हाई डेंसिटी तकनीक से सेब की खेती में तिगुनी कमाई, हिमाचल के किसान विशाल शांकता से जानिए इस तकनीक को कैसे अपनाएं

विशाल शांकता बताते हैं कि कई युरोपियन और एशियन देशों में सेब की औसत उत्पादकता 50 टन प्रति हेक्टेयर है, जबकि भारत में यह केवल 7 से 8 टन है। हाई डेंसिटी तकनीक के इस्तेमाल से सेब की खेती में उत्पादन बढ़ता है और लागत भी कम लगती है। जानिए इस तकनीक के बारे में विस्तार से।

हाई डेंसिटी तकनीक से सेब की खेती high density method in apple farming

हिमाचल, देश का सबसे बड़ा सेब उत्पादक राज्य है। हिमाचल में सालाना 3 से 4 करोड़ पेटी सेब का उत्पादन होता है। हिमाचल के और ज़िलों की तुलना में अकेले शिमला ज़िले में ही सबसे ज़्यादा 80 फ़ीसदी सेब पैदा होता है। शिमला में करीबन 42 हज़ार हेक्टेयर में सेब का उत्पादन होता है। अकेला शिमला है, जहां सेब उत्पादन डेढ़ से ढ़ाई लाख मीट्रिक टन है। हिमाचल के सबसे बड़े सेब उत्पादक राज्य बनने के पीछे हर उस सेब उत्पादक किसान का योगदान है, जो दिन-रात खेत-खलिहानों में लगा रहता है। एक ऐसे ही प्रगतिशील किसान हैं, शिमला के बवाना गाँव के रहने वाले विशाल शांकता।

बवाना गाँव कोटखाई तहसील में पड़ता है। विशाल शांकता हाई डेंसिटी तकनीक से सेब की खेती करते हैं। हाई डेंसिटी तकनीक से उनके उत्पादन में कई गुना बढ़ोतरी हुई है। ये तकनीक क्या है? कैसे काम करती है? कैसे इस तकनीक के इस्तेमाल से किसान अपनी लागत को कम और आमदनी को बढ़ा सकते हैं, इसपर किसान ऑफ़ इंडिया ने विशाल शांकता से ख़ास बातचीत की। 

हाई डेंसिटी तकनीक से सेब की खेती high density method in apple farming

विशाल शांकता को खेती विरासत में मिली है। 1940 से उनके दादा परदादा खेती करते आए हैं। अब वो खेती की उस विरासत को बड़े स्तर पर ले जाने का काम कर रहे हैं। बचपन से ही खेती-किसानी को करीब से उन्होंने देखा है। लिहाज़ा मिट्टी और खेती के प्रति अपने लगाव को उन्होंने खुद भी चुना और आज वो एक सफल सेब उत्पादक किसान हैं। विशाल शांकता बताते हैं कि उनके क्षेत्र में ज़्यादातर किसान बागवानी कार्यों से जुड़े हुए हैं। उन्होंने बताया कि उनके परिवार में पहले से पारंपरिक तरीके से सेब की खेती होती आई है, लेकिन उन्होंने सेब की खेती को उन्नत बनाने के लिए हाई डेंसिटी तकनीक का इस्तेमाल किया। हाई डेंसिटी तकनीक एक यूरोपियन मेथड है, जिसमें रूट स्टॉक से सेब की खेती की जाती है। 

क्या है हाई डेंसिटी तकनीक यानी उच्च घनत्व वाली खेती? 

