बेहतर लाभ का ज़रिया है मछली बीज उत्पादन, कैसे शुरू करें? जानिए मत्स्य विशेषज्ञ डॉ. मुकेश सारंग से
सरकार की तरफ़ से 40 से 60 फ़ीसदी सब्सिडी का भी प्रावधान
मछली बीज उत्पादन का व्यवसाय भी युवकों के लिए अच्छी कमाई का ज़रिया बन सकता है। जुलाई से अगस्त प्रजनन का सबसे अच्छा समय होता है। इन महीनों में मछली बीजों की ज़बरदस्त मांग रहती है। कैसे करें फिश हैचरी तैयार, कैसा है इसका बिज़नेस? इसपर किसान ऑफ़ इंडिया की बिन्ध्याचल मंडल मिर्ज़ापुर उत्तर प्रदेश के मत्सय विभाग के उपनिदेशक डॉ. मुकेश सारंग से ख़ास बातचीत।
आज के वक्त में मछली पालन पूरी दुनिया में एक बड़ा व्यवसाय का रूप ले चुका है और भारत दुनिया में मछली उत्पादन के क्षेत्र में दूसरा स्थान रखता है। मछली की बढ़ती मांग के चलते अपने देश में मछली उत्पादन आठ फ़ीसदी की दर से सबसे तेजी से ग्रोथ करने वाला कृषि सह-व्यवसाय बन गया है। आज मछली पालन के लिए बड़ी मात्रा में मछली बीज यानी कि स्पॉन की ज़रूरत पड़ रही है। इस अवसर का लाभ उठाकर बेरोज़गार ग्रामीण युवा और किसान मछली बीज उत्पादन का प्रशिक्षण लेकर, इस व्यवसाय को अपने क्षेत्र में ही शुरू कर आमदनी का बेहतरीन ज़रिया बना सकते हैं। इस पर विस्तार से जानकारी के लिए किसान ऑफ़ इंडिया ने बिन्ध्याचल मंडल मिर्ज़ापुर उत्तर प्रदेश के मत्सय विभाग के उपनिदेशक डॉ. मुकेश सारंग से ख़ास बातचीत की।
ग्रामीण युवको के लिए रोज़गार का सुनहरा अवसर फिश हैचरी
आज के वक्त में ग्रामीण इलाकों में मछली बीज उत्पादन का कार्य काफ़ी लाभकारी है। ये ग्रामीण युवकों के लिए रोज़गार का सुनहरा अवसर है। डॉ. मुकेश सारंग ने बताया कि मछलियां बारिश में नदी, तालाबों इत्यादि में प्रजनन करती हैं। इस दौरान इन जगहों पर मछलियों के लाखों अंडे निषेचित होकर, मछलियों के बच्चे बाहर निकल आते हैं। इन्हें मत्स्य बीज कहते है। इन बीजों को स्पॉन, फ्राई और फिंगरलिंग्स कहा जाता है। तालाबों और जलाशयों में केवल एक प्रजाति की मछली के बीज नहीं होते, बल्कि कई प्रजातियों के मछलियों के बीज होते हैं। इनका संग्रहण करना खतरों से भरा होता है, क्योंकि इनके साथ परभक्षी मछलियों के बीज की संभावना ज़्यादा रहती है। इसलिए पालने वाली मछलियों के शुद्ध बीज प्राप्त करने का एक तरीका फिश हैचरी है। हैचरी में ढाई से तीन करोड़ मछली बीज उत्पादन किया जा सकता है। इस पर सरकार की तरफ़ से अलग 40 से 60 फ़ीसदी सब्सिडी का प्रावधान भी है।
मछली बीज उत्पादन तकनीक
मत्स्य विभाग के उपनिदेशक आगे बताते हैं कि आज के वक्त में मछली पालक, मत्स्य हैचरी के मछली बीजों पर अधिक भरोसा करते हैं। उन्होंने बताया कि मत्स्य हैचरी के लिए स्थाई टैंक बनाये जाते हैं। इन हैचरी में वयस्क नर और मादा मछलियों को उत्प्रेरित कर प्रजनन करवाया जाता है। इसके लिए स्थाई टैंक में कृत्रिम रुप से बारिश कराते हैं। मछलियों को निश्चित मात्रा में हार्मोन्स के इंजेक्शन देकर प्रजनन हेतु प्रेरित किया जाता है। ये हार्मोन बाज़ार में हर जगह उपलब्ध हो जाते हैं। इससे इन मछलियों में अंडे बनने व फर्टिलाइजेशन प्रक्रिया जल्दी से हो जाती है। ये प्रकिया प्रजनन कुंड या तालाब में रखे मच्छरदानी के कपड़े से निर्मित आयाताकार बक्सा, जिसे हापा कहते हैं, उसमें भी कराई जाती है।
हैचरी में कैसे करें मछली बीजों का प्रबंधन
