गैनोडर्मा मशरूम धीमी गति से बढ़ने वाला कवक है। इसे उगाने की दो विधियाँ हैं – पहला, लकड़ी के लट्ठे यानी wood logs के ज़रिये और दूसरा, प्लास्टिक के थैले या बोतल में बुरादा भरकर यानी bed logs या synthetic logs के ज़रिये। लकड़ी के लट्ठों पर गैनोडर्मा उगाने की विधि काफ़ी पुरानी और ज़रा कठिन है इसीलिए अब कम प्रचलित है। जबकि प्लास्टिक के थैले में बुरादा भरकर उगायी जाने वाली दूसरी विधि आसान और ज़्यादा प्रचलित है। इससे ज़्यादा पैदावार पाने के अलावा रोगों से बचाव आसान होता है। इसकी खेती छोटे कमरों में भी हो सकती है।
गैनोडर्मा मशरूम के पनपने के लिए देवदार और चीड़ जैसे उन पेड़ों की लट्ठे या बुरादा उपयुक्त नहीं होते जिनमें तैलीय तत्व पाये जाते हैं। इसके लिए चौड़ी पत्तियों वाले पेड़ जैसे आम, जामुन, पीपल, पापलर शीशम आदि की लकड़ी और इसका बुरादा बेहतरीन होता है। चीन-जापान में इसके लिए ओक, चेस्टनट और एप्रीकाट जैसे पेड़ों के लट्ठे और बुरादा का इस्तेमाल होता है। गैनोडर्मा के प्रमाणिक बीज (spawn) और लिक्विड मदर कल्चर, दोनों रूप में मिलते हैं। इन्हें ऑनलाइन पोर्टल्स के अलावा ICAR की प्रयोगशालाओं से हासिल किया जा सकता है। औसतन इसका दाम 500 रुपये प्रति किलोग्राम है।
![गैनोडर्मा मशरूम की खेती part2 1](https://www.kisanofindia.com/wp-content/uploads/2023/02/गैनोडर्मा-मशरूम-की-खेती-part2-1.jpg)
1. लकड़ी के लट्ठे वाली विधि (wood logs method)
इस विधि के तहत पतझड़ के बाद चौड़ी पत्ती वाले चुने गये पेड़ों की क़रीब 20 सेंटीमीटर लम्बे और 25 सेंटीमीटर मोटे टुकड़ों को काटते हैं। इन लट्ठों को 40-50 प्रतिशत की नमी के स्तर तक सुखाकर साफ़ जगह पर रखते हैं। फिर इन लट्ठों में क़रीब 2 सेंटीमीटर मोटे और 5 सेंटीमीटर गहरे 6 से 10 तक छेद करते हैं। इन छिद्रों में गेहूँ के दाने या बुरादे पर बने गैनोडर्मा के स्पॉन (spawn) को भरकर छेदों को पिघली हुई मोम से सील कर देते हैं। अब इन लट्ठों की बाहरी सतह को ‘ऑटोक्लेव’ मशीन के ज़रिये निजर्मीकृत (sterilized) करने के बाद बन्द कमरे या ग्रीन हाउस में एक के ऊपर एक करके रखते हैं और तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस और आर्द्रता क़रीब 75 प्रतिशत बनाये रखते हैं।
ऑटोक्लेव प्रक्रिया के कुछ ही दिनों बाद लकड़ी के लट्ठों पर गैनोडर्मा मशरूम का कवकजाल या माइसीलियम (mycelium) पूरी तरह फैल जाता है। अब ग्रीन हाउस में ही चार हिस्सा मिट्टी में एक हिस्सा सड़ा गोबर मिलाकर विशेष मिश्रण तैयार करते हैं, क्योंकि ग्रीनहाउस से सीधी धूप और कीड़ों से सुरक्षा मिलती है। फिर इस मिश्रण को भी निजर्मीकृत करके इसके ढेर को ज़मीन में फैला देते हैं तथा इसमें कवकजाल से ढके हुए लकड़ी के लट्ठों को पूरा गाड़ देते हैं। गाड़ने के बाद भी लट्ठों के ऊपर एक-दो सेंटीमीटर मिश्रण डालकर छोड़ देते हैं।
एक अन्य विधि में लकड़ी के इन लट्ठों को मिश्रण वाली ज़मीन में गाड़ते नहीं हैं, बल्कि उसके ऊपर रखकर खुला ही छोड़े देते हैं। बहरहाल, इस तरह से गैनोडर्मा की बीजाई की प्रक्रिया पूरी हो जाती है। इसके बाद ग्रीन हाउस या कमरे का तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस ही रखते हैं लेकिन मिश्रण की हल्की सिंचाई करके नमी को 80-90 प्रतिशत बढ़ाकर रखते हैं।
