मधुमक्खी पालन | दुनियाभर में 20 मई को विश्व मधुमक्खी दिवस (World Bee Day) मनाया जाता है। देश के कई युवा मधुमक्खी पालन से जुड़कर इसमें अच्छा व्यवसाय कर रहे हैं। आज कश्मीर के एक ऐसे ही युवा की कहानी किसान ऑफ़ इंडिया आपके लिए लेकर आया है।
आज कामयाब मधुमक्खी पालक और शानदार शहद उत्पादक बना तेईस बरस का नाज़िम, जब पांच साल पुरानी उस घटना को बता रहा था तब ये भी चाह रहा था कि उस की इस बात को गौर से सुना जाए- ये अक्टूबर 2017 की बात है। अन्य दिनों की तरह नाज़िम उस रोज़ भी अपने घर में उस कमरे में पढ़ाई कर रहा था, जिसकी एक खिड़की का मूंह मेन रोड की दिशा में है। नाज़िम तब बारहवीं क्लास में था। उसकी तमन्ना मेडिकल डॉक्टर बनने की थी इसलिए विज्ञान का विषय चुना। नाज़िम के हाथ में रसायन विज्ञान की किताब थी, क्योंकि अगले दिन उसे केमिस्ट्री का पेपर देना था। तभी तेज़ आवाज़ के साथ खिड़की से आंसू गैस का गोला कमरे में आ गिरा। बाहर उपद्रव कर रहे प्रदर्शनकारी पत्थरबाजों से निपटने के लिए सुरक्षा बलों के दागे गए आंसू गैस के गोलों में से ये गोला एक था।
ये बात नाज़िम को भी पता थी, बावजूद इसके नाज़िम के दिलो-दीमाग पर इस घटना का ऐसा असर हुआ कि वो ठीक से इम्तिहान तक नहीं दे सके। 12वीं में उनके 71 फ़ीसदी नंबर आए, जबकि नाज़िम का टारगेट कम से कम 85 फ़ीसदी अंक लाने का था। खैर उस नतीजे के बूते बीएससी में एडमिशन लिया और मेडिकल एंट्रेंस की तैयारी भी की, लेकिन वो घटना ऐसी ज़हन पर रही कि पढ़ाई करते वक्त बार-बार याद आती थी। लिहाज़ा, नाज़िम ने ध्यान हटाने के लिए खुद को मधुमक्खी पालन में ऐसा व्यस्त किया कि आज ऐसी उपलब्धियां हासिल कर रहे हैं, जो डॉक्टर बनने से कम नहीं हैं।
हालांकि, नाज़िम ने मधुमक्खी पालन को एक शौक के तौर पर लिया था। तब वो सिर्फ़ दो बॉक्स लाए थे। ये यूरोपियन नस्ल की मधुमक्खियों एपिस मेलिफेरा (Apis Mellifere) के डिब्बे थे, जो नाज़िम को उनके पिता के एक दोस्त ने फ़्री में दिए थे। इसे यहां लोग इटली मक्खी भी कहते हैं। मक्खियों की तादाद जब बढ़नी शुरू हुई तो नाज़िम ने उनके दो बॉक्स से 3 बना डाले लेकिन ये नौसिखियापन था। कुछ दिन में तीनों बॉक्स की मधुमक्खियां ख़त्म हो गई। नाज़िम कहते हैं, “उस दिन बहुत बुरा महसूस किया था।” इसके बाद, नाज़िम ने मधुमक्खी पालन को गम्भीरता से लेना शुरू किया।
इंटरनेट पर खोज खबर करते हुए उन्हें खादी विलेज उद्योग विभाग का पता चला, जहां मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण दिया जाता था। ये सात दिन का कोर्स है। नाज़िम बताते हैं कि यहीं पर उनकी मुलाकात इमरान मजीद से हुई, जिन्होंने उसे पहले 10 बॉक्स दिलाए। उस वक्त फूलों के खिलने का मौसम यौवन पर था। ये बहार उसकी कामयाबी की बयार बन गई। इन 10 डिब्बों से उसे 40 किलो शहद मिला। जब नाज़िम ने सीखे हुए हुनर की बदौलत 10 से 15 बॉक्स बना लिए तो उन्हें 15 बॉक्स और मिले। इन बॉक्स की उन्हें आधी कीमत देनी पड़ी क्योंकि सरकारी योजना के मुताबिक, इन पर 50 फ़ीसदी सब्सिडी थी। नाज़िम बताते हैं कि दूसरी बार जब बॉक्स से शहद निकाला तो उसकी मात्रा 70 किलोग्राम थी, लेकिन पूरी तरह से शुद्ध ये शहद स्थानीय व्यापारी 600 रुपये किलो में खरीदते थे।
मक्खियों की कश्मीर से राजस्थान शिफ्टिंग
मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में मिली ये तो दर असल छोटी सी एक कामयाबी थी। अब चुनौती ये थी कि सर्दियों में मक्खियों का क्या किया जाए क्योंकि ज़्यादा ठंड में मक्खियां सक्रिय नहीं होतीं। लिहाज़ा इस समस्या का ईलाज नाज़िम के उस दोस्त बलदेव ने निकाला, जो उनके साथ मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग ले चुका था। बलदेव राजस्थान के श्री गंगा नगर ज़िले के सूरत गढ़ का रहने वाले एक किसान हैं। मधुमक्खी के बॉक्स ट्रांसपोर्ट के ज़रिए, कश्मीर के पुलवामा स्थित उनके सम्बूरा गांव से बलदेव के खेत में पहुंचा दिए गए। हालांकि, इस पर 25 हज़ार रूपये का खर्च आया। इसके बाद नाज़िम का काम चल निकला। नाज़िम ने शहद उत्पादन तो बढ़ाया ही, साथ ही मधुमक्खियों के बॉक्स भी बनाने और बेचने लगे। और तो और न सिर्फ़ अन्य मधुमक्खी पालक बल्कि सरकारी विभाग भी नाज़िम से बॉक्स खरीदने लगे।
किसान से कारोबारी बनने की शुरुआत
यहां से इस कश्मीरी किसान नाज़िम की ज़िंदगी एक कारोबारी के तौर पर शुरू हुई। साथ ही साथ नाज़िम ने मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग देने का काम भी शुरू कर दिया। वे इच्छुक युवाओं को अपने यहां धुमक्खी पालन की फ़्री ट्रेनिंग और सलाह मशवरा देते हैं। नाज़िम बताते हैं कि वे अब तक हज़ार से ज़्यादा युवाओं को ट्रेनिंग दे चुके हैं। वो इनसे बॉक्स भी खरीदते हैं। इनमें से कई ने मधुमक्खी पालन को रोज़गार के तौर पर अपनाया है। अपने शहद का सही मूल्य हासिल करने के लिए नाज़िम ने पहले सोशल मीडिया का सहारा लिया। उन्होंने छोटी छोटी पैकिंग में शहद भरा और उसकी फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट की, तो उनको सप्लाई के आर्डर आने लगे। शुरू-शुरू में ही एक ही दिन में 6-7 आर्डर आ जाते थे। खुदरा सप्लाई से ठीक मूल्य मिलने से उत्साहित नाज़िम ने 2021 में अपने ब्रांड- अल नहल हनी (Al Nahl Honey ) की शुरुआत की। दिल्ली गए और वहां एक प्रोफ़ेशनल कंपनी से बोतल और स्टीकर आदि की डिज़ाइनिंग और मैन्युफैक्चरिंग कराई। अब वो इस ब्रांड से तीन साइज़ की बोतलों की पैकिंग में शहद बेचते हैं। नाज़िम ने वेबसाइट बनवाई, खुद सोशल मीडिया पर सेल्स प्रमोशन किया।
अब ऑर्डर ज़्यादा हैं और माल कम पड़ जाता है
नाज़िम के शहद के कारोबार की हालत अब ये है कि उनके पास ऑर्डर ज़्यादा हैं और माल कम पड़ जाता है। साल में 10 से 12 क्विंटल शहद का उत्पादन करते हैं। हाल ही में गुजरात से व्यापारी परिवार उनसे शहद खरीदने आया। दिल्ली, यूपी, मुंबई में तो वो ट्रांसपोर्ट के ज़रिए शहद भेजते हैं। इंटरनेट पर उनके प्रॉडक्ट को देखकर फ्रांस और यूएई तक से ऑर्डर आए हैं, लेकिन एक्सपोर्ट का लाइसेंस न होने के कारण नाज़िम विदेश में अपना शहद निर्यात नहीं कर सकते। उनकी कोशिश अब निर्यात करने की दिशा में कदम बढ़ाने की है। वहीं उत्पादन बढ़ाने के लिए अब उन्होंने एक तरकीब और निकाली है। ज़्यादा उत्पादन के लिए ज़्यादा बॉक्स राजस्थान में रखने लगे हैं। दरअसल, कश्मीर का मौसम सर्द रहने के कारण यहां साल में सिर्फ़ 2 बार शहद निकाला जा सकता है और उस पर भी एक बॉक्स से 5 किलो तक शहद प्राप्त होता है, जबकि राजस्थान ले जाने पर साल में 4 से 5 बार बॉक्स से शहद निकलता है। वो भी एक बार में दस किलो यानि वहां साल भर में एक बॉक्स से 40 से 50 किलो शहद मिल सकता है।
मधुमक्खी पालन ट्रेनिंग के लिए अकादमी बनाने का प्लान
शहद के उत्पादन से लेकर सेल्स तक में नए या आधुनिकतम तौर तरीके अपनाने, नई तकनीक का उपयोग और खुद को अपडेट करने में नाज़िम का ज़बरदस्त विश्वास है। कहते हैं कि इसी के बूते वो हर महीने औसतन 50 हज़ार रूपये महीना कमा लेते हैं। अब उन्होंने गांव में एक छोटा सा ऑफिस भी बना लिया है। नाज़िम अब अपने जैसे युवाओं को शहद उत्पादक और मधुमक्खी पालक बनाने का एक और प्लान बना रहे हैं। इसके तहत वो एक अकादमी खोलना चाहते हैं जहां औपचारिक तौर पर मधुमक्खी पालन का कोर्स (Beekeeping Course) कराया जाएगा। ये 10 दिन का कोर्स होगा जिसमें इस काम के बारे में हर एक चीज़ की सारी जानकारी दी जाएगी।
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