ओस्मानाबादी बकरी (Osmanabadi Goat): जानिये मांस उत्पादन के लिए क्यों ज़्यादा अच्छी मानी जाती है ये नस्ल
बकरी की यह नस्ल एक साथ दो या तीन बच्चों को जन्म देती है।
ओस्मानाबादी बकरी (Osmanabadi Goat) पांव और मुंह की बीमारी (एफएमडी), गोट प्लेग (पीपीआर) जैसी कई बीमारियों का शिकार हो जाती है। उनसे बचाव और रखरखाव के लिए किन बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है, जानिए इस लेख में विस्तार से।
आमदनी बढ़ाने के लिए कई किसान खेती के साथ ही बकरी पालन का भी व्यवसाय करते हैं। गांव में बकरी पालन एक आम व्यवसाय है, लेकिन इससे सही आमदनी के लिये अच्छी नस्ल की बकरी की पहचान करने के साथ ही, उनके चारे से लेकर देखभाल तक की सारी जानकारी होनी चाहिए। गाय, भैंस की तरह ही बकरियों को भी कई तरह के रोग हो सकते हैं जिनसे बचाव ज़रूरी है। बकरियों की कई नस्लें होती हैं जिसमें से एक है ओस्मानाबादी बकरी। आइए, जानते हैं इस नस्ल की क्या ख़ासियत है?
कहां पाई जाती है यह नस्ल?
बकरी की यह नस्ल महाराष्ट्र के ओस्मानाबाद ज़िले में पाई जाती है, इसलिए इसका नाम ओस्मानाबादी बकरी पड़ा। इस नस्ल का पालन दूध और मांस दोनों के लिए किया जाता है, हालांकि यह बकरी दूध बहुत अधिक नहीं देती है। यह आधा से लेकर डेढ़ लीटर तक दूध देती है। यह वैसे तो कई रंगों की होती है, लेकिन ज़्यादातर बकरियों का रंग काला होता है और उनके ऊपर भूरे या सफेद धब्बे होते हैं। इस नस्ल की बकरी का वज़न 32 किलोग्राम तक होता है, जबकि बकरे का वज़न 34 किलो के करीब होता है।
कैसा चारा पसंद है?
इस नस्ल की बकरियों को मीठा, नमकीन और खट्टा हर तरह का चारा पसंद है। इन बकरियों को खाना देते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह ऐसी जगह पर हो जहां बकरी पेशाब न कर पाएं, क्योंकि अक्सर ये अपने खाने वाली जगह पर ही पेशाब कर देती हैं।
बकरियों को आमतौर पर फलीदार चारे में बरसीम, लहसुन, फलियां, मटर, ग्वार आदि दिया जाता है। इसके अलावा यह पीपल, आम, अशोका, नीम, बेरी और बरगद के पत्ते भी खाती हैं। सूखे चारे में चना, अरहर, मूंगफली और जमा करके रखा गया चारा कहती हैं। साथ ही बाजरा, ज्वार, जई, मक्का, चना और गेहूं जैसे अनाज भी खाती हैं।
बकरी की देखभाल
गर्भवती बकरियों की अच्छी सेहत के लिए ब्याने के 6-8 हफ्ते पहले ही दूध निकालना बंद कर देना चाहिए। ब्याने से दो हफ्ते पहले बकरी को साफ और खुले कमरे में रखें। बच्चे यानी मेमने को जन्म के बाद साफ और सूखे कपड़े से उसका शरीर, नाक, मुंह और कान साफ करें। मेमने को जन्म के आधे घंटे के अंदर पहली खीस पिलाएं।
ओस्मानाबादी बकरी को होने वाली आम बीमारियां
पांव और मुंह की बीमारी (एफएमडी), गोट प्लेग (पीपीआर), गोट पॉक्स, हेमोरेगिक सेप्टिसेमिया (एचएस), एंथ्रेक्स आदि।
ओस्मानाबादी बकरी का टीकाकरण
बकरियों को कई तरह की बीमारियों से बचाव के लिए समय पर टीकाकरण ज़रूरी है। क्लोस्ट्रीडायल नामक रोग से बचाव के लिए बकरियों को सी डी टी या सी डी और टी टीका लगवाएं। जन्म के बाद मेमने को टिटनेस का टीका लगवाना चाहिए। जन्म के 5-6 हफ्ते बाद मेमने की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए टीका लगवाना चाहिए।
ओस्मानाबादी बकरी की ख़ासियत
- इसका पालन मांस और दूध दोनों के लिए किया जाता है, मगर ज़्यादातर इनको मांस के लिए पाला जाता है, क्योंकि ये दूध कम देती हैं।
- यह आकार में बहुत बड़ी होती हैं।
- इस नस्ल की बकरियों के कान मीडियम साइज़ के होते हैं।
- आमतौर पर यह काले रंग या सफेद या भूरे धब्बे वाली होती हैं।
- इस नस्ल के बकरे की सींग होती है, जबकि सिर्फ 50 फीसदी बकरियों की ही सींग होती है, बाकी की नहीं होती।
- इस नस्ल के बकरे का वज़न जहां 34 किलो होता है, वहीं बकरी का वज़न 32 किलो होता है।
- यह सामान्यतः साल में दो बार प्रसव करती हैं और एक साथ दो मेमने या कभी-कभी तीन को जन्म देती हैं।
- इन नस्ल की बकरियों की औसम उम्र 12 साल होती है।
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स्टोरी साभार: International Crops Research Institute for the Semi-Arid Tropics (ICRISAT)
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