कमरे को सीधी धूप से बचाते हैं, लेकिन रोशनी और ताज़ा हवा के आवागमन का पर्याप्त ख़्याल रखते हैं। अब यदि कभी-कभार गैनोडर्मा के लट्ठों के आसपास कुछ खरपतवार या कीड़े वग़ैरह नज़र आएँ तो उन्हें निकालकर नष्ट कर देते हैं। गैनोडर्मा की खेती में किसी भी कीटनाशक का इस्तेमाल कभी नहीं करना चाहिए।
कुछेक दिनों बाद जब धीरे-धीरे गैनोडर्मा की डंठलों पर पनमी छतरी (कैप) का पीला और सफ़ेद रंग पूरी तरह से लाल या कत्थई रंग में बदलने लगे तो नमी के स्तर को घटाकर 50 प्रतिशत के स्तर तक ले आएँ। अब कैप पर ब्राउन पाउडर के रूप में बीजाणु (spore) जमने लगेंगे। ये गैनोडर्मा के परिपक्व होने और तोड़े जाने लायक अवस्था है।
![गैनोडर्मा मशरूम गैनोडर्मा मशरूम की खेती part2 1](https://www.kisanofindia.com/wp-content/uploads/2023/02/Untitled-design-2022-05-18T143213.836.webp)
2. बुरादे वाली बेड लाग्स विधि (bed logs or synthetic logs method)
गैनोडर्मा की खेती करने वाले तक़रीबन सभी देशों में अब बेड लाग्स विधि बेहद प्रचलित है। इसके कई कारण हैं – लट्ठों की कमी, उनकी अन्य कार्यों में ज़्यादा माँग होने से ज़्यादा दाम। जबकि बुरादा एक ऐसा माध्यम है जो टिम्बर उद्योग का बाइप्रोडक्ट (उप-उत्पाद) है। ये अपेक्षाकृत सस्ता और पर्यावरण के अनुकूल है। चूँकि इस विधि में भी पूरी तरह से निजर्मीकृत माध्यम का प्रयोग होता है, इसीलिए पैदावार भी ज़्यादा मिलती है तथा रोग और कीड़े-मकोड़ों की समस्या भी लट्ठा विधि के मुक़ाबले बहुत कम होती है।
बेड लाग्स विधि में जब बुरादे को कवकजाल या माइसीलियम पूरी तरह से जकड़ लेते हैं तो बुरादा ही एक सख़्त लट्ठा बन जाता है जो पॉलीथीन हटाने के बाद भी टूटता नहीं है। हालाँकि, हरेक पॉलिथीन बैग की उम्र क़रीब चार महीने लम्बे एक फ़सल चक्र के लिए ही होती है। इसमें बुरादे की क्वालिटी और गैनोडर्मा के उन्नत बीजों का बहुत ख़्याल रखना चाहिए। बीजों को ख्याति प्राप्त जीन बैंक से ही मँगाना चाहिए।
समुचित लकड़ी के बुरादे का भी बहुत महत्व है, क्योंकि आमतौर पर आरा मशीनों में अनेक पेड़ों का बुरादा मिक्स रहता है। भारतीय जलवायु के हिसाब से गैनोडर्मा की खेती के लिए आम की लकड़ी का बुरादा सबसे बढ़िया होता है। इसकी ग़ैरमौजूदगी में शीशम, पापलर, नारियल और महुआ का बुरादा भी इस्तेमाल हो सकता है। आरा मशीन से बुरादा को लाने के बाद उसे धूप में अच्छी तरह सुखाना चाहिए और इस्तेमाल होने तक सूखे वातावरण में बन्द कमरे में रखना चाहिए।
3. बुरादे को उपयुक्त बनाने की प्रक्रिया
गैनोडर्मा की खेती के लिए बुरादे में 20 प्रतिशत गेहूँ या धान का भूसा या चोकर तथा जिप्सम (कैल्शियम सल्फेट) और चाक मिट्टी (कैल्शियम कार्बोनेट) की थोड़ी-थोड़ी मात्रा के अलावा इसकी कुल मात्रा जितना ही पानी मिलाना चाहिए ताकि मिश्रण में 65 प्रतिशत पानी हो और इसका pH मान 5.5 होना चाहिए। मिश्रण में pH मान के सन्तुलन के लिए जिप्सम तथा चाक मिट्टी को आवश्यकता अनुसार मिलना चाहिए। जिप्सम से pH मान नीचे आता है तो चाक मिट्टी इसे ऊपर ले जाती है।
