खरबूजे की खेती में पेटा काश्त पद्धति का इस्तेमाल कर रहे किसान, जानिए क्या है तकनीक और क्यों हो रही लोकप्रिय

कम पानी और कम खाद के इस्तेमाल से अच्छी गुणवत्ता वाले खरबूजे उगाए जा रहे हैं

खरबूजे की खेती गर्म और शुष्क जलवायु में अच्छी होती है। इसलिए राजस्थान में इसकी खूब खेती होती है, लेकिन यहां पानी की कमी मुख्य समस्या है, जिसकी वजह से यहां के किसानों ने खरबूजे की खेती के लिए एक खास पद्धति विकसित की है। जानिए क्या है ये तकनीक।

गर्मियों के ख़ास फल खरबूजे की खेती राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और तमिलनाडू में मुख्य रूप से की जाती है। खरबूजे की खेती के लिए हल्की रेतीली बलुई दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है। खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था होना भी ज़रूरी है, क्योंकि पानी भरने से पौधों में रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इसकी खेती के लिए गर्म जलवायु उपयुक्त होती है। इसलिए राजस्थान का मौसम और मिट्टी खरबूजे के उत्पादन के लिए अच्छा है। हालांकि, खेती के लिए पानी की कमी यहां हमेशा बनी रहती है, ऐसे में यहां के किसानों ने खरबूजे की खेती के लिए एक खास पद्धति विकसित की है, जिसे पेटा काश्त पद्धति कहते हैं। इसमें कम पानी और खाद के अच्छी गुणवत्ता वाले खरबूजे उगाए जा रहे हैं।

खरबूजे की खेती muskmelon farming
पेटा काश्त में खरबूजे की खेती (तस्वीर साभार: ICAR)

क्या है खरबूजे की खेती की पेटा काश्त पद्धति?

राजस्थान के जालोर, पाली और जोधपुर ज़िले के अधिकांश किसान खरबूजे की खेती इसी पद्धति से कर रहे हैं। जनवरी महीने के बाद जब बांध का पानी तेज़ी से कम होने या खत्म होने लगता है, ऐसे में जिस सतह से पानी कम हुआ है, वह नम रहती है। भूमि की इसी नमी का इस्तेमाल करके खरबूजे उगाए जाते हैं, क्योंकि यह मिट्टी अधिक उपजाऊ होती है। इसलिए इसमें खाद डालने की भी ज़रूरत नहीं पड़ती।

नमी वाली जगह पर खरबूजे उगाए जाते हैं तो खेती की इस तकनीक को पेटा काश्त पद्धति कहते हैं। छोटे व गरीब किसानों को इससे लाभ हुआ है क्योंकि बिना अधिक लगात के वह अच्छी फसल प्राप्त कर सकते हैं, जिससे मुनाफ़ा अधिक होता है।

खरबूजे की खेती muskmelon farming
तस्वीर साभार-iihr

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कम संसाधनों से कम समय में गुणवत्तापूर्ण खरबूजे

इस पद्धति में चूंकि उर्वरक का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, इसलिए खरबूजा अधिक स्वादिष्ट और मीठा होता है। गर्मी के मौसम में ठंडक का एहसास दिलाता है। अच्छी गुणवत्ता के कारण ही बाज़ार में इस खरबूजे की अधिक मांग है और यह तुरंत बिक जाता है। इसका एक फल आधा से एक किलो का होता है। आकार में छोटे होने के कारण यह जल्दी खराब नहीं होता और इसे अधिक दूरी तक भी भेजा जा सकता है। इस तकनीक से कम संसाधनों से कम समय में गुणवत्तापूर्ण खरबूजे प्राप्त हो जाते हैं। बुवाई के ढ़ाई से 3 महीने में खरबूजे की फसल तैयार हो जाती है यानी फरवरी-मार्च में बुवाई करने पर जून तक फसल काटने के लिए तैयार हो जाती है।

कैसे करें बुवाई?

बीजों को अंकुरित करने के बाद बुवाई की जाती है। अंकुरण के लिए बीजों को ठंडे पानी से धोने के बाद 300-500 ग्राम की पोटली बनाई जाती है। इस पर गुनगुने पानी के छींटे मारकर अनाज के भंडारण वाली जगह पर रखा जाता है। फिर ऊपर से 3-4 बोरियां डाल दी जाती है ताकि गर्मी की वजह से अंकुरण जल्दी हो जाए। 2 दिनों में ही अंकुरण होने लगता है। फिर इसे निकालकर मटके में डाल दें। अब 10-15 सेंटीमीटर आकार के गड्ढ़े बनाएं और 4-6 सेंटीमीटर पर बीजों की बुवाई करें। बुवाई पंक्तियों में करें और पंक्ति से पंक्ति के बीच की दूरी 4 फ़ीट रखें। पौधों से पौधें की दूरी एक फ़ीट तक रख सकते हैं।

पेटा काश्त पद्धति में ज़्यादातर कजरी किस्म का खरबूजा बोया जाता है। इस किस्म का रंग गहरे हरे से लेकर हल्के भूरे रंग का होता है। बुवाई के 5-6 दिन बाद बीज अंकुरित होने लगते हैं। कीटों व रोगों से बचाने के लिए कीटनाशकों का इस्तेमाल करें। पहले गड्ढ़े में 3-4 पौधे रहने दिए जाते हैं, लेकिन जब यह थोड़े बड़े होते हैं तो सिर्फ दो पौधे ही रखे जाते हैं ताकि खरबूजे के पौधों की बेल अच्छी तरह से फैल सके।

खरबूजे की खेती muskmelon farming
तस्वीर साभार- etsy

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कितने दिनों में तैयार होती है फसल?

बुवाई के दो माह बाद पौधों में फूल आने लगते हैं और ढ़ाई से तीन महीने में फसल मंडी में बेचने के लिए तैयार हो जाती है। मंडी में ले जाने के लिए खरबूजे एक दिन पहले दोपहर बाद तोड़कर टोकरियों, ट्रैक्टर या मिनी ट्रक में भर कर रख लें। कोशिश करें कि अगले दिन सुबह 4 बजे तक मंडी में बेचने के लिए पहुंच जायें। बाड़ी का खरबूजा स्थानीय लोगों के साथ-साथ आसपास की मंडियों में अच्छे स्वाद के कारण काफी लोकप्रिय है। अच्छे स्वाद के कारण यह तुरंत बिक जाता है। 

अजमेर-अहमदाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित हेमावास बांध में खरबूजा बाड़ी लगाने वाले कई किसानों में से एक किसान पेमा राम पिछले 5 साल से 10 बीघा में खरबूजा बाड़ी लगा रहे हैं। इससे वे लगभग 2,25,000 रुपये सालाना का वार्षिक लाभ कमा रहे हैं।

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