खेती-बाड़ी में फ़सलों की पैदावार के साथ व्यावसायिक लाभ वाले पेड़ों को उगाने का सिलसिला कृषि वानिकी (Agro forestry) कहलाता है। इससे ज़मीन की प्रति इकाई से अपेक्षाकृत ज़्यादा उत्पादन और आमदनी हासिल की जाती है। बढ़ती जनसंख्या और घटते वन संसाधनों के कारण आज कृषि वानिकी का महत्व और भी बढ़ गया है, क्योंकि इससे जहाँ एक ओर कच्चे माल के रूप में तरह-तरह की लकड़ी का उत्पादन प्राप्त होता है, वहीं दूसरी ओर पेड़ों और हरियाली के बढ़ने की वजह से पर्यावरण के संरक्षण में भी मदद मिलती है।
वैसे भी वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड और अन्य प्रदूषणकारी तत्वों की रोकथाम के लिए वनों का विस्तार तथा उनके संरक्षण को अनिवार्य माना गया है। वनों के विस्तार को भी प्राकृतिक और दीर्घकालिक प्रक्रिया माना गया है, लेकिन कृषि वानिकी को इसके सबसे व्यावहारिक और तात्कालिक विकल्प का दर्ज़ा भी हासिल है। इसके ज़रिये ज़्यादा से ज़्यादा किसानों को वृक्षारोपण में भागीदार बनाकर वन-वृक्षों का विस्तार किया जा सकता है। कृषि वानिकी के मामले में पोपलर के पेड़ का भी विशेष महत्व है।
पोपलर के पेड़ों की विशेषता
पोपलर (पोपुलस डेल्टोयडस) एक ऐसा वृक्ष है, जो ज़मीन की उत्पादकता को क़ायम रखते हुए 6 से 8 साल में किसानों को प्रति एकड़ क़रीब 3 लाख रुपये की अतिरिक्त आमदनी करवा सकता है। पोपलर, सीधा तथा तेज़ी से बढ़ने वाला वृक्ष है। सर्दियों में इसकी पत्तियों के झड़ जाने से रबी की फ़सलों को मिलने वाली धूप की मात्रा में कोई ख़ास कमी नहीं होती है।
पोपलर के सीधा बढ़ने के स्वभाव की वजह से इसकी छाया से ख़रीफ़ फ़सलों को भी कोई ख़ास नुकसान नहीं पहुँचता है। इसीलिए पोपलर की मिश्रित खेती के शुरुआती दो वर्षों में रबी या ख़रीफ़ की सभी फ़सलें उगायी जा सकती हैं। तीसरे साल या उसके बाद पोपलर के साथ हल्दी या अदरक जैसी छाया सहनशील फ़सलों की खेती बहुत लाभदायक रहती है तो गेहूँ और रबी की अन्य फ़सलें तथा ख़रीफ़ की चारा फ़सलों को भी पोपलर के पेड़ों की कटाई तक आसानी से उगाया जा सकता है।
पोपलर की खेती के लिए भूमि और किस्में
पोपलर के पेड़ों के व्यावसायिक उत्पादन के लिए गहरी और उपजाऊ भूमि को उम्दा पाया गया है, क्योंकि पोपलर को तेज़ी से बढ़ने के लिए ज़्यादा सिंचाई की ज़रूरत पड़ती है। लिहाज़ा, पोपलर के पौधों की रोपाई के लिए ऐसे खेतों को चुनना चाहिए जहाँ सिंचाई के अलावा उचित जल निकास का भी प्रबन्ध हो। पोपुलस के पेड़ की अनेक किस्में प्रचलित हैं, लेकिन चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के विशेषज्ञों के अनुसार, जी-3 और तथा जी-48 की उत्पादकता को ख़ासा बेहतर पाया गया है।
कैसे तैयार करें पोपलर के पौधे?