इस तरह, तैयार मिश्रण या माध्यम को प्लास्टिक की थैलियों में भरकर बैग के मुँह पर रिंग लगाकर उसे रूई से अच्छी तरह बन्द करके आटोक्लेव में डालें और 22 पौंड के प्रेशर पर दो घंटे तक गर्म करके निजर्मीकृत (sterilized) करें। ठंडा होने पर 10 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से गैनोडर्मा के बीजों को मिश्रण में मिलाएँ और फिर इन्हें प्लास्टिक की अलग-अलग थैलियों में 2-2 किलोग्राम मात्रा के हिसाब से डाल कर दें और बैग के मुँह पर रिंग लगाकर उसे रूई से अच्छी तरह बन्द कर दें।
बीजाई की इस प्रक्रिया के दौरान स्वच्छ वातावरण का विशेष ध्यान रखें, ताकि स्पॉन किसी भी तरह के संक्रमण से सुरक्षित रहें। इसके बाद स्पॉन को पनपने के लिए थैलियों को ऐसे अन्धेरे और बन्द कमरों में रखा जाता है जिसका तापमान 28-32 डिग्री सेल्सियस के बीच रहे। चूँकि गैनोडर्मा बहुत धीमी गति से पनपने वाला कवक है इसीलिए इसका कवकजाल या माइसीलियम (mycelium) बनने में क़रीब महीना भर लग जाता है। ये अवधि स्पॉन-रन (spawn-run period) कहलाती है।
कवकजाल के प्रभाव से जब बैग पूरी तरह सफ़ेद हो जाए और फिर थोड़ा पीला पड़ने लगे तथा टॉप पर काले बुरादे का नामो-निशान नज़र नहीं आये, तब कैंची से टॉप भाग को काट देना चाहिए। यदि ऊपर मुँह की ओर कुछ बुरादे के काले कण दिखाई देते हैं तो उस पर ग्रीन फफूँद की बीमारी आ जाती है। अब कटे हुए थैलों को गैनोडर्मा उत्पादन कक्ष में रैक्स (racks) पर रख देते हैं। इन्हें खड़ा (vertical) या पट (horizontal), किसी भी तरह से रख सकते हैं। लेकिन इस अवस्था में थैलियों को प्रकाश और ताज़ा हवा मिलनी चाहिए और नमी का स्तर क़रीब 90 प्रतिशत रखना चाहिए।
इससे गैनोडर्मा का तना पनपने लगता है। इसे पिनिंग कहते हैं। इसमें पहले पिन (तना) लम्बाई में बढ़ती है फिर रूककर फैलने या चौड़ी होने लगती है। इस अवस्था को कैप फार्मेशन (cap formation) कहते हैं। इस वक़्त नमी को ज़रा घटाकर 80 प्रतिशत करना चाहिए वो ताज़ा हवा का प्रवाह थोड़ा बढ़ाना चाहिए क्योंकि इसी अवस्था में गैनोडर्मा में रंग उभरने लगते हैं। अब कैप यानी ‘गैनोडर्मा का फल’ का ऐसे विकसित (growing) होता है कि इसका किनारा सफ़ेद, बीच में पीला और नीचे लाल या कत्थई रंग का होता है।
धीरे-धीरे कैप का सफ़ेद और पीला रंग ख़त्म हो जाता है तथा पूरी कैप लाल या कत्थई रंग की हो जाती है। ये संकेत है कि गैनोडर्मा मशरूम परिपक्व हो गया है। इस दशा में तापमान को घटाकर 25 डिग्री सेल्सियस और नमी को 60 प्रतिशत के स्तर पर ले आते हैं। इससे अगले दो दिनों में गैनोडर्मा के कैप की सतह पर भूरे रंग के बीजाणु (spore) जमने लगते हैं। इसका मतलब होता है कि गैनोडर्मा अब तोड़ने के लिए तैयार है।
Ganoderma Cultivation Part 1: गैनोडर्मा मशरूम की खेती से करें ज़बरदस्त कमाई, सेहत का भी है अनमोल ख़ज़ाना, Experts से बातचीत
आगे पढ़िए – गैनोडर्मा की खेती का भाग-3: कैसे मिलता है एक बीजाई से तीन बार फ़सल कटाई का मौका?
