मधुमक्खी पालन: आमदनी और फसलों का उत्पादन बढ़ाने में है मददगार

पिछले कुछ सालों में बाज़ार में शुद्ध शहद की मांग बहुत बढ़ी है। सर्दी-खांसी से बचने के लिए अक्सर लोग बच्चों को भी शहद चटाते हैं। ऐसे में मधुमक्खी पालन किसानों की अतिरिक्त आमदनी का बेहतरीन ज़रिया तो है ही, साथ ही ये फसलों का उत्पादन बढ़ाने में भी मदद करता है।

मधुमक्खी पालन Beekeeping

मधुमक्खी पालन: कुछ कीट ऐसे होते हैं जो फसलों को हानि पहुंचाते हैं और उनसे फसलों का बचाव ज़रूरी है, मगर कुछ कीट ऐसे हैं जो फसलों की वृद्धि और अच्छी गुणवत्ता के लिए ज़रूरी है। ऐसे कीटों में तितली और मधुमक्खी आदि शामिल है। ये परागण का निर्माण करते हैं।

मधुमक्खी फूलों के रस को शहद में तब्दील करती है। साथ ही मधुमक्खी फसलों में परागण बनाती हैं जिससे अच्छी गुणवत्ता के बीज और फसल प्राप्त होती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) मधुमक्खी पालन को बढ़ावा दे रहा है। इसके लिए ICAR- भारतीय सब्जडी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी में समेकित एवं उत्कृष्ट मधुमक्खी पालन केंद्र भी स्थापित किया गया है।

मधुमक्खी पालन से किसानों को डबल फायदा होता है, एक तो वो मधुमक्खी से प्राप्त होने वाले शहद, वैक्स, रॉयल जेली, मौन विष आदि को बेचकर कमाई कर सकते हैं, दूसरे मधुमक्खियों के फसलों में परागण बनाने से फसल में वृद्धि होती है जिससे उनका मुनाफा भी बढ़ता है।

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मधुमक्खी की प्रजातियां
मधुमक्खी की कई प्रजातियां है और सभी प्रजातियों से अलग-अलग मात्रा में शहद प्राप्त होता है। आमतौर पर ए मेलिफेरा और ए सेरेना इण्डिका मधुमक्खियों को पाला जाता है। पूरे देश में शहद उत्पादन में भारत का स्थान पांचवां है। फिलहाल देश में 2 लाख रजिस्टर्ड मौनपालकों द्वारा मौनवंशों को पाला जा रहा है, लेकिन कृषि और बागवानी फसलों में सफल परपरागण के लिए लाखों की संख्या में मधुमक्खियों के छत्ते की ज़रूरत है। इसलिए सरकार भी मधुमक्खी पालन को बढ़ावा दे रही है।

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मधुमक्खी पालन से रोजगार सृजन भी होगा। जहां तक मधुमक्खियों से प्राप्त होने वाले शहद की मात्रा का सवाल है तो इण्डियनबी के एक छत्ते से 6-8 किलो, यूरोपियन बी के एक छत्ते से 40-60 किलो, राक बी. से 36-40 किलो और लिलिट बी. से 0.5-1.0 किलो शहद हर साल प्राप्त किया जा सकता है।

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मधुमक्खी पालन Beekeeping
मधुमक्खी पालन Beekeeping (Photo KOI)

खेती में सहायक हैं मधुमक्खियां
महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था, ‘अगर धरती से मधुमक्खियां विलुप्त हो जाए, तो दुनिया से इंसानों का अस्तित्व सिर्फ चार सालों में खत्म हो जाएगा, क्योंकि मधुमक्खियां नहीं होंगी तो फसलों में परागण नहीं होगा जिससे पौधें, पुशओं और मनुष्य का अस्तित्व भी संकट में आ जाएगा।’ उनकी बाद बिल्कुल सही है, फसलों की वृद्धि के लिए परागण बहुत ज़रूरी है।

हमारे देश में रॉक बी, लिटिल बी, इंडियन बी और यूरोपियन बी मधुमक्खियों का पालन परागण के लिए किया जाता है। राक बी वन क्षेत्रों के पेड़ों के साथ ही कपास, आम, नारियल और कालीमिर्च की फसल में भी परागण करती है। इसके अलावा इंडियन बी 42 प्रतिशत फसलों में परागण करती है।

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फसलों में परागण

जानकारों के मुताबिक, मधुमक्खियां पूरी दुनिया की 70 फीसदी कृषि व बागवानी फसलों में परागण करके गुणवत्तापूर्ण फसल व बीज उत्पादन में मदद करती है। आपको जानकर शायद हैरानी होगी कि हमारे देश में करीब 50 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र की फसलों का परागण मधुमक्खियों पर निर्भर है। अगर मधुमक्खियां न हों तो कुछ फसलों में प्रति हेक्टेयर 10,000 से 55,000 रुपए प्रति हेक्टेयर तक का नुकसान हो सकता है। हमारे देश में अभी 2000 लाख अतिरिक्त मधुमक्खियों के छत्ते की ज़रूरत है।

मधुमक्खी पालन
मधुमक्खी पालन – Bee keeping – (तस्वीर साभार: pixabay – Free Image)

किन फसलों में परागण करती हैं
मधुमक्खियां अपने छत्ते के 3 कि. मी. तक की परिधि में परागण करने में सक्षम होती हैं। मधुमक्खियों द्वारा बागवानी फसलों में- सेब, नाशपाति, चेरी, स्ट्रॉबेरी, लीची, नींबू, अंगूर, बादाम, आड़ू, अमरूद, आंवला, खुबानी आदि में परागण किया जाता है। सब्ज़ी फसलों में- मूली, पत्तागोभी, शलजम, गाजर, प्याज़, फोलगोभी, खीरा, करेला, कद्दू, धनिया। दलहन फसलों में सूरजमुखी, रामतिल, सरसों, कुसुम, तिल में परागण किया जाता है।

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ICAR की रिसर्च में ये बात साबित हुई है कि परागण के कारण फसलों का उत्पादन अच्छा और अधिक होता है। इसलिए मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने की ज़रूरत है। साथ ही इससे देश की शहद की ज़रूरत पूरी होगी और किसानों को आमदनी का एक बेहतरीन ज़रिया मिल जाएगा।

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