Blue Oyster Mushroom: जानिए ब्लू ऑयस्टर मशरूम की खेती करने का सरल तरीका और लागत-मुनाफ़े का गणित
औषधीय गुणों से भरपूर होता है यह मशरूम
पौष्टिक गुणों से भरपूर होने के कारण मशरूम की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इससे किसानों को कम लागत में अतिरिक्त आमदनी का एक अच्छा ज़रिया मिल गया है। मशरूम की एक नई किस्म हैं ब्लू ऑयस्टर मशरूम जिसे बहुत ही कम लागत के साथ आसानी से उगाकर अच्छा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है।
ब्लू ऑयस्टर मशरूम की उत्पादकता और गुण अन्य ऑयस्टर मशरूम की तुलना में ज़्यादा होते हैं। इसकी व्यावसायिक खेती ज़्यादातर एशिया एवं यूरोप देशों में की जाती है। ब्लू ऑयस्टर मशरूम (Blue Oyster Mushroom) का वैज्ञानिक नाम हाइपसीजियस अल्मसरियस (Hypsizygus ulmarius) है। इसे एल्म ऑयस्टर भी कहते हैं। यह दिखने में सीप मशरूम की तरह ही होता है, लेकिन इसके गुण व ख़ासियत उससे बिल्कुल अलग है।
यह मशरूम अपने औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ ही यह हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज़, कोलेस्ट्रॉल आदि को नियंत्रित करने में कारगर माना गया है। इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, फाइबर की अच्छी मात्रा होती है। यह न सिर्फ़ दिखने में आकर्षक होता है, बल्कि इसका स्वाद भी बहुत अच्छा होता है।
ब्लू ऑयस्टर मशरूम का उत्पादन सरल
मशरूम की खेती का एक फ़ायदा यह होता है कि इससे खेती से निकलने वाले कचरे का सही इस्तेमाल हो जाता है। ब्लू ऑयस्टर मशरूम को छोटे और सीमांत किसान भी आसानी से उगा सकते हैं, क्योंकि इसे उगाने में न तो ज़्यादा खर्च आता है और न ही अलग से किसी ख़ास तकनीक की ज़रूरत है। इसका उत्पादन सरल एवं बहुत ही कम लागत की तकनीकी विधि द्वारा किया जाता है।
इसे सोयाबीन की खोई, गेहूं के भूसे, धान के पुआल, मक्का के डंठल, अरहर, तिल, बाजरा, गन्ने की खोई, सरसों के पुआल, कागज के कचरे, कार्डबोर्ड, लकड़ी के बुरादे जैसे कृषि अपशिष्टों पर आसानी से उगाया जा सकता है।
ब्लू ऑयस्टर मशरूम का कैसे करें उत्पादन?
मशरूम उगाने के लिए जो भी सामग्री ली जा रही है, जैसे पुआल या मक्के का डंठल, को सबसे पहले छोटे टुकड़ों में काटकर पानी में भिगोया जाता है ताकि उसमें 75-90 प्रतिशत नमी बनी रहे। फिर इसे फॉर्मेलीन (0.5 प्रतिशत) और कार्बेन्डाजिम (0.075 प्रतिशत) के घोल से उपचारित करके करीब 18 घंटे तक रख दिया जाता है। उसके बाद पुआल को बाहर निकालकर किसी प्लास्टिक सीट या साफ तार की जाली पर फैलाकर अतिरिक्त पानी निकलने के लिए रख दिया जाता है।
फिर पुआल को पॉलीथिन बैग में भरकर बिजाई (स्पॉनिंग) की जाती है। इसके बाद बैग का मुंह नायलॉन की रस्सी से बांध दिया जाता है। बैग में 10-15 छेद किए जाते हैं। बैग को मशरूम हाउस में रखा जाता हैं, जहां का तापमान 20-30 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। याद रखिए बैग में नमी का स्तर 70-80 प्रतिशत बना रहना ज़रूरी है। यह मशरूम आमतौर पर गुच्छों में होते हैं और इनका रंग हल्का नीला होता है, जो परिपक्व होने पर सफेद हो जाते हैं।
कितने दिनों में तैयार होता है ब्लू ऑयस्टर मशरूम ?
प्लास्टिक बैग में 15-17 दिनों बाद कवक जाल पूरी तरह से फैल जाता है। फिर प्लास्टिक बैग को हटा दिया जाता है और नमी बनाए रखने के लिए पान का छिड़काव किया जाता है। बैग हटाने के 3-5 दिन बाद बैग के चारों तरफ पिनहैड दिखने लगते हैं। 23-24 दिन बाद मशरूम तोड़ने के लिए तैयार हो जाते है। इसे तोड़कर 3-4 दिनों तक फ्रिज में रख सकते हैं। 2 किलो के प्लास्टिक बैग से 30-40 मशरूम प्राप्त होते हैं।
ब्लू ऑयस्टर मशरूम की खेती में कितना मुनाफ़ा?
ब्लू ऑयस्टर मशरूम की ख़ासियत है कि यह किसी भी तरह के कृषि अवशेषों पर आसानी से उग जाता है। इसलिए लागत बहुत कम आती है। दो किलो का एक बैग तैयार करने पर 20-25 रुपये का खर्चा आता है और उससे करीब 1-1.5 किलो तक मशरूम प्राप्त होते हैं। इसका दाम 150-200 रुपये प्रति किलो के आस-पास रहता है। इस तरह एक किलो पर 130-175 रुपये तक का लाभ कमाया जा सकता है।
किसानों के लिए अतिरिक्त आमदनी प्राप्त करने का यह एक अच्छा ज़रिया है। बिना ज़्यादा मेहनत और खर्च के किसान इससे अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं, साथ ही परिवार को पोषण भी मिलेगा।
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