गैनोडर्मा मशरूम धीमी गति से बढ़ने वाला कवक है। इसे उगाने की दो विधियाँ हैं – पहला, लकड़ी के लट्ठे यानी wood logs के ज़रिये और दूसरा, प्लास्टिक के थैले या बोतल में बुरादा भरकर यानी bed logs या synthetic logs के ज़रिये। लकड़ी के लट्ठों पर गैनोडर्मा उगाने की विधि काफ़ी पुरानी और ज़रा कठिन है इसीलिए अब कम प्रचलित है। जबकि प्लास्टिक के थैले में बुरादा भरकर उगायी जाने वाली दूसरी विधि आसान और ज़्यादा प्रचलित है। इससे ज़्यादा पैदावार पाने के अलावा रोगों से बचाव आसान होता है। इसकी खेती छोटे कमरों में भी हो सकती है।
गैनोडर्मा मशरूम के पनपने के लिए देवदार और चीड़ जैसे उन पेड़ों की लट्ठे या बुरादा उपयुक्त नहीं होते जिनमें तैलीय तत्व पाये जाते हैं। इसके लिए चौड़ी पत्तियों वाले पेड़ जैसे आम, जामुन, पीपल, पापलर शीशम आदि की लकड़ी और इसका बुरादा बेहतरीन होता है। चीन-जापान में इसके लिए ओक, चेस्टनट और एप्रीकाट जैसे पेड़ों के लट्ठे और बुरादा का इस्तेमाल होता है। गैनोडर्मा के प्रमाणिक बीज (spawn) और लिक्विड मदर कल्चर, दोनों रूप में मिलते हैं। इन्हें ऑनलाइन पोर्टल्स के अलावा ICAR की प्रयोगशालाओं से हासिल किया जा सकता है। औसतन इसका दाम 500 रुपये प्रति किलोग्राम है।

1. लकड़ी के लट्ठे वाली विधि (wood logs method)
इस विधि के तहत पतझड़ के बाद चौड़ी पत्ती वाले चुने गये पेड़ों की क़रीब 20 सेंटीमीटर लम्बे और 25 सेंटीमीटर मोटे टुकड़ों को काटते हैं। इन लट्ठों को 40-50 प्रतिशत की नमी के स्तर तक सुखाकर साफ़ जगह पर रखते हैं। फिर इन लट्ठों में क़रीब 2 सेंटीमीटर मोटे और 5 सेंटीमीटर गहरे 6 से 10 तक छेद करते हैं। इन छिद्रों में गेहूँ के दाने या बुरादे पर बने गैनोडर्मा के स्पॉन (spawn) को भरकर छेदों को पिघली हुई मोम से सील कर देते हैं। अब इन लट्ठों की बाहरी सतह को ‘ऑटोक्लेव’ मशीन के ज़रिये निजर्मीकृत (sterilized) करने के बाद बन्द कमरे या ग्रीन हाउस में एक के ऊपर एक करके रखते हैं और तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस और आर्द्रता क़रीब 75 प्रतिशत बनाये रखते हैं।
ऑटोक्लेव प्रक्रिया के कुछ ही दिनों बाद लकड़ी के लट्ठों पर गैनोडर्मा मशरूम का कवकजाल या माइसीलियम (mycelium) पूरी तरह फैल जाता है। अब ग्रीन हाउस में ही चार हिस्सा मिट्टी में एक हिस्सा सड़ा गोबर मिलाकर विशेष मिश्रण तैयार करते हैं, क्योंकि ग्रीनहाउस से सीधी धूप और कीड़ों से सुरक्षा मिलती है। फिर इस मिश्रण को भी निजर्मीकृत करके इसके ढेर को ज़मीन में फैला देते हैं तथा इसमें कवकजाल से ढके हुए लकड़ी के लट्ठों को पूरा गाड़ देते हैं। गाड़ने के बाद भी लट्ठों के ऊपर एक-दो सेंटीमीटर मिश्रण डालकर छोड़ देते हैं।
एक अन्य विधि में लकड़ी के इन लट्ठों को मिश्रण वाली ज़मीन में गाड़ते नहीं हैं, बल्कि उसके ऊपर रखकर खुला ही छोड़े देते हैं। बहरहाल, इस तरह से गैनोडर्मा की बीजाई की प्रक्रिया पूरी हो जाती है। इसके बाद ग्रीन हाउस या कमरे का तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस ही रखते हैं लेकिन मिश्रण की हल्की सिंचाई करके नमी को 80-90 प्रतिशत बढ़ाकर रखते हैं।
