़ी आमदनी

पारंपरिक रूटस्टॉक वाले सेब के पौधों की मांग घटने से हिमाचल के रहने वाले पवन कुमार गौतम का सेब की नर्सरी का उद्योग डगमगा गया था, मगर इस तकनीक ने उन्हें नई राह दिखाई। जानिए क्या है रूटस्टॉक मल्टीप्लीकेशन तकनीक।

सेब की नर्सरी रूटस्टॉक Rootstock Multiplication Technology

कृषि के क्षेत्र में नित नए बदलाव हो रहे हैं। खेती को सुगम बनाने की दिशा में नयी-नयी तकनीकें विकसित होती रहती हैं। ऐसी ही एक तकनीक है रूटस्टॉक मल्टीप्लीकेशन (Rootstock Multiplication Technology). इस तकनीक के इस्तेमाल से सेब की नर्सरी चला रहे हिमाचल प्रदेश के किसान पवन कुमार गौतम की आमदनी में न सिर्फ़ बढ़ोतरी हुई, बल्कि आज वो एक सफल नर्सरी उद्यमियों में शुमार हैं। 

रूटस्टॉक मल्टीप्लीकेशन तकनीक सेब उत्पादन की दिशा में एक ऐसा सफल प्रयास है, जिससे छोटे किसान भी कम ज़मीन पर सेब के अधिक पौधे लगाकर पर्याप्त आय कमा कर, सुनहरे भविष्य का सपना पूरा कर सकते हैं।

किसने विकसित की तकनीक?

इस तकनीक को श्रीनगर स्थित ICAR-सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ़ ट्रॉपिकल हॉर्टिकल्चर के वैज्ञानिकों ने विकसित किया है। इस तकनीक की बदौलत हिमाचल प्रदेश के चंबा ज़िले के सलोनी के रहने वाले पवन कुमार गौतम सफल नर्सरी उद्यमी बनने में सफल हुए। इससे पहले पारंपरिक रूटस्टॉक वाले सेब के पौधों की मांग घटने से उनका सेब की नर्सरी का उद्योग डगमगा गया था, मगर इस तकनीक ने उन्हें नई राह दिखाई।

सेब की नर्सरी रूटस्टॉक Rootstock Multiplication Technology
तस्वीर साभार: ICAR

3 दशक से चला रहे सेब की नर्सरी

नर्सरी उद्योग की शुरुआत पवन कुमार गौतम के दादा ने 35 साल पहले सेब के बाग लगाकर की थी। उसके बाद इस परंपरा को उनके पिता ने आगे बढ़ाया और आधे हेक्टेयर में अच्छी गुणवत्ता वाले पौधे लगाए। अब गौतम अपने इस पारिवारिक नर्सरी उद्योग को बुलंदियों पर ले जाने के लक्ष्य के साथ काम कर रहे हैं। 

क्या आई मुश्किल? 

इलाके में जब लो डेंसिटी से हाई डेंसिटी वाले बाग स्थापित होने लगे तो इनके पारंपरिक रूटस्टॉक वाले सेब के पौधों की मांग कम होने लगी। क्लोनल रूटस्टॉक की मांग बढ़ने लगी। उनका परिवार पूरी तरह से नर्सरी उद्योग पर ही निर्भर था, ऐसे में मांग कम होने से घाटा होने लगा। परिवार दूसरा कोई काम करने की सोचने लगा, मगर खराब आर्थिक स्थिति के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा था।

सेब की नर्सरी रूटस्टॉक Rootstock Multiplication Technology
तस्वीर साभार: ICAR

सेब की नर्सरी चलाने वाले पवन कुमार ने अपनाई रूटस्टॉक मल्टीप्लीकेशन तकनीक, चार गुना बढ़ी आमदनी

कोलोनल रूटस्टॉक की शुरुआत

पवन कुमार गौतम ने ICAR-सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ़ ट्रॉपिकल हॉर्टिकल्चर से संपर्क किया। संस्थान की मदद से उन्होंने 2015 में क्लोनल रूटस्टॉक को छोटे पैमाने पर उगाना शुरू कर दिया। उन्होंने 105 स्क्वायर मीटर के ग्रीन हाउस में इसे उगाने की शुरुआत की। सीमित संसाधनों से उन्होंने एक साल में सेब के 1800 क्लोनल रूटस्टॉक उगाए, जिससे उन्हें सालाना 1.45 लाख का मुनाफ़ा हुआ। गौतम ने 2021 में संस्थान की सलाह पर नर्सरी में वर्टिकल पद्धति से पौधे उगाने शुरू किए। इसे तैयार करने में उन्हें कुल मिलाकर करीब 35 हज़ार रुपये की लागत आई। 

शुरुआत में इस तकनीक को अपनाने के बाद उन्हें कई मुश्किलों का सामना भी करना पड़ा। संसाधनों की अनुपलब्धता और परिवार का सहयोग नहीं था। हालांकि, पवन के झूझारू जज़्बे को देखते हुए बाद उन्हें परिवार का भी साथ मिला और बाकी काम भी बनते चले गए। 

सेब की नर्सरी रूटस्टॉक Rootstock Multiplication Technology
तस्वीर साभार: ICAR

चार गुना बढ़ी आमदनी

रूटस्टॉक मल्टीप्लीकेशन तकनीक से उन्होंने 7200 स्वस्थ पौधे और उगा डाले। इससे उन्हें करीब 4 लाख 30 हज़ार रुपये की आतिरिक्त आमदनी हुई। नई तकनीक की बदौलत न सिर्फ़ उनकी आमदनी 4 गुना बढ़ी है, बल्कि पारंपरिक से क्लोनल रूटस्टॉक में बदलाव का सपना भी पूरा हुआ। पवन कुमार गौतम इस तकनीक को अन्य दूसरे किसानों तक पहुंचाने का भी काम कर रहे हैं। उन्हें ट्रेनिंग मुहैया करा रहे हैं। वह अपने क्षेत्र में इस तकनीक के ब्रांड एंबेसडर बन गए हैं। 

राज्य के अन्य नर्सरी उद्यमियों की रूटस्टॉक मल्टीप्लीकेशन तकनीक में रुची देखते हुए संस्थान ने 5 दिन के ट्रेनिंग सेशन का भी आयोजन किया। इसने न सिर्फ़ छोटे नर्सरी उद्यमियों की ज़िंदगी में बदलाव आया, बल्कि इसने आत्मनिर्भर बनने में भी मदद की क्योंकि अब क्लोनल रूटस्टॉक को यूरोप या अन्य देशों से आयात करने की ज़रूरत नहीं है।

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