बैकयार्ड मुर्गीपालन में पहले 4 हफ़्ते बेहद अहम, पोल्ट्री एक्सपर्ट से जानें मुर्गीपालन के सही तरीके

बैकयार्ड मुर्गीपालन में मुर्गियों को आंगन या घर के पीछे पड़ी खाली जगह में पाला जाता है। बैकयार्ड मुर्गीपालन के कई फायदे हैं लेकिन कुछ सावधानियां भी बरतनी होती हैं।

बैकयार्ड मुर्गीपालन ( backyard poultry farming )

खेती के साथ-साथ देश में पशुपालन और मुर्गीपालन तेजी से उभरा है। पशुपालन की तरह ही मुर्गीपालन साल के 12 महीने आय देने वाला व्यवसाय है। अंडे की बढ़ती मांग को देखते हुए मुर्गी पालन अच्छी कमाई वाला रोजगार बन रहा है। मुर्गीपालन व्यवसाय खेती के साथ आसानी से किया जा सकता है। ऐसे किसान जिनके पास कम ज़मीन है या फिर जो भूमिहीन हैं, वो इस काम को करके अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं। इस काम को कम जगह और कम खर्च पर किसान शुरू कर सकते हैं। आजकल देसी मुर्गी पालन का व्यवसाय बहुत तेजी से चलन में है। कर्नाटक के तुमकुर जिले के भीम राजू फ़्री रेंज पद्धति से बैकयार्ड मुर्गीपालन करते हैं।

बैकयार्ड मुर्गीपालन ( backyard poultry farming )

फ़ार्म और फ़्री रेंज में मुर्गीपालन करने में अंतर

फ्री रेंज में मुर्गियों को खुला वातावरण मिलता है। भीम राजू बताते हैं फ़ार्म और फ़्री रेंज में मुर्गी पालन करने में अंतर होता है। फ़ार्म की मुर्गियों को घूमने टहलने के लिए जगह नहीं मिल पाती, लेकिन फ़्री रेंज में मुर्गियों को खुली जगह मिलती है, जहां वो आराम से घूम सकती हैं। भीम राजू कहते हैं कि इस तरह खुला वातावरण मिलने से मुर्गियों की एक्सरसाइज़ होती है और वो दुरुस्त रहती हैं। भीम राजू बताते हैं कि फ्री रेंज यानि कि खुले माहौल में मुर्गीपालन करने से मुर्गियों को गंभीर बीमारी होने का खतरा कम रहता है क्योंकि ये सीधा प्रकृति से अपना आहार लेती हैं और इसके बीच ही पलती हैं।

बैकयार्ड मुर्गीपालन ( backyard poultry farming )
बैकयार्ड मुर्गीपालन करने वाले भीम राजू

सही वातावरण और अच्छा पोषण मिलना बेहद ज़रूरी

इन मुर्गियों को सही वातावरण और पोषण मिलन बेहद ज़रूरी है। भीम राजू ने अपने वहां पपाया की खेती भी की हुई है। पपाया की फसल में जो लगने वाले कीट होते हैं ये मुर्गियां उन्हें खा जाती हैं। इस तरह से इन्हें पोषक तत्व तो मिलता ही है साथ ही ये फसल को नुकसान से भी बचाती हैं। वहीं मुर्गियों के वेस्ट को खाद के रूप में इस्तेमाल में लाया जाता है। भीम राजू बैकयार्ड मुर्गीपालन करते हैं। बैकयार्ड मुर्गीपालन यानि घर के पीछे या आंगन की ऐसी जगह जो खाली पड़ी हो, वहां मुर्गीपालन किया जा सकता है।

बैकयार्ड मुर्गीपालन ( backyard poultry farming )

बैकयार्ड मुर्गीपालन में पहले 4 हफ़्ते बेहद अहम, पोल्ट्री एक्सपर्ट से जानें मुर्गीपालन के सही तरीकेएक अंडे की कीमत से 10 रुपये

भीम राजू ने देसी नस्ल की मुर्गियां पाली हुई हैं। वो बताते हैं कि लोकल मुर्गी के अंडे का बाज़ार में अच्छा दाम मिलता है। उत्पादन से ज़्यादा मांग रहती है। एक मुर्गी साल में 100 अंडे देती है तो 100 मुर्गी से 10 हज़ार अंडे साल में आते हैं। एक अंडा 8 से 10 रुपये का बिकता है। इस तरह से 200 मुर्गी पालने पर साल में 2 लाख तक की कमाई हो जाती है।

बैकयार्ड मुर्गीपालन ( backyard poultry farming )

