मधुमक्खी पालन करने वाले एक युवक का दावा और दर्द, नाबार्ड योजना से लोन मिले तो कई बेरोज़गारों को दे सकता हूँ रोज़गार
क्या किसानों तक पहुंच रहा है मीठी क्रांति मिशन का लाभ?
गजेन्द्र सिंह का परिवार पिछले 21 सालों से मधुमक्खी पालन व्यवसाय से जुड़ा हुआ है, लेकिन कारोबार आगे बढ़ाने में उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
देश में शहद के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकार कई मिशन और योजनाएं चला रही हैं। आत्मनिर्भर भारत के तहत ‘मीठी क्रांति’ के मिशन पर काम किया जा रहा है। मधुमक्खी पालन को प्रोत्साहन देने के लिए राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन की शुरुआत की गई है। 86 फ़ीसदी छोटी जोत वाले किसानों को मधुमक्खी पालन जैसे कृषि के दूसरे क्षेत्रों से जोड़ने का लक्ष्य तय किया गया है। सरकार अपने इस लक्ष्य पर काम भी कर रही है, लेकिन क्या दूर-दराज या ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले किसानों और मधुमक्खी पालन से जुड़े लोगों तक इसका पूरा फ़ायदा पहुंच पा रहा है?
मदद मिले तो मधुमक्खी पालन को और मिलेगा बढ़ावा
एक ऐसे ही मधुमक्खी पालक किसान ने हमसे बातचीत की। उत्तर प्रदेश के औरैया ज़िले के घासा का पुर्वा गाँव के रहने वाले गजेन्द्र सिंह का परिवार पिछले 21 साल से मधुमक्खी पालन से जुड़ा हुआ है। अब वो इस व्यवसाय की बागडोर संभाल रहे हैं। किसान ऑफ़ इंडिया से बातचीत में गजेन्द्र सिंह ने कहा कि वो मधुमक्खी पालन व्यवसाय को बहुत ऊंचाई तक ले जाना चाहते हैं। अगर सरकार और NABARD (National Bank for Agriculture and Rural Development) की मदद मिले तो वो अपने इस व्यवसाय को बड़े स्तर पर ले जा सकते हैं। अभी उन्हें कई तरह की परेशानियों से दो-चार होना पड़ रहा है।

लोन को नहीं मिल पा रही मंज़ूरी
गजेन्द्र सिंह बताते हैं कि उन्होंने अपने मधुमक्खी पालन व्यवसाय को बढ़ाने के लिए कई बार स्थानीय बैंकों में लोन की फाइलें लगाई हैं, लेकिन लोन को मंज़ूरी नहीं मिल पाती। पिछले एक साल से वो लोन की गुहार लेकर कई बैंकों के चक्कर काट रहे हैं। उनका कहना हैं कि वो सारे ज़रूरी कागजात लेकर बैंक जाते हैं, लेकिन हर बार खाली हाथ ही उन्हें वापस लौटना पड़ता है।
NABARD योजना से मदद की उम्मीद, दिया था आश्वासन
गजेन्द्र सिंह ने बताया कि NABARD, दिल्ली की ओर से एक महिला अधिकारी उनके फ़ार्म पर आईं थीं। उन्होंने मधुमक्खी यूनिट की सराहना की थी। उनकी हौसला अफ़जाई भी की थी । साथ ही NABARD की ओर से पूरी मदद दिलाने का आश्वासन भी दिया था। इस बात को तकरीबन एक साल हो गया है। अभी तक वो मदद का इंतज़ार कर रहे हैं।
आसानी से नहीं मिल पाता बाज़ार, कम कीमत में बेचना पड़ता है शहद