बागवानी में हाई डेंसिटी सिस्टम एक ऐसी तकनीक है, जिसमें प्रति इकाई क्षेत्रफल में अधिक फलदार पौधों का रोपण कर, उससे लगातार कई साल तक क्वालिटी वाली फलों की उपज ली जा सकती है। प्रति इकाई क्षेत्रफल में अधिक से अधिक पौधे लगाए जाते हैं। विशाल शांकता ने बताया कि सेब की हाई डेंसिटी बागवानी करते समय पौधे से पौधे की बीच की दूरी 1 मीटर और पंक्ति से पंक्ति की दूरी ढाई मीटर रखी जाती है। 

हाई डेंसिटी तकनीक से सेब की खेती high density method in apple farming

प्रति हेक्टेयर बढ़ा उत्पादन

विशाल शांकता बताते हैं कि कई युरोपियन और एशियन देशों में सेब की औसत उत्पादकता 50 टन प्रति हेक्टेयर है, जबकि भारत में यह केवल 7 से 8 टन है। हाई डेंसिटी तकनीक अपनाने से उत्पादन क्षमता बढ़ती है। साथ ही लघु सीमांत किसान, जिनके पास कम ज़मीन है, उनके लिए ये तकनीक फ़ायदेमंद है। कम जगह में कई पौधे लगाए जा सकते हैं, जिससे उत्पादन दोगुना और कमाई तिगुनी होती है। 

कमाई तिगुनी बढ़ी

विशाल शांकता ने आगे बताया कि जहां पारम्परिक सेब की खेती से केवल करीबन 50 फ़ीसदी ही ए ग्रेड सेब और बाकी 50 फ़ीसदी बी ग्रेड सेब का उत्पादन होता था, हाई डेंसिटी में 90 प्रतिशत से ज़्यादा ए ग्रेड सेबों का उत्पादन होता है। कम ज़मीन में ज़्यादा पेड़ लगाकर ज़्यादा उत्पादन, वो भी क्वालिटी के साथ हासिल कर सकते हैं।

“पारंपरिक खेती में जहां प्रति एकड़ 5 लाख रुपये के आसपास आमदनी रहती थी, वहीं हाई डेंसिटी तकनीक अपनाने से आमदनी का प्रतिशत करीबन 3 गुना बढ़ा। उसी एक एकड़ से 12 से 15 लाख रुपये तक की कमाई होती है।” 

हाई डेंसिटी तकनीक से सेब की खेती high density method in apple farming

विशाल शांकता ने 2019 से सेब की खेती में हाई डेंसिटी तकनीक को बड़े स्तर पर अपनाना शुरू किया है। वह हर साल पारंपरिक खेती की जगह हाई डेंसिटी तकनीक से सेब की खेती का क्षेत्रफल बढ़ा रहे हैं। पुरानी जड़ों को निकालना, मिट्टी को तैयार करना, मशीनों द्वारा खेतों को तैयार कर हाई डेंसिटी तकनीक को अपनाया जा रहा है। वह 32 बीघे में सेब की खेती कर रहे हैं, जिसमें से 10 बीघे क्षेत्र में उन्होंने पूरी तरह से हाई डेंसिटी तकनीक को अपनाया हुआ है।

कैसे अपनाएं हाई डेंसिटी तकनीक?

वह कहते हैं कि अभी बाकी बची 22 बीघे की ज़मीन पर वो पारंपरिक तरीके से ही सेब की खेती कर रहे हैं। इसका कारण है कि अभी 22 बीघे में सेब के बड़े पौधे लगे हुए हैं। उन्हें अभी काटा नहीं जा सकता। इसलिए ज़रूरी है कि साल दर साल तकनीक को अपनाया जाए ताकि आमदनी निरंतर बनी रहे और कोई आर्थिक दबाव न आए।

इसका फॉर्मूला समझाते हुए विशाल शांकता ने बताया कि पारंपरिक खेती से जहां 30 लाख रुपये का सेब होता था, उन्होंने थोड़ा घाटा झेलते हुए 25 लाख रुपये के ही सेबों का उत्पादन लिया और 5 लाख रुपये तक का बगीचा काट लिया। फिर अगले तीन साल में जब काटे हुए बगीचे से 5 लाख रुपये आने शुरू हुए, तो पारंपरिक खेती में से फिर से 5 लाख रुपये का बागान काट दिए। विशाल शांकता बताते हैं कि इस फॉर्मूले से आपकी आय स्थिर रहेगी और आप कोई बड़ा नुकसान सहे बिना नयी तकनीक भी अपना पाएंगे। 

