Ganoderma: गैनोडर्मा मशरूम की खेती से करें ज़बरदस्त कमाई, सेहत का भी है अनमोल ख़ज़ाना, Experts से बातचीत
गैनोडर्मा की एक बीजाई से मिलती है तीन फ़सल
औषधीय गुणों वाले मशरूमों में से गैनोडर्मा की विश्व व्यापार में हिस्सेदारी क़रीब 70 फ़ीसदी की है और ये राशि क़रीब 3 अरब डॉलर की है। लेकिन भारत में गैनोडर्मा की पैदावार ख़ासी कम है और माँग बहुत ज़्यादा। तभी तो देश में इसका 200 करोड़ रुपये से ज़्यादा का आयात होता है। कृषि वैज्ञानिक और संस्थान अब गैनोडर्मा मशरूम की खेती को बढ़ावा देने पर काम कर रहे हैं।
गैनोडर्मा ल्यूसिडम, अद्भुत औषधीय गुणों वाला एक चमकदार मशरूम है। ये सेहत के लिए एक शानदार टॉनिक की भूमिका निभाता है। इसका सेवन सभी तरह के रोगियों के अलावा स्वस्थ लोगों के लिए भी लाभदायक है। इससे अनेक कठिन रोगों से मुक्ति मिलती है। इसका कोई साइड इफेक्ट या प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। इसीलिए इसे सर्वगुण सम्पन्न औषधि (panacea), दीर्घायु-मशरूम (mushroom of longevity), अमरत्व-मशरूम (mushroom of immortality) जैसी उपमाओं से भी नवाज़ा गया है।
गैनोडर्मा को ‘adaptogen’ यानी अनुकूलनकारी पदार्थ और उम्दा टॉनिक का दर्ज़ा हासिल है। इसे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (immunity) के लिए वरदान माना गया है, क्योंकि इससे शारीरिक संरचना में सुधार होता है तथा घावों को भरने और ट्यूमर के ठीक होने की अतिरिक्त क्षमता विकसित होती है। इसका नियमित सेवन शरीर को सामान्य और ऊर्जावान बनाता है तथा दिमाग़ को तरोताज़ा रखता है। इससे स्मरण शक्ति और आयु भी बढ़ती है तथा रक्त के कोलेस्ट्रॉल और लिपिड स्तर में कमी आती है।

गैनोडर्मा ल्यूसिडम की पहचान
गैनोडर्मा ल्यूसिडम का नाम लैटिन शब्द लुसिडस (चमकदार) से प्रेरित है। इसकी रंगत ऐसी है मानो प्रकृति ने इसके फल (मशरूम) की सतह पर चमकदार पालिश या वार्निश लगा रखी हो। जैसे सभी मशरूम गैनोडर्मा नहीं होते, वैसे ही सारे गैनोडर्मा, लुसिडम नहीं होते। इसीलिए शुद्ध गैनोडर्मा लुसिडम की पुख़्ता पहचान के लिए वैज्ञानिकों को DNA टेस्ट का सहारा लेना पड़ता है।
गैनोडर्मा, ज़्यादातर उष्णकटिबन्धीय (tropical) इलाकों में और निर्जीव लकड़ी पर ही उगते हैं। इसकी क़रीब 80 किस्में 6 रंगों में पायी जाती हैं – काला, बैंगनी, नीला, सफ़ेद, पीला और लाल। इसमें से पीले रंग के साथ विकसित होने और लाल रंग में परिपक्व होने वाली किस्म ही असली ‘गैनोडर्मा ल्यूसिडम’ (Ganoderma Lucidum) कहलाती है। चीनी सभ्यता में गैनोडर्मा के औषधीय इस्तेमाल का इतिहास हज़ारों साल पुराना है। चीन में इसका नाम ‘लिंगझी’ तथा जापान में ‘रिशी’ (Reishi) है। भारतीय आदिवासी समाज भी प्राचीनकाल से इसके अर्क से जोड़ों के दर्द का उपचार करता रहा है।
गैनोडर्मा मशरूम की खेती में शानदार मुनाफ़ा
औषधीय गुणों वाले मशरूम की कम से कम सात प्रजातियाँ हैं: रिशी (गैनोडर्मा), शिटाके (लेन्टिनुला इडोडसे), ग्राइफोल फ्रांडोसा, कार्डिसेप्स साइनेंस, कोरियोलस (ट्रेमेटीज़), साइज़ोफिल्लम कम्यून और वर्सिकोलर। इनमें से गैनोडर्मा की विश्व व्यापार में हिस्सेदारी क़रीब 70 फ़ीसदी की है और ये राशि क़रीब 3 अरब डॉलर की है। लेकिन भारत में गैनोडर्मा की पैदावार ख़ासी कम है और माँग बहुत ज़्यादा। तभी तो देश में इसका 200 करोड़ रुपये से ज़्यादा का आयात होता है। इसीलिए मशरूम की खेती से जुड़े किसानों के लिए गैनोडर्मा की पैदावार बहुत फ़ायदेमन्द साबित हो सकती है।
चुनौतीपूर्ण है गैनोडर्मा की मार्केटिंग