डॉ. मुकेश सांरग बताते हैं कि बड़ी आकार की मछलियों की प्रजाति की बात की जाए तो इनमें भारतीय मेजर क्रॉप रोहू मादा, जिसका वजन एक किलों होता है, प्रजनन करने के बाद उसकी एख लाख अंडे देने की क्षमता होती है।
बात करें हैचरी की तो इसमें गोलाकार के सीमेंट और कंक्रीट के सात मीटर व्यास परिधि के टैंक बनाए जाते हैं। इससे जोड़कर दो छोटे व्यास से दो टैंक बनाए जाते हैं। छोटे टैंक के अंदर पाइप गोल आकार होने के साथ उसमें 12 डक माउथ आकर खुले होते हैं, जो पानी को लगातार घुमाते रहते हैं, जिससे कि अंडे इसी में रन करते रहे और टैंक में पानी चलता रहता है। बच्चे को अंडे से बाहर आने में 36 घंटे लगते हैं। इन बच्चो को 72 घंटे तक आहार की ज़रुरत नहीं पड़ती है। इसी में एक महीन जाली लगी रहती है, जिससे अंडे से बच्चे बने तो इसमें तैयार हो सके।
लाखों की कमाई का बेहतर ज़रिया फिश हैचरी
डॉ. सांरग ने जानकारी दी कि अंडे से मछली के पांच मिलीमीटर साइज़ बच्चे निकलते है। दरअसल, इनको स्पॉन यानी जीरा कहते हैं। इसका भरण पोषण नर्सरी में करते है। तीन से चार हफ़्ते नर्सरी में रहने के बाद इनका साइज़ 20 से 25 मिलीमीटर का हो जाता है, जिनको फ्राई यानी पौना भी कहते हैं। इसके बाद यह तीन माह तक बड़े पॉन्ड में रखे जाते हैं, जहां 75 से 100 एमएम साइज के तैयार होते हैं। तब इनको तालाब में डाल दिया जाता है।। इनको फिंगरलिंग यानी अंगुलिकाए कहा जाता है। इस तरह की हैचरियों से साल में लगभग तीन करोड़ मछली के बीज यानी फ्राई तैयार किए जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि अच्छी प्रजाति के जैसे रेहू, कतला, मृगल, ग्रास कार्प, सिल्वर कार्प एवं कॉमन कार्प मछलियों का बीज उत्पादन होता है। इसके पौना बीज यानी फ्राई आकार की मछली बीज लगभग 110 रुपये प्रति हजार और जीरा 750 रूपये प्रति लाख की दर से बाज़ार में बेचे जाते हैं। इस प्रकार कुल 36 लाख रुपये का मछली बीज हैचरी में हर साल तैयार होता है। मछली बीज उत्पादन पर लगने वाले खर्च की बात की जाए तो 50 से 60 फ़ीसदी इसके उत्पादन पर खर्च हो जाता है, जो बचता वह शुद्ध मुनाफ़ा हो जाता है।उन्होंने बताया कि फिश हैचरी तैयार करने में 25 लाख रुपये के आसपास खर्च आता है।
मछली बीज उत्पादन की ट्रेनिंग ज़रूरी
डॉ. सांरग ने कहा कि मछली बीज उत्पादन करना इतना सरल भी नहीं कि इसे हर कोई कर ले। इसमें जोखिम भी हो सकता है। इसलिए जो व्यक्ति मछली बीज उत्पादन का कार्य करना चाहता है, उस व्यक्ति को पूरी जानकारी होना ज़रूरी है। इसके लिए वह राजकीय मत्स्य विभाग,कृषि विश्वविद्यालयों, मात्सिकीय शोध संस्थानों में जाकर जानकारी प्राप्त कर सकता है।
डॉ मुकेश सांरग ने आगे बताया कि मछलियों के प्रजनन का समय जून से सिंतबर तक रहता है। जुलाई से अगस्त प्रजनन का सबसे अच्छा समय होता है। इन महीनों में मछली बीजों की ज़बरदस्त मांग रहती है। उन्होंने कहा कि आपूर्ति कम होने की स्थिति में इन बीजों के दाम और भी अधिक बढ़ जाते हैं। इस अवसर का लाभ उठाकर अपने इलाके मे बेरोज़गार ग्रामीण युवा और किसान मछली बीजोत्पादन का प्रशिक्षण लेकर इस व्यवसाय को अपने क्षेत्र में ही शुरू करें तो आमदनी का बेहतरीन ज़रिया हो सकता है। दूसरी तरफ़ अच्छी प्रजाति की मछलियों के बीज गाँव स्तर पर उपलब्ध होंगे तो मछली उत्पादन भी बेहतर होगा। इसके लिए ज़रूरी है कि किसान मछली पालन की नई तकनीकों को अपनाएं।
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