कमरे को सीधी धूप से बचाते हैं, लेकिन रोशनी और ताज़ा हवा के आवागमन का पर्याप्त ख़्याल रखते हैं। अब यदि कभी-कभार गैनोडर्मा के लट्ठों के आसपास कुछ खरपतवार या कीड़े वग़ैरह नज़र आएँ तो उन्हें निकालकर नष्ट कर देते हैं। गैनोडर्मा की खेती में किसी भी कीटनाशक का इस्तेमाल कभी नहीं करना चाहिए।
कुछेक दिनों बाद जब धीरे-धीरे गैनोडर्मा की डंठलों पर पनमी छतरी (कैप) का पीला और सफ़ेद रंग पूरी तरह से लाल या कत्थई रंग में बदलने लगे तो नमी के स्तर को घटाकर 50 प्रतिशत के स्तर तक ले आएँ। अब कैप पर ब्राउन पाउडर के रूप में बीजाणु (spore) जमने लगेंगे। ये गैनोडर्मा के परिपक्व होने और तोड़े जाने लायक अवस्था है।

2. बुरादे वाली बेड लाग्स विधि (bed logs or synthetic logs method)
गैनोडर्मा की खेती करने वाले तक़रीबन सभी देशों में अब बेड लाग्स विधि बेहद प्रचलित है। इसके कई कारण हैं – लट्ठों की कमी, उनकी अन्य कार्यों में ज़्यादा माँग होने से ज़्यादा दाम। जबकि बुरादा एक ऐसा माध्यम है जो टिम्बर उद्योग का बाइप्रोडक्ट (उप-उत्पाद) है। ये अपेक्षाकृत सस्ता और पर्यावरण के अनुकूल है। चूँकि इस विधि में भी पूरी तरह से निजर्मीकृत माध्यम का प्रयोग होता है, इसीलिए पैदावार भी ज़्यादा मिलती है तथा रोग और कीड़े-मकोड़ों की समस्या भी लट्ठा विधि के मुक़ाबले बहुत कम होती है।
बेड लाग्स विधि में जब बुरादे को कवकजाल या माइसीलियम पूरी तरह से जकड़ लेते हैं तो बुरादा ही एक सख़्त लट्ठा बन जाता है जो पॉलीथीन हटाने के बाद भी टूटता नहीं है। हालाँकि, हरेक पॉलिथीन बैग की उम्र क़रीब चार महीने लम्बे एक फ़सल चक्र के लिए ही होती है। इसमें बुरादे की क्वालिटी और गैनोडर्मा के उन्नत बीजों का बहुत ख़्याल रखना चाहिए। बीजों को ख्याति प्राप्त जीन बैंक से ही मँगाना चाहिए।
समुचित लकड़ी के बुरादे का भी बहुत महत्व है, क्योंकि आमतौर पर आरा मशीनों में अनेक पेड़ों का बुरादा मिक्स रहता है। भारतीय जलवायु के हिसाब से गैनोडर्मा की खेती के लिए आम की लकड़ी का बुरादा सबसे बढ़िया होता है। इसकी ग़ैरमौजूदगी में शीशम, पापलर, नारियल और महुआ का बुरादा भी इस्तेमाल हो सकता है। आरा मशीन से बुरादा को लाने के बाद उसे धूप में अच्छी तरह सुखाना चाहिए और इस्तेमाल होने तक सूखे वातावरण में बन्द कमरे में रखना चाहिए।
3. बुरादे को उपयुक्त बनाने की प्रक्रिया
गैनोडर्मा की खेती के लिए बुरादे में 20 प्रतिशत गेहूँ या धान का भूसा या चोकर तथा जिप्सम (कैल्शियम सल्फेट) और चाक मिट्टी (कैल्शियम कार्बोनेट) की थोड़ी-थोड़ी मात्रा के अलावा इसकी कुल मात्रा जितना ही पानी मिलाना चाहिए ताकि मिश्रण में 65 प्रतिशत पानी हो और इसका pH मान 5.5 होना चाहिए। मिश्रण में pH मान के सन्तुलन के लिए जिप्सम तथा चाक मिट्टी को आवश्यकता अनुसार मिलना चाहिए। जिप्सम से pH मान नीचे आता है तो चाक मिट्टी इसे ऊपर ले जाती है।