प्रयागराज स्थित पारि-पुनर्स्थापन वन अनुसन्धान केन्द्र (Forest Research Centre for Eco-rehabilitation) की वैज्ञानिक अनुभा श्रीवास्तव ने ‘किसान ऑफ़ इंडिया’ को बताया कि महज 80 वर्ग मीटर भूमि पर गैनोडर्मा मशरूम की खेती करके सालाना सवा 3 लाख रुपये की आमदनी हो सकती है। लेकिन भले ही गैनोडर्मा अद्भुत गुणों की खान हो, भले ही इसका व्यावसायिक उत्पादन ख़ासा आसान और लाभदायक हो, भले ही देश में इसकी ज़बरदस्त माँग हो, लेकिन दुःखद है कि अब भी देश में इसका मार्केटिंग नेटवर्क शैशव अवस्था में ही है। इसीलिए गैनोडर्मा के उत्पादकों को अपनी उपज बेचने में कुछ दिक़्क़तें हो सकती हैं।
राजस्थान में सीकर के निवासी और ‘मशरूम मैन ऑफ़ इंडिया’ के नाम से मशहूर भोला राम शर्मा उन सफल किसानों में से हैं जो ना सिर्फ़ मशरूम की अनेक किस्में उगाते हैं बल्कि गैनोडर्मा मशरूम का पाउडर बनाकर बेचते भी हैं। लेकिन उनमें इतनी क्षमता नहीं है कि वो अन्य किसानो से गैनोडर्मा ख़रीद सकें। उन्होंने बताया है कि गैनोडर्मा के वैश्विक बाज़ार में मलेशिया की दवा निर्माता कम्पनी DXN का तक़रीबन एकाधिकार है। इसने भारत में भी अपने बाज़ार को ख़ासा बढ़ाया है। इसीलिए गैनोडर्मा की मार्केटिंग से जुड़ी चुनौतियों को देखते हुए ICAR जैसे शीर्ष कृषि संगठन और ‘नेफेड’ जैसे एग्रो मार्केटिंग एजेंसी से उपयुक्त कार्रवाई अपेक्षित है।

क्यों अद्भुत है गैनोडर्मा के औषधीय गुण?
गैनोडर्मा में मौजूद एडीनोसिन ख़ून में थक्का बनाने की प्रक्रिया को रोकता है। इसके सेवन से एड्रिनल ग्रन्थि की क्षमता बढ़ती है और हार्मोन सन्तुलन स्थापित होता है। मरीज़ की आयु तथा शारीरिक संरचना कैसी भी हो, गैनोडर्मा मानव शरीर का वजन, पाचन तथा उपापचयी (metabolic) क्रियाएँ सन्तुलित करता है। ये एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी-कैंसर, एंटी-ट्यूमर, एंटी-माइक्रोबियल, एंटी-फंगल, एंटी-वायरल, एंटी-इंफ्लेमेटरी आदि भी है। यह यकृत (liver) के क्रियाकलापों और उच्च रक्तचाप में सुधार लाता है।
गैनोडर्मा के सेवन का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता और अनेक जटिल रोगों से मुक्ति मिलती है। ये साइटिका, अर्थराइटिस, स्पॉन्डिलाइटिस, सन्धि जोड़ों की तकलीफ़ों और स्त्री रोगों तथा मूत्र विकारों में भी लाभकारी है। डायबिटीज जैसे असाध्य रोग को भी गैनोडर्मा के सेवन से दूर किया जा सकता है। यह न सिर्फ़ इनसुलिन की भूमिका निभाता है, बल्कि पैनक्रियास (अग्न्याशय) ग्रन्थियों को अतिरिक्त इनसुलिन बनाने के लिए भी प्रेरित करता है।
‘गैनोडर्मा’ का सेवन करने पर शुरुआत में कुछ मरीज़ों में कमज़ोरी, खुजली तथा ज़्यादा पेशाब होने के लक्षण पाये जा सकते हैं, लेकिन ये स्वाभाविक लक्षण हैं और इसका नाता हमारी व्यक्तिगत और शारीरिक संरचना से होता है। दूसरी ओर, इन लक्षणों का मतलब है कि औषधि का शरीर में असर हो रहा है और कुछ दिनों बाद ये असामान्य लक्षण समाप्त हो जाते हैं।
गैनोडर्मा की खेती के लिए ज़रूरी संसाधन
गैनोडर्मा मशरूम की खेती से जुड़ने से पहले उपज को बेचने से जुड़ी जानकारियाँ जुटाना ज़रूरी है। हालाँकि, अभी देश में आयुर्वेदिक उत्पादों के कुछेक निर्माता इसके अर्क और पाउडर का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन ऐसी दवा कम्पनियों तक पहुँचना सामान्य गैनोडर्मा उत्पादक के ढूँढ़ना ज़रा मुश्किल हो सकता है। इस सिलसिले में ICAR – खुम्ब अनुसन्धान निदेशालय, चम्बा घाट, सोलन के अलावा नज़दीकी कृषि विज्ञान केन्द्र और अन्य गैनोडर्मा उत्पादकों से भी मदद ली जा सकती है।
जल्द ही- गैनोडर्मा की खेती का भाग-2: क्या है इस अद्भुत मशरूम की खेती का वैज्ञानिक तरीका
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