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मुर्गीपालन में इन बातों का रखें विशेष ध्यान 

भीम राजू बताते हैं कि बैकयार्ड मुर्गीपालन के कई फायदे हैं तो कुछ सावधानियां भी बरतनी होती है। मसलन बैकयार्ड मुर्गीपालन में मुर्गियों को अन्य जानवरों से खतरा रहता है। इसके लिए भीम राजू ने क्षेत्र को चारों ओर 5 फ़ीट की जाली डाली हुई है। इससे न ये मुर्गियां बाहर जा सकती हैं और न कोई अन्य जानवर अंदर आ सकता है।

बैकयार्ड मुर्गीपालन ( backyard poultry farming )

बैकयार्ड मुर्गीपालन में पहले 4 हफ़्ते बेहद अहम, पोल्ट्री एक्सपर्ट से जानें मुर्गीपालन के सही तरीकेबहुरंगी मुर्गियों को पालें

बैकयार्ड मुर्गीपालन के कई लाभ हैं तो कुछ नुकसान भी हैं। बैकयार्ड मुर्गीपालन में पालकों को कई अहम बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है, मसलन किस नस्ल की, कौनसे रंग की मुर्गी को पाले। बेंगलुरु स्थित केंद्रीय कुक्कुट विकास संगठन और प्रशिक्षण संस्थान के उप निदेशक डॉ. प्रताप कुमार बताते हैं कि बैकयार्ड मुर्गीपालन में सफेद मुर्गी नहीं पालनी चाहिए क्योंकि इन्हें अन्य जानवरों और पक्षियों द्वारा आसानी से शिकार बनाया जा सकता है। बैकयार्ड मुर्गीपालन के लिए बहुरंगी मुर्गियां सबसे सही है, क्योंकि ये वातावरण के रंग रूप के साथ घुल मिल जाती है, वहीं सफेद मुर्गी अलग से ही नज़र आती है। 

बैकयार्ड मुर्गीपालन ( backyard poultry farming )
डॉ. प्रताप कुमार

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मुर्गीपालन में पहले तीन से चार हफ़्ते बेहद अहम 

डॉ. प्रताप कुमार कहते हैं कि किसान सोचते हैं ये चूजे बैकयार्ड फ़ार्मिंग के लिए सही हैं, वो एक दिन पहले पैदा हुए चूजों को खरीद लेते हैं और उन्हें बैकयार्ड में छोड़ देते हैं। ऐसे में इन चूजों की मृत्यु दर 80 से 85 प्रतिशत होगी। पहले तीन से चार सप्ताह तक उन्हें मादा द्वारा देखभाल की ज़रूरत होती है। मादा अंडे पर बैठ उन्हें गर्माहट देती हैं। जब चूजे बाहर आते हैं तो मादा उनकी  देखभाल करती हैं। कोई पक्षी आता देख वो झुककर अपने पंखों से अपने बच्चों की रक्षा करती हैं। गिद्ध को आता देख मुर्गियां अपने बच्चों को लेकर झाड़ियों में चली जाती हैं। इन सब के अभाव में मुर्गीपालक की ज़िम्मेदारी है कि वो उसका अच्छे से पालन-पोषण करे। पहले चार हफ्तों में चूजों को घर के अंदर रखना चाहिए, उन्हें संतुलित आहार और पूरा रखरखाव दें।

बैकयार्ड मुर्गीपालन ( backyard poultry farming )

अच्छा आहार और टीकाकरण का रखें ध्यान

डॉ. प्रताप कुमार कहते हैं कि जो किसान बैकयार्ड मुर्गीपालन करना चाहते हैं, वो एक ग्रुप बनाएं, अपने में से ही किसी एक को चुने, जिसके पास मुर्गीपालन करने की बुनियादी सुविधा हो। एक दिन पहले पैदा हुए सभी चूजों की देखभाल की ज़िम्मेदारी उसको दें। चार हफ़्ते चूजों को घर के अंदर ही रखें, अच्छा आहार, टीकाकरण, उसका पूरा रखरखाव करें। फिर चार हफ़्ते बाद दिन में उन्हें बाहर निकालें और उन्हें खुद से अपना खाना ढूंढने दें। छठे हफ़्ते तक वो खुद अपना खाना ढूंढने के लिए तैयार हो जाएंगे। छठे हफ़्ते में ही उन्हें दूसरी वैक्सीन लगवाएं। अगर किसान मुर्गीपालन से जुड़ी इन सभी बातों का ख्याल रखें तो उन्हें अच्छी आय और मुनाफ़ा अर्जित हो सकता है।

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