बाज़ार मिलने की दिक्कत का भी उन्हें सामना करना पड़ रहा है। प्रति किलो के हिसाब से बाज़ार में शहद की कीमत 800 से 900 रुपये तक रहती है। गजेन्द्र सिंह बताते हैं कि उन्हें 200 रुपये प्रति किलो की दर से भी शहद बेचना पड़ता है। मुनाफ़ा मिल जाता है, लेकिन जो सही दाम मिलना चाहिए, वो नहीं मिल पाता। आज की तारीख में उन्हें सात से आठ लाख का मुनाफ़ा हो जाता है। उनका कहना है कि अगर उन्हें ज़रूरी सहायता मिले तो वो अपने इस व्यवसाय को बड़े स्तर पर करके, अपने क्षेत्र के ज़्यादा से ज़्यादा युवाओं को इससे जोड़ना चाहते हैं। गजेन्द्र सिंह कहते हैं कि मधुमक्खी पालन एक ऐसा व्यवसाय है, जो बेरोज़गारी दर को कम कर अच्छी आमदनी का ज़रिया बन सकता है।
उत्पादन ज़्यादा और मांग कम की समस्या का करना पड़ रहा सामना
गजेन्द्र सिंह प्रोसेसिंग यूनिट्स में कच्चा शहद बेचते हैं। गजेन्द्र सिंह बताते हैं कि प्रोसेसिंग यूनिट्स की मांग 50 किलो की रहती है, जबकि उनका उत्पादन करीबन 50 क्विंटल से ज़्यादा का रहता है। ऐसे में उनका शहद नहीं बिक पाता। गाँव वालों को भी वो कच्चा शहद बेचते हैं।
एक बक्से से निकल जाता है 60 से 65 किलो शहद
अभी गजेन्द्र सिंह के पास 9 से 10 फ़्रेम वाले करीबन 250 बक्से हैं। ये बक्से उन्होंने अपने सरसों के खेत में लगाए हुए हैं। एक बक्से से 60 से 65 किलो शहद निकल जाता है। एक बार सेटअप लगाने के बाद शहद तैयार होने में करीबन एक साल का वक़्त लगता है। गजेन्द्र मधुमक्खियों सहित बॉक्स भी बेचते हैं।
मधुमक्खियों के रखरखाव पर भी ध्यान देना ज़रूरी
मधुमक्खियों के रखरखाव का भी ध्यान रखना होता है। कहीं उन्हें कोई बीमारी तो नहीं हो रही। दो से चार दिन में बक्सों का निरीक्षण करते रहना ज़रूरी है ताकि सही समय पर उपचार मिल सके।
हज़ार से ऊपर किसानों को दे चुके हैं ट्रेनिंग
गजेन्द्र सिंह ने ऐग्रिकल्चर साइंस से ग्रेजुएशन किया हुआ है। डिग्री लेने के बाद मधुमक्खी पालन की बारीकियों को जानने के लिए उन्होंने औरैया के कृषि और ग्रामीण विकास केंद्र से एग्री क्लिनिक और एग्री बिज़नेस सेंटर (AC&ABC) योजना के तहत ट्रेनिंग ली। आज गजेन्द्र सिंह अपने क्षेत्र में लोगों को ट्रेनिंग भी देते हैं। अभी तक हज़ार से ऊपर किसानों को ट्रेनिंग दे चुके हैं। उन्हें मधुमक्खी पालन की बारीकियों के बारे में बताते हैं। 60 लोगों की उनकी टीम है। गजेन्द्र सिंह मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में रुचि रखने वाले लोगों को सलाह देते हुए कहते हैं कि इसे शुरू करने से पहले पहले पूरी जानकारी होनी चाहिए, क्योंकि ये एक टेक्निकल बिज़नेस है। इसमें संयम और कड़ी मेहनत की ज़रूरत होती है।
हर साल 1.25 लाख मीट्रिक टन शहद का उत्पादन
शहद उत्पादन के मामले में भारत दुनिया का आठवां प्रमुख देश है। हर साल 1.25 लाख मीट्रिक टन शहद का उत्पादन होता है। इसका लगभग 50 प्रतिशत से ज़्यादा निर्यात होता है। 2020-2021 में करीबन 60 हज़ार मिलियन टन शहद का निर्यात किया गया। इसमें प्रमुख देशों में अमेरिका, सऊदी अरब, यूनाइटेड अरब एमिरेट्स, बांग्लादेश और कनाडा हैं।
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