हाई डेंसिटी तकनीक से सेब की खेती high density method in apple farming

किसानों को दे रहे ट्रेनिंग

विशाल शांकता अपने क्षेत्र के अन्य किसानों को हाई डेंसिटी तकनीक को अपनाने को लेकर प्रोत्साहित कर रहे हैं। वह अपने क्षेत्र के किसानों को सेब की खेती में हाई डेंसिटी तकनीक को कैसे अपनाना है, इसे लेकर ट्रेनिंग भी देते हैं। इसके लिए वो कोई फ़ीस भी चार्ज नहीं करते।

बड़ी संख्या में बाहर से प्लांट मैटेरियल किये जाते हैं आयात

विशाल शांकता आगे बताते हैं कि हाई डेंसिटी तकनीक का प्लांट मैटेरियल बाहर देशों से आयात होता है। भारत में रूटस्टॉक प्लांट मैटेरियल इटली से ही आयात किया जाता है। हालांकि, देश में कई पौध नर्सरी ने रूट स्टॉक उपजाना शुरू कर दिया है, तो आने वाले तीन से चार साल में 20 से 30 फ़ीसदी प्लांट मैटेरियल यहीं उपलब्ध हो जाएगा। 

कैसे करें खेत तैयार?

जेसीबी, ट्रैक्टर या छोटे टिलर से खेत की अच्छे से जुताई कर लें। ढाई बाय ढाई फ़ीट का ट्रेंच बना लें। फिर खाद के रूप में गोबर खाद या कोई भी जैविक खाद, जैविक सुपर फॉस्फेट उर्वरक डाल दें। इसके बाद थोड़ी सी रेत डाल दी जाती है। सबको अच्छे से खुरपी की मदद से मिलाया जाता है और फिर प्लांट मैटेरियल को ट्रेंच में लगा दिया जाता है।

कैसी हो मिट्टी?

विशाल शांकता बताते हैं कि चिकनी मिट्टी में हाई डेंसिटी तकनीक से सेब की बागवानी करने से बचें। चिकनी मिट्टी में जड़ें अच्छे से विकसित नहीं हो पाती। दोमट मिट्टी में सेब की अच्छी पैदावार प्राप्त होती है। जहां पर लाल मिट्टी है, उसमें थोड़ी रेत का इस्तेमाल सहित जैविक खाद डालकर अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है। 

हाई डेंसिटी तकनीक से सेब की खेती high density method in apple farming

कौन सी किस्म?

हाई डेंसिटी तकनीक में बौनी किस्मों का चुनाव फ़ायदेमंद रहता है। विशाल शांकता ने बताया कि ज़्यादातर लोग रूट स्टॉक में मुख्य तौर पर एम-09 किस्म का इस्तेमाल करते हैं। ये एक बौनी किस्म है। एम-09 रूट स्टॉक में उत्पादन क्षमता सबसे ज़्यादा है। बौनी किस्मों का रखरखाव करना आसान होता है। श्रमिक लागत ज़्यादा नहीं आती। इन बौनी किस्मों के पौधों की ऊंचाई 8 से 10 फ़ीट की होती हैं। इसके अलावा, विशाल शांकता ने हाई डेंसिटी तकनीक में सेब की गाला, किंग रॉट रेड डिलिशियस वैराइटी, स्कारलेट, रैड बिलॉक्स जैसी किस्में लगाई हुई हैं। 

पौधों का रखरखाव, लगाएं ट्रेलिस सिस्टम

पौधों को गिरने से बचाने के लिए ट्रेलिस सिस्टम लगाया जाता है। इसमें जमीन से ऊपर लताओं को रस्सियों के सहारे उठा दिया जाता है। ट्रेलिस को नायलॉन और प्लास्टिक की रस्सी, बांस, लकड़ी की मदद से बनाया जाता है। 10 फीट के बांस या लकड़ी के खंभों को कुछ निर्धारित दूरी पर रखकर, उनके बीच में वायर या रस्सी को बांध दिया जाता है। फिर पौधे की उथली जड़ों को इसके सहारे बांध दिया जाता है। इससे पौधे के टूटने का खतरा नहीं रहता। 