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
![मंडी भाव की जानकारी मंडी भाव की जानकारी](https://www.kisanofindia.com/wp-content/uploads/2022/05/mandi728.webp)
ये भी पढ़ें:
- Equipments For Hydroponic Farming: जानिए हाइड्रोपोनिक खेती के उपकरणों के बारे मेंहाइड्रोपोनिक खेती के उपकरणों (Hydroponic Farming Equipments) में ग्रो लाइट्स, पंप, नली, पीएच मीटर, पोषक तत्व समाधान, ग्रो बेड्स, और कंटेनर शामिल होते हैं।
- Poultry Health Management: पोल्ट्री की देखभाल और प्रबंधन कैसे करें? जानिए कुछ प्रभावी टिप्सपोल्ट्री स्वास्थ्य प्रबंधन (Poultry Health Management) रोगों से बचाव, उत्पादकता बढ़ाने, गुणवत्ता सुधारने और आर्थिक नुकसान कम करने के लिए ज़रूरी है।
- Budget 2024: Agriculture Sector में सरकार की मुख्य घोषणाएं, कृषि क्षेत्र के बजट में बढ़ोतरीइस साल कृषि क्षेत्र के लिए बजट (Budget 2024) को बढ़ाकर 1.52 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है। जानिए आम बजट 2024 में कृषि क्षेत्र के लिए मुख्य ऐलान।
- National Mango Day 2024: मल्लिका, आम्रपाली और प्रतिभा समेत पूसा की उन्नत आम की किस्मेंहमारे देश में लगभग 1500 से अधिक आम की किस्में (Mango Varieties) पाई जाती हैं, जो उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक फैली हुई हैं।
- Sheep Farming Tips: भेड़ों की देखभाल और प्रबंधन के उन्नत तरीकेभेड़ पालन में सफलता के लिए साफ-सुथरा और सुरक्षित आवास, पोषक आहार और नियमित टीकाकरण, ज़रूरी है। यहां हम भेड़ पालन के टिप्स (Sheep Farming Tips) शेयर कर रहे हैं।
- Tuber Crops Cultivation: जानिए कंद फसलों की खेती से जुड़ी जानकारी और कमाएं मुनाफ़ाकंद फसलों की खेती (Tuber Crops Cultivation), जैसे आलू और शकरकंद, किसानों के लिए लाभकारी है। ये पौष्टिक, उच्च मूल्य वाली और कम पानी की आवश्यकता वाली होती हैं।
- Nutritional Balance In Livestock Feed: पशुओं के लिए संतुलित आहार कैसा हो?पशुओं की खुराक में पोषण संतुलन (Nutritional Balance In Livestock Feed) उनकी सेहत, उत्पादकता, रोग प्रतिरोधकता और पशुपालकों के आर्थिक विकास के लिए ज़रूरी है।
- Millet Business Ideas: FPO OTLO के मिलेट्स व्यवसाय से जुड़े 4 हज़ार किसान और महिलाओं को रोज़गारबहुत से FPO और कंपनियां मिलेट्स व्यवसाय में उतरी हैं। प्रोसेसिंग कर मिलेट्स से ढेर सारी हेल्दी चीज़ें बना रही हैं, ऐसा ही एक FPO गुजरात के डांग ज़िले में काम कर रहा है।
- Balanced Diet For Livestock: जन्म से लेकर गर्भावस्था तक क्यों ज़रूरी पशुओं के लिए संतुलित आहार? जानिए हरविंदर सिंह सेपशुओं के लिए संतुलित आहार (Balanced Diet For Livestock) से पशुपालक न केवल लागत में कमी ला सकते हैं, बल्कि दूध का भी बंपर उत्पादन भी ले सकते हैं।
