कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपनी असफलताओं और बुरे हालात के लिए परिस्थितियों व किस्मत को कोसते रहते हैं और कुछ ऐसे होते हैं कि अपनी मेहनत और लगन से मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों को भी बदल देते हैं और मिसाल बन जाते हैं। कुछ ऐसा ही किया है बागेश्वर ज़िले के असौं गाँव की रहने वाली दिव्यांग महिला लीला शाही ने। खेती, पशुपालन और मशरूम उत्पादन की बदौलत उन्होंने न सिर्फ़ अपने परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार किया, बल्कि अब वह दूसरी महिलाओं को भी वैज्ञानिक तकनीक से खेती के लिए प्रेरित कर रही हैं।
वैज्ञानिक तकनीक से खेती करके फ़ायदा
लीला शाही बचपन से ही दिव्यांग हैं और कम उम्र में ही पिता का साया सिर से उठ जाने के बाद उनकी ज़िंदगी में की मुश्किलें आईं। मगर उन्होंने हालात के आगे घुटने नहीं टेके और कठिनाइयों के बावजूद डिस्टेंस एजुकेशन से अपनी पढ़ाई पूरी की। उनके परिवार की आमदनी का मुख्य स्रोत खेती थी, इसलिए वह शुरू से ही कृषि कार्यों से जुड़ी रहीं। उनके परिवार के पास खेती के लिए मात्र 0.16 हेक्टेयर भूमि ही थी, जिसपर उनका परिवार सब्ज़ी व फल के उत्पादन के साथ ही पशुपालन भी करता था, मगर पारंपरिक तरीके के कारण बहुत आमदनी नहीं हो पाती थी।

कृषि विज्ञान केन्द्र से मिली मदद
लीला शाही प्रगतिशील महिला किसान हैं और वह हमेशा से कृषि से जुड़े प्रशिक्षण व जागरुकता कार्यक्रमों में हिस्सा लेती रहती थीं। इससे उन्हें नई-नई जानकारियां मिलती रहती थी। कृषि विज्ञान केन्द्र काफलीगैर के संपर्क में आने के बाद उन्हें खेती की नई तकनीकों और उन्नत बीजों के बारे में जानकारी मिली। फिर उन्होंने पारंपरिक तरीका छोड़कर वैज्ञानिक तकनीक से खेती करनी शुरू कर दी। जल्द ही उन्हें इसका परिणाम भी देखने को मिला। अब सब्ज़ियों की खेती के साथ ही वह पौध उगाकर भी बेचती हैं। इसके अलावा, वह घर पर ही बटन मशरूम उत्पादन भी कर रही हैं।

पॉलीहाउस में सब्ज़ियों की खेती
लीला शाही सब्ज़ियों की खेती पॉलीहाउस में करती हैं। बागवानी विभाग की मदद से उन्होंने अपने खेत में पॉलीहाउस बनवाया है, जिसमें वह खीरा, शिमला मिर्च, टमाटर, फूलगोभी, पत्तागोभी जैसी सब्जियां उगा रही हैं। वह अच्छी क्वालिटी के बीजों का इस्तेमाल करती हैं।
उन्नत किस्मों का उत्पादन
वह धान, सोयाबीन, गेहूं, मड़वा, मसूर आदि फसलें उगाती हैं। धान की वीएल 154, 62, 65 किस्म, गेहूं की वीएल 957, 829, 953, मसूर की वीएल 126, सोयाबीन की वीएल 47, 65 आदि उन्नत किस्मों का उत्पादन कर रही हैं।
उन्नत बीज, सही समय पर बुवाई, पंक्ति में बुवाई, खाद की सही मात्रा का उपयोग और विशेषज्ञों की सलाह मानकर खेती करने पर उन्हें अधिक उपज प्राप्त हो रही है। उनकी सफलता देखकर इलाके की अन्य महिला किसान भी वैज्ञानिक तकनीक अपनाने के लिए प्रेरित हुई हैं और लीला उन्हें जागरुक करने का काम कर रही हैं।
पशुपालन भी अपनाया
उन्होंने संकर नस्ल की दो गाय और भैंसे रखी हैं, जिससे मिलने वाले दूध को वो डेयरी में बेचकर अतिरिक्त कमाई करती हैं। वह कृषि विज्ञान केन्द्र के व्हाट्सऐप ग्रुप से जुड़ी हैं, जिससे उन्हें कृषि के साथ ही पशुपालन से जुड़ी जानकारियां जैसे पशुओं की देखरेख, चारा प्रबंधन आदि के बारे में जानकारी मिलती रहती है।

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वैज्ञानिक तकनीक से खेती करके आमदनी में हुई बढ़ोतरी
सब्ज़ी उत्पादन से सालाना करीबन 36 हज़ार रुपये, पशुपालन से 1,01,500 रुपये, फसल से 6,800 रुपये, मशरूम उत्पादन से 37,500 रुपये की आमदनी हो रही है। यानी वह सालाना 1,81,800 रुपये की कमाई कर रही है, जो पहले सिर्फ़ 66,400 रुपये ही थी।
वह न केवल एक प्रगतिशील कृषक महिला हैं, बल्कि वह अपने क्षेत्र में एक समाज सेवी के रूप में भी सामने आई हैं। महिला किसानों को प्रेरित कर समूह बनवाना, कृषि की उन्नत तकनीकों, योजनाओं, प्रशिक्षण कार्यक्रमों, सेमीनार आदि से जोड़कर जागरूक करने का कार्य भी करती हैं।
लीला शाही को कृषि में उनके योगदान के लिए ब्लॉक स्तर पर 2018-19 में ‘किसान श्री’ और जिला स्तर पर 2020-21 में ‘किसान भूषण’ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
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