खजूर की खेती (Date Palm) बनी किसानों के लिए अच्छी आमदनी का ज़रिया, जानिए कैसे करें शुरुआत?
बढ़ रहा खजूर की खेती का दायरा
राजस्थान का बाड़मेर ज़िला हमेशा से ही पानी की किल्लत से जूझता रहा है। ऐसे में यहां खेती की संभावना बहुत कम है और ज्वार, बाजरा, मूंग, मोठ जैसी बस चुनिंदा फसलें ही उगाई जाती रही हैं, लेकिन अब टिशू कल्चर मेथड से खजूर की खेती के ज़रिए किसानों को अच्छी आमदनी हो रही है।
खजूर की खेती आमतौर पर अरब देशों में ज़्यादा की जाती है क्योंकि वहां का शुष्क वातावरण इसके लिए उपयुक्त होता है। भारत विश्व बाज़ार का करीब 38 प्रतिशत खजूर विदेशों से आयात करता है, क्योंकि हमारे देश में इसका अधिक उत्पादन नहीं होता। हालांकि, खजूर की कुछ स्थानीय किस्मों का उत्पादन गुजरात के कच्छ-भुज इलाके में होता है, मगर इसकी क्वालिटी विदेशी खजूर जितनी अच्छा नहीं होती। अब धीरे-धीरे नए प्रयोगों के तहत देश के कई हिस्सों में खजूर की खेती की जा रही है। राजस्थान का बाड़मेर ज़िला, जहां हमेशा से पानी की किल्लत रही है, वहां भी सफलतापूर्वक खजूर उगाया जा रहा है।
पौष्टिकता से भरपूर खजूर
खजूर एक ऐसा फल है, जिसमें पौष्टिक तत्वों की भरपूर मात्रा होती है। 1 किलो खजूर में 3000 किलो कैलोरी होती है। इसके अलावा, यह विटामिन A, B-2, B-7, पोटैशियम, कैल्शियम, कॉपर, मैग्नीशियम, क्लोरीन, फॉस्फोरस, सल्फर और आयरन आदि का भी बेहतरीन स्रोत हैं। यह फल उच्च उत्पादकता के लिए भी उगाया जाता है और मरुस्थलीय इलाके में इसकी खेती से पर्यावरण को भी फ़ायदा होता है। रोजगार के अवसर पैदा करने और ग्रामीण इलाकों में किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार करने में खजूर की खेती मददगार है। \
कैसे उगाया जाता है खजूर?
खजूर को बीज से भी लगाया जा सकता है या फिर कटिंग्स यानी शाखा से भी। जब बीज से इसे उगाया जाता है तो मादा पौधे होने की संभावना सिर्फ़ 50 फीसदी होती है, जबकि शाखा से उगाने पर आमतौर पर पौधों में उसी पेड़ के गुण आते हैं, जिसकी वह शाखा है। हालांकि, ऐसे पौधों के जीवित रहने की संभावना हमारे देश में कम रहती है। इसलिए खजूर की खेती में टिशू कल्चर मेथड अपनाया गया। इस तकनीक से खजूर की खेती में पौधें स्थिर रहते हैं और गुणवत्ता भी अच्छी रहती है।
बाड़मेर के लिए वरदान
राजस्थान का बाड़मेर ज़िला हमेशा से ही पानी की किल्लत से जूझता रहा है। ऐसे में यहां खेती की संभावना बहुत कम है और ज्वार, बाजरा, मूंग, मोठ जैसी बस चुनिंदा फसलें ही उगाई जाती रही हैं, लेकिन अब टिशू कल्चर मेथड से खजूर की खेती के ज़रिए किसानों को अच्छी आमदनी हो रही है। बाड़मेर शुष्क और गर्म इलाका है, इसलिए यहां खजूर की खेती सफल रही। खजूर की मेडजूल किस्म सिर्फ यहीं उगाई जाती है। पश्चिमी राजस्थान में खजूर की फसल खाड़ी देशों की तुलना में एक महीने पहले ही तैयार हो जाती है। साथ ही खजूर खारे पानी को भी सहन कर लेता है, जिसमें अन्य फसल नहीं उग पाती।
किसानों को बांटे गए पौधे
खजूर के पौधों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत खजूर की बरही, खुनीज़ी, खलास और मेडजूल किस्म के पौधे टिशू कल्चर तकनीक से प्राप्त करके साल 2010-11 में बाड़मेर के किसानों को दिए गए। इससे बाड़मेर के किसानों की किस्मत बदल गई।
ऐसे हुई शुरुआत
शुरुआत में 11 किसानों ने 22 हेक्टेयर में खजूर की फसल लगाई। करीब 156 खजूर के पौधे एक हेक्टेयर में पंक्ति-से-पंक्ति और पौधे-से-पौधे 8 मीटर की दूरी पर लगाए। कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा किसानों को तकनीकी जानकारी प्रदान की गई। खजूर के पौधों पर सब्सिडी के साथ ही बागवानी विभाग ने खेती और पौधों के रखरखाव के लिए 2 साल के लिए आर्थिक मदद भी की। सिंचाई की ड्रिप प्रणाली अनिवार्य की गई। बाड़मेर में खजूर की खेती को बढ़ावा देने के लिए राजस्थान सरकार के बागवानी विभाग ने 98.00 हेक्टेयर क्षेत्र में सरकारी खजूर फ़ार्म और खजूर के लिए उत्कृष्टता केंद्र भी स्थापित किया।
इतना हो रहा उत्पादन
2010-11 में जहां सिर्फ़ 22 हेक्टेयर में खजूर की खेती की गई, वहीं 2020-21 में यह बढ़कर 156 हेक्टेयर तक पहुंच गई। हर साल बाड़मेर में लगभग 150 ले 180 टन खजूर का उत्पादन हो रहा है। बाज़ार में खजूर के अच्छे दाम मिलने की वजह से किसान भी इसे उगाने के लिए प्रेरित हुए हैं।
खजूर की सफल खेती ने बाड़मेर के किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में बहुत सुधार किया है। साथ ही इससे बाज़ार में खजूर आसानी से उपबल्ध होने लगा और आयात पर निर्भरता कम हो गई। इतना ही नहीं, खजूर की खेती ने फसल पैटर्न को भी बदल दिया है और मरुस्थलीकरण को कम करने में मदद की है। खजूर की खेती के शुरुआती 4 सालों में खजूर के बाग में ही किसान हरा चना, मोठ और तिल जैसी इंटरक्रॉप फसलें भी उगा सकते हैं।
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