- Fish farming Practices: तालाब बनाने से लेकर मछलियों के बीज और बाज़ार भाव पर विनीत सिंह से बातमछली पालन में उन्नत प्रबंधन (Advanced Management in Fisheries) शामिल करता है: स्वच्छ जल और आहार प्रबंधन, रोग नियंत्रण, प्रौद्योगिकी उपयोग, और सरकारी योजनाएं।
- Live Fish Packing: भारत का पहली लाइव फ़िश यूनिट! वंदना का मंत्र, अच्छा दाना और भरपूर ऑक्सीजनलाइव फ़िश पैकिंग तकनीक (Live Fish Packing Technique) मछलियों को जीवित रखते हुए पैक और परिवहन करने की प्रक्रिया है, जिससे वो लंबे समय तक ताज़ी रह सकती हैं।
- जैविक खेती के तरीके: बागपत के इस किसान ने Multilayer Farming का बेहतरीन मॉडल अपनायाविनीत चौहान ने 5 साल पहले बागवानी की शुरुआत की। वो पूरी तरह से जैविक खेती के तरीके (Organic Farming Techniques) अपनाते हुए ऑर्गेनिक उत्पादन लेते हैं।
- Dragon Fruit Farming: ड्रैगन फ़्रूट फ़ार्मिंग में कितनी लागत और क्या है बाज़ार? जानें किसान सुनील सेड्रैगन फ़्रूट की खेती में लागत और लाभ की बात करें तो किसानों को पहला उत्पादन तीन से चार लाख रुपये का मिलता है। एक एकड़ से 4 से 5 टन का उत्पादन मिल जाता है।
- Vegetable Nursery Guide: सब्ज़ियों की नर्सरी कैसे तैयार कर सकते हैं? जानिए नसीर अहमद सेकिसान नसीर अहमद पिछले करीब 5-6 सालों से सब्ज़ियों की नर्सरी (Vegetable Nursery Business) का बिज़नेस कर रहे हैं। सब्ज़ियों की नर्सरी से जुड़ी कई अहम बातें उन्होंने बताईं।
- Barley Cultivation Variety: जौ की उपज दोगुनी करने वाली नयी किस्म है DWRB-219भारतीय गेहूं और जौ अनुसन्धान संस्थान ने जौ की उपज की DWRB-219 किस्म ईज़ाद की है, जिसकी पैदावार परम्परागत किस्मों के मुक़ाबले दोगुनी है।
- Allelochemical Weed Management: कपास की खेती में अंतरवर्तीय फसल प्रणाली से खरपतवार नियंत्रणकपास की फ़सल को खरपतवार से सुरक्षित रखने में अंतरवर्तीय फसल प्रणाली (Intercropping System) की तकनीक बेहद उपयोगी और किफ़ायती साबित होती है।
- यहां से लें Pearl Farming की ट्रेनिंग, आवेदन करने की ये है आखिरी तारीख़ICAR- Central Institute Of Freshwater Aquaculture, Bhubaneswar (CIFA) मीठे पानी में मोती पालन (Pearl Farming) के राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है।
- Drip Irrigation Technique: पानी और पैसा दोनों बचाएं ड्रिप इरिगेशन से, जानें टपक सिंचाई तकनीक के फ़ायदेड्रिप सिंचाई प्रणाली (Drip Irrigation System) एक अत्याधुनिक सिंचाई तकनीक है जो पानी की बचत और फसलों की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने में मदद करती है।
- Crop Rotation In Agriculture: जानिए क्यों अहम है खरीफ़ मौसम में उन्नत फ़सल चक्रखरीफ़ मौसम के दौरान कृषि में फ़सल चक्र (Crop rotation in agriculture) अपनाकर किसान अपने खेत को कई तरह की परेशानियों से बचाते हैं।
- खरीफ़ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price) में कितनी हुई बढ़ोतरी?भारत सरकार अपने बफ़र स्टॉक या सार्वजनिक वितरण प्रणाली को बनाए रखने के लिए लगभग 23 फसलों के उपज को MSP पर खरीद करती है।