हाई डेंसिटी तकनीक से सेब की खेती high density method in apple farming

हाई डेंसिटी तकनीक से सेब की खेती में तिगुनी कमाई, हिमाचल के किसान विशाल शांकता से जानिए इस तकनीक को कैसे अपनाएं

कितना खर्चा?

विशाल शांकता बताते हैं कि अगर आप पौधा या कहे रूट स्टॉक विदेश से आयात कर रहे हैं तो एक पौधे पर दो हज़ार रुपये तक का खर्चा आता है। इसमें पौधे की 700 रुपये की कीमत से लेकर, रोपाई, ट्रेलिस सिस्टम लगाना शामिल है। इस तरह से एक पौधे पर करीब दो हज़ार रुपये का खर्चा आ जाता है। अगर आप 100 पौधे लगाते हैं तो 2 लाख रुपये का खर्चा आएगा।

वहीं अगर आपको प्लांट मैटेरियल भारत में उपलब्ध हो जाता है तो फिर भी करीबन 1300 रुपये का एक पौधे पर खर्चा आएगा। रूट स्टॉक प्लांट मैटेरियल की मांग बढ़ने लगी है। इस वजह से इनकी बुकिंग पहले से होने लगती हैं। इसलिए आपको पता करते रहना होता है कि ये कब उपलब्ध होंगे। 

हाई डेंसिटी तकनीक से सेब की खेती high density method in apple farming

नयी तकनीकों को अपनाएं 

विशाल शांकता कहते हैं कि दुनिया भर में अगर हमको अपनी धाक रखनी है तो हमें अपने कृषि वैज्ञानिकों के सहयोग से खेती की नयी तकनीकों को अपनाना होगा। साथ ही ज़रूरी है धरातल में रहकर काम किया जाए। किसानों को नयी तकनीकों के बारे में जानकारी देने के लिए ट्रेनिंग सेशन से लेकर सेमीनार आयोजित किये जाएं। विशाल शांकता कहते हैं किसानों को वैज्ञानिक तरीकों को अपनाना ज़रूरी है तभी कामयाबी मिलेगी। 

कुछ चुनौतियां

विशाल शांकता आगे बताते हैं जहां जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड जैसे राज्यों में ए ग्रेड सेब की कीमत लगभग 63 रुपये, बी ग्रेड का 44 रुपये और सी ग्रेड का 24 रुपये प्रति किलो दाम मिलता है। उनके क्षेत्र में यही सी ग्रेड सेब 9 रुपये प्रति किलो की दर से बिकता है। एक किलो सेब उत्पादन की लागत लगभग 22 रुपये पड़ती है। इस वजह से किसानों को लागत का पैसा निकालने में मुश्किल होती है। वहीं ए ग्रेड सेब के लिए मार्केट पर निर्भर हैं। दिल्ली, लखनऊ, देहरादून, मुंबई, जयपुर या स्थानीय मंडियों में सेब जाता है।

इसके अलावा, उन्होंने कहा कि हिमाचल में सेब उत्पादक किसानों को लाभ हो, इसके लिए कुछ अहम कदम उठाने की ज़रूरत हैं। मसलन तकनीक से लेकर प्लांट मैटेरियल, कीटनाशकों और उर्वरकों पर सब्सिडी की व्यवस्था होनी चाहिए। वहीं उन्होंने जानकारी दी कि सेब की पैकेजिंग सामग्री पेटी ओर ट्रे पर लगने वाले 18 प्रतिशत जीएसटी को लेकर सेब बागवानों ने प्रदेश सरकार से कार्टन के दाम कम करने की अपील भी की है। 

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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