इस तरह, तैयार मिश्रण या माध्यम को प्लास्टिक की थैलियों में भरकर बैग के मुँह पर रिंग लगाकर उसे रूई से अच्छी तरह बन्द करके आटोक्लेव में डालें और 22 पौंड के प्रेशर पर दो घंटे तक गर्म करके निजर्मीकृत (sterilized) करें। ठंडा होने पर 10 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से गैनोडर्मा के बीजों को मिश्रण में मिलाएँ और फिर इन्हें प्लास्टिक की अलग-अलग थैलियों में 2-2 किलोग्राम मात्रा के हिसाब से डाल कर दें और बैग के मुँह पर रिंग लगाकर उसे रूई से अच्छी तरह बन्द कर दें।
बीजाई की इस प्रक्रिया के दौरान स्वच्छ वातावरण का विशेष ध्यान रखें, ताकि स्पॉन किसी भी तरह के संक्रमण से सुरक्षित रहें। इसके बाद स्पॉन को पनपने के लिए थैलियों को ऐसे अन्धेरे और बन्द कमरों में रखा जाता है जिसका तापमान 28-32 डिग्री सेल्सियस के बीच रहे। चूँकि गैनोडर्मा बहुत धीमी गति से पनपने वाला कवक है इसीलिए इसका कवकजाल या माइसीलियम (mycelium) बनने में क़रीब महीना भर लग जाता है। ये अवधि स्पॉन-रन (spawn-run period) कहलाती है।
कवकजाल के प्रभाव से जब बैग पूरी तरह सफ़ेद हो जाए और फिर थोड़ा पीला पड़ने लगे तथा टॉप पर काले बुरादे का नामो-निशान नज़र नहीं आये, तब कैंची से टॉप भाग को काट देना चाहिए। यदि ऊपर मुँह की ओर कुछ बुरादे के काले कण दिखाई देते हैं तो उस पर ग्रीन फफूँद की बीमारी आ जाती है। अब कटे हुए थैलों को गैनोडर्मा उत्पादन कक्ष में रैक्स (racks) पर रख देते हैं। इन्हें खड़ा (vertical) या पट (horizontal), किसी भी तरह से रख सकते हैं। लेकिन इस अवस्था में थैलियों को प्रकाश और ताज़ा हवा मिलनी चाहिए और नमी का स्तर क़रीब 90 प्रतिशत रखना चाहिए।
इससे गैनोडर्मा का तना पनपने लगता है। इसे पिनिंग कहते हैं। इसमें पहले पिन (तना) लम्बाई में बढ़ती है फिर रूककर फैलने या चौड़ी होने लगती है। इस अवस्था को कैप फार्मेशन (cap formation) कहते हैं। इस वक़्त नमी को ज़रा घटाकर 80 प्रतिशत करना चाहिए वो ताज़ा हवा का प्रवाह थोड़ा बढ़ाना चाहिए क्योंकि इसी अवस्था में गैनोडर्मा में रंग उभरने लगते हैं। अब कैप यानी ‘गैनोडर्मा का फल’ का ऐसे विकसित (growing) होता है कि इसका किनारा सफ़ेद, बीच में पीला और नीचे लाल या कत्थई रंग का होता है।
धीरे-धीरे कैप का सफ़ेद और पीला रंग ख़त्म हो जाता है तथा पूरी कैप लाल या कत्थई रंग की हो जाती है। ये संकेत है कि गैनोडर्मा मशरूम परिपक्व हो गया है। इस दशा में तापमान को घटाकर 25 डिग्री सेल्सियस और नमी को 60 प्रतिशत के स्तर पर ले आते हैं। इससे अगले दो दिनों में गैनोडर्मा के कैप की सतह पर भूरे रंग के बीजाणु (spore) जमने लगते हैं। इसका मतलब होता है कि गैनोडर्मा अब तोड़ने के लिए तैयार है।
Ganoderma Cultivation Part 1: गैनोडर्मा मशरूम की खेती से करें ज़बरदस्त कमाई, सेहत का भी है अनमोल ख़ज़ाना, Experts से बातचीत
आगे पढ़िए – गैनोडर्मा की खेती का भाग-3: कैसे मिलता है एक बीजाई से तीन बार फ़सल कटाई का मौका?