पोपलर के पौधों को नर्सरी में क़लम लगाकर तैयार किया जाता है। क़लमों को 15 जनवरी से 15 फरवरी तक लगाना चाहिए। इसके लिए 3-4 आँखों वाली 20-25 सेंटीमीटर लम्बी क़लमों को एक साल पुराने पौधों से काटा जाता है। फिर अच्छी तरह से तैयार क्यारियों में 60 से 80 सेंटीमीटर के फ़ासले पर इन्हें लगाया जाता है। क़लम लगाते समय इसका 2/3 भाग ज़मीन में गाड़ना चाहिए तथा 1/3 हिस्से को बाहर रखना चाहिए। क़लम की कम से कम एक आँख ज़मीन के ऊपर होनी चाहिए।
खेतों में पोपलर के पौधों की रोपाई
नर्सरी में क़लमें लगाने के बाद सिंचाई करनी चाहिए। आगे भी क्यारियों में नमी बनाये रखने के लिए 7 से 10 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई बहुत ज़रूरी है। साल भर बाद यानी अगली जनवरी तक इन क़लमों से पौधे तैयार हो जाते हैं। रोपाई के लिए क़रीब एक साल की उम्र वाले ऐसे पौधों को चुनें जिनकी ऊँचाई क़रीब 4-5 फ़ीट हो और इसका तना सीधा, अँगूठे की मोटाई जितना तथा बिना शाखाओं वाला हो। पौधों को विश्वसनीय पौधशाला से प्राप्त करते वक़्त किसानों को देखना चाहिए कि वो समान बढ़वार वाले और रोगरहित हों।
कृषि वानिकी के लिए पोपलर के पौधों को क़रीब 5.5 मीटर के फ़ासले पर खेत में रोपना चाहिए। रोपाई के लिए भी 15 जनवरी से 15 फरवरी का समय सबसे बढ़िया होता है। अच्छी बढ़वार के लिए पोपलर के हरेक पौधों को फैलने के लिए क़रीब 20-25 वर्ग मीटर ज़मीन ज़रूर मिलनी चाहिए। खेत में पौधों के लिए वृक्षारोपण से एक महीने पहले एक मीटर गहरा गड्ढा खोद लेना चाहिए। इन गड्ढों की पंक्तियाँ उत्तर-दक्षिण दिशा में बनाना ज़्यादा फ़ायदेमन्द होता है।
खाद-उर्वरक, सिंचाई और देखभाल
गड्ढे की खुदाई से निकली हुई मिट्टी को पुनः गड्ढे में नहीं डालना चाहिए। बल्कि इसके लिए ज़मीन की ऊपरी सतह की मिट्टी में 3 किलोग्राम गोबर की खाद 100 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट तथा 250 ग्राम नीम की खली तथा दीमक रोधी दवाई मिलाना चाहिए। फिर पौधे को गड्ढे में खड़ा करके खाद मिट्टी से भरने के बाद चारों तरफ से अच्छी तरह दबा दें। पौधशाला से लाने, रोपाई करने और फिर बरसात के वक़्त तक पौधों के लिए पर्याप्त नमी को बनाये रखना चाहिए।
पोपलर के पेड़ों को 100 ग्राम यूरिया प्रति पौधे की दर से प्रति वर्ष देनी चाहिए। यूरिया डालने के बाद सिंचाई बहुत ज़रूरी है। पहले साल में सप्ताह में एक बार पोपलर के पौधों को भरपूर पानी देना चाहिए। दूसरे वर्ष में गर्मियों में 10 दिनों पर और सर्दियों में 15 दिनों के बाद तथा तीसरे वर्ष गर्मियों में 15 दिनों बाद तथा सर्दियों में एक महीने बाद सिंचाई ज़रूर करनी चाहिए। उसके बाद सूखे मौसम में आवश्यकता अनुसार सिंचाई करते रहना चाहिए।
दो वर्ष तक की आयु के पौधों के नीचले एक तिहाई भाग पर उगने वाली कलियों को अप्रैल से अगस्त के दौरान टाट की बोरी के टुकड़ों से कोमलता से रगड़कर हटा देना चाहिए, क्योंकि पोपलर के अच्छे गोलाकार वृक्ष तैयार करने के लिए कटाई-छँटाई बहुत ज़रूरी है। तीसरे से छठे साल तक पौधे के निचले एक तिहाई से आधे हिस्से तक की शाखाएँ काटते रहना चाहिए। कटाई को तने के बिल्कुल पास से करना चाहिए और कटाई के बाद खुली जगह पर बोर्डोपेस्ट या चिकनी मिट्टी तथा गोबर का लेप लगा देना चाहिए। इस तरह कोशिश होनी चाहिए कि पोपलर के पेड़ के निचले आधे भाग में कोई शाखा नहीं बने और पेड़ ज़्यादा से ज़्यादा लम्बाई में बढ़ते रहें।
बीमारियों से बचाव
दीमक से बचाव के लिए 0.1 प्रतिशत क्लोरोपायरीफॉस का घोल बनाकर डालें। पोपलर में तना छेदक कीड़े भी लगते हैं। इसलिए यदि इसके तने के छेद में बारीक़ बुरादा सा नज़र आये तो उस पर मिट्टी का तेल डालकर चिकनी मिट्टी के लेप से छेद को बन्द कर दें।
उपज और आमदनी
6 से 8 साल में पोपलर के पेड़ों के तनों की क़रीब डेढ़ मीटर की ऊँचाई पर मोटाई क़रीब एक मीटर तक हो जाती है। पेड़ की ये अवस्था उसकी कटाई के लिए सही होती है। ऐसे पेड़ का दाम दो से तीन हज़ार रुपये तक होता है। पोपलर की लकड़ी की माँग माचिस, प्लाईवुड, पैकिंग बॉक्स और खेल का सामान बनाने वाले उद्योगों में ख़ूब होती है। सबसे बढ़कर ये कृषि वानिकी से होने वाली आमदनी फ़सलों से होने वाली कमाई के अतिरिक्त होती है।
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