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- India’s Dairy Revolution: NDDB में महाशक्तिशाली सांड़ ‘वृषभ’ का जन्म, सुपर बुल और Genomic Selection से तकनीक का चमत्कारराष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (National Dairy Development Board) ने हाल ही में देश के पहले ‘Super Bull’ यानी महाशक्तिशाली सांड़ ‘वृषभ’ के जन्म की घोषणा की है। ये कोई आम सांड़ नहीं है, बल्कि अत्याधुनिक जीनोमिक चयन (Genomic Selection) और इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन–एंब्रियो ट्रांसफर (IVF-ET) तकनीक का चमत्कार है।
- प्राकृतिक खेती से गांव में नई पहचान बना रहे हैं हिमाचल के रहने वाले रोहित सापड़ियाप्राकृतिक खेती अपनाकर रोहित सापड़िया ने कैसे अपनी ज़िंदगी बदली, ख़र्च कम किया और दूसरों को भी खेती की ओर प्रेरित किया, जानिए।
- Rabi Abhiyan 2025: ‘एक राष्ट्र-एक कृषि-एक टीम’ के संकल्प के साथ तैयार होगा New Action Planदिल्ली में 2 दिवसीय ‘राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन-रबी अभियान 2025’ (Two-day ‘National Agriculture Conference – Rabi Abhiyan 2025’) का आगाज़ हो गया है। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई में हो रहे इस सम्मेलन का उद्देश्य न सिर्फ आगामी रबी सीज़न 2025-26 के उत्पादन लक्ष्यों को तय करना है, बल्कि Integrated Strategy के ज़रिए देश के किसानों की आमदनी बढ़ाना और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिए स्ट्रैटजी बनानी है।
- खुशबू और सफलता की नई कहानी: सीमैप की ‘Kharif Mint Technology’ ने बदल दी मेंथा की खेती का नक्शाCentral Institute of Medicinal and Aromatic Plants (सीमैप – CIMAP), लखनऊ के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी क्रांतिकारी टेक्नोलॉजी डेवलप की है जो मेंथा की खेती के पुराने नियमों को ही बदल देती है।
- AI-Based Weather Forecasting: AI की बदौलत बारिश की हर बूंद का अंदाजा! अब नहीं होगी मेहनत बेकार, मिलेगा अगले 4 हफ्ते का पूरा प्लानभारत सरकार ने कृषि क्षेत्र में एक ऐतिहासिक और दुनिया में अपनी तरह का पहला प्रोग्राम शुरू किया है- एआई-आधारित मौसम पूर्वानुमान (AI-based weather forecasting)। ये सिर्फ एक टेक्नोलॉजी प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि करोड़ों किसानों की जिंदगी बदलने का एक ज़रिया है।
- रजीना देवी की सफलता की कहानी प्राकृतिक खेती से मिली नई राहरजीना देवी की प्रेरणादायक सफलता कहानी, जहां प्राकृतिक खेती ने कम लागत और अधिक लाभ से उन्हें नई पहचान दिलाई।
- European Union ने भारतीय मत्स्य निर्यात के लिए खोले नए द्वार, 102 और फर्मों को मिली मंज़ूरीयूरोपीय संघ (European Union) दुनिया के सबसे बड़े और सबसे सख्त मानकों वाले आयात बाजारों में से एक है। उसके खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता के मानक (Food safety and quality standards) काफी हाई हैं। ऐसे में, 102 नई यूनिट्स का मंजूरी पाना इस बात का प्रमाण है कि India’s export control mechanism (एक्सपोर्ट इंस्पेक्शन काउंसिल – EIC) कितना मजबूत और भरोसेमंद है।
- Mushroom Production Training से सहरसा की महिलाएं लिख रहीं आत्मनिर्भरता की कहानी, दे रहीं ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूतीबिहार के सहरसा ज़िले (Saharsa district of Bihar) अगवानपुर के कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) में आयोजित चार दिवसीय मशरूम प्रोडक्शन ट्रेनिंग (Mushroom production training) ने न सिर्फ महिलाओं को एक नई राह दिखाई है, बल्कि उन्हें ‘आत्मनिर्भर भारत’ की मुख्यधारा से जोड़ने का काम किया है।
- हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने किसानों के लिए विकसित की गेहूं की नई क़िस्म WH 1309गेहूं की नई क़िस्म WH 1309 पछेती बिजाई के लिए वरदान है, अधिक पैदावार और रोगरोधी गुणों के साथ किसानों को देगा स्थिर लाभ।
- Role of Technology in Agriculture: कृषि में प्रौद्योगिकी की भूमिका से बदल रहा है भारतीय खेती का भविष्यकृषि में प्रौद्योगिकी की भूमिका किसानों की आय, पैदावार और आत्मनिर्भरता बढ़ा रही है। जिससे भारत में खेती-किसानी की तस्वीर बदल रही है।
- Rangeen Machhli App: ICAR का ‘रंगीन मछली’ ऐप जो दे रहा सजावटी मत्स्य पालन और आजीविका के अवसरों को बढ़ावाRangeen Machhli App सिर्फ एक साधारण जानकारी देने वाला टूल नहीं है, बल्कि ये मछली पालन के शौकीनों (hobbyists), किसानों और बिजनेसमैन के लिए एक पूरी गाइड है। आइए जानते हैं इसकी ख़ास बातें।
- सफ़ेद चादर-सा काशी फूल: झारखंड की संस्कृति और जीवन से जुड़ी अनोखी पहचानझारखंड की संस्कृति और जीवन से जुड़ा काशी फूल शरद ऋतु का प्रतीक है। यह फूल आजीविका और धार्मिक महत्व दोनों में अहम भूमिका निभाता है।
- National Gopal Ratna Award 2025: देश के डेयरी किसानों और तकनीशियनों का सर्वोच्च सम्मान, जानिए कैसे करें अप्लाईराष्ट्रीय गोपाल रत्न पुरस्कार 2025 (National Gopal Ratna Award 2025) देश के डेयरी किसानों, सहकारी समितियों और तकनीशियनों (Dairy farmers, co-operatives and technicians) के लिए एक शानदार अवसर है। ये न केवल एक Prestigious honors और Financial Aid प्रदान करता है, बल्कि देश के Dairy Sector में वैज्ञानिक और टिकाऊ तरीकों को अपनाने के लिए एक बड़ा प्रोत्साहन भी है।
- प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के 5 साल, क्या कहते हैं मछली पालन से जुड़े ताज़ा आंकड़े?प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना: ब्लू इकोनॉमी की ताकत, तकनीक और रोजगार से बदल रहा है भारत का मत्स्य क्षेत्र।
- सरस आजीविका मेला 2025: Vocal for Local और ग्रामीण आजीविका का संगम 22 सितंबर तक22 सितंबर तक दिल्ली में आयोजित सरस आजीविका मेला 2025, लखपति दीदियों और ग्रामीण महिलाओं के उत्पाद, संस्कृति, वोकल फॉर लोकल और आत्मनिर्भर भारत का उत्सव है।
- गोबर से कागज़ और राखियां बनाकर जयपुर के भीमराज शर्मा ने शुरू किया अनोखा एग्री बिज़नेसगोबर से कागज़ और राखियां बनाकर एग्री बिज़नेस में जयपुर के भीमराज शर्मा ने पर्यावरण हितैषी नवाचार से नई पहचान बनाई।
- जामताड़ा ज़िले में मुख्यमंत्री पशुधन विकास योजना से पशुपालकों को आत्मनिर्भरता की राहमुख्यमंत्री पशुधन विकास योजना से जामताड़ा के किसानों को मिला चूज़ा वितरण का लाभ, पशुपालन से आत्मनिर्भरता की नई राह।
- अडबंधा में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम से किसानों की आमदनी बढ़ी, मछली पालन बना आजीविका का नया साधनमहात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम से अडबंधा में बने कृषि तालाब से सिंचाई और मछली पालन से किसानों की आय बढ़ी।
- कुलवंत राज की प्राकृतिक खेती की राह ने उन्हें बना दिया कृषि कर्मण पुरस्कार विजेताकुलवंत राज और उनकी पत्नी विजयलक्ष्मी ने प्राकृतिक खेती से आय बढ़ाई, स्वस्थ फ़सलें उगाईं और कई किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने।
- Agri Equipments Subsidy: रबी फसल की बुवाई से पहले किसानों को कृषि यंत्र अनुदानरबी फसल की बुवाई से पहले इस राज्य के किसानों को आधुनिक कृषि यंत्रों पर अनुदान मिल रहा है। इसमें हैप्पी सीडर, सुपर सीडर, बेलर और कई अन्य यंत्र शामिल हैं।